भास्कर के दिल की धड़कने तेज हो गई थीं। तभी कार चलाने वाली माहिला का पति जो बाजु के सीट पर बैठा था, होश में आया और तुरंत झुककर हाथ से ब्रेक मारता है। कार फिसल कर भास्कर की तरफ आ रही थी। कार के ब्रेक दबाने के कारण टायरों और सड़क के बीच घर्षण से तेज आवाज हुई। उस आवाज ने भास्कर का ध्यान उस कार की ओर खींचा। कार को अपनी तरफ आते देख भास्कर का दिल जोर से धड़कने लगा। उसके पैर जड़ हो गए थे, और वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे।
कार इतनी तेजी से उसके पास आ रही थी कि बचने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। डर के मारे भास्कर ने एक कदम पीछे हटाया और दोनों हाथ अपने मुँह के सामने लाए। उसके पति ने आखिरी कोशिश में कार को एक तरफ घुमा दिया। इससे कार की गति थोड़ी कम हो गई, और कार फिसलते-फिसलते भास्कर के पैरों के पास आकर रुक गई। किस्मत ने साथ दिया, और भास्कर बच गया।
कार में एक युवती थी, जो बगल की सीट पर अपने पति के साथ बैठी थी। पीछे की सीट पर उनकी दो साल की बेटी सीटबेल्ट लगाए बैठी थी। उसने गुलाबी रंग की फ्रॉक पहनी हुई थी, और उसकी आंखें भूरी और चमकीली थीं। सफेद रंग की वह बच्ची इतनी प्यारी लग रही थी, लेकिन अभी डर के कारण उसकी आंखों में आंसू थे। कार के जोर से टकराने के डर से वे दोनों चीख उठे थे। उनकी चीख इतनी तेज और डरावनी थी कि किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं।
कार रुकने पर, पति ने पत्नी की तरफ मुड़कर पूछा, "क्या तुम ठीक हो?"
"हाँ," उसने माथे का पसीना पोछते हुए जवाब दिया।
वे दोनों तुरंत पीछे मुड़कर अपनी बेटी की तरफ देखने लगे। बच्ची की आँखों में डर था, और वह जोर से रोने लगी थी। अपने बच्चे के डरे हुए चेहरे को देखकर वे दोनों भास्कर पर गुस्सा हो गए। गुस्से में तमतमाए बच्ची के पिता कार से उतरे और भास्कर का कॉलर पकड़कर ऊँची आवाज में बोले, "मरना है तो किसी और गाड़ी के नीचे जा, मेरी कार के सामने मत आ।"
भास्कर के कॉलर पकड़े हुए व्यक्ति का चेहरा उसके सामने था। भास्कर उसे देखता रहा। वह चेहरा उसे जाना-पहचाना लग रहा था। जैसे ही वह व्यक्ति भास्कर को थप्पड़ मारने वाला था, भास्कर के मुँह से शब्द निकल गए, "क्या तुम शुभम हो?"
शुभम ने भास्कर को थप्पड़ मारने से रोक लिया। उसकी आँखों में गुस्सा और आश्चर्य दोनो थे। वह कुछ कहने ही वाला था कि अचानक पीछे से कारों के चार-पांच हॉर्न की आवाज गूंज उठी। सड़क पर जाम लग गया था और कई वाहन रुके हुए थे। शुभम की पत्नी ने जल्दी से कार को एक तरफ कर लिया। भास्कर और शुभम दोनों सड़क के किनारे आ गए थे।
शुभम ने हैरानी से भास्कर को देखते हुए पूछा, "तुम मेरा नाम कैसे जानते हो?" उसकी आँखों में उलझन और जिज्ञासा थी। वह भास्कर के चेहरे को गौर से देखे जा रहा था।
"मैं भास्कर हूं। हाईस्कूल में हम दोस्त थे," भास्कर ने जवाब दिया।
शुभम ने जल्दी से पहचान लिया और ज़ोर से कहा, "ये सूअर के बच्चे! मैंने तुझे पहचाना ही नहीं।" शुभम का चेहरा खुशी से चमक उठा। भास्कर सोच रहा था कि शुभम की आवाज़ उसे हाईस्कूल के दिनों में खींच लाई है, जब वे एक-दूसरे को मजाक में जानवरों के नाम से बुलाते थे। दोनों ने एक-दूसरे को कस कर गले लगाया।
शुभम की पत्नी कार में बैठी थीं और उन्होंने दो-तीन बार हॉर्न बजाया। शुभम ने उनकी तरफ देखा और इशारों में पूछा, "आप किस बारे में बात कर रहे हैं?"
