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Heartless king

न्यूयोर्क शहर एक उँची ईमारत से, एक शख्स शीशे क़ी खिड़की के पास खड़ा  निचे आते -जाते हुए गाड़ीयों और लोगों को देख रहा होता हैँ..... उतनी ऊंचाई लोग और गड़िया उसे कीड़े माकोड़े क़ी तरह दिख रही होती हैं। वो निचे देखते हुए कुछ सोचे जा रहा था। तभी दो लोग अंदर आते हैँ, चलो हमें निकलना हैँ, काका हुजूर का बार बार फ़ोन आ रहा हैँ .... राजस्थान के लिए.... जैट तैयार हैँ......... वो शख्स, "हम्म्म " कहते हुए फिर से खिड़की क़ी तरफ देखते हुए और कहता हैं........... क्या उसके बारे कुछ मालूम हुआ, कहते हुए उसके आखों में एक दर्द उभर आया। दूसरा शख्स, "तुम आज तक नहीं भूले हो उसे..... सात साल हो गए.... कौन थी, कहाँ से आयी थी, केसी दिखती हैं,अब तक हमें मालूम नहीं हुआ,जैसे उसे जमीन खा गयी या आसमान निगल गया। जिन्दा भी हैं या मर गयी। तभी वो गुस्से में, उसका गला पकड़.... जस्ट शटअप दुबरा ये कहने की हिम्मत मत करना ये कहते हुए उसके आँखो में खून उतर आया। फिर झटके से उसे छोड़ दिया। वो खाँसते हुए अपने गले को सहलाता हैं। तभी वो मुड़ता हैँ और कहता हैँ..... उसकी पहली मुलकात के बाद यही कहूँगा क़ी उसके बगैर दिल कही लगता नहीं ज़ब तक जियूँगा उसे आखिरी सांस तक ढूढ़गा..... आगे महादेव क़ी मर्जी। तभी तीसरा शख्स छोड़ ना तू इसे जानता तो हैँ। तीनों निकल जाते हैं इंडिया के लिए.....

Dhaara_shree · Urban
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7.दक्ष -पृथ्वी

दक्ष... दीक्षा को देखते हुए कहता है.... स्वीट्स क्या बात है... आप क्यों परेशान हो। सब ठीक हो जायेगा... आप फ़िक्र नहीं करे।फिर उसे बाहों मे ले लेता है....। दक्ष छोड़िये सब सामने है, हमें देख रहे है। दक्ष आँखे बंद किये हुए कहता है..... "आप जानती है स्वीट्स हमें फर्क नहीं पड़ता, ज़ब बात आपकी होती है। हम ठीक है दक्ष। तो फिर बताईये आप क्यों तूलिका के लिए परेशान। दक्ष के बाहों से निकल कर दीक्षा कहती है...." दक्ष मुझे आज तक पता नहीं चला की उस दस दिन मे तूलिका के साथ हुआ क्या था.... उस हादसे का दर्द कभी उसके अंदर से निकल पायेगा भी याँ नहीं। डर लग रहा है उसकी हालत देख कर...। "

रितिका उसके पास आकर बैठ जाती है.... कुछ समय तक तो दीक्षा नहीं थी हमारे साथ.... मैं थी। ज़ब रात -रात भर उसकी दर्दनाक चीख निकलती रहती थी और मेरे लिए मुश्किल हो जाता था उससे संभालना। मैं नींद की इंजेक्शन उसे इस तरह देती थी की करीब करीब 20-22 घंटे की नींद ले। धीरे धीरे वो उस दर्द को भूली तो नहीं लेकिन दक्षांश के बचपन ने उसके दर्द की टिस कम कर दिए। धीरे धीरे उसने अपने डर को.... ज्यादा बोलने.... पलट कर जवाब देने इन सबमें डालने लगी। पिछले कुछ सालों मे, तो हमदोनों भूल ही गए थे की ऐसे कुछ हुआ  था.... लेकिन कल ज़ब उसके साथ ऐसे कुछ हुआ और उसका फिर से इस तरह होना.....। हमें याद दिला गया की वो कभी भूली ही नहीं.... उसके अंदर मे वो दर्द का डर बस चूका है। पता नहीं केसे हम फिर से उसे इस दर्द से निकलेंगे।

अनीश उसके कंधे पर हाथ रख देता है। अतुल सबकी बातें सुन....उनके बिच से, ख़ामोशी होकर तूलिका के कमरे मे चला जाता है। तूलिका अब भी नींद मे थी। अतुल उसके पास आकर.... बगल मे बैठ जाता है और उसके माथे को चुम लेता है.... फिर उसकी हाथों को पकड़े हुए.... ख़ामोशी आखों से लगातार उसे देख रहा होता है.... फिर कहता है.....

" मुझे लड़कियों से शख्त नफ़रत है, मैं हर लड़की को समझता हूँ मतलबी है। लेकिन ना जाने क्यों,मुझे तुम्हारा दर्द बहुत तकलीफ देती है। तुम मुझे प्रभावित करती हूँ। तुम हर चीज मुझे खुश और उदास करती है। मैं चाहता हूँ की तुम्हारे अंदर के इस दर्द को खत्म कर दूँ, ला किन ये नहीं समझ मैं आ रहा केसे करूंगा यें सब। " फिर उसके हाथों को चूमते हुए.... एकटक देख रहा होता है।

पीछे दरवाजे पर दक्ष - दीक्षा, अनीश - रितिका जो तूलिका को देखने आये थे। अतुल को देख सभी रुक जाते और अतुल की बातें सुनने लगते है। अतुल को उसी तरह छोड़.... चारों बाहर निकल जाते है।

दक्ष कहता है.... शायद तूलिका के लिए उसका हमदर्द मिल गया है...। ज़ब दो दर्द मे डूबे इंसान एक दूसरे के साथ होते है.... तो संभावना इस बात की ज्यादा होती है.... की दर्द खत्म हो जाता है।

लेकिन दक्ष दो केसे???

