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Chapter 4 : योजना !

Chapter 4 : योजना !

Writer : Ajad Kumar

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बालक चाणक्य भिक्षाटन के लिए पाटलिपुत्र से कोसों दूर एक दुसरे गाँव में निकल गया था. लेकिन जब उसने सुना कि उसके पिता आचार्य चणक ने आज जन सभा का आयोजन किया है तो वो तुरंत ही आगे की भिक्षाटन का त्याग कर वापस अपने गाँव की तरफ लौटने लगा. 

वो भी आचार्य चणक के उस जनसभा का भागीदार बनना चाहता था. लेकिन वो इस बात से अनजान था कि महाराज धनानंद के महल में एक अलग ही खिचड़ी पक रही थी. उधर आचार्य चणक ने जन सभा की शुरुआत की और उधर मगध के महामात्य राक्षस ने एक सभा बुला ली थी.

उस सभा में कुछ गिने-चुने मंत्रीमंडल के लोग और स्वयं महाराज धनानंद मौजूद थे. सभी जनों के आने के बाद धनानंद महामात्य की तरफ देखता हुआ कठोर स्वर में बोला, "कहो महामात्य राक्षस, इतनी शीघ्रता में मुझे सभा में क्यों बुलवाया गया ? क्या तुम्हें ज्ञात नहीं, ये हमारे विलास का समय है ?"

महामात्य राक्षस अपने स्थान पर खड़े हुए और हाथ जोड़कर बोले, "क्षमा महाराज, परन्तु आपके विलास पर हमने नहीं अपितु किसी और ने ग्रहण लगाने की चेष्टा की है."

"क्या कह रहे हो महामात्य ? साफ शब्दों में कहो."

"एक गंभीर समस्या उत्तपन हो गयी है महाराज. आचार्य चणक ने पाटलिपुत्र में आज विशाल जनसभा का आयोजन किया है. वो प्रत्येक चौराहे पर जा रहे हैं और आपकी सत्ता को चुनौती दे रहे हैं. यही नहीं ये आग अब पाटलिपुत्र से भी बाहर फैलने लगी है और लोग वहां से आने लगे हैं."

आचार्य चणक का नाम सुनते ही धनानंद भड़कता हुआ बोला, "आचार्य चणक, आचार्य चणक, कितनी बार और सुनना पड़ेगा मुझे ये नाम. क्या तुमलोगों से ये एक ब्राहमण भी नहीं संभला जाता. हमारी सैन्य शक्ति एक ब्राहमण के सामने इतनी लचर हो गयी है कि उसे कारावास में नहीं डाल सकते."

"क्षमा महाराज, हमारी सैन्य शक्ति एक ब्राहमण से नहीं, अपितु उनके साथ चलने वाले जन सैलाब से भयभीत है. इतनी बड़ी संख्या आज से पहले कभी भी पाटलिपुत्र में एक साथ नहीं उमड़ी थी. और यह "

"तो तुमलोग क्या चाहते हो कि उस तुच्छ ब्राहमण को पकड़ने के लिए मुझे वहां जाना होगा."

"यही तो भय का विषय है महाराज. हम एक शिक्षक को बंदी नहीं बना सकते. अगर हमने ऐसा किया तो मगध की पूरी जनता हमारे विरुद्ध हो जाएगी. उग्र जनता राजमहल पर भी हमला कर सकती है. फिर हमारे लिए परिस्थिति को संभालना और भी कठिन हो जाएगा."

तब धनानंद गुस्से में सभी मंत्रियों की तरफ देखता हुआ बोला, "तो मैंने यहाँ मंत्रिमडल को क्यों बना रखा है. कोई सुझाव क्यों नहीं देता ? सभी क्या मुफ्त की रोटी तोड़ने बैठे हैं यहाँ ?"

उनका गुस्सा देखते ही मंत्रिमडल का एक सदस्य खड़ा होकर बोला, "हम चुपके से उसकी हत्या क्यों नहीं करवा देते ?"

तब महामात्य राक्षस बोले, "इस समय हत्या का दोष महाराज पर ही आएगा."

तभी दूसरा सदस्य खड़ा होकर बोला, "उसे गायब करा दिया जाए !"

तब महामात्य राक्षस बोले, "पूरा मगध उन्हें जानता है. यहाँ तक कि हमारे साथी भी उन्हें गायब करने के पक्ष में नहीं होंगे."

आचार्य चणक मगध के एक ऐसे शिक्षक थे जिनसे राजनीति कि शिक्षा लेने आस पास के कई गाँव के बच्चे आते थे. यहाँ तक कि महाराज धनानंद की कार्यपालिका में कार्य करने वाले लोग भी उनसे शिक्षा ग्रहण कर चुके थे.

आचार्य चणक की बातों का मगध में इतना प्रभाव था कि उनकी एक बात पर जनता अपनी जान देने को आमदा हो जाती थी. महामात्य राक्षस आचार्य चणक की लोकप्रियता से परिचित थे इसलिए चिंतित थे. वो जानते थे कि आचार्य चणक में इतना सामर्थ्य है कि वो अकेले ही किसी भी सत्ता को चुनौती दे सकते थे इसलिए उन्हें सामने से हरा पाना नामुमकिन था.

