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चैप्टर 7

हम लोग जब गर्मी में ननिहाल जाते थे तो अक्सर हम लोग नानी के साथ सोते थे। नानी हम लोग को कहानी सुनाया करती थी जब हम लोग सोते थे तो नानी अलग-अलग मजेदार कहानी सुनाती थी और जब हम लोग थोड़ा बड़े हो गए तो नानी हम लोग को हमारी ही कहानी सुनाने लगी। वह कहती -एक इंद्राणी थी, एक हेमीन थी एक प्रेमीन थी। तीनों बहन थी ।उसका छोटा भाई था दीनदयाल ।उसके पापा ....। इस तरह से हमारे बारे में ही सुनाने लगती

हमलोग कहते - क्या नानी! आप तो हमारी कहानी हमें ही सुना रही है। दूसरी सुनाओ न।

- आगे तो सुनो। फिर बताना किसकी कहानी है। (नानी कहती)

हम लोग बचपन में कुंती मासी के सिर से जू निकालने का कंपटीशन रखते थे । सारे जूँ को डिब्बे में भर दे देते थे। फिर देखते कि किसका अधिक है। दो दो जूँ को बाहर निकाल कर चलाते थे मानो वह दोनों बैल हो। इस तरह खेल कर जब मन भर जाता तो सब को मार देते थे। बचपन में इस तरह से हम लोगों ने बहुत पाप कमाया है।

एक दिन की बात है हम तीनों मीना मौसी का कंघी कर रहे थे और उनके में बहुत सारा चोटी डाल दिए थे। बाबू (नाना) आकर बोलते - यह क्या है? कुछ भी डाल दिया। जँचता नहीं है ऐसे ।( वे थोड़ा चिल्लाते हुए बोले थे)

थोड़ी देर में ही मौसी के बाल में एक भी चोटी न बची ।दो मिनट न लगे एक घंटे की मेहनत को उजाड़ने में। उसके बाद से हमलोगों ने कभी वैसा चोटी नहीं डाले।

हम लोग तालाब में नहाने जाते थे और घंटो घंटो तक तैरा करते थे। आंख लाल हो जाती थी तब हम लोग घर आते तो घर में डाँट पड़ती ।दिन भर से दिया-चुकलिया (खिलौना) खेला करते थे। शाम को पास के ही नहर में मिट्टी से खेलने जाते। एक बार तो हमने वहां शिवलिंग बनाया था जिसमें रोज़ पानी डालते। पाने की वजह से दरारे पड़ जाते थे। उसको फिर ठीक करते थे।

मिट्टी से खेलकर घर में कीचड़ से सने हुए आते थे। नानी डाँटती तो बाल्टी पकड़कर हैंडपंप जाते। वहाँ हाथ पर धोकर बाल्टी में पानी भरकर लाते।

इंद्राणी शुरू से ही मीना मौसी से डरती थी। वजह यह हो सकती है कि मौसी उसका बाल बार बार कटवा देती थी। उसका बाल बचपन में बहुत ज्यादा घुंघराले थे। उसका बाल सीधा हो जाए करके मौसी उसका बाल कटवा देती। वो बहुत रोती थी कि बाल नहीं कटवाउंगी, कटवाए तो खाना नहीं खाउंगी। और वह कहती - 'मेरे सहेलियों के तो लंबे लंबे बाल है, वो लोग कितना मस्त चोटी करते हैं और आप मेरे बाल चोटी करने लायक बढ़ने भी नहीं देते'।

उसका बाल मुश्किल से कंधे तक आ पाता। मौसी को फिर खटकने लगता तो फिर कटवा देती। कई बार जब नाई नहीं आता तो मौसी ही उसका बाल काट देती, पर काटती जरूर। उसका बाल काट काट कर ही मौसी अच्छे से बाल काटना सीख गई। वो कभी कभी बोल भी देती -'इससे अच्छा आप नाई ही बन जाना'।

उसका बाल कट जाता तो वह घंटों तक रोती रहती वो भी सिसक सिसककर। खाना भी नहीं खाती। बहुत देर बाद जब भूख लगती तब खाती।

मैं बचपन में कुछ ज्यादा ही शरारती थी ।एक बार मैं बाड़ी में रखे हुए बड़े से पत्थर पर चढ़ गई जो कि ठीक से नहीं रखा था और हिल रहा था। और मैं उस पर खड़े होकर उसको हिला हिलाकर झूम रही थी और मजे ले रही थी। माँ ने और दादा दादी ने बहुत मना किया लेकिन मैं जिद पर अड़ी रही और उतरी नहीं। पत्थर ज्यादा जोर से हिल गया और मैं गिर गई। पास में और पत्थर थे उससे ठोकर खा गई। मेरे सिर और नाक पर चोट आ गई। चोट गहरी थी लेकिन भर गई पर उसका निशान रह गया।

एक बार इंद्राणी साँप को गर्मी के दिन में सड़क में चलते हुए देखकर मामा को बोली - ' मामा साँप ल भोंभरा जरत हे '।

मामा फिर उससे से यही बार बार पूछते और हँसते।

- कइसे भाँची ,साँप ल का जरत रहिस ?

