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मेरा तो विवाह पहले ही हो चुका है l

Chapter - 39

श्रीशि अपने महल लौट आती है वो जब अपने कमरे में जा रही थी तो उसे अपने पिता कुछ परेशान से नजर आते हैं वो उनके कमरे में उनके पास जाती है उसके पिता छज्जे से बाहर देख रहे थे वो उनके पास खड़ी हो जाती है और उनसे पूछती है - क्या हुआ बाबा आप कुछ परेशान से लग रहे हैं l

राजा सूर्य उसकी तरफ देख फिर आसमान के सितारों की तरफ देखते हुए कहते हैं - मेरी चमक धीरे-धीरे समाप्त हो रही है l

श्री ने नासमझी से पूछा - मैं कुछ समझी नहीं कि आप क्या कह रहे हैं आपकी चमक समाप्त हो रही है मतलब...?

उसके पिता उसकी ओर देख कर उससे बोलते हैं - तुमने जो किया मैंने उसके लिए तुम्हें माफ़ कर दिया लेकिन मैं एक राजा होने के नाते मेरा फर्ज था कि मैं अपने वचन को पूरा करूँ लेकिन तुम्हारे जिद्द के आगे मैं हार गया और इसी कारण मेरी प्रजा मेरे खिलाफ हो रहे हैं l

श्री ने कहा - मैं समझ गयी आप क्या कह रहे हैं मुझे माफ कर दीजिए बाबा... मैंने आपके वादे को भंग किया है क्या इसका कोई उपाय नहीं है जिससे आपको इस से छुटकारा मिल सके l

राजा सूर्य ने कहा - उपाय तो है लेकिन तुम...

श्री ने उससे कहा - तो आप बताइए न मैं वो जरूर करूंगी l

श्री के बार - बार पूछने पर उसके पिता ने संकोच करते हुए कहा - हमारे कुल ऋषि मुनियों ने कहा... है कि... इस पाप का निवारण... तभी हो सकता है... जब तुम... किसी ब्राह्मण से विवाह करो l

ये सुनकर श्री को एक जोर का धक्का लगता है वो हिचकिचाते हुए कहती है - लेकिन... बाबा मैं मैं... ये कैसे.. मतलब...

राजा सूर्य ने कहा - मुझे पता था तुम ये नहीं कर पाओगी मेरे लिए तुम्हारी खुशी से बढ़कर और कोई चीज नहीं तुम्हें मैंने बहुत लाड प्यार से पूरे जीवन सुख सुविधा दी है तुम्हें तुम्हारे आगे - पीछे कितने दास - दासियाँ रहते हैं मैं तुम्हारा विवाह ऐसे ही किसी के साथ नहीं करूंगा भले ही मुझे ये वचन तोड़ने का पाप चढ़े l

श्री ने दुखी मन से कहा - नहीं बाबा मैं आपको ये पाप कभी नहीं चढ़ने दूंगी भले ही मुझे कुछ भी करना पड़े बस मुझे थोड़ा वक़्त चाहिए l

ये बोलकर अपने पिता के गले लगती है और वहाँ से अपने कमरे में आ जाती है और छज्जे के पास आकर खड़ी होकर खुद से रोते हुए दुखी मन से बोली - अभी हमारा तो आज ही विवाह हुआ था अभी तो हमने कुछ ही समय साथ में बिताये हैं l

ये सब बातें कृशव उसी सुन्दर वन में एक झूले पर बैठे सुन और उसे देख रहा था साथ ही उसके हृदय के हलचल को भी महसूस कर रहा था श्री वहीँ छज्जे पर ही खड़ी रहती है और गहरी सोच में होती है उसका मन इस वक़्त भटक रहा था श्री बोली - मैं कैसे किसी और से विवाह कर सकती हूँ मेरा तो विवाह पहले ही चुका है मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है l

उसके इस हलचल को देख कर कृशव ने दायें हाथ से हवा में कोई जादू बिखेर दिया उस हवा में कुछ चमकती रौशनी मिल गयी और वो श्री के पास आयी और उसके चेहरे से होते हुए गूजर गयी l

श्री को वो हवा एक ठंडक दे रही थी और उसका मन शांत हो रहा था और उसके आँखों में नींद की लहर दौड़ गयी और वो छज्जे के पास ही जमीन पर बैठे गयी और छज्जे पर सर रख कर आँखे बंद कर ली और सो गयी l

कृशव उसे देख मुस्कुराया और बोला - सो जाओ आराम से क्योंकि कल की सुबह के बाद तुम्हारे जीवन का एक नया अध्याय शुरू होने वाला है एक ऐसा अध्याय जो हर क्षण हर परिस्थिति तुम्हारे लिए मुश्किलों से भरी हुई होगी जिस का सामना तुम्हें अकेले ही करना होगा l

कृशव मुस्कुराया और उसे निहारते हुए बोला - आज की ये रात बहुत ही खास है पूरा चांद अपनी चांदनी लिए गगन को रौशन करता हुआ ये सुन्दर वन ये ठंडी हवा और ये फ़ूलों की महक ये पल मुझे हमेशा याद रहेगी कि मेरी श्रीशि और मेरा विवाह हुआ था l

कृशव रात भर उस झूले पर बैठे श्रीशि को उसी वन से ही निहारता रहा जैसे वो उसके पास ही बैठी है और वो मुस्कराते हुए उसे देखता रहा l

सुबह...

चिडियों की चहचहाहट से उसकी नींद टूटती है और वो नज़रें घुमाकर देखती है तो सुबह हो चुका था वो उठती है और आसमान में सूर्य को देख हाथ जोड़कर उन्हें नमस्कार करती है और अपने कमरे में आ जाती है l

कृशव भी झूले पर ही सो गया था उसकी भी आँखे चिडियों की चहचहाहट से ही खुलती है और वो देखता है सुबह हो चुकी है वो नदी के तट पर जाता है और अपना चेहरा धुलने लगता है चेहरा धुल कर नदी के अंदर चला जाता है और उसमें डुबकी लगाता है l

जैसे ही नदी का पानी उसके शरीर को स्पर्श करती है वो पूरी तरह से पवित्र हो जाती है उसका पानी इतना साफ हो जाता है कि पानी के अंदर की चीजें भी दिखने लगती हैं और उसमें हलचल सी होने लगती है जैसे वो नदी उसके आने से बहुत खुश और अपने आप को भाग्यशाली मान रही हो l

उसके किनारे - किनारे सुन्दर - सुन्दर फूल और अलग - अलग रंग के कई पौधे और फूल खिले थे और वहाँ से बहुत अच्छी खुशबु भी आ रही थी अचानक से एक अदृश्य आवाज सुनाई देती है एक लड़की बोली - आप मेरे नदी के पानी में उतरे मैं धन्य हो गयी और मेरा पानी पूरी तरह पवित्र हो गया है बताइए मैं आपके लिए क्या कर सकती हूँ

कृशव ने कहा - आपको मेरा एक बहुत ही बड़ा और अत्यंत महत्वपूर्ण काम करना है l

कृशव ने उससे कुछ ऐसा कहा जिससे उसने कहा - मैं आपका ये कार्य जरूर करूंगी l

कृशव ने हाथ जोड़कर उस नदी से कहा - आपका बहुत - बहुत धन्यवाद l

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