नीलदेव ने अपना दरबार संभाला था कि एक राक्षस दौड़ता हुआ आया और बोला:- "महाराज! राजा लालदेव के पांच सैनिक आये हैं. वे कहते हैं, हम राजा से लड़ना चाहते हैं. मैंने कहा:- पहले मुझसे लड़ो. तो एक सैनिक जो सरदार मालूम पड़ता है. उसने मुझे उठाकर काफी दूर फेंक दिया है. उनका अब अता-पता नहीं. शायद वे नगर में घुस आए होंगे."
नीलदेव ने हाथ हिलाया. हाथ में एक खोपड़ी आ गई. नीलदेव ने कुछ मंत्र बुदबुदा कर खोपड़ी की ओर देखा, तो खोपड़ी रंग बदलने लगी. कभी लाल, कभी हरा, कभी पीला. अंत में वह नीली होकर स्थिर रह गई. नीलदेव ने फिर मंत्र बुदबुदाए और खोपड़ी के सर पर हाथ रखा. खोपड़ी चिल्लाई,
"बाग में चूहे बनकर बैठे हैं."
नीलदेव अदृश्य हो कर बाग़ की ओर चल दिया. दरबार समाप्त हो गया.