रानी सा, दो इसलिए की अगर तूलिका ने दर्द जिया है... तो अतुल भी बहुत भयानक दर्द से गुजरा है। लेकिन अभी इस बारे मे बात नहीं करेंगे। दोनों को वक़्त पर छोड़ दीजिये और यकीन रखिये। अगर अतुल ने तय कर लिया है की तूलिका के दर्द को वो खत्म करेंगा, तो वो जरूर करेंगा।

अब चलिए..... शाम को सगाई है... तो आप दोनों तैयार हो जाये।

अनीश, दक्ष से कहता है... लेकिन दक्ष तुमने तो कहा था की.... हम नहीं जायेगे। दक्ष मुस्कुराते हुए कहता है.... किसी को हमारी बहुत जरूरत है... इसलिए जाना है।

आप सब तैयार हो जाये। हम आते है।

इधर प्रजापति महल मे....

पृथ्वी परेशान होकर घूम रहा होता है। तभी उसको एक मेसेज आता है...। मेसेज पढ़ते ही वो तेजी से महल से निकलने लगता है... की रंजीत जी उसे टोकते हुए कहते है..... कहाँ जा रहे है आप पृथ्वी।

हमारे कुछ बहुत पुराने मित्र आने वाले अपने पुरे परिवार के साथ.... और आप जा रहे। दादा सा... हमें बहुत जरूरी काम है.... हम अभी आ जायेगे। अभी हमें जाने दीजिए। कहते हुए तेजी से अपनी गाड़ी लेकर निकल गए।

क्या हुआ हुकुम!!!! कुछ नहीं हमें पृथ्वी का कभी काभी कुछ समझ मे नहीं आता। आप फ़िक्र मत करो छोरे को कोई काम होगा। हम्म्म आपने सब तैयारी कर  ली.... हमारे बहुत पुराने मित्र आ रहे है।कौन आ रहे है।

आ जाये तो आपको मालूम हो जायेगा। हम जरा जयचंद जी से पूछे की....उनको कब तक आना है।

इधर लक्ष्य आता है और कामिनी जी कहता है.... " माँ सा आपको नहीं लगता की जयचंद की बेटियों के साथ रिश्ता कुछ ठीक नहीं है और बहुत जल्दी सब कुछ हो रहा है।

क्यों  पृथ्वी!!! ऐसे क्यों कह रहे हो...??? क्या तुम्हें अपने बाबा सा पर भरोसा नहीं है।

लक्ष्य थोड़ा व्यंग से कहता है.... आपको तो अच्छी तरह से मालूम है की मुझे बाबा सा पर कितना भरोसा है... कहते हुए निकल जाता है।

कामिनी जी गुस्सै मे अपनी दाँत को भींचते हुए कहती है.... " इसी बात का दुख है हमदोनों को.... आप हमारे बच्चे होने के बाद भी हमारे नहीं है।

नमस्ते माँ सा....। आईये... आइये जमाई सा। केसे है आप। घर पर सब ठीक है।

जी माँ सा... सब बढ़िया। वैसे भाभी सा कहाँ है...!!! अरे यही कही होगी। शमशेर शेखावत निहायती घटिया और मक्कार... हर औरत पर अपनी गंदी नजर.... अपने ससुर के हर साजिश मे राजदार।

सुमन जी अभी महल के रसोई घर मे सभी को कुछ ना कुछ बता रही होती है..... महराज जी....। हुकुम.... बिंदनी सा।

महराज जी... सब पूजा मे जो प्रसाद बनेगी वो सब तैयार हो गयी है ना...।..जी बिंदनी सा।

झुमकी....। जी भाभी सा। तू जरा देख कर आ... की बाहर मे सब कुछ पीने के सारे इंतजाम हो गए।..... खमाघणी.....सरहज सा। सुमन जी अपनी गंदी नजरों से घूरते हुए कहता है.। झुमकी  अपनी घुंघट के एक तरफ के हिस्से को दाँत से दबा कर धीरे से, सुमन जी कहती है..... हाँ... गिद्ध। और पल्लू चेहरे पर खींच कर चली जाती है।

नमस्ते जमाई सा। सब कुशल मंगल। शमेशर अपनी गंदी हँसी हॅसते हुए कहता है.... पहले अपने पाँव को छूने तो दो सरहज सा.....और वो झुकने लगा। तब तक सुमन ने अपने पाँव खींचती हुई कहती है..... क्या बात है जमाई सा... शेखावत का खून कब से औरतों के कदमो मे गिरने लगा। उसकी बात सुन कर शमशेर अपने बढे हुए हाथों को बंद कर लेता है.... और अपनी दांतो को भींचते हुए... सर उठा कर कहता है....।वो क्या है ना सरहज सा... हमने तो आपको सम्मान देने की कोशिश की.... लेकिन मुझे नहीं मालूम था की.... किसी को इज्जत और सम्मान नहीं पसंद आता।

सुमन जी उसकी बातों को सुन कर कहती है..... वो क्या है ना जमाई सा.... हमारे घर मे जमाई को कदमो मे नहीं झुकाते और यें अलग बात है...की . जो कदमो के भी लायक ना हो उसका क्या किया  जाय।

शमशेर... गुस्से मे अपनी शब्दों को चबाते हुए.... बहुत धीरे से कहता है... ज्यादा ना  उड़ो सुमन जी..... एक दिन सब की क़ीमत तुम्हारे जिस्म से ऐसे नीचुरुँगा की तुम भी क्या याद रखोगी।

अगर लक्ष्य ने तुमसे शादी नहीं की होती तो तुम कब की... और एक गंदी नजर से उसे ऊपर से निचे देखता हुआ कहता है।

सुमन गुस्से मे... राजपूतानी को ललकारों मत शेखावत के पुत!!!! अगर मैं प्रजापति नहीं भी होती तो भी.... तुम और तुम्हारे उस दोस्त के लिए.... मेरी सहेली पार्वती ही काफ़ी थी..... याद है या भूल गए।

इस पर शमशेर कुछ कहना चाहता....। सुमन कहती है... ना... ना... ना.... जमाई सा.... एक शब्द ना.... अब मैं सुनु थारी। अब आप सुनो। यदि आप लक्षिता बाई सा के पति ना होते ना..... तो यें राजपूतानी आप को चिड़ चुकी होती। आज भी हमारी तलवार की धार कम ना हुई है।

आये हो मेहमान बन कर। मेहमान रहो... शैतान बनने की कोशिश ना करो। हर हर महादेव। हाथों को जोड़ती हुई वहाँ से चली जाती है।

