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श्री की छ: सखियों महत्व l

Chapter - 33

सभी पीछे देखने लगते हैं श्रीशि उसके पास आती है कृशव कुछ बोलता उससे पहले ही श्रीशि गुस्से में बोली - अच्छा तो अब तुम मेरी भूल का एहसास करवाने आए हो और मुझे हासिल करने आए हो और वो तुम्हारी ख्वाबों में आती हुई जिसका तुम कबसे इंतजार कर रहे हो उसका क्या l

तुम मुझे फिर से झूठा ठहराने आए हो मुझे तो लगा कि चलो तुमको धन्यवाद बोल दूँ लेकिन यहाँ आकर कुछ और ही पता चल गया कि तुम भेष बदलकर मेरे महल में मुझे ले जाने आए हो l

कृशव ने कहा - नहीं ऐसी बात नहीं है...

श्रीशि - बस करो और कितना नाटक करोगे क्या तुम्हें मेरा दिल दुखा कर शांति नहीं मिली अब और पीड़ा देने आए हो मेरा विवाह हो रहा है तुम्हें पता है न तो लौट जाओ जहां से आए हो मैं तुम्हें अपने सामने नहीं देखना चाहती लौट जाओ l

कृशव - वो तो कभी नहीं हो सकता जब तक मेरा इस जीवन का मकसद पूरा नहीं हो जाता तब तक मैं चाहूँ भी तो भी नहीं लौट सकता क्योंकि मेरा भाग्य तुम हो जहां तुम हो वहीँ मैं हूँ तुम्हें लिए बिना कैसे लौट जाऊँ मेरे जीवन का मकसद ही तुम हो l

श्रीशि - अच्छा तुम तो मैं तुम्हारे जीवन का मकसद हूँ तब तो तुम्हें इस मकसद के मरने तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी तभी ये हासिल होगी और करो इंतजार जिसका भी करना है क्योंकि ये जीवन तो किसी और के नाम हो चुका है l

मेरा विवाह हो रहा है तो विवाह होने तक यहीं रुकना और देखना जिसका तुम इंतजार कर रहे हो उसे तुमने खुद ही कैसे खो दिया जो तुम्हारे इतने पास आकर भी खो जाय उसे गलती नहीं मूर्खता कहते हैं और वही तुमने किया है l

कृशव - मैं तुमसे प्रेम करता हूँ और मैंने हमेशा तुम्हारी ही प्रतीक्षा की है बचपन से नहीं बल्कि कई युगों तक हमारा रिश्ता आज का नहीं है ये सदियों पुराना है जिसे कोई नहीं जान पाया है l

श्रीशि - और कितनी बातें बनाओगे मैं तुमसे कोई प्रेम नहीं करती तुम्हारा और मेरा कोई रिश्ता कभी था ही नहीं है न ही आज न ही युगों में और न ही भविष्य में कभी होगा क्योंकि मैं तुमसे सिर्फ घृणा करती हूँ और उसी दिन से जब तुमने झूठ बोला और मेरे साथ उपहास किया l

और ये जो भेष बनाकर रखा है तुमने उससे तुम फिर से मेरे प्रेम पर अधिकार नहीं पा सकते हो l

कृशव - ये भेष नहीं है यही मेरा असली रूप है तुम्हें नहीं पता है मेरा अतीत l

श्रीशि - और जानना भी नहीं है बताना भी नहीं कभी l

श्रीशि जाने लगी तो कृशव ने कहा - भले ही तुम आज मुझे ये सब बोल रही हो लेकिन तुम्हारी समस्या भी कुछ ऐसी ही आने वाली है जिससे तुम्हें मेरे समस्या का पता चल जाएगा और तब तुम मेरे पास आओगी l

श्रीशि बिना उसकी ओर देखे चली जाती है और जाकर अपने बिस्तर पर लेट जाती है और आंखों को बंद कर लेती है उसे नींद नहीं आ रही थी उसे पिछली बातें ध्यान आ रही थी लेकिन थोड़ी देर में वो सो जाती है l

अगले दिन...

श्रीशि के कमरे में मामी जी और केशवी आती हैं और उसे कपड़े देते हुए कहती हैं - ये तुम्हारे कपड़े आज की रस्म के लिए है इसे पहनकर नीचे आ जाओ हम तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं l

श्रीशि ने झूठी मुस्कान दी और बोली - जी मैं अभी आई l

वो दोनों चली गयी श्रीशि ने कपड़े बदले और तैयार होकर नीचे आती है सभी पहले से ही उसका इंतजार कर रहे थे तो उन्होंने जो भी रस्म था शुरू किया श्रीशि बैठी थी कृशव वहीँ खड़ा था सभी श्रीशि के पिता को ढूँढ रहे थे लेकिन वो वहाँ नहीं थे तो केशवी ने कृशव को चुनरी उढ़ाने के लिए कहा l

श्रीशि उसे देखने लगी कृशव उसके सामने बैठ गया और तिलक लगाकर चुनरी उढा़ई दोनों एक दूसरे को नम आँखों से देख रहे थे फिर कृशव ने उसकी आरती की और अपने दोनों हाथों से उसके दोनों पैरों को स्पर्श कर उसके सामने हाथ जोड़ा श्रीशि और बाकी सभी उसे देख रहे थे l