"यह हाईस्कूल से मेरा दोस्त है," शुभम ने ज़ोर से कहा। उसकी आवाज में खुशी की झलक थी।
शुभम की पत्नी कार से उतर गई। उन्हें देखकर भास्कर ने कहा, "माफ करना भाभी, आपको मेरी वजह से तकलीफ हुई।"
"इट्स ओके, देवर जी," उन्होंने मुस्कराते हुए जवाब दिया।
भास्कर ने शुभम से पूछा, "भाभी का नाम क्या है?"
"श्वेता," शुभम ने गर्व से कहा।
"मुझे लगा तेरी शादी स्नेहा से हो गई?" भास्कर ने हैरानी से कहा।
यह नाम सुनते ही शुभम का चेहरा उतर गया। श्वेता, जो पास ही खड़ी थी, शुभमने जानबूझकर खांसने की आवाज की, मानो भास्कर को शांत रहने का इशारा कर रही हो। उन्होंने भास्कर से पूछा, "देवर जी, आपने स्नेहा का नाम क्यों लिया? और वह कौन थी?"
भास्कर ने हड़बड़ाते हुए जवाब दिया, "अरे भाभी, मैं तो पूछ रहा था कि श्वेता की शादी हो गई है या नहीं।" उसने शुभम की ओर देखते हुए कहा।
"अच्छा," श्वेता ने मुस्कराते हुए कहा। किस्मत अच्छी थी कि उन्हें कोई शक नहीं हुआ, नहीं तो भास्कर को सच बताना पड़ता।
एक तरफ भास्कर शुभम की कार के सामने आ गया था, और दूसरी तरफ वह शुभम की पुरानी गर्लफ्रेंड की बात छेड़कर माहौल बिगाड़ने वाला था। शुभम थोड़ा नाराज था, लेकिन इतने सालों बाद अपने पुराने दोस्त से मिलकर उसका गुस्सा शांत हो गया था। समय और हालात ने दोनों दोस्तों को एक बार फिर साथ ला दिया था, और वे अपनी पुरानी दोस्ती की गर्माहट को महसूस कर रहे थे।
भास्कर की ओर देखते हुए शुभम ने कहा, "भास्कर, आज मेरी बेटी का जन्मदिन है। हम दोनों उसका जन्मदिन सिग्नेचर होटल में मना रहे हैं। तुम आज रात को सिग्नेचर होटल में आओ।" शुभम ने उसे न्योता दिया, उसकी आवाज़ में पुरानी दोस्ती की गर्माहट थी।
"सॉरी शुभम, आज मेरी एक जरूरी मीटिंग है। इसलिए मैं नहीं आ पाऊंगा। लेकिन मैं तुमसे वादा करता हूँ कि कल तुमसे मिलने जरूर आऊंगा। कल हम बहुत देर तक बातें करेंगे, ठीक है ना?" भास्कर ने माफी मांगते हुए कहा।
"ठीक है," शुभम ने थोड़े निराश होकर कहा।
"ओके, तो मैं चलता हूँ। बाय.. बाय भाभी," भास्कर ने विदाई दी।
"बाय," शुभम की पत्नी ने मुस्कराते हुए जवाब दिया।
भास्कर सड़क पार कर गया और सिल्वर ग्लेज नाम की एक बेकरी में गया। सैली को चॉकलेट बहुत पसंद थी, इसलिए भास्कर ने उसके लिए ढेर सारी चॉकलेट खरीदने का फैसला किया। उसने 5, 10, 90 और 150 रुपये की छोटी डेयरी मिल्क, किटकैट, फ्यू स्टार, पर्क, चोकोचोको चॉकलेट, बनाना फ्लेवर की 50-60 चॉकलेट लीं। भास्कर के पास अब 200 से 250 चॉकलेट थीं।