पास मे रखे एक मूर्ति पर... ज़ोर से हाथ मारते हुए.... कहता है.... अगर तुम भी.... लक्ष्य की बीबी नहीं होती तो तुम्हें भी वही पंहुचा देता, जहाँ.... थारी सहेली को भेजा है। बहुत उड़ रही है। रुक जा.... मैं बताता हूँ तुझे.... तब तक जितना उड़ना है उड़ ले।

इधर पृथ्वी बहुत तेजी से गाड़ी चलाते हुए एक साधारण से घर के पास रुकता है.... जो बहुत सुनसान और शांत इलाके मे है। वहाँ जाते हुए.... वो अंदर जाता है....। कहाँ हो तुम।

तभी कमरे के अंदर खिड़की की तरफ मुँह किये.... एक लड़की कहती है..... आप क्यों आये है....।

पृथ्वी उसके कंधे  पर हाथ रख अपनी तरफ घूमता है..... आंसूओ से भरी काली बड़ी बड़ी आँखे.... नाक लाल.... होंठ गुलाबी....रंग गेहूँवा.....एक मासूम खूबसूरत सी लड़की.... जो रो रो कर अपना चेहरा लाल कर चुकी होती है.... आखों मे गहरा काजल पूरी तरह से फैल चूका होता है।

पृथ्वी उसके मासूम चेहरे मे.... इस कदर खो गया की उसने.... उसके सीने पर दाँत काट कर खुद को छुड़ा.... लिया...।

आअह्ह्ह.... करते हुए... पृथ्वी के अपने दोनों हाथ खाली नजर आते है।

शुभ ... क्यों भाग रही हो मुझसे।

(शुभ प्रियदर्शनी, उम्र -25 साल... पृथ्वी की पर्सनल असिस्टेंट और मोहब्बत... अनाथ है...।)

तो क्या करूंगा मिस्टर प्रजापति आपकी सगाई मे नाचू याँ गाऊ। पृथ्वी उसके पास आता है..., उसको अपनी बाहों मे लेने।

नहीं दूर रहिये मिस्टर प्रजापति और मुझे छूने की जरूरत नहीं है।

पृथ्वी उसके कमर को पकड़ कर अपनी तरफ खींचता है.... और अपने अंगूठे से उसके गालों पर गिरे आंसू को पोछते हुए कहता है.... क्या बात है मेरी हुकुम रानी सा.... ऐसी नाराजगी। आप तो सब जानती है। हम आपके बिना नहीं रहा सकते।

झूठ है यें..... मिस्टर प्रजापति।..... और कुछ कहती उससे पहले पृथ्वी उसके होठों पर अपने होठों को रख कर चूमने लगता  है.... शुभ उसे रोकने और दूर करने की कोशिश करती है.... लेकिन पृथ्वी की आगे वो एक छोटी बिल्ली लगती है.... जो पंजे तो मारती है.... लेकिन शेर के आगे उसकी कुछ नहीं चलती।

कुछ देर मे हो भी पृथ्वी के किश मे... उसका साथ देने लगती है।दोनों लगातार एक दूसरे को गहराईयों से चूमने लगते है। पृथ्वी उसे ऊपर उठा कर... अपने गोद मे ले लेता है.... दोनों इस समय एक दूसरे को चूमना नहीं छोड़ते है..... पृथ्वी उसे बिस्तर पर सुलाकर..... उसकी होठों को छोड़ गर्दन को चूमने लगता है..... शुभ.... मदहोश होती हुई अपने हाथों को उसके बालों मे उलझाती हुई.... आआह्हः भरने लगती है।

दोनों एक दूसरे की मोहब्बत मे डूबने लगते है....की तभी दरवाजे को कोई खटखटाता है.....।  शुभ... पृथ्वी को रोकती हुई कहती है..... हमारा यहाँ कौन आया.... यहाँ तो आपके सिवा कोई नहीं आता है।

पृथ्वी उसके माथे को चूमते हुए कहता है... आपके सवालों का जवाब। जाईये खुद को ठीक करके आईये।शुभ.... अपना सर हाँ मे हिलाती हुई कहती है.... ठीक है।

पृथ्वी खुद को ठीक करके.... निचे जाता है और दरवाजा खोलता है।

पृथ्वी मुस्कुराते हुए कहता है... आजा मेरे शेर.... अपने बड़े भाई के अलग लग जा....। वो उसके बाहों मे ज़ोर से गले लग कर कहता है... भाई सा। दोनों एक दूसरे के सीने से लगे रहते है।

पीछे से कोई कहता है.... हो गया भरत मिलन तो... हमें भी देख लो। पृथ्वी उसे भी अपने बाहों मे ले लेता है। तीनों एक दूसरे के गले लगे हुए थे तो.... पृथ्वी कहता है.... और वो  वोल्कानो कहाँ है। वो नहीं आया।

नहीं भाई...। बाद मे बताऊंगा। पहले उनसे तो मिलु जिनके लिए इतनी रिस्क से आया हूँ।

हाँ हाँ क्यों नहीं!!!!! मैं तो जैसे खुले आम घूम रहा हूँ।

माफ करना भाई सा... मेरे वजह से आपको सबसे ज्यादा परेशानी हुई। लगता है... आपको हमसे मार खाये बहुत दिन हो गए है। इसलिए आप यें सब बात कर रहे है।

माफ कर दीजिये हमें भाई सा।

तब तक अंदर से... चाय -पानी लिए शुभ बाहर आती है। दोनों झुक कर उसके पैर छूने को होते है तो शुभ अपने पैरों को पीछे कर लेती है और कहती है... अरे अरे.... होने वाले राजा सा.... हम आपसे बहुत छोटे है।लेकिन भाभी सा.... आप हमसे रिश्ते मे बड़ी है। तो हमारे लिए सम्मानीय है।

क्या बात है राजा साहब जितना सुना था उससे बेहतर पाया.... हमने आपको।क्यों हुकुम सा।

हाँ... हुकुम रानी सा...। यें है हमारे शेर.... दक्ष प्रजापति.... और यें है... अनीश मल्होत्रा.... आपकी रक्षा की जिम्मेदारी अब से आपकी दोनों देवर की है। सभी मुस्कुराते हुए एक दूसरे का को देखते है... कुछ देर बात करने के बाद। पृथ्वी... शुभ से कहता है..... पहली बार आपके घर आपके देवर आये है.... क्या आप उन्हें बिना कुछ खिलाएं ही जाने देगी। शुभ अपने सर पर हाथों को मारते हुए कहती है.... ओह्ह्ह!!! मिलने की ख़ुशी मे इतनी मशरूफ हो गयी की... माफ कीजिये... आप सब बातें कीजिये। मै दोपहर के खाने का इतजाम करती हूँ।और उठ कर चली जाती है।