कृशव ने हाथ जोड़ कर कहा - मुझसे अगर कोई भी गलती हुई हो तो मुझे माफ कर देना उस समय आपने जो भी कहा था उस वक़्त मैं मजबूर था लेकिन मैं आपसे इस संसार से अनंत कुमार काल तक प्रेम करता आया हूँ करता हूँ और अनंत काल तक करता रहूँगा l

वो जब ये सब बोल रहा था तो कोई भी उसकी बातों को नहीं सुन रहा था सिवाय श्री के फिर कृशव ने उसे मुस्कराने को कहा और वहाँ से हट गया l

श्री की नजरें उसी पर थीं और उन दोनों पर उसके मामी जी की नजर जो उन दोनों को देखकर जो गुस्सा हो रहीं थीं l

उन्होंने खुद से कहा - ये लड़का कुछ ज्यादा ही नहीं देखता रहता है इस श्रीशि को कहीं इन दोनों का चक्कर तो नहीं न चल रहा है इस श्रीशि का कोई भरोसा नहीं है इसका दिल तो सभी के लिए खुला ही रहता है कोई भी भी प्रवेश कर ही जाएगा मुझे बात वैदेही के पिता को बतानी चाहिए l

लेकिन पहले मुझे पता लगाना होगा तब ही वो मानेंगे l

जिस तरह से इसने इसकी पूजा की और इसके पैर छूकर इसे प्रणाम किया मानो सच में श्री हो ऐसा कौन पुरुष करता है ये सिर्फ एक पुजारी या तो एक प्रेमी ही कर सकता है l

रस्म खत्म हुई श्रीशि और बाकी सभी खाने के लिए बैठ गए श्रीशि ने कहा - माँ मुझे भूख नहीं है l

सुर्यशेन ने कहा - थोड़ा सा खालो पुत्री l

श्रीशि ने मुस्कुराते हुए कहा - बाबा सच में भूख नहीं है और अगर लगेगी तो मैं खा लूँगी l

राघव - जाने दीजिए भूख लगेगी तो खुद ही खा लेगी l

श्री उठकर बाहर चली जाती है वो अपने कुछ सहेलियों को लेकर वन में नर्मदा नदी के तट पर बैठी थी वहाँ की ठंडी - ठंडी हवायें उसके शरीर को छुते ही ठंडक पहुँचा रही थी

वो नदी के पास बैठी खुद को उसमें देख रही थी पानी बहुत साफ था उसका चेहरा बहुत साफ दिख रहा था अचानक से वो पानी में देखती है उसकी बजाय उसे कृशव नज़र आ रहा है वो हैरानी से उसे देखने लगी उसने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया उसने भी अपना हाथ बढ़ाया l

श्रीशि उसे देखते - देखते उसमें गुम हो गयी तभी पीछे से किसी ने उसे हिलाया वो होश में आती है तो पीछे देखती है कि उसकी सखियाँ थीं - क्या कर रही हो चलो हमारे पास बैठो l

श्री ने हाँ में सर हिलाया और फिर से उस पानी में देखा तो उसे अपनी ही परछाई दिखी वो उठी और अपनी सखियों के साथ बैठ गयी उसकी छः सखियाँ थीं, मोहिनी, प्रिया, विश्वा, शक्ति, श्रृंगी, सास्वति l

ये छ: उसके साथ हमेसा रहती थी ये छः सखियाँ उसके अंदर से ही निकली थीं मोहिनी उसके आकर्षण से, प्रिया उसके स्नेह से, विश्वा उसके भरोसे से, श्रृंगी उसके प्रेम से, सास्वति उसकी आराधना से, शक्ति उसके क्रोध से l

और ये सभी ही उसे बहुत प्यार करती थी जब भी वो उदास होती तो कोई एक उसके अंदर समाहित हो जाती अगर श्रीशि को कृशव को अपनी तरफ आकर्षित करना होता तो मोहिनी उसके अंदर समा जाती, अगर किसी को उसकी दया भावना की जरूरत होती तो प्रिया उसके अंदर समा जाती l

मतलब बारी - बारी से सभी उसकी मदद करती लेकिन इस वक़्त वो मनुष्य योनि में हैं इसलिए वो उनकी मदद नहीं कर सकती थीं श्रीशि इनके बिना बिल्कुल ही अधूरी थी जैसे कृशव उसके लिए था वैसे ही वो छः भी उसकी प्राण थी l

वो साथ में खेलती थी जो भी काम होता साथ में करती थीं मोहिनी ने कहा - तुम्हें पता है एक बार बार मुझे मजबूरी में झूठ बोलना पड़ा था l

श्रीशि - क्यों... और किसलिए ?

मोहिनी - वो क्या है न मेरी माँ हैं न उनकी तबीयत ठीक नहीं थी तो मुझे किसी के घर जाना था मन था लेकिन मैंने उनसे झूठ बोला कि तुम्हारा घर तुम्हारे घरवाले मुझे पसंद नहीं इसलिए मैं नहीं आऊंगी l

और पता है बाद में मुझे बहुत पछतावा हुआ और दुख भी

प्रिया - हाँ होती है एक बार ऐसा समय आ जाता है जहां हम कुछ समझ नहीं पाते हैं इसलिए अपनी सबसे प्यारी चीज़ को छोड़नी पड़ती है l

श्रीशि उनके बातों को चुपचाप सुन रही थी और कृशव की बातों को याद कर रही थी l

श्री - क्या वो सच बोल रहा था क्या सच में वो किसी मुसीबत में था लेकिन जब मैं वहाँ गयी थी तो वो ठीक था उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था लेकिन हो सकता है कुछ तो था ही मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है l

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