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Shairy No 9

अर्ज़ कुछ यूँ किया है जरा गौर फरमाइयेगा

मंज़िल पाने की तमन्ना तो सभी इंसान की होती है

परन्तु जिंदगी के रास्ते पर चलकर इस क़दर थक चूका हूं की ना तो मंज़िल नसीब हुआ और ना ही रास्ता।