पृथ्वी... दक्ष की तरफ देख रहा होता है.... जो हल्का हल्का मुस्कुरा रहा होता है.... उसे हँसता हुए देख... पृथ्वी बहुत खुश होता है... क्योंकि दक्ष की यें मुस्कान हर किसी के नसीब मे नहीं होती।

कुछ देर बाद.... पृथ्वी कहता है... वैसे मेरा दिल तो नहीं चाह रहा की तुम्हें टोकू.... यूँ हँसते हुए देख कर... लेकिन मज़बूर हूँ। अब बता.... क्या चाहता है.... मेरी तलाक करवां कर रहेगा।

अनीश बिच मे कहता है.... वकील आपको फ्री ऑफ़ कॉस्ट मिलेगा भाई सा।.... कमीने... तुम जैसे छोटे भाई मिले है की दुश्मनो की जरूरत ही नहीं  है मुझे।

दक्ष थोड़ा गंभीर होकर पृथ्वी के हाथों को अपनी हाथों मे लेकर कहता है.... आपको अपने छोटे पर भरोसा है ना। पृथ्वी अपना दूसरा हाथ उसके हाथों पर रखते हुए कहता है... तुझसे ज्यादा तो इस पृथ्वी प्रजापति को किसी पर भरोसा नहीं है।

तो फिर भरोसा रखिये। आपको और भाभी सा को कोई परेशानी नहीं आएगी। लेकिन दादा सा नहीं मानेंगे दक्ष। भाई सा... दादा सा की फ़िक्र आप मत कीजिये.... उन्ही की वजह से आपकी सगाई रुकेगी।

पृथ्वी थोड़ा सा उत्सुक होते हुए पूछता है.... तुम ऐसा क्या करने वाले हो।... दक्ष थोड़ा शांत होकर उन्हें देखते हुए कहता है यें आपको उसी वक्त मालूम हो जायेगा।

वैसे दक्ष तुमने यें नहीं बताया की माल मे वो कौन थी।..... दक्ष ने पृथ्वी को दीक्षा और दक्षांश के बारे मे सब कुछ बता दिया। पृथ्वी उसकी बात सुन कर... उसे उठ कर गले लगा लेता है.... और कहता है.... बहुत ख़ुश हूँ तेरे लिए आखिरी तुझे तेरे सात साल का इंतजार का फल मिल ही गया। और मेरे राजकुमार कैसा है।

भाई सा उसे अभी दूर भेज दिया है.... वीर के साथ।... हम्म्म ठीक किया यें तुमने।

फिर मै कब मिलुंगा... हमारी रानी सा से.....। आज शाम को....। तो क्या तुम सबको अभी बताने वाले हो। नहीं भाई सा.... अभी नहीं। एक बार सारे मोहरे को फिर से देख लूँ...। जाल बिछा दूँ...। फिर सामने लाऊगा।

भाई सा, मै सोच रहा था की भाभी सा को अपने साथ रखूँ..... यहाँ उनका यूँ अकेले रहना... सुरक्षा के दृष्टिकोण से सही नहीं होगा। और आज शाम को उनकी भी प्रवेश प्रजापति महल मे हो जाये।

क्या मतलब तेरा.... पृथ्वी उसकी बात चौंकते हुए पूछता है।

मेरा मतलब यें है की.... प्रजापति खानदान की छोटी बहू और बड़ी बहू एक साथ आज महल मे प्रवेश करेगी। लेकिन दक्ष इसमें खतरा हो सकता है। इसलिए तो भाई सा.... अब भाभी सा हमारे साथ रहेगी।

अनीश पृथ्वी की शक्ल देख कर कहता है..... अरे दक्ष क्यों भाई सा की बिना तलवार के ही दिल चीर रहे हो। देखो तो इनकी शक्ल..... चूसे हुए आम की तरह हो गयी है " कहते हुए... हीहीहीही करके हँसने लगता है।दक्ष भी अपने कठोर भाई की ऐसी शक्ल देख मुस्कुराने लगता है।

पृथ्वी अपनी आखों को छोटी करके कहता है..... हँस लो... किसी दिन मेरा भी वक़्त आएगा। दक्ष पृथ्वी को ऐसे चिढ़ता देख खुद को संभालते हुए और थोड़ा पृथ्वी को परेशान करने का सोच....अनीश को कहता है... वैसे अनीश भाई सा का चेहरा चूसे आम सा क्यों लगा तुझे.... यें तो गलत बात है और कहते हुए अपनी एक आँख को दबा देता है... अनीश उसका इशारा देख कहता है... अरे यार दक्ष... सोच जरा यहाँ भाभी सा रहती है तो भाई सा कभी कभी आकर उनका दीदार कर जाते है और तेरे घर रहने से तो यें दीदार तो दिवार बन जाएगी।

क्योंकि पूरा राजस्थान जानता है.... पृथ्वी प्रजापति और दक्ष प्रजापति एक दूसरे के जानी दुश्मन है।

उसकी बात सुन कर दक्ष और पृथ्वी के चेहरे के अचानक भाव बदल जाते है। तब तक शुभ की आवाज़ आती है... चलिए खाना तैयार है. सभी उठ कर खाना खाने चले जाते है।

खाना खाते हुए दक्ष और अनीश कहता है.... भाभी सा आपकी हाथों मे जादू है...ऐसा . खाना रोज मिलता तो..... अच्छा लगता है।

हाँ क्यों नहीं??? आपके लिए मै रोज खाना बना दिया करुँगी.... आप रोज आ जाना.... मुस्कुराते हुए कहती है।

दक्ष... शुभ की तरफ देखते हुए कहता है.... भाभी सा.... आप आज हमारे साथ घर चलेगी।

क्या... लेकिन क्यों?????

