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Heartless king

न्यूयोर्क शहर एक उँची ईमारत से, एक शख्स शीशे क़ी खिड़की के पास खड़ा  निचे आते -जाते हुए गाड़ीयों और लोगों को देख रहा होता हैँ..... उतनी ऊंचाई लोग और गड़िया उसे कीड़े माकोड़े क़ी तरह दिख रही होती हैं। वो निचे देखते हुए कुछ सोचे जा रहा था। तभी दो लोग अंदर आते हैँ, चलो हमें निकलना हैँ, काका हुजूर का बार बार फ़ोन आ रहा हैँ .... राजस्थान के लिए.... जैट तैयार हैँ......... वो शख्स, "हम्म्म " कहते हुए फिर से खिड़की क़ी तरफ देखते हुए और कहता हैं........... क्या उसके बारे कुछ मालूम हुआ, कहते हुए उसके आखों में एक दर्द उभर आया। दूसरा शख्स, "तुम आज तक नहीं भूले हो उसे..... सात साल हो गए.... कौन थी, कहाँ से आयी थी, केसी दिखती हैं,अब तक हमें मालूम नहीं हुआ,जैसे उसे जमीन खा गयी या आसमान निगल गया। जिन्दा भी हैं या मर गयी। तभी वो गुस्से में, उसका गला पकड़.... जस्ट शटअप दुबरा ये कहने की हिम्मत मत करना ये कहते हुए उसके आँखो में खून उतर आया। फिर झटके से उसे छोड़ दिया। वो खाँसते हुए अपने गले को सहलाता हैं। तभी वो मुड़ता हैँ और कहता हैँ..... उसकी पहली मुलकात के बाद यही कहूँगा क़ी उसके बगैर दिल कही लगता नहीं ज़ब तक जियूँगा उसे आखिरी सांस तक ढूढ़गा..... आगे महादेव क़ी मर्जी। तभी तीसरा शख्स छोड़ ना तू इसे जानता तो हैँ। तीनों निकल जाते हैं इंडिया के लिए.....

Dhaara_shree · perkotaan
Peringkat tidak cukup
32 Chs

8.प्रजापति भाइयों की सगाई

जलसा अपने जोरों पर होती है।सभी राजा, हुकुम, रजवाड़े इस जलसे मे शामिल होते है। एक से एक बड़े से बड़े लोग अपनी जान पहचान बढ़ने के लिए आज की सगाई मे आये होते है। सभी की नजर सिर्फ दक्ष प्रजापति के आने के इंतजार पर थी। क्योंकि आज की इस जलसे मे सभी रजवाड़े, कोई बहन, कोई अपनी बेटी को लेकर इस उम्मीद मे शामिल हुए है की दक्ष की नजर कर्म की इनायत उनकी बहन याँ बेटी पर पड़ जाये।

ज़ब दक्ष ने उत्सव के अंदर कदमो को रखा तो सभी की नजर दक्ष पड़ आ रुकी थी क्योंकि दक्ष का व्यक्तित्व ही इतना राजसि है की कोई भी देखे तो देखता रह जाये।जितनी रजवाड़े खानदान की कुंवारी लडकियाँ थी वो सभी तो आँख फाड़ कर दक्ष को देख रही थी। यहाँ लडकियाँ क्या... महिलाएं और पुरुष भी सभी बस एकटक दक्ष को देख रहे होते है।क्योंकि आज तक दक्ष को किसी ने प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखा था, सभी ना उसका नाम सुन रखा था। एक जन कहता है.... मान गए भाई राजा साहब के बड़े पोते को क्या शेर की तरह चाल है..... होने वाले राजा की। हाँ भाया... बोल तो. तुम ठीक रहे हो।

दक्ष की शख्शसियत ही इतनी आकर्षक थी की कोई भी उसके आकर्षण से अछूता नहीं रह गया था। ये एकटकी टूटी कब ज़ब दक्ष के पीछे दीक्षा ने प्रवेश किया। उसे देख पुरुष अपनी आखों से खूबसूरती निहार रही होती है और औरते और लडकियाँ जलन से। उनमे से एक ने कह भी दिया अपनी बेटी से, "रे छोरी देख तो ऊ छोरी किणे चोखी लागे से, बिना पावडर मैदा के... एक तू से इतनी लाली लिपस्टिक भी थारे काम ना आई से ".....।।और उसके साथ साथ आयी रितिका और शुभ भी सबकी नजरों  को खुद पर महसूस करती है। पृथ्वी की नजर ज़ब दीक्षा पर जाती है तो दक्ष को आखों से इशारा करता है, दक्ष भी उसी भाव मे जबाब देता है.... फिर उसकी नजर रितिका पर जाती है तो अनीश की तरफ देखता है, अनीश भी अपनी पलकों को झपका देता है.....। रितिका के ठीक पीछे उसकी नजर शुभ पर जाती है तो जैसे उसका दिल धड़कना भूल जाता है। लेकिन तभी पृथ्वी और दक्ष की नजर ज़ब पार्टी मे सभी मर्दो की तरफ जाती है..... दोनों गुस्से से भर जाते है। क्योंकि सबकी नजर सिर्फ दीक्षा पर होती है और शुभ पर।

इधर ज़ब दीक्षा और शुभ को भी गुस्सा आ रहा होता है... दीक्षा तो शुभ को कहती है.... देखिए तो जीजी केसे सब घूर रही है आपके देवर को। जैसे खा ही जाएगी... दानवी चुड़ैल कहीं की। दीक्षा सिर्फ देवर सा को नहीं तेरे भाई सा को भी घूर रही है। सब आयी है उनकी सगाई मे और नजर भी उन्ही को लगा रही है। शुभ के इस तरह फ्लो फ्लो बोलने पर दीक्षा कहती है..... मतलब... आगे कुछ कहती, उससे पहले शुभ उसके हाथों को पकड़ कर.... मुस्कान से अपनी दांतो को कीचते हुए कहती है..... अभी नहीं दीक्षा बाद मे, ठीक है। दीक्षा उसकी बात समझ कर कहती है ठीक है।