चॉकलेट्स का बैग लेकर वह ट्राइडेंट होटल में अपने कमरे में वापस चला गया। वह चॉकलेट का बैग अपनी पीठ के पीछे छिपाते हुए कमरे में दाखिल हुआ, ताकि सैली देख न सके। उस वक्त सैली बाथरूम में नहा रही थी, इसलिए कमरे में कोई नहीं था। भास्कर ने इस मौके का फायदा उठाकर सारी चॉकलेट निकालीं और कमरे में एक पंखे पर 200 से 250 चॉकलेट एक के ऊपर एक रख दीं।
तभी उसने बाथरूम के दरवाजे की आवाज सुनी। सैली बाथरूम से बाहर आ रही थी। तेज आवाज सुनकर भास्कर जल्दी से एक सोफे के पीछे छिप गया। सैली बाथरूम से बाहर आई और तौलिया एक तरफ रखकर कपड़े बदलने लगी। उसे लगा कि भास्कर कमरे में नहीं है। उसने अपने कपड़े बदले. तभी भास्कर उसके पीछे खड़ा हो गया। भास्कर धीरे-धीरे कदमों से सैली के पास आया और पीछे से उसे गले से लगा लिया।
सैली डर गई, उसे लगा कि कोई अजनबी उसे गले लगा रहा है। उसने तुरंत भास्कर के दोनों हाथ एक तरफ कर दिए और पीछे मुड़ी। जब उसने देखा कि उसे गले लगाने वाला भास्कर ही है, तो उसका डर गायब हो गया। भास्कर ने उसका डरा हुआ चेहरा देखा और प्यार से पूछा, "क्या हुआ?"
"मैं बहुत डर गई थी। मुझे लगा कि कोई अजनबी मेरे कमरे में आ गया है। दोबारा ऐसा मत करना, नहीं तो डर से मैं मर जाऊंगी," सैली ने कांपते हुए कहा।
भास्कर ने उसके हाथ पकड़ते हुए कहा, "सैली, तुम्हारे मरने से पहले मैं मर जाऊँगा। इसलिए फिर से इस तरह की जानलेवा बातें मत कहो।"
सैली ने गुस्से से उसे देखते हुए कहा, "तुम छिप रहे थे और मुझे कपड़े बदलते हुए देख रहे थे?"
भास्कर ने मुस्कराते हुए कहा, "हाँ।"
"पत्नी को इस तरह देखना गलत नहीं है," सैली ने नाराजगी जताते हुए कहा।
भास्कर ने सैली की ओर प्यार से देखते हुए जवाब दिया, "तुम मेरी पत्नी हो। इसलिए मैं तुम्हें किसी भी रूप में देख सकता हूँ, और मुझे इसमें कुछ भी गलत नहीं दिखता।"
सैली ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "तो एक बात बताओ। क्या तुम्हें नहीं लगता कि अपनी शादी की सालगिरह याद न रखना गलत है?"
भास्कर ने जान-बूझकर हैरानी से कहा, "क्या आज हमारी शादी की सालगिरह है?"
भास्कर के मजाक की वजह से सैली नाराज थीं। उसने सच में सोचा कि भास्कर को उनकी शादी की सालगिरह याद नहीं है। उसने गुस्से में भास्कर को देखा और फिर से अपने गाल फुला लिए। उसके फूले हुए गालों को देखकर भास्कर केवल मुस्कुरा रहा था और किसी तरह अपनी हंसी रोकने की कोशिश कर रहा था।
"ओह! सॉरी, मैं काम की वजह से भूल गया," भास्कर ने कान पकड़ते हुए कहा। "सैली, तुम आज सुबह से मुझसे नाराज हो। क्या यही वजह है?"