पृथ्वी कहता है.... शुभ आपके लिए यही बेहतर है। इससे मुझे आपकी फ़िक्र नहीं होगी और आप जितना मुझ पर भरोसा करती है... उससे भी ज्यादा आप दक्ष पर कर सकती है। हम एक पल के लिए शायद गलत भी हो जाये लेकिन दक्ष कभी नहीं गलत हो सकते है।

दक्ष कहता है, भाभी सा....!!! हमने बहुत  अपनों को खोया है लेकिन उस समय हम बहुत मजबूर थे। अब हम किसी अपने अजीज को नहीं खो सकते। इसलिए.... आप हमारे साथ चलिए। आप हमारे बड़े भाई की जिंदगी है और मेरे लिए मेरा भाई बहुत कीमती है और आप भी।

माहौल को थोड़ा गंभीर होते देख अनीश कहता है, "और भाभी सा... यें तो सोचिये आज आपके पति की सगाई है... कम से कम अपनी कभी ना होने वाली सोतन से मिल लीजिये।"

दोनों भाई एक साथ अपनी दांतो को भींचते हुए कहते है.... अनीश। अरे शांत हो जाओ यमराजो के देवता... मैं तो बस भाभी सा को.... हमारे साथ जाने के असली फायदे के बारे मे बता रहा हूँ और साथ साथ इन्हें अपनी तीन -तीन देवरानी से मौका मिलने वाला है...।

पृथ्वी कहता है... तीन.. तीन देवरानी!!!!दक्ष कहता है की.... वो भाई सा दीक्षा की दो दोस्त है रितिका और तूलिका... साहब उन्ही की बात कर रहे...। पृथ्वी थोड़ा हैरानी दिखाते हुए कहता है.... यें..... यें!!!इस नालायक का तो मालूम है लेकिन अतुल वो भी।

दक्ष कहता है... यें सब बातें बाद मे.... भाई सा फिलहाल आप निकले। हम कुछ देर बाद निकलेंगे।

हम्म्म्म ठीक है दक्ष... अब सब आप पर है की आप अपने बड़े भाई  को इस भवर से केसे निकालोगे???आप फ़िक्र ना करे, हम सब संभाल लेगे।

पृथ्वी, शुभ को बाहों मे भर कर प्यार करता है और माथा चूमते हुए कहता है.... शुभ तुम्हारा साथ मेरे लिए बहुत जरूरी है। मे तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।

मैं भी आपसे बहुत प्यार करती हूँ।

पृथ्वी निकल जाता है। फिर कुछ देर बाद दक्ष भी शुभ और अनीश के साथ निकल जाता है।

पृथ्वी ज़ब प्रजापति महल मे आता है तो वहाँ सारी तैयारी हो चुकी थी। रंजीत जी गुस्से मे पूछते है.... आप कहाँ गए थे पृथ्वी और आपका फोन भी नहीं लग रहा था।

पृथ्वी अपने गुस्से को कंट्रोल करते हुए अपनी आखों को बंद कर लेता है और फिर कहता है.... दादा सा, मैं किसी जरूरी काम से बाहर गया था। कहते हुए वो तेजी से अपने कमरे मे चला जाता है।

इधर राजेंद्र जी कहते है, "भई रंजीत आप इस तरह से क्यों नाराज हो रहे है, आज उनकी सगाई है कही गए होंगे। आप शांत रहिये और अब मेहमानों के आने का स्वागत कीजिये।

इधर तूलिका को हल्का हल्का होश आने लगता है। अतुल देख उसके माथे पर हाथ रख कर धीमी आवाज़ से उसे पुकारने लगता है," तूलिका तुम ठीक हो "। तूलिका आँख खोलती है तो.... उसकी नजर अतुल पर जाती है, और फिर वो अपने आप को संभालते हुए.... उठने लगती है। अतुल उसे पकड़ कर कहता है.... लेटी रहो क्यों उठ रही हो...। तूलिका कहती है.... वो... वो।

अतुल उसके हाथों को पकड़ कर बड़े आराम से कहता है... सब ठीक है। तुम आराम करो, मैं तुम्हारे लिए कुछ खाने को लेकर आता हूँ। वो उठ कर जाने लगता है तो तूलिका उसका हाथ नहीं छोड़ती उसे ज़ोर से पकड़ी रहती है....। अतुल उसके डर को समझ कर.... बिस्तर पर बैठ जाता है और उसे एक तरफ से पकड़े होता है। तूलिका का हाथ अतुल के शर्ट को ज़ोर से पकड़े हुए होते है। अतुल दूसरे हाथ से अपने फोन से किसी को मेसेज करता है। फिर फोन रख कर तूलिका को शांत करने के लिए उसके माथे को सहला रहा होता है।

कुछ देर बाद कमरे मे, एक नौकर हाथों मे खाने की ट्रे लेकर आता है। कुछ बोलता लेकिन अतुल ने इशारे से उसे चुप रहने के ली कहा। वो चुप होकर खाना शांति से टेबल पर रख देता है।और बाहर चला जाता है।

अतुल प्यार से तूलिका को कहता है, खाना खा ले। लेकिन तूलिका उसके कंधे पर अपने सर को रखी हुई ना मे हिलाती है।

अतुल उसे ऐसे देख, खाना अपने हाथों मे लेकर, निवाला तोड़ कर उसके मुँह के आगे ला देता है.... तूलिका अपनी आखों मे आंसू लिए ना मे.... अपना सर हिलाती है।

अतुल.... प्यार से हाँ करते हुए कहता है, खा लो... प्लीज। फिर तूलिका अपना मुँह खोलती है, धीरे धीरे अतुल उसे सारा खाना अपने हाथों से खिला देता है। फिर दवा देता है तो वो मुँह बना लेटी है। अतुल बहुत आराम से कहता है की तुम दुनिया की पहली डॉक्टर होगी जो मेडिसिन देख कर मुँह बनाती हो, मालूम नहीं केसे तुम इलाज करती होगी मरीजों की।

तूलिका उसकी बात सुनकर कर कहती है," मैं बहुत अच्छी डॉक्टर हूँ और मेरे मरीज मुझसे ख़ुश रहते है "। तूलिका को इस तरह बोलता देख अतुल समझ जाता है की उसे तूलिका के दिमाग़ को केसे डाइवर्ट करना है... जिससे वो जल्दी से जल्दी सामान्य हो जाये। यें सोच कर अतुल .... कुछ और बातें करने की सोचता है।

अतुल कहता है अच्छा... और दवाइयां खिला देता है। तूलिका कहती है.... तुम एक नम्बर के गंदे हो... मेरा पूरा मुँह करवाँ हो गया... क्या करूंगा मैं??? अतुल बिना सोचे समझे उसकी बात सुन कर अपने होठों को उसके होठों पर रख देता है और हल्का सा चूमने लगता है।