दक्ष अनीश के साथ आगे बढ़ कर राजा साहब और रानी माँ के पास आ जाता है, और दोनों झुक कर उन्दोनो का आशीर्वाद लेते है लेकिन राजेंद्र जी की नजर दक्ष के पीछे आ रही दीक्षा पड़ जाती है जिसे वो पहचान नहीं पाते क्योंकि आज दीक्षा भी अलग ही लग रही होती है।राजेद्र जी धीमे से तुलसी जी कानों मे कहते है... दक्ष के पीछे जो लड़की आ रही है कितनी सुन्दर और प्यारी है रानी सा!!!काश!!! ये हमारी दक्ष की दुल्हन होती। तुलसी जी भी दीक्षा को देख मोहित हो जाती है और उनके मन मे ये ख्याल आने लगते है जो राजा साहब ने कहा। तभी उनकी नजर लाल साड़ी पहनी शुभ पर जाती है.... जिसे देख वो मन ही मन कहती है काश मेरे पृथ्वी की की बिंदनी ये बनती, कितनी संस्कारी है फिर एक नजर जयचंद के परिवार पर डालती हुई कहती है.... किस्मत मे क्या है वो तो बस महादेव को मालूम होगा।दक्ष उन्दोनो की बात सुन कर, तुलसी जी के गले लग कर, उनके कानों मे कहता है... जैसा आप चाहती है वैसा ही होगा। फिर राजेंद्र जी के गले लग जाता है..... आप खुश है.... देख कर। राजेंद्र जी बिना जवाब दिए दक्ष की पीठ को तीन बार थप थपा देते है। दक्ष समझ जाता है।

वहाँ प्रजापति खानदान के सभी सदस्य मौजूद होते है। दक्ष कहता है राजा साहब, रानी माँ ये है दीक्षा, रितिका और शुभ प्रियदार्शनी..... तीनों झुक कर उन्दोनो के साथ वहाँ सभी बड़ो के पैरों को छुती है। दोनों कहते है... हमेशा खुश रहिये है।लेकिन कामिनी और रंजीत जी कुछ नहीं कहते है, लेकिन लक्ष्य और सुमन जी सभी को प्यार से आशीर्वाद देते है।दीक्षा को देख रानी माँ कहती है आप बहुत प्यारी है। ये कौन है। अनीश कहता है, क्या दादी माँ दीक्षा और शुभ की तरफ हाथ दिखाते हुए कहता है की ये दोनों। पीछे लक्ष्य कहते है की काकी सा ये दोनों हमारी कंपनी मे काम करती है और दोनों बड़ी होनहार है। तो आपको इन्हें जानते है लक्ष्य। जी काकी सा। फिर अनीश कहता है ये है रितिका जो मेरी जूनियर है। कामिनी जी कहती है, दक्ष इससे पहले तो आपको किसी भी लड़की के साथ नहीं देखा।

राजेंद्र जी कहते है, छोटी बहू इस पड़ हम बाद मे बात करते है, अभी चलिए। और जाते हुए दीक्षा के सर पर प्यार से अपने हाथ फेर देते है।दक्ष हल्का मुस्कुरा देता है लेकिन फिर वो अपनी मुस्कान छिपा लेता है। पृथ्वी और रौनक आज बहुत अच्छे दिख रहे होते है लेकिन पृथ्वी की नजर शुभ पड़ थी.... जो लतिका देख लेती है।

कनकलता जो अपनी माँ और पिता के साथ शर्मायी खड़ी थी जिसे देख लतिका उसके पास आयी.... और कहने लगी। दीदी वैसे तुम कम अक्ल पहले से थी लेकिन अब और हो गयी हो, युहीं शर्माती रहोगी याँ उस पड़ ध्यान दोगी जिसके साथ तुम्हारी सगाई होने वाली है।

कनकलता कहती है क्या मतलब तुम्हारा। लतिका अपना सर हिलाती हुई कहती है, कुछ नहीं हो सकता तुम्हारा।और गुस्से मे चली जाती है।

इधर दक्ष अपने परिवार के बिच मे होता है लेकिन उसकी नजर दीक्षा पर ही होती है। अनीश उन सबके साथ ही होता है और वो मौका निकाल कर शुभ को कहता है, आप मेरे साथ आईये। शुभ उसकी बात सुन रही होती है और उसे धीरे से झुकाती हुई उसके कानों मे कहती है, अपने भाई सा से कहिये की...." आज उनकी सगाई के लिए हमारी तरफ से तोफा है की वो चाहे लाख कोशिश कर ले हम उन्हें आज नहीं मिलेंगे।"

उसकी बात सुन कर अनीश कहता है, "भाभी सा इतना अच्छा तोफा आप देने की सोच रही पता नहीं भाई सा का क्या होगा "।

कहते हुए वो दक्ष सब के साथ खड़ा हो गया। जहाँ पहले से ही पृथ्वी, रौनक, शमशेर, रंजीत, और लक्ष्य खड़े थे। ड्रिंक लेने के बहाने पृथ्वी को बेचैन देख कर अनीश कहता है, यही आपका तोफा है.....। उसकी बात सुन पृथ्वी अपनी आखों को छोटी करके घूरता है। शुभ उसे देख कर मुँह बनाती हुई दीक्षा को कहती है.... दीक्षा हम अभी आते है। आपको कहाँ जा रही हो जीजी। बस आ रहे है वाशरूम से। ठीक है जल्दी आइयेगा। तभी रितिका कहती है हम भी चलते है। ठीक है चलो। वो दोनों चली जाती है। तब दीक्षा अकेली रहा जाती है।

चारों तरफ देखती हुई एक कार्नर के टेबल के पास जा कर बैठ जाती है।और जूस पी रही होती है।

कुछ लोगों की गहरी नजर शुभ, दीक्षा और रितिका पर थी।

इधर रंजीत जी कहते है आईये हम आपको अपने सबसे अच्छे दोस्त के बेटे से मिलवाते है। और उनकी तरफ एक शख्स आता है...जिसे देख कर रंजीत जी कहते है ये है हमारी सबसे अच्छे दोस्त रायचंद के सबसे बड़े साहबजादे ओमकार रायचंद।