"हाँ," सैली ने गाल फुलाते हुए जवाब दिया।
"ठीक है। तो मैडम, मैं आज वही करूंगा जो आप कहोगी। बताओ, मैं क्या करूँ?" भास्कर ने मान-मनुहार करते हुए कहा।
"मैं चाहती थी कि तुम मुझे सरप्राइज दें। लेकिन तुम्हें मेरा जन्मदिन भी याद नहीं है," सैली ने गुस्से में कहा।
"मैडम प्लीज। जो हुआ उसे भूल जाओ। और मुझे बताओ कि तुम क्या चाहती हो?" भास्कर ने उसका हाथ पकड़कर विनती की।
"कुछ नहीं चाहिए," सैली ने गुस्से से भरे स्वर में कहा।
"सैली, आज मैं एक बात बताना चाहता हूं। तुम बहुत सुंदर दिख रही हो," यह सुनकर सैली के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने अपने बाल पीछे किये।
"मैं तुम पर गुस्सा हूँ, तो तुम मेरी झूठी प्रशंसा कर रहे हो, है ना?" उसने अपनी पीठ भास्कर की ओर कर ली और हाथ जोड़कर कहने लगी।
"मैं सच कह रहा हूँ," भास्कर ने उसे अपने पास खींचा और उसकी आंखों में देखकर कहा। "तुम बहुत सुंदर लग रही हो। इसलिए मैं तुम्हारी फोटो लेना चाहता हूं। तुम इस ओर आओ।"
भास्कर ने उसकी नाजुक कमर को पकड़कर उसे पंखे के नीचे ले आया। "तुम यहाँ रुको। यहाँ से तुम्हारी तस्वीर अच्छी आएगी।"
भास्कर पीछे हट गया और पंखे के बटन के पास चला गया। उसने मोबाइल का कैमरा ऑन किया और उसकी तस्वीर ली। इसके बाद उसने वीडियो लेना शुरू कर दिया। सैली को यह नहीं पता था कि वह उसकी फोटो नहीं बल्कि वीडियो शूट कर रहा था। भास्कर ने पंखे का बटन ऑन कर दिया।
पंखे के पत्तों पर रखी सारी चॉकलेट उसके शरीर पर गिरने लगीं। पहले तो सैली डर गई, यह सोचकर कि पंखे से कोई छिपकली या कीड़ा गिर गया है, और जोर से चिल्लाई। लेकिन जब उसे पता चला कि ये चॉकलेट्स हैं, तो वह बहुत खुश हुई। उसके शरीर पर 250 चॉकलेट गिर गईं। कुछ सिर और कंधों पर गिरीं, और उसने दोनों हाथ आगे बढ़ाए तो कुछ चॉकलेट्स उसके हाथ पर भी गिर गईं। बाकी की सारी चॉकलेट्स उसके पैरों पर ढेर हो गईं।
सैली बैठ गई और हाथ में चॉकलेट उठाई। उसके हाथ में डेयरी मिल्क, किटकैट, फेयू स्टार, पर्क, चोको-चोको चॉकलेट, बनाना फ्लेवर जैसी अलग-अलग चॉकलेट्स थीं। भास्कर ने उसका खुश चेहरा देखा और उसे देखकर वह भी काफी खुश हुआ।
सैली की आंखों में खुशी की चमक थी और भास्कर के चेहरे पर संतोष की मुस्कान। उनके बीच के गिले-शिकवे अब मिठास में बदल गए थे।
"सैली, मुझे तुम्हारी शादी की सालगिरह याद है। मुझे नहीं पता था कि मैं तुम्हारे लिए क्या गिफ्ट लाऊं। तो मैं तुम्हारे लिए यह चॉकलेट लाया हूं। यदि तुझे यह गिफ्ट पसंद नहीं है, तो तुम जो कहेंगी, मैं तुझे दे दूंगा।"
सैली की आंखों में आंसू थे। वह बेहद खुश थी। "यह चॉकलेट मेरे लिए सबसे बड़ा गिफ्ट है। मैं इस दिन को कभी नहीं भूलूंगी," उसने कहा, उसकी आवाज में सच्ची भावनाएं छलक रही थीं।
