तहखाने में एक दीवार पर एक बड़ा सा चक्र तेजी से घूम रहा था. राजकुमार ने लाल मणि निकालकर, उसका प्रकाश चक्र पर डाला तो चक्र टूट कर गिर गया. राजकुमार ने सुरंग का दरवाजा खोला और उसमें घुस गया. किंतु अरे बाप रे! उसके पैर में कांटा चुभ गया. राजकुमार ने देखा वहां कांटे ही कांटे बिखरे पड़े हैं. राजकुमार ने जादू की तलवार निकाली और उससे कांटे एक तरफ करने लगा ताकि उसके लिए मार्ग बन जाए. लेकिन तलवार के लगते ही सारे कांटे गायब हो गए. राजकुमार के लिए मार्ग बन गया. राजकुमार चल पड़ा. रास्ते में जो भी रुकावट आती, उसे राजकुमार जादू की तलवार से काट देता या तो वह गायब हो जाती या जल जाती. राजकुमार एक मील चल चुका था. आगे रास्ते में सर्प ही सर्प हो गए. राजकुमार ने तलवार से उनको काटा पर कुछ फायदा नजर नहीं आया. आखिर राजकुमार ने लाल मणि की रोशनी उन पर डालनी शुरू की. सारे सर्प जलने लगे. अब रास्ता साफ था. राजकुमार मणि की रोशनी सर्पों पर डालता चलता, उसके लिए रास्ता बनता चलता. सर्पों का मार्ग समाप्त हो गया. किंतु आगे बिच्छू! राजकुमार ने यहां भी लाल होने की रोशनी की सहायता ली. वह यह भी रास्ता पार कर गया. आगे निरे शेर ही शेर घूम रहे थे. राजकुमार ने जादू की तलवार निकाल ली. जो शेर उसके रास्ते में आता वह तलवार से उसका काम तमाम कर देता. इस तरह में शेरों का भी रास्ता पार कर गया. अब राक्षस नगरी. यहां से कैसे बचें?
यहां उसका जादू काम नहीं करता. राक्षसों की एक विचित्र पोशाक थी. तभी राजकुमार ने देखा कि एक राक्षस उसकी तरफ आ रहा है. राजकुमार की बुद्धि यही काम कर गई. वह उसी मुद्रा में खड़ा रहा. जैसे ही राक्षस पास आया, उसने लपक कर तलवार से उसकी गर्दन काट डाली. राक्षस हमले के लिए तैयार नहीं था, तभी मारा गया. राजकुमार ने उसके कपड़े उतार कर स्वयं पहन लिए. अब वह सही राक्षस लग रहा था. राजकुमार अपने रास्ते पर बढ़ चला. किसी को शक नहीं हुआ. रास्ता थोड़ा सा रह गया, तब दो राक्षसों को उस पर शक हुआ. राजकुमार ने उनका शक मिटाने के लिए पेड़ों की पत्तियां तोड़कर खाने लगा तथा पत्तियां फेंकने भी लगा. राक्षसों का शक मिट गया. वह अपने कामों में लग गए. राजकुमार ने भी राक्षस नगरी पार कर ली. उसने राक्षस के कपड़े उतार फेंके और थोड़ी देर पेड़ के फल खाकर आराम किया.