वात्सल्य देखता है उसकी गाड़ी पेड़ से टकरा गई है। लेकिन ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। सिर्फ गाड़ी का बोनट खुल गया है। और उसके शीशे पर अब कोई चमगादड़ भी नहीं है। उसने नैना की तरफ देखा , जो डर के मारे अपने चेहरा अपनी हाथों में छुपाए बैठी थी। वात्सल्य ने नैना के कंधे पर हाथ रखा। नैना एकदम से कांप जाती है और डरते हुए वात्सल्य को देखती हैं।
वात्सल्य नैना के कंधे को थपथपाते हुए कहता है, " इट्स ओके। कुछ भी नहीं है । घबराओ मत। ये लो पानी पियो।" वात्सल्य नैना को पानी देता है और धीरे से दरवाजा खोल कर गाड़ी से बाहर आ जाता है।
उसने आसपास देखा, कि कहीं वह चमगादड़ उसकी गाड़ी के नीचे तो नहीं आ गया। पूरी तरह से देखने के बाद जब उसे यकीन हो गया, कि चमगादड़ गाड़ी के नीचे नहीं आया है और उसकी गाड़ी भी ठीक है। तो वात्सल्य एक गहरी सांस छोड़ता है। उसने देखा यह जंगल के बीचो-बीच का इलाका है । और उसकी गाड़ी एक पेड़ से टकराई हुई है ।
सामने की तरफ का रास्ता बहुत ही कच्चा और उबर खबर है। वात्सल्य वापस आ के गाड़ी में बैठ जाता है। नैना घबराते हुए कहती है, " क्या हुआ ? सब ठीक तो है ना ?" वात्सलय हा में सर हिलाते हुए नैना से कहता है , "हां सब ठीक है। वह चमगादड़ उड़ गया और गाड़ी भी ठीक है।"
उसने दोबारा से गाड़ी स्टार्ट की और वहां से आगे बढ़ गए। लेकिन जैसे-जैसे वह आगे जा रहे थे, वैसे-वैसे नैना की घबराहट बढ़ती जा रही थी। वह आसपास देख रही थी। हालांकि वात्सल्य ने हर एक लाइट को ऑन कर रखा था। गाड़ी के अंदर और बाहर जितनी भी लाइट थी, वात्सल्य ने सब जला रखी थी । ताकि उसे पता चले कोई चमगादड़ या कोई जानवर तो उसकी गाड़ी के सामने नहीं आ रहा है । पर नैना का डर अभी भी उसके चेहरे पर दिख रहा था। वह घबराते हुए इधर-उधर देख रही थी। वात्सल्य ने जब नैना को ऐसे डरते हुए देखा, तो वह उसके डर को समझ सकता था।
नैना घबराते हुए खिड़की के बाहर देख रही थी। उसकी खिड़की के बाहर भी गाड़ी की लाइट चल रही थी और उसे बाहर कुछ नजर नहीं आ रहा था। सिर्फ रात के काले अंधेरे में पेड़ ही पेड़ दिख रहे थे। हालांकि अब चमगादड़ नजर नहीं आ रहा था , पर जो उसने पहले देखा था उसे देख कर वह बुरी तरह से डर गई थी । तभी अचानक से उसे वात्सल्य के हंसने की आवाज आती है।
नैना चेहरा घूमा कर देखती है तो वात्सल्य मंद मंद मुस्कान में हंसे जा रहा था । उसे हंसता हुआ देख कर नैना ने कहा, " क्या हुआ वात्सल्य ? तुम हंस क्यों रहे हो ?"
वात्सल्य हंसते हुए नैना को देख कर कहने लगा, " मुझे ना टोपी की याद आ गई। वह अगर यहां होता ना , तो इतना बड़ा चमगादड़ पिंजरा छोड़ो पूरा ट्रक लाता उसे पकड़ने के लिए।"
और यह कह कर वात्सल्य हंसने लगता है नैना उसे अजीब नजरों से देखती हैं और उसके कंधे पर मारते हुए कहती है, " क्या कर रहे हो वात्सल्य ? यहां डर के मारे मेरी हालत खराब हो रही है और तुम्हें हंसी मजाक सूज रहा है ? तुमने देखा नहीं वह चमगादड़ कितना बड़ा था!"
