वह सोचने लगा, "अब मेरे पास क्या बचा है? क्या मैं फिर से खड़ा हो पाऊँगा? क्या मे फिरसे अपनी ताकत को हासिल कर पाउँगा?"
लेकिन एक बात उसे अंदर से जगा रही थी। भले ही वह अपनी शक्ति खो चुका था, पर उसकी इच्छाशक्ति अभी भी ज़िंदा थी। यह रात उसके ज़िन्दगी की सबसे अंधेरी रात थी, पर कैहते है ना घने अँधेरे के बाद ही सूरज निकलता है लेकिन यह अंधेरा उसकी नई सफर की शुरुआत का संकेत भी था।
ध्रुव ने अपने घुटनों पर हाथ रखा और धीरे-धीरे खड़ा होने की कोशिश की। उसकी आत्मा टूट चुकी थी, पर वह हार मानने को तैयार नहीं था।
ध्रुव, जो कभी शौर्यनगर का गौरव था, अब अपने घर और गाँव में भी पराया हो गया था। जब वह शक्तिहीन और कमज़ोर थका-हारा अपने घर लौटा, तो उसके मन में बस यही आस थी कि उसका परिवार उसकी मजबूरी को समझेगा और उसका साथ देगा। लेकिन, उसके लौटते ही माहौल एकदम बदल गया।
गाँव के लोग, जो कभी उसकी ताकत पर गर्व करते थे, और उसकी तारीफे करते नहीं थकते थे आज उसे हिकारत भरी नजरों से घूर रहे थे। वो लोग, जो कभी उसके दोस्त और समर्थक थे, अब उसे कमजोर और बेकार समझ रहे थे। ध्रुव के कदम जैसे-जैसे गाँव की सड़कों पर पड़ते, वैसे-वैसे उसकी आत्मा और भी भारी होती जा रही थी।
उसके घर पहुंचते ही, उसका सामना उसके पिता आर्य से हुआ। आर्य का चेहरा कठोर और गंभीर था, उनकी आँखों में ध्रुव के लिए न तो सहानुभूति थी, न ही प्यार। ध्रुव ने उम्मीद के साथ कहा, "पापा, मैं... मैं शक्तिहीन हो गया हूँ, पर मैं फिर से अपनी शक्तियाँ हासिल कर लूंगा। बस आपका आशीर्वाद चाहिए।"
पर उसके पापा के शब्द ठंडे और निर्दयी थे। "ध्रुव," उन्होंने गंभीर आवाज़ में कहा, "तुमने हमारी परंपरा और हमारे नाम को कलंकित किया है। तुमने अपनी शक्ति को खोने दिया, और इसके साथ ही हमारी प्रतिष्ठा भी चली गई। इस गाँव में केवल ताकतवर लोगों के लिए ही जगह है। जब तक तुम अपनी शक्तियाँ वापस नहीं पा लेते, तुम्हारे लिए इस घर और गाँव में कोई जगह नहीं है।"
ध्रुव के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसने कभी ये उम्मीद नहीं की थी की उसका पापा तक उसका साथ नहीं देगा। उसकी माँ ने दूर से आंसू भरी आँखों से उसे देखा, पर वह भी कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पाई।
गाँव के बुजुर्ग और अन्य योद्धा भी वहाँ खड़े थे, उनकी निगाहें ध्रुव पर जमी थीं। उनमें से एक ने कहा, "ध्रुव, तुमने हमें निराश किया है। अब तुम्हें खुद को साबित करना होगा। या तो अपनी शक्तियाँ वापस हासिल करो, या फिर इस गाँव को हमेशा के लिए छोड़ दो।"
ध्रुव की आँखों में आँसू आ गए। उसने सोचा था कि कम से कम उसके परिवार और गाँव के लोग उसका साथ देंगे, लेकिन उसे यहां भी धोखा और अपमान ही मिला। बिना किसी और शब्द के, ध्रुव ने अपने घर से बाहर कदम रखा।
गाँव छोड़ते समय उसकी माँ ने उसे रोते हुए देखा, लेकिन वो भी कुछ नहीं कैह सका। ध्रुव के दिल में दर्द था, लेकिन साथ ही एक नई आग भी जल रही थी। उसकी आँखों से बहते आँसू उसकी कमजोरी को नहीं, बल्कि उसके अंदर उठे नए संकल्प को दर्शा रहे थे।
"मैं अपनी शक्तियाँ वापस हासिल करूँगा," ध्रुव ने खुद से कहा। "मैं रूद्र को हराकर अपनी प्रतिष्ठा को फिर से स्थापित करूंगा। और जब मैं लौटूंगा, तब यह गाँव और यह घर मुझे फिर से अपनाएंगे।"
ध्रुव अब अकेला था, पर उसका इरादा अटूट था।
गाँव से निकले जाने के बाद, ध्रुव का जीवन पूरी तरह बदल गया था। अब न उसके पास अपनी शक्ति थी, न सम्मान, और न ही कोई निश्चित जगह। वह अजनबी रास्तों पर चल पड़ा, जहाँ हर कदम उसके लिए एक नया संघर्ष था। उसके अंदर का योद्धा अब एक चुनौतीपूर्ण सफर की तैयारी कर रहा था।