ये नाम सुन कर दक्ष और अनीश की आँखे छोटी हो. जाती है। ओमकार अपने हाथ को बढ़ा कर कहता है.... आपसे मिलकर अच्छा लगा मिस्टर प्रजापति। दक्ष कुछ नहीं कहता बस हम्म्म कहते हुए, कहता है एक्सक्यूज़ मी। ओमकार को अपना इस तरह से अपमान होना अच्छा नहीं लगता तो जाते हुए दक्ष से कहता है... मिस्टर प्रजापति शायद आपको जेंटलमैन की तरह रहना नहीं पसंद।

दक्ष जो दीक्षा की तरफ जा रहा था.... वो रुक कर ओमकार की तरफ बिना मुड़े कहता है की मिस्टर रायचंद मैं हर किसी की सोच मे नहीं रुकता.... हर किसी सोच मुझ तक नहीं पहुँचती क्योंकि मैं दक्ष प्रजापति हूँ। कहता हुआ दक्ष बढ़ जाता है, उसकी बातें सुन ओमकार अपनी मुठियों को कस लेता है।उसके पास प्रियांशु सिन्हा (रितिका के भाभी का भाई ) और धीमी आवाज़ मे कहता है.... सर अभी आपको शांत रहिये हम बाद मे देखेंगे।लिपिका की नजर अब सीधे ओमकार पड़ जाती है, जिसे जयचंद और स्नेहलता जी देख लेते है।

जयचंद जी कहते है वैसे हमारी छोटी बेटी के लिए हमें रौनक नहीं पसंद लेकिन सवाल बड़ी बेटी का था इसलिए हाँ कहना पड़ा। स्नेहलता जी कहती है.... हाँ ऐसा ही कुछ मेरा भी विचार था। खेर अब क्या कर सकते है।दोनों ज़ब बात कर रहे होते है तो उन्दोनो की बातें कनक सुन लेटी है... और वो कुछ कहती तभी उसकी नजर रौनक पड़ जाती है। उसे अंदाजा हो चूका होता है की शायद रौनक ने बातें सुन ली।

रौनक उन्दोनो की बात सुन लेता...और अंदर से बहुत दुखी होता है क्योंकि उसे लतिका पसंद आयी थी..... ये सोच वो अपने कदमो को बाहर की तरफ मोड़ लेता है।

इधर शुभ ज़ब रितिका के साथ वाशरूम की तरफ जाती है तो..... रितिका शुभ से कहती है, " जीजी इधर आईये "। लेकिन कहाँ रीती। आइये तो। फिर दोनों महल के एक दूसरे हिस्से मे जाने लगते है और जगह आकर रितिका कहती है आप यही रुकिए हम अभी आते है। लेकिन तुम कहाँ जा रही हो। अभी आती हूँ। तभी पृथ्वी की आवाज़ आती है,"धन्यवाद आपका, ये सुनते ही शुभ और रितिका दोनों सामने देखती है। शुभ को मालूम होता है की ये आवाज़ पृथ्वी की है लेकिन रितिका को नहीं मालूम होता है।

कुछ देर पहले ज़ब अनीश उन सबको छोड़ जाने लगा तो रितिका के कानों मे कहा की भाभी सा को वाशरूम के पिछले वाले हिस्से मे ले जाओ, भाई सा इंतजार कर रहे है। लेकिन रितिका को ये मालूम नहीं था की अनीश जिस भाई सा की बात कर रहे है वो पृथ्वी प्रजापति है।

रितिका आँखे बड़ी करके घबराती हुई कहती है... आआ आप.... ककककक कौन???

पृथ्वी और शुभ उसकी घबराहट समझ लेटे है। पृथ्वी शुभ को इशारा करता है। शुभ बात समझती हुई रितिका को देख कर कहती है,"रीती यही है हमारी हुकुम सा। लेकिन जीजी ये तो जीजू को पसंद नहीं करते। पृथ्वी उसके माथे पड़ हाथ रख कर कहता है, आप फ़िक्र मत कीजिये हम इस बारे मे बाद मे बात करेंगे और हाँ ये हमारी बिच तक ही रहनी चाहिए समझ गयी ना आप। रितिका हाँ मे सर हिलाती हुई.... वहाँ से तेजी से निकल जाती है।

शुभ उसे ऐसे घबराते हुए जाता देख.... जाने को होती है लेकिन पृथ्वी उनका आँचल पकड़ लेटे है जिससे वो रुक जाती है।

हुकुम सा छोड़िये हमें..... क्योंकि आँचलो को समेटते हुए पृथ्वी उसके करीब आ रहा होता है। जैसे जैसे पृथ्वी के कदम करीब आते जाते है,शुभ की धड़कनो का शोर तेज होने लगता है... वो अपने दोनों मुट्ठीयो से साड़ी को कस कर पकड़ लेती है।

पृथ्वी उसकी घबराहट देख मुस्कुरा देता है..... उसके करीब आकर उसके खुले पेट पर अपने गरम हाथों को रख देता है। उसकी छुवन से शुभ की आँखे बंद हो जाती है। पृथ्वी अपनी होठों से उसके गोरे कंधो को चुम लेता है... जो शुभ संभाल नहीं पाती और उसकी तरफ घूम कर उसकी सीने से लग जाती है। पृथ्वी उसे बाहों मे जोर से भरते हुए कहता है, आज आप बेहद खूबसूरत लग रही है.... शुभ। शुभ उसकी बाहों मे खुद को समेटे हुए कहती है.... इसलिए आप आज सगाई कर रहे है???

