कनिष्क सिंहासन पर बैठा हुआ था और उसके बगल में अनामिका खड़ी थी। वात्सल्य और नैना दरवाजे के पास एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए खड़े थे। कनिष्क की निगाहें सिर्फ नैना के ऊपर थी। उसके चेहरे पर हल्की सी पर डरावनी मुस्कान आ जाती है। वह खड़ा होते हुए कहता है, " आ गए आप लोग । मैं आप ही का इंतजार कर रहा था।"
कनिष्क की आवाज जितनी ठंडी उतनी ही डरावनी लग रही थी। उसकी आवाज में कोई भारीपन नहीं था। लेकिन एक तीखापन था। नैना ने डरते हुए वात्सल्य के बाजू को और कश के पकड़ लिया था । उसके ऐसा करने पर कनिष्क की निगाहें और तीखी हो जाती है । और वह उस हाथ को देखने लगता है, जो नैना ने कनिष्क के बाजू पर लपेटा हुआ था। वह घबराते हुए कनिष्क को देख रही थी। लेकिन कनिष्क के चेहरे पर कोई भी एक्सप्रेशन नहीं थे।
" आईए खाना खा लीजिए । रात काफी हो गई है । आप लोगों ने कुछ खाया भी नहीं है। आपको भूख लगी होगी।" वात्सल्य और नैना से यह कहने के बाद कनिष्क ने अनामिका को देखते हुए कहा, " अनामिका।"
अनामिका मुस्कुराते हुए हा में सर हिलाती है और कहती है, " जी मालिक । मैं अभी डिनर लगवाती हूं ।"
नैना ने घबराते हुए वात्सल्य को देखा । तो वात्सल्य जल्दी से कहता है, " इट्स ओके। वैसे भी हम यहां पर डिनर करने नहीं आए हैं। बिजनेस की बात करने आए हैं । वह कर लेते हैं उसके बाद हमें निकलना भी है । सफर बहुत लंबा है।"
कनिष्क के चेहरे पर जो हल्की सी मुस्कान थी वह उतर जाती है । और वह घूरते हुए वात्सल्य को देख कर कहता है, " रात काफी हो गई है। इस वक्त यहां से निकलना खतरनाक हो सकता है। आज रात आप लोग यहीं रुक जाइए। काम की बातें सुबह हो जाएंगी। अनामिका मेहमानों का कमरा तैयार करो।"
उसके बाद कनिष्क एक नजर नैना को देखता है और फिर वहां से चला जाता है। नैना घबराते हुए उसे जाता हुआ देखते रह जाती है। उसे समझ ही नहीं आ रहा था, कि यह इंसान अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से उसे ही क्यों घूर रहा है।
अनामिका अपने हाथ के इशारे से वात्सल्य और नैना को डाइनिंग टेबल पर चलने के लिए कहती है। अनामिका के वहां से आगे बढ़ने के बाद नैना ने वात्सल्य के हाथ को खींचते हुए कहा, " अब क्या करें ?"