तूलिका अतुल के इस तरह किश करने पर .... कुछ प्रतिक्रिया करती लेकिन अतुल के इस तरह उसे छूने से, उसे अपने अंदर सुकून सा उतरता हुआ अहसास हो रहा था.... उसके माथे की नशों को एक आराम महसूस हो रही थी....। इसलिए वो अतुल के किश को महसूस करने लगी थी।

लेकिन अतुल को ज़ब ख्याल होता है की वो क्या कर रहा है तो.... वो तूलिका के होठों से खुद को अलग कर लेता है.... उसके इस तरह खुद को अलग करने से तूलिका अपनी आँखे खोल देती है... अतुल अपनी नजरों को निचे किये इधर उधर घुमा रहा होता है की अपनी इस हरकत पर अब वो क्या जवाब दे... फिर भई हिम्मत करते हुए... कहने की कोशिश करता है.... वो... वो... मैं। तूलिका जो उसे देख रही होती है। उसके इस तरह आगे बोलने से....पहले ही... उसके शर्ट को पकड़ कर अपनी तरफ खींचती है, अतुल को ज़ब तक समझ मे आता की..... तूलिका ने क्या किया... तब तक तूलिका ने अपने होंठ को उसके होठों से जोड़ लिया और उसे किश करने लगी,   हालांकि उसे किश करने नहीं आता था इसलिए वो अतुल को चुम कम और काट ज्यादा रही थी। अतुल उसकी इस हरकत पर मुस्कुरा देता है और अपने हाथों से उसकी कमर को पकड़ कर अपनी तरफ खींचता है और उसे खुद प्यार से चूमने लगता है.... अतुल भी तूलिका के करीबी के अहसास को संभाल नहीं पाता और धीरे धीरे उन्दोनो की किश और गहरी होती जा रही थी।अतुल, तूलिका को किश करते हुए उसके ऊपर आ जाता है.... दोनों के अंदर दर्द का अहसास होता है.... दोनों को अहसास होता है एक जैसे दर्द का... जो एक दूसरे के करीब होने से उन्हें... कम होता लगता है। तूलिका और अतुल दोनों एक दूसरे को चुम रहे होते है और दोनों के आखों से लगातार आंसू बह रहे होते है। ना जाने कौन सा दर्द था दोनों के अंदर जो एक दूसरे की छुवन से.... आंसू बनकर बाहर निकल रहा होता है।

लगभग बीस मिनट से वो दोनों एक दूसरे को चुम रहे होते है.... तब तक ज़ब तक अनीश की आवाज़ नहीं आने लगती...।

अनीश और दक्ष, शुभ को लेकर आ चुके होते है। इसलिए अनीश अतुल को आवाज़ दे कर बुला रहा होता है। अतुल के कान मे ज़ब अनीश की आवाज़ जाती है तो  तूलिका अभी निचे और अतुल उसके ऊपर होता...। अतुल आराम से  तूलिका को किश करना छोड़ देता है... .....और उसकी नजर तूलिका के चेहरे पर जाती है, जो आंसूओ से भींगा हुआ होता है.... जिसे देख अतुल उसकी दोनों आखों चूमते हुए कहता है....

"ना जाने कितने दर्द है, जो तुम्हारे इन आखों से आज बह निकले है, मुझको आरजू है की तेरी इन आंसूओ का तलबगार सिर्फ मैं रहु!!!"

तूलिका उसकी बातें सुन आँखे खोल लेती है... और अतुल के चेहरे को अपने हाथों मे लेती हुई.... अपने अंगूठे से उसके आखों के आंसू पोछती हुई कहती है...

"अगर दर्द इतनी परवाह मे हो तो आसान हो जाती है राहें.... तेरी तबलगारी की आरजू तो अब मुझे भी है "।तूलिका की यें बात सुन अतुल के लब मुस्कुरा जाते है।

दोनों के आखों मे आंसू और लबों पर मुस्कुरा रहे थे, शायद बरसों बाद दोनों की दिल की दर्द की दवा मिल गयी थी। अतुल उसके माथे को चूमते हुए कहता है, तुम आराम करो,मैं आता हूँ। जाने लगता है।

तूलिका उसे नहीं छोड़ती। अतुल कहता है... तुमसे दूर नहीं हूँ... बस निचे एक बार सबसे मिल लेता हूँ। फिर आ जाऊंगा। तूलिका कहती है मैं भी चलूंगी।.... आर यू सियोर!!! तुम चल सकती हो निचे, कोई परेशानी तो नहीं होगी।

नहीं मैं ठीक हूँ!!! मैं चल सकती हूँ। फिर अतुल अपनी बाहों के सहारे उसे खड़ा करता है और उसका हाथ पकड़ निचे.... आने लगता है।

ज़ब अतुल और तूलिका निचे आ रहे थे तो दक्ष का ध्यान सिर्फ उन्दोनो पर था और उन्दोनो को देख कर वो मुस्कुरा रहा होता है।अनीश उसे ऐसे मुस्कुराते देख कहता है.... क्या हुआ क्यों इतना मुस्कुरा रहे हो। दक्ष कहता है..... मेरे यार को जिंदगी मिल गयी इसलिए खुश हूँ। अनीश एक बार अतुल की तरफ देख कर.... खुश होते हुए... दक्ष की तरफ देखता है.... दोनों की आँखे ख़ुशी से नम हो गयी थी। अनीश खुश होते दक्ष की तरफ देखते हुए कहता है....सच!!! दक्ष मुस्कुराते हुए.... हाँ मे इशारा करता है। अनीश भाग कर जाने लगता है अतुल के पास लेकिन दक्ष रोक देता है.... अभी नहीं। अनीश उसकी बात मान जाता है।

यही हाल रितिका और दीक्षा का था.... तूलिका को देख कर।

दोनों निचे आते है। तूलिका से दीक्षा और रितिका गले मिल कर कहती है तुम ठीक हो। तूलिका... हम्म्म्म बोलती हुई अपना जवाब देती है।

शुभ ज़ब से आयी थी... दक्ष ने उसे किसी से अभी तक नहीं मिलाया था। क्योंकि अतुल निचे नहीं था तो अतुल के आने का इंतजार कर रहा था। ज़ब सब आ गए।