पृथ्वी उसके चेहरे को ऊपर उठा कर कहता है आपको सच मे ऐसा लगता है.... शुभ अपनी भरी हुई आखों से पृथ्वी की तरफ देखती हुई कहती है.... अपना सर ना मे हिलाती है... उसके लाल होंठ फड़फड़ा रही होती है... जिसे देख पृथ्वी अपने होठों को उसके होठों पर रख देता है, दोनों एक दूसरे को बहुत मुहब्बत से चूमने लगते है।

इधर रितिका वहाँ से भागती हुई.... जा रही होती है की अनीश से टकड़ा जाती है.... और गिरने लगती है...गिरती उसे पहले अनीश उसे अपनी तरफ खींच लेता है.....। रितिका सीधे अनीश की सीने से जा लगती है।

अरे अरे ध्यान से ; रीती.... अनीश कहता है। क्या हुआ तुम इतनी क्यों घबरा रही हो जैसे कोई भुत देख लिया हो। रितिका अनीश के सीने से लगी थी। उसकी बातें सुन उसे ख्याल आया की अभी वो किस हालात मे है और ये सोचते ही, वो अनीश की बाहों से निकलने लगी। अनीश ने उसे अपनी बाहों से नहीं निकलने दिया। फिर रितिका अपना चेहरा ऊपर कर उसे देखने लगी, जैसे पूछ रही हो की आप मुझे छोड़ क्यों नहीं रहे।

अनीश उसकी आखों मे सवाल देख कर कहता है। मैंने तो तुम्हें कभी ना छोड़ने के लिए थामा है। लेकिन अभी के लिए इतना बता दो की हुआ क्या.... फिर रितिका कहती है की,;जीजी पृथ्वी। अनीश बात समझ कर कहता है..... हाँ ये सच और सारी बात यहाँ नहीं घर पर करेंगे। ठीक है तो अब मुझे जाने दीजिये। क्यों इतनी; भी क्या जल्दी है....ज़ब से तुम तैयार होकर आयी हो मैंने तुम्हें जी भर देखा ही नहीं कुछ पल मुझे देखने दो।

रितिका अनीश की बातें सुन शरमा जाती है और अपनी पलकें नीची करती हुई कहती है,;क्यों मै क्या लगती हूँ आपकी??? अनीश उसकी शरम से बोझिल नजरों को देखते हुए कहता है.... वकील साहिबा ये आप अपने दिल से पूछिए....और रितिका की टुढ़ी को ऊपर कर उसकी झुकी नजरों को देख कर उसके माथे को प्यार से चूमते हुए कहता है,तुम हमारी सब कुछ हो लेकिन मै चाहता हूँ की तुम अपनी चाहत का इजहार करो। मै तो हर वक़्त तुम पर अपनी जज्बातों को जाहिर करता हूँ। बोलो।

रितिका अपनी नजर ऊपर करके कहती है,ऐसा तो है नहीं की वकील साहब को हमारी जज़्बात मालूम ना हो फिर भी अगर उनको मेरी जुबान से सुननी है, तो...ज़ब तक वो अपना इकरार नहीं करते है, तब तक हम अपना इजहार नहीं करेंगे।

अनीश हल्का हँसते हुए कहता है,अच्छा जी तो सब कुछ अब हम पर.... तो चलिए बहुत जल्द हम अपनी जुबान से इजहार करेंगे। अभी के लिए सिर्फ इतना ही कहना है.... लब कहे ना कहे... हमारी मोहब्बत देखनी है तो हमारी आखों मे देख लीजिये। कहते हुए फिर से उसके माथे को चुम लेता है।

तभी खाँसने की आवाज़ आती है... तो दोनों अलग होकर सामने देखते है...। पृथ्वी और शुभ खड़े होते है। अनीश खुद को संभालते हुए कहता है.....वो... वो रितिका जी गिर रही थी तो मैंने...। फिर रितिका को अपनी कोहनी मारते हुए कहता है.... आप भी तो बोलिये। रितिका जो सर झुकाये खड़ी थी.... कहती है..... अनीश जी गिर रहे थे और मैं उनको गिरने से बचाने के लिए।अनीश उसकी बात सुन अपना सर पीट लेता है। शुभ और पृथ्वी मुस्कुराते हुए कहते है.... हम समझ गए। रितिका जो अब तक सर निचे करके खड़ी थी उनकी बात सुन खुश होकर आखों मे चमक लिए अनीश की तरफ देखती हुई कहती.है....ये समझ गए। अनीश जो रितिका की बात सुन उसे घूर रहा था, अभी उसकी बात सुन लाचारी से पृथ्वी की तरफ देखता है।

पृथ्वी कुछ इशारा करता हुआ अनिश के बगल से ये कहते हुए,राम मिलाये जोड़ी ; निकल जाता है और शुभ, रितिका को देख मुस्कुराते हुए कहती है.... चले। जी चलिए जीजी। अनीश कहता है भाभी सा आप सब चलिए मै आता हूँ। ठीक है। आप घबराये नहीं देवर सा हम अपनी देवरानी का ख्याल रखेंगे। अनीश मुस्कुराते हुए कहता है जी भाभी सा।फिर वो पृथ्वी की तरफ जाता है।

इधर रौनक महल की बगीचे की तरफ आ जाता है जिसके पीछे पीछे कनक भी आ जाती है। उसे भी अपने माता पिता की बातें अच्छी नहीं लगती है। रौनक जो बाहर खड़ा लगातार चाँद को देखते हुए कह रहा था, ऐसा क्यों होता है हर बार मेरे साथ क्यों हमें दुसरो से कम आका जाता है क्या हर सम्मान पॉवर और सत्ता से ही जुड़ी होती है, भावनाओं का कोई मोल नहीं है। अगर हालात अभी ऐसे है तो तो.... शादी के बाद।इसके आगे वो कुछ बोल नहीं पाता उसकी आवाज़ भारी हो जाती है।

कनक उसके पीछे खड़ी हो उसकी बातें सुन और समझ रही होती है.... वो धीरे से हिचकिचाती हुई,रौनक के कंधे पर हाथ रख देती है। किसी का अहसास होते ही रौनक अपने जज्बातो को संभाल नहीं पाता और वो कनक से लिपट जाता है।

अचानक ऐसा करने से कनक स्तब्ध हो जाती है....। उसे रौनक के साथ कुछ अलग अहसास होता है। फिर उसके भी हाथ रौनक के पीठ पर चले जाते है। उसके हाथों के अहसास से रौनक को ख्याल आता है की उसने अभी क्या किया!!!!वो जल्दी से उससे अलग होता हुआ कहता है.... हमें माफ कर दीजिये और ये कहते हुए वो तेजी से चला जाता है। कनक अभी वही खड़ी उन अहसास को समझने मे लगी हुई थी। फिर वो भी अपने ख्यालों को झटक कर अंदर चली जाती है।