भास्कर ने वीडियो बंद किया और उसके पास आया। "सैली, मैं यहाँ कुछ समय पहले आया था। तब मैं इस चॉकलेट को पंखे पर रख रहा था। लेकिन उसी वक्त तुम बाथरूम से बाहर आ गईं, तो मैं छिप गया। मैं तुझे कपड़े बदलते हुए नहीं देख रहा था, बल्कि तुझे सरप्राइज देने के लिए छुप गया था।"
यह सुनने के बाद सैली ने भास्कर को किस्स किया। भास्कर को लगा कि वह स्वर्ग में चला गया है। किस्स करने के बाद भास्कर ने सैली की तरफ देखा और मुस्कुराने लगा। सैली ने नीचे देखा। उसके चारों ओर चॉकलेट का पहाड़ था। उसने भास्कर से कहा, "इतनी चॉकलेट लाने की जरूरत नहीं थी। अगर तुम मुझे एक चॉकलेट भी देते तो मैं खुश होती।"
"हाँ, मैं बहुत ज्यादा चॉकलेट लेकर आया हूँ। लेकिन मैं तुझे एक बात बताना चाहता हूँ," भास्कर ने उसके गालों पर हाथ रखते हुए कहा।
"क्या?" सैली ने पूछा।
"तुम इस चॉकलेट से ज्यादा मीठी हो," भास्कर ने उसके मुँह में चॉकलेट डाल दी। वह थोड़ा शरमा गई। उसने भास्कर के मुँह में भी चॉकलेट डाल दी। भास्कर और सैली ने फिर एक-दूसरे को किस किया।
भास्कर और सैली दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे। तब भास्कर और सैली ने एक नई दुनिया में कदम रखा था। उनके चारों ओर सफेद धुआ बन गया था। भास्कर और सैली उस धुएं में फस गए थे। वह धुआं दोनों को इस बात का आभास करा रहा था कि वे आसमान में आ गए हैं। यह एक नई दुनिया थी। उस दुनिया में सिर्फ वही लोग रहते थे जो एक-दूसरे से प्यार करते थे, एक-दूसरे पर भरोसा करते थे। उस शांत और रोमांटिक माहौल में प्यार की एक धुंध सी छा गई थी। वह हल्के से उनके हाथों, आंखों और गालों को छू रही थी। दोनों हस रहे थे।
भास्कर के मोबाइल की घंटी बजने से दोनों नई दुनिया से बाहर आ गए। वह दुनिया अब बहुत दूर जा चुकी थी। भास्कर ने वह नंबर देखा और उठ खड़ा हुआ। उसने सैली से कुछ दूर जाकर कहा, "हेलो सर! जी हा, बहुत अच्छा। ठीक है सर, मैं आ रहा हूँ।"
भास्कर ने फोन रख दिया। "मेरी मीटिंग आधे घंटे बाद शुरू होगी, इसलिए मुझे जाना होगा," उसने सैली की ओर देखते हुए कहा।
"भास्कर, मीटिंग कब खत्म होगी?" उसने भास्कर से कहा जैसे एक बच्चा अपने माता-पिता से कह रहा हो। उसके चेहरे पर वही भाव थे। चंद मिनट के लिए भास्कर उसे दूर जा रहा था। वह मां बनने वाली थी, तो उसे लग रहा था कि भास्कर हमेशा उसके साथ रहे, उसका ख्याल रखे, उसे बात करे।
"इसमें लगभग सवा घंटे का समय लगेगा," भास्कर ने मुस्कुराते हुए कहा।
"मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगी। इसलिए तुम मीटिंग खत्म होने के बाद तुरंत यहाँ आ जाओ। हम रात का खाना साथ में बैठकर करेंगे।"
भास्कर उसके पास गया, उसके पास ढेर सारी चॉकलेट थी। उसने उसके शरीर पर कुछ चॉकलेट रखी और उसे उठाया और बिस्तर पर रख दिया। उसे खाने के लिए चॉकलेट दी।
"सैली, आज हम खाना नहीं खाएंगे, हम केवल चॉकलेट खाएंगे।"