अचानक महामात्य राक्षस के दिमाग में एक विचार आया और उन्होंने अपना वो विचार धनानंद और मंत्रिमंडल के सामने रखा. उनका सुझाव सभी को पसंद आया. महाराज धनानंद को भी उनका सुझाव पसंद आया और उन्होंने महामात्य को आदेश दे दिया.

वहीँ दूसरी तरफ आचार्य चणक पाटलिपुत्र की गलियों में एक चौराहे पर खड़े जनसभा को संबोधित कर रहे थे - "मगध सो रहा है ! मागधी शराब के नशे में झूम रहे हैं ! सत्ता एक पैरों पर तांडव कर रही है ! राजा शक्तियों के मद में चूर हैं ! क्या ऐसे बदलेगा मगध का भविष्य ? क्या हम ऐसी दुनिया देंगे अपनी पीढ़ियों को जो चिंगारियों से लिपटा हुआ हो. बताएं आपलोग ? क्या आप अपने बच्चों को नशे में डूबा देखना चाहते हैं ? भ्रष्ट देखना चाहते हैं ? शक्तियों के अहंकार में चूर देखना चाहते हैं ? क्या आपलोग निर्धन को और निर्धन तथा सेठों को महासेठ बनते देखना चाहते हैं ?"

भीड़ ने एक साथ ऊँचें स्वर में कहा, "नहीं आचार्य, कदापि नहीं !!"

आचार्य चणक आगे बोले, "आज सत्ता ने हमारे एक ऐसे मित्र को बंदी बना लिया है जिन्होंने हमारे हक के लिए आवाज उठाया. महामंत्री सत्तार जिन्होंने राजा और उनके मंत्रियों के भ्रष्टाचार को उजागर किया. जिन्होंने शव पर लगने वाले करों को मुफ्त कराने के लिए आवाज उठायी, जिन्होंने निर्धनों के हक़ के लिए घरों के निर्माण की मांग की, जिन्होंने पथिकों के लिए पथिकशाला के निर्माण की मांग की. आज उन्हें बंदी बनाकर कारावास में डाल दिया गया. क्या अब भी मौन रहेंगे आपलोग ?"

भीड़ एक साथ ऊँचे स्वर में बोली, "हम आपके साथ हैं आचार्य. हम आपके साथ हैं !"

आचार्य चणक उस चौराहे से आगे बढ़कर दुसरे चौराहे पर जनसभा को संबोधित करने चले गए. वो जैसे जैसे आगे बढ़ रहे थे, लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी. कुछ समय बाद वो पाटलिपुत्र के उस चौराहे पर खड़े थे जिसे सत्ता का केंद्र भी माना जाता था.

किसी बड़े विद्रोह की शुरुआत का केंद्र माना जाता था उसे. आचार्य चणक ने अभी वहां बोलना शुरू किया ही था कि अचानक सैनिकों की एक टुकड़ी महाराज धनानंद के नेतृत्व में वहां आ पहुंची. उनके साथ थे महामात्य राक्षस और सेनापति मृत्युंजय.

वहां महाराज धनानन्द को देखते ही आचार्य चणक उच्च स्वर में बोले, "मेरी आवाज को दबाने के लिए सत्ता स्वयं मुझ तक पहुँच चुकी है. परन्तु ये आवाज और ऊँची होगी. ये आवाज पाटलिपुत्र की गलियों से निकलकर आस पास के गाँवों से होते हुए सम्पूर्ण मगध में फैलेगी."

उनकी बातों को सुनकर जनता उग्र होती जा रही थी. साथ ही वहां धनानन्द के आ जाने से विद्रोह की सम्भावना प्रबल हो चुकी थी. ये देख धनानन्द क्रोधित होता हुआ बोला, "मेरा तो मन कर रहा है अभी पूरी भीड़ को कुचल दें !"

तभी धनानन्द के बगल से महामात्य बोले, "महाराज ये समय कुचलने का नहीं है. समय नष्ट ना करें. आपको अब आगे जाना चाहिए."

तब महाराज धनानन्द अपने घोड़े से उतरे और पास की एक मकान के शिखर पर चढ़ गए जहाँ से वो जनसभा को देख भी सकते थे और उनसे बातें भी कर सकते थे. उन्होंने सभी की तरफ देखकर कहा, "अगर आपलोगों ने आचार्य चणक को अपनी बात रखने का अवसर दिया है तो एक अवसर मुझे भी मिलना चाहिए. मैं भी आपलोगों को सच से अवगत कराना चाहता हूँ."

भीड़ एक साथ बोल पड़ी, "कैसा सच महाराज ? सच को तो आपने पैरों तले रौंद रखा है."

वहां खड़े लोग तरह तरह की बातें करने लगे लेकिन महाराज धनानन्द ने किसी की बातों की परवाह किए बिना ही अपने पीछे खड़े एक व्यक्ति का हाथ पकड़ा और उन्हें सामने ले आए. उसके बाद उन्होंने उस व्यक्ति की तरफ इशारा कर भीड़ से कहा, "आपलोग इन्हें तो अवश्य ही जानते होंगे. अगर नहीं जानते हैं तो आपको बता दूँ, ये आचार्य चणक के परममित्र आचार्य विजयव्रत हैं. अब ये स्वयं आपको सच से अवगत कराएंगे."

क्या है आचार्य चणक का सच ? क्या महामात्य राक्षस की योजना काम करेगी ?

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