वात्सल्य ने बेफिक्री के साथ कहा, " चलो चलते हैं वैसे भी रात काफी हो गई है और मुझे भूख भी काफी लगी है।" नैना खीज जाती है और वात्सल्य के कंधे पर एक पंच मार देती है। वात्सल्य मुस्कुरा देता है ।
वात्सल्य नैना का हाथ पकड़ कर डाइनिंग टेबल के पास आता है। वह देखता है, कि वहां पर एक बड़ी साइज के सिंहासन जैसी कुर्सी पर कनिष्क पहले से ही बैठा हुआ है।
वो टेबल इतनी लंबी थी, कि वहां पर 10 से 20 लोग आराम से बैठ सकते हैं। और खाना खा सकते थे । लेकिन पूरे टेबल पर सिर्फ कनिष्क ही अकेला बैठा हुआ था। यहां तक की अनामिका भी उसके साथ नहीं बैठी थी। अनामिका ने वात्सल्य और नैना को कुर्सी पर बैठने के लिए कहा।
" वात्सल्य जी आप यहां बैठ जाइए । और नैना जी आप यहां बैठ जाइए। मैं आप लोगों के लिए डिनर लगवाती हूं ।"
वात्सल्य देखता है, कि उन दोनों की कुर्सी टेबल के दूसरी कोने की सबसे आखरी कुर्सी है। वात्सल्य ने कुछ नहीं कहा। क्योंकि वैसे भी वो लोग यहां पर मेहमान है। वो नैना को ले कर उसे जगह पर आता है और नैना को एक कुर्सी पर बिठाकर उसके पास वाली कुर्सी पर खुद बैठ जाता है।
अनामिका उन लोगों की प्लेट में डिनर सर्व करती है। लेकिन नैना ने अनामिका को देख कर उससे कहा , " प्लीज आप मुझे थोड़ा सा लाइट खाना देगी ? इतनी रात को मुझसे इतना हैवी चिकन और यह सब नहीं खाया जाएगा।"
अनामिका हल्की सी मुस्कान के साथ हा में सर हिलाती है और नैना के सामने सूप का बाउल रख देती है । नैना धीरे-धीरे सूप पीने लगती हैं और वात्सल्य नॉर्मल खाना खा रहा था।
अनामिका वहीं दूसरी तरफ खड़ी थी। लेकिन ना तो वह टेबल पर बैठ रही थी और ना ही वह कुछ खा रही थी वात्सल्य और नैना चुपचाप अपना अपना डिनर कर रहे थे। लेकिन तभी उनके कानों में कुछ अजीब सी आवाज आती है। वह लोग हैरानी से एक दूसरे को देखते हैं। और फिर एक साथ ही उनका चेहरा कनिष्क की कुर्सी की तरफ जाता है।
कनिष्क अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ था और उसकी कुर्सी के ठीक सामने नैना बैठी हुई थी। कनिष्क की तीखी निगाहें सिर्फ नैना के ऊपर थी। कनिष्क के हाथों में एक चिकन का पिस था, जिसे वह नोच नोच कर खा रहा था।
उसके पूरे हाथ गंदा हो रखे थे और जिस जगह वह खाना खा रहा था, वहां पर भी पूरी जगह खाना गिरा हुआ था। उसका हाथ और कपड़े भी चिकन से सने हुए थे । उसे ऐसा देख कर नैना को बोहोत घिन्न आ रही थी। उसने धीरे से वात्सल्य के कानों में झुकते हुए कहा, " वात्सल्य यह ऐसे क्यों खा रहा है? जैसे खाना नहीं मिला हो।"
वात्सल्य ने भी कनिष्क को घूर कर देखा और फिर धीरे से नैना के कानों में कहा, " वह तो पता नहीं। लेकिन जिस तरीके से यह खा रहा है ना, बाय गॉड आज के बाद मैं चिकन कभी नहीं खाऊंगा ।"
" अगर आपको चिकन नहीं खाना है, तो आप कुछ और खा लीजिए।" अनामिका जल्दी से आगे आते हुए कहती है। वात्सल्य और नैना वह दोनों हैरानी से एक साथ अनामिका की तरफ देखने लगते हैं। अनामिका उनसे दूर खड़ी थी। वह दोनो फुसफुसाते हुए एक दूसरे के कानों में बातें कर रहे थे। लेकिन फिर भी अनामिका ने उनकी बातें सुन ली।
नैना सूप में चम्मच रखती है और उसे आगे की तरफ धकेलते हुए कहती है, " इट्स ओके मेरा खाना हो गया है। अब मुझे कुछ और नहीं खाना है। वैसे भी मेरी भूख मर चुकी है।"
वात्सल्य ने भी अपनी प्लेट में चम्मच रखते हुए कहा, " मेरी भी भूख मर गई है । मतलब कि मेरा खाना हो गया है।"
कनिष्क अपनी जगह पर खड़ा होता है और उन दोनों को देख कर अपनी नजर नैना के ऊपर टिकाते हुए कहता है, " चलिए मैं आप लोगों को आपका कमरा दिखा देता हूं।"
वात्सल्य और नैना अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं और कनिष्क के पीछे पीछे चल देते हैं। वह अपनी मंजिल पर एक कमरे के पास आता है। कनिष्क पहले अनामिका की तरफ देखता है और फिर उसे कहता है, " रात काफी हो गई है तुम भी जा कर आराम कर लो ।"
अनामिका मुस्कुराते हुए हा में सर हिलाती है और फिर कनिष्क और नैना को देख कर एक प्यारी सी मुस्कान देती है और फिर वहां से चली जाती है । उसे देख कर नैना अपने मन में कहती है, " यह हमेशा मुस्कुराती क्यों रहती है ?"