तब दक्ष ने... शुभ के पास आकर कहा, " आईये भाभी सा!!! सब दक्ष के मुँह से भाभी सा सुन कर चौंक जाते है। दक्ष कहता है... दीक्षा इनसे मिलो यें हमारे बड़े भाई की पत्नी है। लेकिन वो पृथ्वी का नाम किसी को नहीं बताता। अतुल और अनीश को तो मालूम था की शुभ,पृथ्वी की पत्नी है।

शुभ को सबके पास लाकर... एक एक करके सबसे मिलवाते हुए कहता है.... भाभी सा, यें है हमारी धर्मपत्नी और अपनी देवरानी दीक्षा दक्ष प्रजापति। दीक्षा आगे बढ़ कर शुभ के गले मिलती हुई कहती है.... आपका, आपके घर मे स्वागत है। शुभ कहती है.... यें हमारा नहीं आपका घर है... होनी वाली रानी सा।

दीक्षा मुस्कुराते हुए कहती है.... आप हमारी और हम आपके.... तो यें हमारा घर हुआ, ना तेरा ना मेरा।

फिर दीक्षा अपनी दोनों दोस्त से मिलाती हुई कहती है.... यें हमारी दोस्त, हमारी सब कुछ.... रितिका और तूलिका। शुभ से वो दोनों भी गले मिलती हुई कहती है.... आपका स्वागत है... भाभी सा।

शुभ कहती है कितना अच्छा हो की आप हमें भी... अपनी दोस्त बना ले और भाभी सा की बजाय.... शुभ बुलाये।

और फिर दीक्षा की तरफ देखती हुई कहती है की आप भी हमें, हमारे नाम से बुलाती तो हमें अच्छा लगता। दीक्षा मुस्कुराते हुए कहती है की.... हम आपको नाम से तो सीधे तौर पर नहीं पुकार सकते क्योंकि आप इनके बड़े भाई की पत्नी है... लेकिन शुभ जीजी जरूर बुला सकती हूँ और आप हमें रानी सा नहीं सीधे दीक्षा बुलाएगी।

ठीक है। शुभ मुस्कुराते हुए कहती है.... बिल्कुल ठीक है।

तभी अतुल आ कर कहता है.... अरे यें तो गलत बात है.... भाभी सा, सबसे मिल ली आप लेकिन हमसे नहीं मिली। शुभ कहती है आपसे मिली तो अब हूँ लेकिन आपको जानती पहले से हूँ। आपके भाई सा हर वक़्त आप तीनों के बारे मे बताया करते थे।

सभी एक दूसरे से मिलकर खुश होते है, तभी दक्ष कहता है, अब आप सब जाकर तैयार हो जाईये। शाम को हमें सगाई मे भी  जाना है। दक्ष की बात सुन कर, तूलिका अपनी धीमी आवाज़ मे कहती है, "जीजू मै नहीं जाना चाहती "। दक्ष मुस्कुराते हुए कहता है... नहीं तूलिका आप नहीं जा रही हमारे साथ, आप और अतुल यही रुक रहे है। फिर सबको इशारा करता है... जाने के लिए... ज़ब सब जाने लगती है तो दक्ष की आवाज़ सुन कर रुक जाती है।

दक्ष... दीक्षा और शुभ के पास आकर कहता है,आपदोनों को मालूम है ना की आप दोनों को केसे तैयार होना है।दोनों हाँ मे अपना सर हिलाती हुई कहती है...,"हमें अच्छी तरह मालूम है की वहाँ हम उस घर की बहु नहीं ऑफिस की एम्प्लोयी बन कर जा रहे है।दोनों मुस्कुराती हुई चली जाती है।"दीक्षा शुभ को उसका कमरा दिखाती हुई कहती है,"जीजी यें आपका कमरा है... अंदर सब कुछ पहले से मौजूद है। शुभ उसकी बात सुन कर उसे देखती है। दीक्षा हंसती हुई कहती है... यें सुबह मे ही कह कर गए थे की यें कमरा ठीक करवा देना। इसलिए आप जाईये। शुभ अपने कमरे मे चली आती है। वो जहाँ रहती है उसकी अपेक्षा.... उस पुरे घर के मुताबिक यें एक कमरा था.... बाहर बालकनी मे खूबसूरत फूल लगे हुए थे जिसकी खुशबू से वो कमरा महक रहा था।

इधर दक्ष,अतुल और अनीश बैठे होते है।अतुल कहता है,क्या सोचा है।दक्ष उसकी बात सुन कर कहता है अभी तो कुछ प्लान नहीं किया है।पहले देख तो लूँ वहाँ पर जा कर।दूसरी पहले भाई सा की सगाई तो रोक दूँ फिर देखते है।लेकिन रौनक का..... अनीश अपनी अधूरी बात करते हुए कहता है।

दक्ष कहता है,वो अभी बच्चा है और वो लड़की ठीक नहीं है, उससे अच्छी उसकी बड़ी बहन है।अनीश कहता है कही तू वो तो नहीं सोच रहा।दक्ष उसके घुटनों पर हाथों को रख कर कहता है की अभी तो कुछ नहीं सोच रहा हूँ।

लेकिन एक दादी सा के आने से हमारा पूरा खानदान बिखर गया ऊपर से फूफा सा ने उस पर चार चाँद लगा दिए है।

लेकिन अब हमारी पीढ़ी मे कम से कम वैसे गलती नहीं दोहराने दूँगा।

फिर अतुल की तरफ देखते है दोनों जो अपने ही ख्यालों मे गुम था।दक्ष उसके कंधे पर हाथ रख कर कहता है..... "तुमदोनों को थोड़ा समय दो। कही ना कहीं दोनों एक ही आग मे झूलसे हो... उसकी तपन को ठंडा होने दो। ज़ब तक यें ठंडा नहीं होगा तुम दोनों की जलन रहेगी ही। थोड़ा वक़्त दो। मुझे लगता है तुमदोनों की दर्द की दवा सिर्फ तुम दोनों ही हो।"  अतुल उसकी बातों को सुन थोड़ा भावुक होकर उससे गले लग जाता है और कहता है, " यार उसके साथ बहुत बुरा हुआ है.... लेकिन मै पूछूं केसे??? यें नहीं समझ आ रहा है!!!!"