कोई था जो दोनों को देख रहा था और उसके चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान थी।

अंदर पार्टी मे अलग ही माहौल था ज़ब से दीक्षा शुभ के साथ आयी थी दो नजरें लगातार उसे देख रही थी। सोम सिंह.... उसके पास आता हुआ कहता है की देख रहे दाता हुकुम, ज़ब से आयी है आपकी नजर उन पर हट ही नहीं रही। तभी दाता हुकुम का भाई बलराज कहता है.... अरे ये दोनों छोरियां कौन से???? कभी कहीं देखी ना मन्ने??? क्योंकि उसकी नजर शुभ पर थी। तभी सोम कहता है ये प्रजापति कम्पनी मे काम करती है। ओह्ह्ह अब समझू की क्यों इतना मेहरबान है दक्ष प्रजापति ये कहते हुए तीनों हंसने लगते है, उनकी बातें सुन रंजीत जी... ओमकार रायचंद के साथ उनके पास आते है, साथ जयचंद, उनके भाई और शक्ति भी होते है।

रंजीत जी कहते है क्यों भाई दाता हुकुम क्या बातें चल रही है.... अच्छा इनसे मिलईये ये है हमारी मित्र के बेटे ओमकार रायचंद। अरे आपके बारे बहुत कुछ सुना है रायचंद साहब। ओमकार मुस्कुराते हुए कहता है.... जी धन्यवाद। फिर जयचंद जी कहते है वैसे बताया नहीं आप सब अभी किसके बारे मे बात कर रहे थे। तभी सोम कहता है, जिसकी वजह से मुझे गोली खानी पड़ी थी बाबा उस लड़की की बात कर रहे है। क्या वो यहाँ क्या कर रही है। रंजीत जी कहते है कौन थी वो लड़की।

तभी दाता हुकुम कहता है, अरे काका सा इतनी चोखी छोरी के लिए गोली क्या दुनिया को आग कोई लगा दे और ड्रिंक की घुट पीते हुए दीक्षा की तरफ देख रहा होता है। फिर सभी को उत्सुकता होती है, सोम रंजीत जी और जयचंद जी को दिखा पाता की उससे पहले,उन्हें राजेद्र जी ने अपने पास आने को कहा। वो तीनों चले जाते है। फिर ओमकार कहता है ऐसी कौन है जिसकी तारीफ आप सब कर रहे है इतनी। सोम कहता है उधर देखिए रायचंद साहब।ओमकार की नजर उधर जाती है तो वो शुभ को देखता है.... और कहता है हाँ खूबसूरत है। लेकिन उतनी नहीं। क्योंकि दीक्षा की पीठ उसकी तरफ थी इसलिए वो दीक्षा को नहीं देख पाता है।

सोम कहता है ये तो खूबसूरत है इसे मै नहीं जानता वो जी हरी लहंगे वाली है मै उसकी बात कर रहा हूँ। ओमकार ज्यादा ध्यान ना देते हुए कहता है.... ओह्ह्ह अच्छा। फिर दाता हुकुम के साथ ड्रिंक लेने लगता है। दाता हुकुम कहता है की तो रायचंद साहब यहाँ कारोबार करने का इरादा है। हाँ हुकुम साहब सोच तो रहा हूँ। चलिए चोखो विचार है आपका। हाँ... इस बारे मे हम बाद मे बात करेंगे। हाँ हाँ क्यों नहीं रायचंद साहब कभी हमारी हवेली भी पधारो ताकि हम भी आपकी मेहमान नवाजी कर सके। जी जरूर हुकुम साहब।

फिर दाता हुकुम ओमकार से कहता है, हम अभी आते है.... कहते हुए बलराज के साथ दक्ष के पास आ जाता है....। दक्ष की पीठ उसकी तरफ थी क्योंकि वो दीक्षा से बात कर रहा होता है। क्या दक्ष प्रजापति हम आपको पूरी महफ़िल मे ढूढ़ रहे की महफिल की शान कहाँ है,और आप हमें इस कोने मे मिल रहे है। दाता हुकुम की बातें सुन कर दक्ष मुड़ जाता है और दीक्षा उसके पीछे होती है.... जिसे वो नहीं देख पाता है।

दक्ष कहता है.... क्यों दाता हुकुम बड़ी सिद्द्त है आपको ',अपनी मौत से मिलने की। बलराज गुस्सै मे कहता.... दक्ष... प्रजापति। दक्ष उस पर अपनी खौलती नजर डालता है.... जिससे बलराज अपने कदमो को पीछे लेकर नजर झुका लेता है। दक्ष दाता हुकुम को देख कर कहता है, आपको समझ नहीं आया की, ये राजा की मर्जी होती है वो किससे मिले और किससे नहीं। वैसे भी आप दादा सा के मेहमान तो पृथ्वी से मिलिए। मुझसे मिलने की आपकी हैसियत नहीं है।

दाता हुकुम अपनी दाँत को कीचते हुए कहता है, बहुत घमंड है आपको खुद पर, अभी आप राजा बने नहीं और खुद को राजा समझ बैठें।

दक्ष थोड़ा व्यंग से हँसते हुए कहता है,दक्ष प्रजापति को खुद पर घमंड नहीं ग़ुरूर है.... और राजा बना नहीं, ये मर्जी मेरी है। राजा हूँ ये आपको मानना होगा,ये भी मर्जी मेरी है। अब आप जा सकते है। कहते हुए दक्ष दीक्षा की तरफ घूम जाता है।दाता हुकुम खुद का अपमान होता देख... अपनी मुट्ठीयो को कस कर कहता है.... बहुत पछताओगे दक्ष प्रजापति। दक्ष बिना मुड़े कहता है वो वक़्त ही बताएगा।