कनिष्क वात्सल्य से कहता है, " यह इनका कमरा है और वह वाला आपका कमरा है।"
वात्सल्य ने जल्दी से कहा, " अरे मिस्टर कनिष्क आपको दो कमरे अरेंज करने की जरूरत नहीं है। मैं और नैना एक ही कमरे में रह लेंगे ।"
" क्या आप दोनों की शादी हो चुकी है?" कनिष्क ने घूरती हुए नजरों से वात्सल्य को देख कर कहा। तो वात्सल्य चुप हो जाता है और जल्दी से अपना चेहरा ना में हिलाते हुए कहता है, " जी नहीं हमारी शादी अभी तो नहीं हुई है। पर जल्दी होने वाली है।"
" अगर हो पाई तो रह लेना एक कमरे में।" कनिष्क ने घूरते हुए वात्सल्य को देख कर कहा और फिर नैना को देख कर हल्की और मुस्कुराती हुई आवाज में कहता है, " अगर किसी चीज की जरूरत हो तो मुझे बताइएगा।"
घबरा तो वैसे नैना भी रही थी। लेकिन उसने हा में सर हिलाया । कनिष्क मुस्कुराते हुए नैना को देखता है और वहां से चला जाता है । उसके जाने के बाद नैना एक सुकून की सांस लेती है। लेकिन वात्सल्य ने अजीब नजरों से उसे जाता हुआ देख कर पीछे से कहा, " कितना अजीब इंसान है ! वैसे नैना तुमने एक बात नोटिस की है?"
" क्या ?" नैना ने हैरानी से पूछा। तो वात्सल्य हंसते हुए कहता है, " यह कनिष्क सिर्फ तुम्हे ही देख कर बात करता है इसके लिए तो जैसे मैं यहां हूं ही नहीं। फ़िदा हो गया तुम पर।"
नैना को वात्सल्य की बात से चीड़ जाती है वह अपने हाथ का घुसा बना कर वात्सल्य के शोल्डर पर मारते हुए कहती है, " शट अप वात्सल्य। आई विल किल यू । अगर ऐसी बकवास की तो ।"
वात्सल्य और तेज हंसते हुए कहता है, " हां वह भी तो यही चाहता है, कि मेरा कत्ल कर दे। तुम दोनों के ख्यालात कितने मिलते जुलते हैं ना !"
नैना ने घूरते हुए वात्सल्य को देखा। तो वात्सल्य कहता है, " अरे मैं तो मजाक कर रहा था। क्यों बुरा मान रही हो ?"
नैना कुछ नहीं कहती है । लेकिन फिर कुछ सोचते हुए उसने वात्सल्य से कहा, " वात्सल्य वैसे इस कनिष्क में तहजीब बहुत है। पर खाना खाने की तमीज बिल्कुल नहीं है। मुझे तो टेबल पर इसे देख कर घिन्न आ रही थी।"
वात्सल्य मुस्कुराता है और नैना से कहता है, " तुम्हें तो सिर्फ घिन्न आ रही थी ना। मेरी तो भूख ही मर गई थी । कितने गंदे तरीके से उसने चिकन खाया है । कसम से नैना आज के बाद चिकन खाना बंद।"