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चैप्टर 6

मेरे दादा के छोटे भाई के बेटे और बेटी मतलब हमारे चाचा और बुआ के शादी के वक्त मां और पापा शहर से घर आए ।शादी में हमारे मौसी लोग भी आए हुए थे। मीना मौसी हम लोग को साड़ी पहना रही थी और हम लोग बार-बार टिकावन टिकने जाते थे । मैं और दीदी, दो और लोग के साथ मिलकर जूता छूपाए थे । उन दोनों ने हमें धोखा दे दिया और हमें फूटी कौड़ी भी नहीं दिया। इसलिए उन दोनों से हमारा मतभेद हो गया। बुआ के लिए बारात पहले आया । माँ बुआ के साथ लोकड़हीन गई । भाई छोटा था तो उसको भी साथ लेकर गई ।दीदी को उसको रखने के लिए ले गई। बच गए मैं और निन्नु ।। घर में सब इंद्राणी को निन्नु कहते थे ।जहां पर गाड़ी खड़ी थी वहां पर ही वो हाथ पैर पटक पटक कर रो रही थी ।पापा उसको लेकर घर आते। वह फिर वहीं पर चली जाती और पैर हाथ पैर पटक पटक कर रोने लग जाती। पापा बार-बार उसको लाते और वो बार-बार वापस चली जाती ।अंत में उसको वहीं पर ही छोड़ दिया गया। और फिर बहुत देर बाद वो शांत हुई। पापा उसको लाकर बिस्तर पर सुला दिए ।वह बचपन में बहुत देर तक सीसक सीसक कर रोती थी ।फिर सो जाती थी ।मैं थोड़ी बड़ी थी तो समझदार थी। मैं उसको देख देख कर हँस रही थी । फिर सब लोग सो गए। अगले दिन दोपहर को चाचा बारात लेकर गए और चाची को साथ लेकर आए।

हमारे चाचा कि चिड़चिड़ाहट और गुस्सापन चरम सीमा को छू रही थी । थोड़ी-थोड़ी बात पर चाचा चाची को मारने लग जाते थे। दादा दादी भी कुछ नहीं बोलते थे। माँ पापा भी कुछ बोल नहीं सकते थे। उनका गुस्सा बहुत ही ज्यादा रहता था ।

पापा के कहने पर घर में खई - खजेना बेचने वाला दुकान खोला गया। दुकान तो घर के सभी लोगों का था पर चाचा उसके अकेले मालिक की तरह दुकान का सारा पैसा उड़ा जाते थे । किसी को भी दुकान के अंदर घुसने नहीं देते थे ।अगर हम लोग कभी दुकान के अंदर चले जाते तो हमें कान पकड़कर बाहर निकाल दिया जाता ।और डाँट भी पड़ती ।हम लोग कभी कभी पापा के जेब से पैसे निकाल कर अपने ही घर के दुकान में खरीद कर खाते थे ।

हमारे घर में टीवी नहीं था। दीदी को टीवी देखने का बहुत शौक था। वह बहुत टीवी देखती थी। इसलिए वह पड़ोसी के घर में रोज टीवी देखने चली जाती थी और रात के 10:00 बजे तक टीवी देख कर आती थी। वह भी "फिर कोई है" । यह एक डरावना , भूत प्रेत वाला सीरियल है। दीदी चुपचाप सकरी (कुंडी) खोल कर अंदर आती थी। ऐसे घुसती थी कि किसी को भी पता नहीं चलता था। अगर पता चलता तो दीदी को बहुत डाँट पड़ता।

एक बार तो हद ही हो गई। दीदी पकड़ा गई और दीदी के साथ मुझे भी घसीट लिया गया जबकि मैंने तो कुछ नहीं किया था। दोनों को घर से बाहर निकाल दिया गया था। रात के 10:00 बजे सुनसान गांव में हम लोग अकेले बाहर में पड़े रो रहे थे। पूरा गांव शांत था ।सारे लोग कुंडी लगाकर सो चुके थे। उस समय तो घर में ज्यादा लाइट भी नहीं रहती थी कुछ घरों में दो-तीन लाइटें ही जलती थी। बाहर बहुत ही अंधेरा था। हम दोनों बाहर पड़े रो रहे थे। हम पर किसी को भी दया नहीं आ रही थी ।माँ भी चाचा के गुस्से के सामने कुछ न कर सकती थी ।अपने बच्चे को इस तरह से देख कर उस समय मां पर क्या बीत रही होगी वह तो वही जाने ।बहुत देर बाद माँ जब नहीं देख पाई तो कुंडी खोल दी। चाचा ने हमें अंदर आते हुए देख लिया। उस टाइम भी उनके ऊपर गुस्से का भूत सवार ही था ।उन्होंने दीदी को कोठी( मिट्टी से बना गोलाकार आकृति जिसका व्यास लगभग 1 मीटर होता। इसे धान रखने के लिए बनाया जाता) में डाल दिया और मुझे पौला में। (पौला - मिट्टी से बनी गोलाकार आकृति जिसकी व्यास इतनी छोटी रहती कि उसमें एक इंसान भी घूस न पाए। इसे दाल रखने के लिए बनाया जाता) बहुत समय के बाद हम दोनों को बाहर निकाला गया। हम लोग को रोते इतना समय हो चुका था कि आंसू भी नहीं निकल रहे थे। वो दिन इतना बुरा दिन है कि उसको मैं कभी नहीं भूल सकती। चाचा को गुस्सा आता तो वे कभी भी हम दोनों को सीधा उठाकर ही फेंक देते थे। उनका क्रोध बहुत घातक रहता। उनके गुस्से के सामने कोई कुछ नहीं बोल पाते थे। वे बस हमें ही नहीं, चाची और अपने बच्चों का भी बहुत बुरा हश्र करते थे।