इधर राजेंद्र जी थोड़ा नाराज होते हुए कहते है... सगाई की मुहूर्त कब की है रंजीत। वो भाई सा चालीस मिनट बाद की है अच्छा फिर ठीक है। तभी जयचंद जी को एक फोन आता है और रंजीत जी के मोबाइल पर एक मेसेज जिसे सुन और पढ़ कर दोनों के चेहरे के रंग उड़ जाते है। दोनों एक साथ कहते हम अभी आते है। जिसे सुन कर रंजीत जी कहते है ऐसा क्या हुआ। कुछ नहीं भाई सा जरा मेहमानों को देख कर आते है। ये कहते हुए दोनों तेजी से बाहर आ गया।

अचानक पार्टी मे रौशनी मध्यम हुई और बिच मे एक शख्स खड़ा हो गया। अँधेरे की वजह से किसी को ये नहीं मालूम हो रहा था की कौन है। अनीश उस अँधेरे का फायदा उठा कर पृथ्वी के पास आया और कहा लीजिये.... रोमियो शुरू हो गया। सभी ध्यान दे रहे थे... दीक्षा की भी नजर उधर ही थी.....। गाना शुरू होता है।

घर से चले थे तो ये बात हो गयी

हम्म…

दक्ष दीक्षा के आगे आपने हाथों को बढ़ा देता है। दीक्षा मुस्कुराते हुए उसके हाथों मे अपने हाथों को रख देती है। लाइट उन पर ही थी। उनके साथ साथ सभी अपने अपने पार्टनर को चुन कर हॉल के बिच मे आ जाते है। अनीश रितिका के साथ, पृथ्वी शुभ के साथ, लतिका जो कब से एक मौक़े की तलाश मे थी की वो ओमकार के करीब हो, ये मौका मिलते ही लतिका ओमकार के पास आकर पूछती है ;क्या आप मेरे साथ डांस करेंगे।ओमकार को वैसे कोई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन उसने उसे इंकार नहीं किया और उसके हाथ को थाम कर डांस फ्लोर पर चला आया।

सोम की हाथ मे चोट थी इसलिए लावण्या शक्ति के साथ डांस करनी चली आती है।सभी डांस फ्लोर पर डांस करना शुरू करते है।

दक्ष दीक्षा को बिच मे ले जाता हुआ.....आगे की लाइन पर उसे घूमता है। और फिर .....कमर पकड़ कर अपनी हाथों पर झुका लेता है.... दोनों एक दूसरे को देख रहे होते है।

पृथ्वी शुभ को बाहों मे लिए कहता है.... देखिये जोड़ी कितनी प्यारी लग रही दक्ष और बिंदनी की। हाँ!!! हुकुम सा आपने सच कहा। पृथ्वी शुभ को इस बात पर घुमाते हुए कहता है.... हमारी जोड़ी भी बहुत प्यारी है हुकुम रानी सा। रौनक और कनक सभी को डांस करते हुए देख रहे होते है की सुमन जी दोनों को पास आकर एक दूसरे का हाथ पकड़ाते हुए कहती है;आप दोनों यहाँ क्यों खड़े है.... जाईये डांस कीजिये और दोनों को फ्लोर पर भेज देती है।

रौनक और कनक एक दूसरे की आखों मे देख रहे होते है और गाने की ये लाइन.....दोनों की बिच की ख़ामोशी को तोड़ रही होती.है।

दक्ष की सांसे अब दीक्षा की कंधो पर चल रही होती है.... गाने के साथ साथ सबके डांस बहुत इंटेंश होती जा रही थी।

धीरे धीरे सभी डांस करते हुए निकल रहे थे सबसे पहले ओमकार और लतिका क्योंकि लतिका के पैर पर ओमकार जान बुझ कर चढ़ गया था क्योंकि लतिका उसके बार बार करीब होती जा रही थी। फिर लावण्या और शक्ति क्योंकि शक्ति लावण्या को गलत तरीके से छू रहा होता है इसलिए लावण्या निकल गयी।

गाना अपनी आखिरी लाइन पर चल रहा होता है, जिसके साथ दक्ष ने दीक्षा को उठा कर घूमने लगता है। अनीश भी रितिका की पीठ अपनी तरफ कर दोनों एक दूसरे को महसूस कर रहे होते है। पृथ्वी शुभ के साथ सामान्य तरीके से डांस कर रहा होता है ताकि किसी को कुछ शक ना हो।

रौनक और कनक एक दूसरे के साथ असहज होकर भी सहज लग रहे होते है।

दोनों डूबे होते है।और आखिरी लाइन के साथ गाना खत्म होता है, फिर भी दक्ष और दीक्षा एक दूसरे मे खोये होते है। दीक्षा दक्ष पर पूरी तरह से झुकी होती है और दक्ष उसकी कमर पकड़े हुए उठाये होता है। ज़ब अनीश को लगता है की अब लाइट ऑन हो जाएगी तो वो जल्दी से उनके पास आ जाता है.... और दक्ष को कहता है भाई.... अब बस कर। दोनों होश मे आते है और लाइट ऑन होने के साथ साथ सभी जोड़े अलग खड़े हो जाते है लेकिन दक्ष दीक्षा की कमर को पकड़े खड़ा रहता है।

सबकी नजर ज़ब उन पर जाती है तो सभी उनकी डांस की तारीफ करते है क्योंकि दोनों वाकई बहुत खूबसूरत डांस कर रहे होते है। ओमकार की नजर भी उधर जाती है.... तो उसकी आँखे फैल जाती है और धीरे से अपने होठों को चलाते हुए कहता है दीक्षा। तभी दाता हुकुम कहते है.... देखा रायचंद साहब कहा था ना बड़ी कमाल की चीज इस बार हाथ लगी है, दक्ष प्रजापति को..... लेकिन ज्यादा दिन तक रहेगी नहीं। ओमकार उसकी बात सुन कर, गुस्सै मे अपनी मुट्ठीयो को कस देता है। लेकिन उसे कुछ कहता है नहीं लगातार उसकी नजर दीक्षा पर रहती है और प्रियांशु की नजर रितिका पर जाती है..... जो अनीश के करीब खड़ी उसे देख मुस्कुरा रही थी। प्रियांशु कहता है.... सर..... दीक्षा। ओमकार उसे घूरते कह रहा है। हाँ मुझे भी दिख रहा है लेकिन उसकी नजर हम पर पड़े उससे पहले हमें निकलना होगा.....। ओमकार कहता है हुकुम साहब हम जल्द ही मिलेंगे। इंतजार रहेगा हमे।