वात्सल्य हंसना रोक देता है और नैना से कहने लगा, " अरे यार मैं तो तुम्हारा मूड हल्का करने के लिए यह कह रहा था। तुम तो मुझे ही मार रही हो । अच्छा चलो छोड़ो। कोई बात नहीं। इग्नोर करो इस बात को। वैसे भी यह एक छोटा सा कस्बा है । मुंबई और बाकी शहरों से कटा हुआ है । यहां पर उतनी सुविधा नहीं है इसलिए यहां के पेड़ और जंगल इतने घने और डरावने लगते हैं । ऐसे पेड़ और जंगलों में इतने बड़े-बड़े चमगादड़ों का होना आम बात है। वैसे भी चमगादड़ बाहर ही तो था। कौन सा गाड़ी के अंदर आ गए था ? और हमारे साथ बैठ कर कोल्ड ड्रिंक पी रहा था। रिलैक्स यार । वैसे भी हम बस पहुंचने वाले हैं ।"
नैना थोड़ी रिलैक्स तो होती है, लेकिन उसके मन में डर अभी भी था। वात्सल्य मैप में बताए हुए रास्ते पर जा रहा था। तभी अचानक से उसका मैप गायब हो जाता है और डायरेक्शन जो उसे दिखाई दे रहा था, वह नजर आना बंद हो जाता है। वात्सल्य ने अपने फोन को दो-तीन बार टच किया और मैं आपको दोबारा ऑन करने की कोशिश की । लेकिन मैंप ऑन ही नहीं हो रहा था।
वह परेशानी से कहता है, " अब इस फोन को क्या हो गया ? यह मैप क्यों नहीं दिख रहा है? अब कैसे पता चलेगा यहां से कहां जाना है ?"
नैना ने जब वात्सल्य को परेशान देखा तो वह कहती है, " छोड़ो ना वैसे भी वह पास में ही है। मैंने देखा था मैप में यहां से आगे जा कर जो कच्चा रास्ता दाएं तरफ मुड़ता है ना, तुम्हें वहां जाना है। उसे थोड़ा आगे ही तुम्हें वह कोठी नजर आ जाएगी।"
वात्सल्य ने हैरानी से नैना को देखा. तो नैना मुस्कुराते हुए कहती, " अरे मैंने तुम्हारे फोन के मैप में देखा था। दाएं मुड़ने के बाद मैप में कोई आगे का रास्ता था ही नहीं । तो इसका मतलब कोठी दाएं मुड़ कर ही है।"
वात्सल्य मुस्कुराते हुए हा में सर हिलाता है और फिर वैसा ही करता है, जैसा नैना ने कहा था। उसने कच्चे रास्ते से दाएं मोड़ लिया और वह रास्ता थोड़ी ही आगे जाने के बाद खत्म हो जाता है । नैना और वात्सल्य एक जगह पहुंच जाते हैं और हैरानी से इधर-उधर देखने लगते हैं। उनके सामने एक बड़ी सी पुरानी सी कोठी नजर आ रही थी। वो रात के अंधेरे में काली और डरावनी दिख रही थी। लेकिन अंदर से जल रही हल्की-हल्की रोशनी यह बता रही थी, कि शायद अंदर कोई है।
नैना उस कोठी को देखते हुए कहती है, " यही है लाल कोठी ।"
वात्सल्य एकदम हैरान हो जाता है और नैना से कहने लगा, " तुम्हें कैसे पता ? कि यह लाल कोठी है।"
नैना अजीब नजरों से वात्सल्य को देखते हुए कहती है, " तुम्हें इस कोठी का रंग नजर नहीं आ रहा है क्या ? यह लाल पत्थर से बनी हुई है, तो जाहिर सी बात यह लाल कोठी है।"
वात्सलय हस देता है और हा में सर हिलाते हुए कहता है, " अरे हां ठीक है मान लिया । चलो अंदर चलते हैं । और जल्दी से अपना काम खत्म करते हैं।"
वात्सल्य और नैना गाड़ी से बाहर निकलते हैं और उस कोठी के गेट तक पहुंच जाते हैं। बाहर की तरफ सलाखों से बनी हुई बड़ी सी गेट के पास पहुंच कर वात्सल्य अंदर झांकते हुए कहता है, " कोई है ?"
तभी अचानक से उस गेट के दूसरी तरफ से एक आदमी आ जाता है । उसे देख कर नैना अचानक से हल्की सी चीख के साथ अपने कदम पीछे ले लेती है। उसने अपने मुंह पर अपना हाथ रख लिया था और वह उस आदमी को देख रही थी। वात्सल्य भी घबरा जाता है। और वह आदमी अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से उन दोनों को देख रहा था। उसने एक सफारी सा सूट पहन रखा था और सर के ऊपर साफा बंधा हुआ था। उसकी बड़ी-बड़ी मूंछों के पास गालों पर एक बड़ा सा मस्सा था।
नैना डरते हुए वात्सल्य के पास आती है और उसकी बाजू को पकड़ लेती है । वह घबराते हुए उसके कानों में कहती है, " क्या यही है वह? जिनके साथ में डील करनी है । देखो मुझे यहां डर लग रहा है। तुम्हें जो भी डील करनी है,अभी करो और चलो यहां से।"
" घर के बाहर खड़े हो कर कौन सी डील होती है नैना ? 2 मिनट दो मुझे बात तो करने दो, कि यह है कौन।" उसके बाद वात्सलय उस आदमी की तरफ देखते हुए कहता है, " एक्चुअली हमें कनिष्क जी से मिलना है। क्या ये उन्ही की कोठी है ?"