थोड़ा वक़्त दे उसे अतुल... वो खुद बताएगी।... हाँ... शायद तू ठीक कह रहा है। अच्छा अब तुम दोनों जाओ तैयार हो जाओ।

अनीश अपने कमरे मे चला जाता है। और दक्ष ज़ब अपने कमरे मे जाता है तो दीक्षा को देख कर एक पल के लिए उसकी नजर रुक जाती है।  दीक्षा बेहद हसीन लग रही थी। दीक्षा ने सी ग्रीन लंहगा, सलीव लेस ब्लाउज और एक तरफ से दुपट्टा को लेकर दूसरी तरफ कमर मे लगा रखा था,बालों को उसने कर्ल छोड़ा था...ग्रीन हेजल आखों मे ग्रीन ग्रे शेड से काजल लगा रखी हुई थी। कानों मे डामंड की इयरिंग और गले मे... दक्ष के नाम का मंगलसूत्र जो पंडेंट की तरह दिख रही थी... होठों पर स्किन कलर लिपस्टिक लगा रखी हुई थी। दक्ष जो काफ़ी देर से दीक्षा की खूबसूरती को निहार रहा होता है। दीक्षा जो बार बार खुद को आईने मे देखती हुई... परफेक्ट करने मे लगी होती है।

आईने से, दक्ष को यूँ बाजु बांधे खड़े देख वो मुड़ कर देखती है और मुस्करी हुई कहती है..... "केसी लग रही हूँ मै, कहीं क्या ख्याल है "????

दक्ष उसी तरह मुस्कुराते हुए उसके पास आकर... उसके चेहरे से बालों के लटो को हटाते हुए कहता है...."बिजलीयाँ ना गिर पड़े अब तो यें सवाल है!!!!!"

और झुक कर उसके होठों पर अपने होठों को रख कर उसे पेशनेटली चूमने लगता है। उसके गरम हाथ... दीक्षा की ठन्डे और खुली बदन पर चलने लगते है... जिससे दीक्षा की धड़कन तेज हो जाती है और उसके हाथ दक्ष के कंधो पर अपनी पकड़ मजबूत करते जाते है।दोनों एक दूसरे को तब तक चूमते है.... ज़ब तक वो सटिस्फाई नहीं हो जाते है।

फिर दक्ष दीक्षा को छोड़ते हुए कहता है..... "स्वीट्स लिपस्टिक चेंज कर लो मुझे इसका टेस्ट पसंद नहीं आया और तैयार होने  चला जाता।"

दीक्षा मुँह बनाती हुई कहती है.... "हुँह!!! स्वीट्स लिपस्टिक चेंज कर लो मुझे उसका टेस्ट पसंद नहीं आया। बड़े आये। यें तो बताया नहीं की केसी लग रही हो और एडवांटेज भी ले लिया। खुद से मुँह बना बना कर बोलती हुई लिपस्टिक फिर से लगाने को होती है....। तब तक दक्ष अपनी ब्लैक सफारी सूट के बटन लगाते हुए कहता है.... हम्म्म्म स्वीट्स पिंक कलर की लिपस्टिक लगाना फिर उसके करीब आ कर कहता है, गुलाबी लिपस्टिक मुझे तुम्हारे लबों पर बहुत पसंद है।

दीक्षा उसकी बात सुन कर शरमा जाती है, जिससे उसके गाल और गुलाबी हो जाती है।... दक्ष मुस्कान लिए उसके आखों से काजल निकल कर, कान के पीछे लगाते हुए कहता है.... अब तुम्हारी खूबसूरती को किसी की नजर नहीं लगेगी।

दोनों तैयार होकर निचे आते है।

जहाँ गुलाबी रंग की अनारकली सूट मे रितिका प्यारी लग रही थी और अनीश ने ब्लू कलर के कोट के साथ सफेद रंग की शर्ट पहने हुए... डैसिंग लग रहा था।दोनों निचे तैयार होकर एक दूसरे के साथ खड़े थे। अनीश अपनी तिरछी नजर से रितिका को देख रहा था और अपने सीने पर हाथ चला रहा होता है। जिसे देख अतुल उसके कानों के पास आकर कहता है... छिछोरी हरकत बंद कर.... नहीं तो... प्यार नहीं जेल जायेगा... और तिरछी मुस्कान के साथ... उसके बगल मे खड़ा हो जाता है।

शुभ लाल रंग की जरी कढ़ाई की सारी पहनी हुई थी,बालों मे गजरा लगाए हुए.... बहुत हसीन लग रही थी।

ज़ब दक्ष और दीक्षा निचे आते है तो उन दोनों को देख कर सब की नजर थम जाती है। दोनों एक दूसरे के साथ बेहद दिलकश लग रहे थे।

सभी एक साथ निचे आते है। दीक्षा, अतुल से पूछती है... भैया वो तूलिका।... आप परेशान ना हो... भाभी वो कमरे मे है, आराम कर रही है। हम्म्म्म।

अच्छा अतुल तुम ध्यान रखना हम आते है।.... कहते हुए सभी निकल जाते है।

प्रजापति महल आज दिवाली की रात की तरह रौशनी से चमक रही थी।माहौल मे पूरी गहमाग़हमी थी, क्योंकि प्रजापति खानदान के घर की सबसे बड़े पोते की आज सगाई थी। पूरा राजस्थान शामिल हो रखा था।

अंदर का माहौल उनके रुबाब और रुतबा को दरसा रही होती है। जयचंद जी, राजेंद्र जी कहते है... राजा साहब इंतजाम तो बहुत बेहतरीन किया है। क्यों नहीं जयचंद जी.... आखिरी हमारे बड़े पोते की सगाई है... और यें तो कुछ भी नहीं शादी मे मे आप देखना की क्या इंतजाम होता है। तभी कुछ और राजस्थान के रजवाड़े आते हुए कहते है.... राजा साहब आपके पोते नजर नहीं आ रहे है। राजा साहब कुछ कहते की..... तब तक रंजीत जी कहते है... लीजिये वो आ गए।

ज़ब दक्ष और अनीश आगे और पीछे से दीक्षा, रितिका और शुभ अंदर आते है....। सभी की नजर दीक्षा की खूबसूरती पर रुक जाती है।

उस भरी महफिल मे.... एक शख्श की नजर.... तो जैसे दीक्षा पर टिक गयी।और दीक्षा को देखते ही..... उसकी आखों मे एक अलग चमक आ जाती है।

कंटिन्यू....