ओमकार निकलने लगता है तो लतिका उसे रोक देती है।

ओमकार ज़ब जाने को होता है तो लतिका उसे बाहर आकर सामने से रोकती हुई कहती है, "अचानक आप कहाँ जा रहे है ओमकार जी!!!ओमकार जो काफ़ी गुस्सै मे था और लतिका की हरकत से परेशान होकर कुछ कहता लेकिन अचानक उसके दिमाग़ मे कुछ आता है और हल्की शैतानी मुस्कान के साथ वो लतिका को अपनी तरफ खींचता है जिससे लतिका उसके सीने से जा लगती है। लतिका तो ख़ुशी और हैरानी से लगातार ओमकार को देख रही होती है....। ओमकार अपनी एक ऊँगली उसके चेहरे फिराते हुए.... थोड़ी मादकता से भरी आवाज़ मे कहता है,"क्या करूं मिस सिंह थोड़ी जरूरी काम आ गया इसलिए जाना पर रहा है, नहीं तो आप जैसी खूबसूरत हँसीना को कौन छोड़ कर जाना चाहता है। हम फिर आपसे मिलेंगे अब इज्जाजत दीजिये। ये कहते हुए उसके एक गालों को चुम कर खुद से अलग करता हुआ निकल जाता है। लतिका तो अभी तक उसी मदहोशी मे खड़ी थी..... जो अभी अभी ओमकार करके गया।

लतिका से आगे निकलते ही ओमकार की आँखे फिर से सर्द हो जाती है और चेहरा डार्क हो जाता है। तभी प्रियांशु उससे पूछता है,"सर ये क्या था!!!!!

ओमकार उसकी बात सुनकर रुक जाता है.... और मुड़ कर उसे सामने देखने को कहता है। जहाँ लतिका को जयचंद और रंजीत घूर रहे होते है। प्रियांशु उन्दोनो को देख कर कहता है मतलब!!!!.

मतलब ये की अब ये लड़की ही मुझे दीक्षा तक पंहुचायेगी। और फिर.... ये कहते हुए शैतानी मुस्कान के साथ वो कहता है अभी चलो और सतीश ठाकुर को और.... हमारे भाई के ससुराल वालों को भी बुलाने की तैयारी करो। बहुत छिप लिया तुमने दिशा राय। ये सुन प्रियांशु का मुँह बन जाता है और कहता है, "सर मैंने भी रितिका को देखा लेकिन मेरी शादी हो चुकी है और जानते है आप की किससे हुई। इसलिए अब मै चाह कर भी.....।

ओमकार कहता है.... दिल तो बहला ही लोगे और तुम्हारी बीबी कुछ नहीं कहेगी क्योंकि वो कौन सी दूध की धुली है.... कहते हुए प्रियांशु की तरफ देखता हुए..... कहता है अब चलो।

प्रियांशु भी उसके साथ निकल जाता है।

इधर महफ़िल मे चर्चा जोरों पर थी। जिसे सुन सुन कर दाता हुकुम के गुस्सै की ज्वाला भड़क रही होती है। बलराज कहता है भाई सा ये तो....!!!! कोई बात ना से छोटे बहुत जल्द ये छौरी दाता हुकुम के सामने होगी, उड़ने दे जितने उड़े हे.....। फिर मुँह टेढ़ा करते हुए कहता...हुँह दक्ष प्रजापति इसका तो वही हाल होगा जो मने सोच रखी से!!!!

लोगों की जो बातें बन रही थी।दीक्षा और दक्ष को देख कर लेकिन दक्ष को उसकी परवाह नहीं थी। वो अब भी शान से खड़ा था सबके बिच।

लेकिन कामिनी जी उनके बेटी और जमाई के साथ साथ स्नेहलता और उनका परिवार बहुत गुस्सै मे था। लक्षिता कहती है,"माँ सा!!!! ये क्या था और ये वही लड़की है जिसकी वजह से लावण्या परेशान हुई थी। लक्षिता अगर मुझे मालूम होता तो मै यहाँ ये तमाशा चुप होकर देख नहीं रही होती। और अभी चुप रहो पहले सगाई हो जाने दो फिर बात करेंगे।

लेकिन शमशेर की नजर तो जैसे दीक्षा पर टिक ही गयी और शराब की घुट पीते हुए वो उसे देखे जा रहा था। जिससे देख लक्षिता अपनी दांतो को पिसती हुई.... शमशेर का हाथ खींचती हुई दूसरी तरफ ले जाती है।

और एक कोने मे आकर शमशेर को सामने करती हुई कहती है, " अपनी आदतों को संभाल लीजिये शेखावत साहब वरना वो सुमन भाभी नहीं है जो चुप हो जाये और आपकी बेहूदी हरकत को सहन करती जाय। "लक्षिता की बात सुन कर शमेशर गुस्सै मे चीखते हुए, कहता है,"लक्षिता "और हाथ बढ़ाने लगता है उसका गला पकड़ने के लिए।

उससे पहले ही लक्षिता उसका हाथ पकड़ लेती है और कहती है,"ये गलती मत करना आप!!!! और मै आपकी बेहतर के लिए ही कहा है,"क्योंकि जिस पर आपकी गंदी नजर पर रही थी.... वो उस बबरशेर की पसंद है की अगर उसे भनक भी लग गयी आपकी नजर की तो वो ये नहीं लिहाज करेंगे की आप कौन है!!!