सब लोग उनके साथ हँसने लगते। वो बेचारी छोटी थी तो साँप का दर्द न देख पाई होगी तो ऐसा बोल दी। सबको हँसते देख उसको खुद समझ नहीं आता फिर भी वो भी सबके साथ हँसने लग जाती।

सेमरिया के एक पुराने तालाब में बहुत बड़ी-बड़ी मछलियां रहती थी। लोग जाल फँसाकर मछली को पकड़ते थे। और हम लोग साड़ी से ही पकड़ने की कोशिश करते पर हाथ कुछ ना आता था। इसी वजह से हमलोग नहाने में लेट हो जाते थे और घर पर फिर डाँट सुननी पड़ती।

गर्मी की छुट्टी खत्म होने पर मैं और दीदी कड़कड़ा चले जाते थे और इंद्राणी वही ही रहती ।उसको सात साल तक निमोनिया था। तो वह सेमरिया में ही रहती थी। यहां भी हम लोग चुपके से तालाब चले जाते थे और भैंस की तरह डूबे रहते थे ।पापा को जब पता चलता तो वे डंडा लेकर आते और फिर डाँटते डाँटते ले जाते थे। हमलोग दादी के साथ सोते और दादी से कहानी सुना करते। दो कहानी मुझे बहुत पसंद आई थी और वो अब भी मुझे याद है।

पहली --

एक बहन के पांच भाई थे। उसके सभी भाई काम पर गए थे।वह भाजी सब्जी बनाने के लिए उसको काट रही थी। काटते काटते गलती से उसकी उँगली गलती से कट गयी।खून सब्जी में भी लग गया। वह अपने भाइयों के लिए खाना ले जाने के लिए लेट हो रही थी तो उसने बिना धोए सब्जी ऐसे ही बना दिया।और उसको लेकर भाइयों को दे आई। भाइयों ने खाना खाया तो उस दिन का खाना उन्हें बाकी दिनों के मुकाबले बहुत स्वादिष्ट लगा। उसमें से एक भाई ने बहन से पूछा - 'बहना आज क्या बात है जो सब्जी बहुत ही स्वादिष्ट लग रही है'।

- भईया आज सब्जी रही थी तो जल्दी जल्दी में उंगली कट गयी और सब्जी में लग गयी। ( बहन ने कहा )

भाइयों के मन में लालच आ गया।

सबने सोचा - ' जिसका खून इतना स्वादिष्ट है उसका हर एक अंग कितना स्वादिष्ट होगा। '

सबने निर्णय लिया कि उसको काटकर बना कर खा लिया जाए। सबने वही किया। पांच भाइयों ने मिलकर अपनी छोटी बहन के टुकड़े टुकड़े कर डाले। उसको पका कर खा गए।। अंत में उसको खाकर उसकी हड्डी को दरार (गड्ढे) में डाल दिया । उस हड्डी से एक पौधा निकल आया। वह एक वृक्ष के रूप में बड़ा हो गया ।जब भाईयों ने उसे काटने की कोशिश की तो उससे आवाज आई- 'भाई धीरे-धीरे काटना मेरा हाथ पैर दर्द करता है'।भाइयों को बहुत पछतावा हुआ।

यह कहानी सुनकर हमारी आंखे नम हो गई।

दूसरी कहानी यह थी -

चार सहेलिया लकड़ी काटने के लिए जंगल गई थी। एक ने बहुत सारी लकड़ी एकट्ठा कर ली। इसलिए अन्य सहेलियों ने जलन के वजह से लकड़ी के गड्ढे को उठाने में उसकी मदद नहीं की ।सामने एक बंदर आ रहा था ।लड़की ने बंदर से मदद मांगी। बंदर मदद करने के लिए तैयार हो गया पर उसने एक शर्त रखी - अगर तुम मुझसे शादी करोगी तभी मैं तुम्हारी मदद करूंगा। लड़की के पास और कोई चारा नहीं था। उसकी सारी सहेलिया भी उसे छोड़कर चली गई थी तो उसने शर्त मान ली। उससे बाते करते करते लकड़ी के गट्ठे को लेकर वह बंदर के ही घर चली गई। अब अपने घर जाकर क्या करती, शर्त मानकर वह बंदर की हो चुकी थी। अब वो उसी के साथ रहने लगी। उसे खाना बनाकर खिलाती और उसका देखभाल करती। इधर उधर से उसकी माँ को पता चल गया कि वह बंदर के साथ रहती है। उसकी माँ आकर उसको सलाह देती है - अगर तुम उसके ऊपर उबलते हुए पानी को डाल दोगी तो वो मर जाएगा '। लड़की ने वही किया और बंदर तड़प तड़प कर मर गया।

यह कहानी सुनकर हमलोग को बंदर पर दया आयी।