"इतना मीठा खाना अच्छा नहीं होता," सैली ने हसते हुए कहा।
"लेकिन आज खास दिन है, इसलिए कोई परवाह नहीं," भास्कर ने चुटकी लेते हुए कहा। सैली भी मुस्कुरा दी। और दोनों ने हसते हुए एक-दूसरे के साथ चॉकलेट का आनंद लिया, जैसे यह उनका सबसे अच्छा दिन हो।
"मैं हर दिन मीठा खाता हूँ," उसने सैली के होंठों को छूते हुए कहा। वह फिर शरमा गई। उसने अपना सिर नीचे कर लिया और गाल से गाल तक मुस्कुराने लगी। जब वह शरमा रही थी, तो भास्कर को उसकी सादगी और भोलापन नजर आ रहा था। वह बहुत अच्छी लड़की थी, जो भास्कर को किस्मत से मिली थी। तभी किसी ने कमरे के दरवाजे पर दस्तक दी।
"हाँ, अंदर आ जाओ," भास्कर ने कहा।
भास्कर के बुलाने पर एक वेटर ने दरवाजा खोला और अंदर आया। उसने मेज पर खाना रख दिया और मोमबत्ती जलाई। कमरे से बाहर निकलते ही उसने लाइट बंद कर दी। उसके जाने के बाद भास्कर ने सैली को उठाकर कुर्सी पर बिठा दिया। ऐसा लग रहा था कि उसके पाव जमीन पर नहीं लगने चाहिए। भास्कर को लग रहा था कि सैली हमेशा उसकी बाहो में रहे और उसका साथ न छोड़े। उसने हल्के से सैली को कुर्सी पर बिठाया और उसकी थाली में सब्जियां डाली। वहां पर एक ही डिश थी।
"तुमने यह ऑर्डर कब दिया?" सैली ने पूछा।
"जब तुम नहा रही थी, तब," भास्कर ने मुस्कुराते हुए कहा।
सैली ने थाली में पनीर की सब्जी देखी। "ये सभी सब्जियां मेरी पसंदी हैं।"
"हाँ," भास्कर ने कहा।
"थैंक यू, भास्कर।"
"सैली, तुम खालो," भास्कर ने निवाला उसके मुँह में डाल दिया।
"क्या तुम खाना नहीं खाओगे?" उसने कहा।
"मेरी मीटिंग है।"
"मीटिंग पंद्रह मिनट में समाप्त हो जाएगी, है ना?"
"शायद एक घंटा भी लगेगा।"
"मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी।"
"हमारा बच्चा तुम्हारे पेट में पल रहा है। तुम्हें समय पर भोजन करना चाहिए।"
"ठीक है। लेकिन अब मैं एक ही रोटी खाऊंगी और बचा हुआ भोजन तुम्हारे आने के बाद खाऊंगी।"
भास्कर ने दूसरा निवाला उसके मुँह में डाल दिया। "सैली, तुम अपने पुराने घर में जाना चाहती थी ना, जहाँ अब अपार्टमेंट खड़ा हुआ है," भास्कर ने बात बदलते हुए कहा।
"मैं अपार्टमेंट में जाना नहीं चाहती। मुझे अपने पुराने घर जाना था," सैली ने मुँह फुलाकर कहा।
"मैं आज वहाँ जा रहा हूँ," और एक निवाला उसके मुँह में डालकर भास्कर ने कहा।
"क्यों?"
"मुझे कुछ समय पहले मुकुल का फोन आया था।"
"वह वैज्ञानिक?" सैली ने सोचकर कहा।
"हाँ।"
"वह क्या कह रहा था?"
"उन्होंने एक टाइम मशीन बनाई है।"
यह सुनकर वह जोर से हसने लगी। भास्कर ने कहा, "क्या हुआ?"
सैली हसकर कहने लगी, "उन्होंने आठ साल पहले एक टाइम मशीन बनाई थी। क्या तुम्हें याद है कि फिर क्या हुआ था?"
भास्कर ने सैली की तरफ देखा और आठ साल पहले की घटना उसकी आँखों के सामने खड़ी हो गई। भास्कर और सैली दोनों कुछ सेकंड के लिए अतीत में चले गए।