ध्रुव का बस एक ही मकसद था अपनी शक्तिया बापस हासिल करना और उस कमीने रूद्र को मारना जिसने धोखे से उसका सब कुछ छिना था। लेकिन यह सफर आसान नहीं था। उसे यह भी नहीं पता था कि वह कहाँ जा रहा है या किससे मदद मांगनी चाहिए। जंगलों, और पहाड़ों के बीच चलते हुए, ध्रुव का शरीर थकान से चूर हो चुका था, पर उसकी इच्छाशक्ति और उसका इरादा उसे आगे बढ़ने के लिए मजबूर कर रहा था।
एक दिन, चलते-चलते ध्रुव एक छोटी नदी के किनारे पहुँचा। वहाँ उसने कुछ अजीबो-गरीब लोगों को देखा। ये लोग साधारण लोग नहीं थे, उनके कपड़े और उनके चेहरे के हाव-भाव कुछ अलग ही कहानी बयाँ कर रहा था।
उनमें से एक बुजुर्ग साधु, ध्रुव की ओर बढ़ा और उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला, "तू वह है जिसने अपनी शक्ति खो दी है, लेकिन उसकी आत्मा अभी भी ज़िंदा है। तू अपनी सफर में अकेला नहीं है, लड़के। तेरा सफर बोहोत कठिन है, लेकिन नामुमकिन नहीं।"
ध्रुव ने उस साधु की ओर देखा और पूछा, "आप कौन हैं? और मेरी सफर का उद्देश्य क्या है?"
साधु मुस्कराया, "मैं सिर्फ एक राह दिखाने वाला हूँ। तुझे अपनी शक्ति और अपनी पहचान वापस पाने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना होगा। पर याद रख, शक्ति केवल बाहरी नहीं होती। असली शक्ति तेरे अंदर है।"
ध्रुव उस साधु की बातों से कुछ हद तक प्रोत्साहित हुआ, लेकिन अभी भी उसके मन में शक था। उसे यह तो पता था कि उसे अपनी शक्ति वापस पानी है, लेकिन उसे यह नहीं पता था कि कैसे।
आगे बढ़ते हुए, उसकी मुलाकात और भी अजीब लोगों से हुई। कुछ ने उसे सलाह दी, कुछ ने उसे उसकी कमजोरियों का अहसास कराया, और कुछ ने उसे चुनौती दी। हर मुलाकात ध्रुव को एक नई सीख दे रही थी।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सीख यह थी कि शक्ति केवल लड़ने या जीतने से नहीं आती, बल्कि उसे पहचानने और सही दिशा में बढ़ने से आती है।
इस अनजानी सफर की शुरुआत ने ध्रुव को यह सिखाया कि हर हार के बाद भी अगर इरादा मजबूत हो, तो इंसान कभी पूरी तरह हारता नहीं है। और यही सच्ची ताकत की पहली निशानी थी। ध्रुभ ऐसे ही आगे बढ़ता रहा लेकिन अभी तक उसे अपनी खोई हुई 'अग्नि शक्ति' का कोई निशान नहीं मिला था। एक दिन, चलते-चलते वह घने जंगल में प्रवेश कर गया, जहाँ हवा में एक अजीब सी शांति और रहस्यमयी ऊर्जा का आभास हो रहा था। यह जंगल ऐसा था, मानो वहाँ वक्त थम सा गया हो।
ध्रुव ने देखा कि जंगल के बीचों-बीच एक पुराना और विशाल आश्रम स्थित था, जो चारों ओर से हरे-भरे पेड़ों से घिरा हुआ था। आश्रम से एक अद्भुत ऊर्जा निकल रही थी, जिसने ध्रुव को उसकी ओर खींच लिया।
वह आश्रम के भीतर गया, जहाँ उसकी मुलाकात एक बूढ़े आदमी से हुई, जिनका चेहरा तेज से दमक रहा था। उनके सफेद बाल और लंबी दाढ़ी उनकी उम्र का संकेत दे रहे थे, लेकिन उनके शरीर से अद्भुत शक्ति का आभास हो रहा था। ये थे 'अग्नि ऋषि,' जो वर्षों से अग्नि शक्ति का गहन अध्ययन कर रहे थे।
अग्नि ऋषि ने ध्रुव को गहरी नज़र से देखा और एक पल के लिए खामोश हो गया। फिर वो गंभीर आवाज़ में बोला, "तुम वही हो, जिसने अपनी शक्ति खोदी है, लेकिन याद रखो, तुम्हारी शक्ति पूरी तरह से नष्ट नहीं हुई है। उसके अंश अब भी तुम्हारे अंदर मौजूद हैं। मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ, लेकिन पहले तुम्हें अपने अंदर की शक्ति को पहचानना और समझना होगा।"