इसलिए सम्भल जाएईये और भूलिए मत वो हर्षित भाई सा बेटा है.... उनकी तरह तो बिल्कुल शांत नहीं है। ज़ब भाई सा इतने शांत होने के बाद भी भाभी सा के लिए आपकी क्या हालत की थी याद है ना आपको और खुद पार्वती भाभी ने आपके साथ क्या किया था। अगर मै नहीं होती तो आप जिन्दा भी नहीं होते। लेकिन दक्ष के आगे तो मेरा होना भी काम नहीं करने वाला। इसलिए सम्भल जाईये और चलिए सगाई का वक़्त हो चूका है। बोलती हुई लक्षिता आगे बढ़ जाती है और शमशेर अपने खून का घुट पीकर उसके पीछे पीछे बढ़ जाता है।

इधर पृथ्वी ड्रिंक करने के बहाने दक्ष के पास खड़ा हो जाता है और धीरे से कहता है..... क्या मेरी शादी करवा कर मानेगे आप!!! दक्ष उसी तरह एक घुट अंदर लेते हुए कहता है.... जाईये दादा सा बहुत परेशान है और शायद आपके पास ही उनकी समस्या का समाधान हो। पृथ्वी ना समझी से दक्ष की तरफ देखता है और कुछ कहने की सोचता है, तब तक रंजीत जी उसे बुला लेते है।

पृथ्वी वहाँ से निकल जाता है। अनीश दक्ष के पास आते हुए कहता है.... तुमने जो कहा था वो काम हो चूका है।दक्ष रहस्यम तरीके से कहता है.... हम्म्म्म।

इधर राजेंद्र जी कहते है.... रानी सा सगाई की तैयारी कीजिये और बहू से कहिये की दोनों बच्चियों को तैयार कर के लाये। जी ठीक है राजा साहब। कामिनी... कामिनी। जी भाभी सा। जाईये  राजकुमारीयों को तैयार कर के लाईये। उसकी जरूरत नहीं है रानी माँ.... ये बोलती हुई सुमन जी, दीक्षा और रितिका के साथ आती है। क्यों सुमन बिंदनी।

वो रानी माँ हमने दोनों को तैयार कर दिया है।

कामिनी जी कहती है, चलिए भाभी सा जरा नई होने वाली बिंदिनियो को देख ले....।  हाँ!!!हाँ क्यों नहीं कामिनी चलो।

फिर घबराती हुई सुमन कुछ कहती उससे पहले स्नेहलता जी कहती है, "रानी माँ ऐसी भी क्या जल्दी है। वो अब दोनों को घुंघट दे दिया गया है इसलिए ज़ब तक सगाई नहीं हो जाती तब तक उनका चेहरा कोई नहीं देख सकता। जिसे सुन कामिनी जी कहती ऐसी तो कोई रस्म नहीं है। अभी तो दोनों छौरी यही थी तब तो हमने देखी ही थी।

स्नेहलता जी कहती है,"वो समधन सा सगाई से पहले ज़ब लड़कियो को तैयार किया जाता है तब उसके चेहरा देखने का रस्म हमारी यहाँ नहीं है। तुलसी जी कहती है,"अच्छा चलिए कोई बात नहीं अब दोनों बच्चियों को लेती आईये।

इधर सफेद सूट मे पृथ्वी और ब्लू सूट मे रौनक स्टेज पर खड़ा होता है। पृथ्वी के तरफ दक्ष खड़ा होता है और रौनक की तरफ अनीश। सभी मेहमानों के बिच से दोनों दुल्हन आ रही होती है जिसे लक्षिता, स्नेहलता, लावण्या और सुमन जी ला रही होती है। एक ने हल्की सुनहरी रंग की लहंगा पहन रखा हुआ था, दूसरी ने भी नीले रंग की लंहगे को पहन रखा हुआ था दोनों के चेहरे नहीं दिख रहे होते है क्योंकि दोनों ने लाल रंग घुंघट डाल रखी होती है।

अब दोनों स्टेज पर आती है और पंडित जी विधि अनुसार दोनों जोड़ी की सगाई करवाई और अंगूठी पहनने के साथ ही वो कहते है सगाई सम्पन्न हुई। बधाई हो।

सभी इसके साथ जोर से ताली बजाते हुए इस मौक़े को सेलिब्रेट करते है। पृथ्वी और रौनक के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। लेकिन यहाँ रंजीत और जयचंद के चेहरे के रंग उड़े हुए थे। सगाई होने के बाद सभी बधाई देते हुए निकल रहे होते है। तभी दाता हुकुम रंजीत जी के पास आते हुए कहता है, "काका सा कहाँ थे आप दोनों हमें तो नजर ही नहीं आये। और ओमकार जी भी चले गए। अच्छा छोड़ें आप दोनों को बहुत बहुत बधाई अब हमें इज्जाजत दीजिये। खम्माघणी।

खम्माघणी दाता।

भाई सा आपको कुछ अजीब नहीं लगा प्रजापति को देख कर। हाँ छोटे लग तो रहा था लेकिन अभी हमें उसमें नहीं पड़ना है। नया कॉन्ट्रैक्ट आने वाला है और इस बार हमारी सामने दक्ष प्रजापति है इसलिए अभी हमें उस पर ध्यान देना है। अब चल। जी भाई सा।

इधर कुछ देर बाद सारे मेहमानों के जाने बाद राजेंद्र जी कहते है अरे जयचंद साहब आपके भाई उनकी पत्नी और आपके बेटे के उनके बच्चे कहाँ है। अपनी घर की समारोह मे वो सब नजर नहीं आ रहे है।

तब तक पृथ्वी और रौनक अपनी दुल्हन के साथ निचे आ गए होते है। कामिनी बलाईया लेती हुई कहती है। नजर ना लगे मेरे बच्चों को। और घुंघट उठाती हुई कहती है, आईये जीजी सा देखिये हमारी पोतों की बिन्दनियो को...। वो घुंघट उठाती है तो सबकी आँखे फटी की फटी रह गयी, सबकी नजरों को ऐसे देख कामिनी जी की नजर दुल्हनो की तरफ जाती है..... तो वो अपनी कदमो को पीछे करती हुई कहती है..... ये... ये... कैसे हो गया!!!!

राजेंद्र जी गुस्सै मे चीखते हुए कहते है.... ये क्या बेहूदा मजाक है। आज इतनी गुस्सै मे राजेंद्र जी को देख कर रंजीत जी को पसीने आने लगते है।

कंटिन्यू....