वह आदमी अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से बिना पलके झपकाए उन दोनों को देखता है और कहता है, " उनका नाम ले रहे हो इसका मतलब कोई बड़े लोग हो । वरना मलिक का नाम कोई नहीं लेता है। और आप लोग सही पते पर आए हैं। यह उन्हीं का घर है। आइये।"
उस आदमी ने लोहे का दरवाजा खोल दिया और अंदर जाने की तरफ इशारा किया। वात्सल्य ने कस के नैना का हाथ पकड़ लिया और नैना ने एक हाथ से वात्सल्य का हाथ कस के पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपने बैग को कस लिया। वह डरते हुए वात्सल्य के साथ आगे बढ़ जाती है।
कोठी के दरवाजे पर पहुंच कर वात्सल्य डोर बेल देखने लगता है। लेकिन उसे डोर बेल कहीं नजर नहीं आता है और ना ही नैना को डोर बेल नजर आता है। नैना ने कहा, " यहां डोर बेल तो नहीं है।"
तभी वात्सल्य को एक खिड़की के पास डोरी सी नजर आती है । वह उस डोरी को देखता है और उसे पकड़ कर हिलाने लगता है। तभी अंदर से उसे घंटी बजने की आवाज आती है। नैना हैरानी से कहती है, " यह डोर बेल है ? काफी यूनिक है! ऐसे रस्सी खींचने से डोर बेल बजती है !"
वात्सल्य ने दो-तीन बार उस रस्सी को खींचा और अंदर से उसे घंटी बजने की आवाज भी आ रही थी। लेकिन किसी ने दरवाजा नहीं खोला। नैना कहती है, " वात्सल्य कोई दरवाजा क्यों नहीं खोल रहा है ? सब सो गए हैं क्या ?"
वात्सल्य ने घड़ी में टाइम देखा और कहा, " नैना रात के 10:00 बज रहे हैं । जाहिर सी बातें सब सो ही गए होंगे। पर हम यहां से कहीं जा भी तो नहीं सकते हैं ना। तो हमें यही खड़े हो कर इंतजार करना होगा।"
उसने अपने दोनों हाथों को अपने मुंह के पास रखा और दरवाजे की तरफ करते हुए कहा, " कोई है ? प्लीज दरवाजा खोलिए।", लेकिन 2 मिनट बाद भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला। वात्सल्य और नैना हैरानी से एक दूसरे को देख रहे थे।
तभी वात्सल्य को कुछ एहसास होता है और वह कहता है, " यार नैना मुझे काफी देर से ना कुछ स्मेल सी आ रही है। गाड़ी में भी यह स्मेल आ रही थी। काफी अजीब है। पता नहीं किस चीज की स्मेल है ? पर ऐसा लग रहा है बहुत पास में है।"
वात्सल्य के कहने पर नैना भी अपने नाक से कुछ सूंघते हुए कहती है, " हां यह स्मेल तो मुझे भी आ रही है । और गाड़ी में भी आ रही थी। पहले तो मुझे लगा, कि आसपास के माहौल की वजह से आ रही है। पर वह स्मेल मुझे यहां पर भी आ रही है।"
तभी नैना को कुछ याद आता है और वह एकदम से हैरान हो जाती है। उसने जल्दी से अपना पर्स खोला और अंदर से उस लहसुन की डोरी को बाहर निकाला। उसमें एक साथ 10 12 लहसुनों को बांधा गया था । वह लहसुन को सूंघती है और फिर गंदा सा मुंह बनाते हुए कहती है, " छी इसमें से आ रही है ।"
वात्सल्य एकदम से हैरान हो जाता है और कहता है, " क्या तुम अपने पास में लहसुन रख कर घूमती हो ? यक्क्क! इसकी स्मेल तुम्हें परेशान नहीं करती है क्या ?"
नैना चिढ़ते हुए कहती है, " मजाक मत करो वात्सलय यह मैं अपने पर्स में रख कर नहीं घूमती हूं । दरअसल उस ढाबे पर उस तांत्रिक बाबा ने मुझे यह लहसुन की डोरी पकड़ा दी। उन्होंने मुझे कहा हैं, कि इसे अपने पास ही रखना । यह करने से बुरी आत्माएं मेरे पास नहीं आएंगी। उसके बाद वह चमगादड़ और रास्ते का सफर। में भूली गई कि मेरे पास में यह रखा भी है।"
वात्सल्य ने नैना के हाथों से उसे लहसुन की डोरी को लिया और उसे साइड में फेंकते हुए कहा, " क्या बकवास है यह? लहसुन पर्स में रखने से बुरी आत्माएं पास में नहीं आएगी। अरे इसकी बदबू इतनी अजीब है, कि बुरी छोड़ो अच्छी आत्माएं भी पास नहीं आएंगी।"
वात्सल्य ने जैसी ही उस लहसुन फेंका वैसे ही दरवाजा खुलने की आवाज आती है। वात्सल्य और नैना हैरानी से दरवाजे की तरफ देखते हैं। और अचानक से पूरा दरवाजा खुल जाता है। और उसी के साथ एक खूबसूरत सी लड़की उनके सामने खड़ी थी। जिसकी आंखे काजल से सनी हुई थी और उसके लंबे बाल कमर तक खुले हुए थे । उसने एक ब्लैक रंग की ड्रेस पहनी हुई थी और होठों पर रेड कलर की लिपस्टिक थी, रेड डार्क रेड।