महादेव की साधना में गहनता आ चुकी थी, और उसने आत्मज्ञान की ओर एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ा लिया था। लेकिन यह यात्रा आसान नहीं थी। वह अब भी भौतिक और मानसिक बाधाओं का सामना कर रहा था। उसकी साधना में गहरा एकाग्रता आ चुकी थी, लेकिन जीवन की वास्तविकता उसे बार-बार चुनौती देती थी।
शिवानन्द की बातों को याद करते हुए, महादेव ने महसूस किया कि भौतिक संसार में मोह-माया को पार करना एक महत्वपूर्ण चुनौती है। एक दिन, उसे अपने भौतिक जीवन की छायाएँ फिर से याद आ गईं। वह गंगा के बारे में सोचने लगा, जिसने उसके जीवन को इतनी गहराई से प्रभावित किया था।
गंगा का नाम सुनते ही उसके मन में कुछ पुरानी यादें ताजातर हो गईं। उसका आकर्षण उसके भीतर एक अजीब सी बेचैनी पैदा कर रहा था। महादेव ने खुद से पूछा, "क्या मैं अपने पिछले मोह को पूरी तरह से छोड़ चुका हूँ?" इस सवाल ने उसे अपनी साधना में एक नई गहराई ढूँढने पर मजबूर कर दिया।
महादेव ने ध्यान में बैठने की बजाय, अपने मन की स्थिति को परखने का निर्णय लिया। उसने अपनी साधना के बीच में भी गंगा के बारे में सोचना जारी रखा। यह उसके लिए एक संकेत था कि उसे अभी भी इस मोह-माया के बंधनों को पूरी तरह से तोड़ना है।
वह एक दिन गंगा के पास गया, जहाँ उसे पुराने दोस्त मिले। गंगा ने उसे गर्मजोशी से स्वागत किया और उसकी भावनाओं को समझा। महादेव ने महसूस किया कि गंगा की उपस्थिति उसके लिए एक परीक्षा थी, जिसमें उसे अपने मोह को पार करना था। गंगा की मासूमियत और सादगी ने महादेव को भीतर से हिला दिया था, और उसने तय किया कि वह इस मोह को अपनी साधना की राह में बाधा बनने से रोकेगा।
महादेव ने गंगा से विदा ली और एकांत में लौट आया। उसने सोचा कि अगर वह सच में आत्मज्ञान की ओर बढ़ना चाहता है, तो उसे मोह-माया की सभी छायाओं को पार करना होगा। इसके लिए, उसने खुद को पूरी तरह से ध्यान और साधना में समर्पित कर दिया। वह जानता था कि यह यात्रा आसान नहीं होगी, लेकिन उसने ठान लिया था कि वह किसी भी कीमत पर अपने लक्ष्य को प्राप्त करेगा।
साधना के दौरान, महादेव ने अपने मन की गहराइयों में जाकर देखा कि मोह-माया की जड़ों को पूरी तरह से उखाड़ना कितना मुश्किल है। उसकी साधना की गहराई ने उसे यह एहसास कराया कि मोह-माया केवल बाहरी चीज़ों में नहीं, बल्कि मन के भीतर भी गहरी छाप छोड़ती है। यह छाप इतनी गहरी होती है कि इसे समाप्त करना एक लंबी और कठिन प्रक्रिया है।
महादेव ने धीरे-धीरे अपनी साधना को एक नई दिशा दी। उसने अपने मन की गहराइयों को और भी गहराई से समझने का प्रयास किया। वह जानता था कि आत्मज्ञान की यात्रा में मोह-माया से संघर्ष करना अनिवार्य है, और यह संघर्ष ही उसे अपने वास्तविक स्वरूप की ओर ले जाएगा।
महादेव के भीतर एक नई समझ और स्थिरता आ रही थी। उसने मोह-माया को एक परीक्षा की तरह देखा और इसे पार करने की ठान ली। उसकी साधना और संघर्ष ने उसे मानसिक और आत्मिक रूप से मजबूत बना दिया था। अब वह आत्मज्ञान की ओर बढ़ने की ओर एक नई उम्मीद और दृढ़ता के साथ देख रहा था।