ध्रुव, जो महीनों से अपनी शक्तियों को पाने की तलाश में था, उसे यह सुनकर आशा की एक किरण दिखी। उसने अग्नि ऋषि के सामने विनम्रता से कहा, "गुरुदेव, मैं आपकी शरण में हूँ। कृपया मुझे मार्गदर्शन दें और मुझे मेरी खोई हुई शक्ति को पुनः प्राप्त करने का उपाय बताएं।"
अग्नि ऋषि ने ध्रुव की विनम्रता को देखा और मुस्कुराते हुए बोला, "तुम्हारा संकल्प मजबूत है, लेकिन याद रखो, शक्ति केवल बाहरी रूप में नहीं होती। उसकी असली पहचान तुम्हारे अंदर छिपी है। तुम अपनी खोई हुई शक्ति को तभी वापस पा सकोगे, जब तुम अपनी आत्मा की अग्नि को जाग्रत कर सकोगे। इसके लिए तुम्हें दीर्घ साधना करनी होगी और अपने अंदर की छिपी क्षमता को पहचानना होगा।"
ध्रुव के लिए यह किसी चुनौती से कम नहीं था। उसने ऋषि के संरक्षण में रहने का फैसला किया,
अग्नि ऋषि के शब्द ध्रुव के मन में गूंज रहे थे। "असली शक्ति आत्मा की अग्नि में होती है," ऋषि ने कहा था। ध्रुव ने अब समझ लिया था कि उसकी शक्ति सिर्फ बाहरी नहीं थी, बल्कि उसके अंदर भी एक अनंत शक्ति का स्रोत छिपा हुआ था, जिसे वह अभी तक पहचान नहीं सका था। वह शक्ति, जिसे वह हमेशा अपने बाहरी रूप में महसूस करता था, वास्तव में उसकी आत्मा की गहराइयों में समाई हुई थी।
ध्रुव ने अग्नि ऋषि के मार्गदर्शन में साधना शुरू की। साधना का पहला चरण था अपने मन को शांत करना और अपने अंदर की ऊर्जा को महसूस करना। अग्नि ऋषि ने उसे बताया, "ध्यान वह विधि है जिससे तुम अपनी आंतरिक अग्नि को पहचान सकते हो। बाहरी शक्ति स्थायी नहीं होती, लेकिन आत्मा की अग्नि अमर होती है। जब तुम अपनी आत्मा की अग्नि को जगाओगे, तभी तुम सच्चे रूप में अपनी शक्ति को प्राप्त कर पाओगे।"
ध्रुव ने ऋषि के निर्देशानुसार ध्यान की गहरी विधियाँ सीखीं। वह हरदिन एकांत में बैठकर ध्यान करता, अपने मन और शरीर को पूरी तरह से शांत करता और अपनी आंतरिक ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करता।
साधना के दौरान उसने नई और गहरी विधियाँ भी सीखीं। अग्नि ऋषि ने उसे सिखाया कि साँसों के माध्यम से वह अपनी आंतरिक ऊर्जा को नियंत्रित कर सकता है। "जब तुम अपनी साँसों पर नियंत्रण पाओगे, "तब तुम अपनी आंतरिक शक्ति का प्रवाह महसूस कर पाओगे। यह बिधि तुम्हें अपनी आत्मा की अग्नि शक्ति तक पहुँचने का रास्ता दिखाएगा।"
धीरे-धीरे, ध्रुव ने अपनी साधना के माध्यम से अपने भीतर छिपी हुई शक्ति को महसूस करना शुरू किया। पहले तो उसे कुछ भी स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं दिया, लेकिन वक्त के साथ उसने अपनी आंतरिक ऊर्जा को महसूस किया, जो उसके शरीर और आत्मा में प्रवाहित हो रही थी। यह एक अद्भुत अनुभव था, क्योंकि वह अब अपनी खोई हुई अग्नि शक्ति को बाहर से नहीं, बल्कि अपने अंदर से महसूस कर रहा था।
ध्रुव ने महसूस किया कि उसकी आत्मा की अग्नि शक्ति उसकी बाहरी अग्नि शक्ति से कहीं ज़्यादा प्रबल और स्थायी थी। यह शक्ति न केवल उसे पैहले से ज़्यादा ताकतवर बनाती थी, बल्कि उसे एक नई दिशा भी देती थी। उसने अपनी साधना को और भी गहन किया, और धीरे-धीरे उसकी आत्मा की अग्नि प्रकट होने लगी।
अग्नि ऋषि ने उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "अब तुम सही मार्ग पर हो, ध्रुव। तुम्हारी साधना तुम्हें उस शक्ति तक ले जाएगा, जिसे कोई तुमसे छीन नहीं सकता। आत्मा की शक्ति सच्ची और अडिग होती है। जब यह पूर्ण रूप से प्रकट हो जाएगा, तब तुम्हारी बाहरी शक्ति भी वापस लौट आएगी।"
ध्रुव अब समझ चुका था कि उसकी सफर का यह चरण सबसे महत्वपूर्ण था। उसकी शक्ति की असली कुंजी उसकी आत्मा की शक्ति में ही छिपी हुई थी, और अब उसकी साधना उसे उस शक्ति तक पहुँचने का मार्ग दिखा रही थी।