Chapter - 37
श्री उसे देख अपने कदम पीछे कर लेती है क्योंकि वो बाँसुरी वाला लड़का कोई और नहीं बल्कि कृशव था कृशव उसे देख बाँसुरी बजाना बंद कर देता है और उसे देख मुस्कराते हुए बोला - आ गयी तुम दूर क्यों खड़ी हो आओ आकर मेरे पास बैठो l
श्री उसे देख शांति से बोली - नहीं तुम्हें पता है न तुम पत्थर के बन जाओगे l
इसीलिये तो बोल रहा हूँ तुम आओ, कृशव ने कहा l
श्री नासमझी से कहती है - मतलब मैं कुछ समझी नहीं l
कृशव मुस्कराया और खड़ा हो गया - मेरे कहने का मतलब है कि मैं अगर तुम्हारे पास आऊंगा तो मैं पत्थर का बन जाऊँगा लेकिन अगर तुम मेरे पास आई तो मैं पत्थर का नहीं बनूँगा l
ये सुन श्री उसकी बात समझ जाती है और जाकर उसके गले लग जाती है और माफी मांगने लगती है - मुझे माफ कर दो मैं तुम्हें नहीं समझ पाई लेकिन तुम मुझे अच्छी तरह से जानते हो मुझे क्षमा कर दो मुझसे इतनी बड़ी गलती हो गयी मैं...
श्री ने उससे रोते हुए कहा कृशव उसके गालों पर आए आंसुओ को पोछते हुए बोला - अब तुम मुझे और दुखी कर रही हो अगर तुम रोओगी तो मुझे लगेगा तुमने मुझे अभी भी उस गलती के लिए माफ़ नहीं किया है l
श्री रोना बंद कर आँखे नीचे कर बोली - नहीं ऐसी बात नहीं है जब मुझे एहसास हुआ था तभी मैंने तुम्हें माफ़ कर दिया था ( फिर उसकी तरफ देख कर ) लेकिन क्या तुमने मुझे माफ कर दिया l
कृशव अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लेता है - नहीं l
श्री को बहुत दुख हो रहा था वो अपने दोनों कान पकड़ कर बोली - मैं फिर ऐसी गलती कभी नहीं करुँगी... अ.. तुम जो कहोगे मैं वो करूंगी बस मुझे माफ़ कर दो l
ये कहकर वो अपनी आँखे नीचे कर लेती है कृशव उसकी तरफ पलटता है और उसे देख मुस्कराते हुए बोला - ठीक है मैं जो कहूँगा वो तुम करोगी न l
श्री उसे देख हाँ में सर हिलाती है कृशव बोला - मुझे खीर खानी है l
ये सुन हैरानी से श्री उसकी तरफ देख बोली - क्या...
कृशव - हाँ तुम्हीं ने कहा मैं जो बोलूंगा तुम वो करोगी तो मेरे लिए खीर लाओ वो भी बनाकर l
श्री - तुम पागल हो इस घने जंगल में खीर कहाँ से लाऊँ सुबह आना महल वहाँ खा लेना l
कृशव - नहीं मुझे अभी भूख लगी है और मुझे वही खानी है श्री चिंता में बोली - अभी मैं तुम्हारे लिए खीर कहाँ से लाऊँ कृशव - वो तुम्हारी समस्या है कहीं से भी लाओ l
इतना कहकर कृशव वहीँ बैठ गया श्री परेशान सी जंगल के चारो तरफ नजर घुमाकर देखने लगी l
लेकिन दूर - दूर तक वह सुनसान था कृशव बैठे ही एक जादू करता है श्री बोली - यहां तो कोई रहता ही नहीं है l
कृशव ने कुछ देखते हुए बोला - लगता है वहाँ पर कोई रहता है देखो वो पास में एक झोपड़ी दिख रही है l
श्री ने उसके कहे दिशा में देखा तो सच में वहाँ से रौशनी आ रही थी और एक झोपड़ी भी थी श्री को कुछ गडबड़ लगा - अभी तक तो ये झोपड़ी नहीं थी अचानक से कैसे आ गया l
कृशव - अरे वो सब छोड़ो न चलो मुझे भूख लगी है l
श्री बोली - हाँ l
दोनों उस झोपड़ी की तरफ जाने लगते हैं वो झोपड़ी के पास पहुंचे तो देखा वहाँ पर कोई नहीं था लेकिन वहाँ पर एक गाय थी कुछ घास भी फैले हुए थे और तभी श्री की नजर एक पत्थर पर जाती है जिसे देख वो हैरान रह जाती है - अ...
वो घबराते हुए बोली कृशव उसकी आवाज सुन उसकी तरफ देखने लगा श्री अपनी नज़रें ऊपर से नीचे कर उसे देख रही थी कृशव भी उस ओर देखने लगा वहाँ पर एक साधु संत बैठे हुए थे ध्यान की अवस्था में जो कि पत्थर के बन चुके थे l
श्री ने घबराते हुए पूछा - ये क्या कर रहे हैं और ये पत्थर के कैसे बन गए l
कृशव बोला - ये कई सालो से तपस्या कर रहे हैं अपनी मुक्ति के लिए इनके पास बहुत सारी साधनाएं है ये एक महान तपस्वी हैं ये ऋषि बृहद हैं l
तो क्या ये सालों से तपस्या कर रहे हैं, श्री ने पूछा l
कृशव - नहीं सालों से नहीं बल्कि कई युगों से l
श्री ने पूछा - लेकिन किसलिए इनका लक्ष्य क्या है l
कृशव - लक्ष्य तो बहुत बड़ा है लेकिन वो सब तुम छोड़ो पहले मुझे भूख लगी है पहले मेरी खीर बनाओ l
श्री हाँ में सर हिलाती है और श्री झोपड़ी के अंदर जाती है तो देखती है अंदर कोई नहीं था वो चावल ढूंढ़कर लाती है और चूल्हे पर आग जलाती है फिर गाय के पास जाकर परेशान होकर बोली - अब दूध... ( वो गाय के सामने हाथ जोड़ती है और बोली ) हे गौ माता मुझे थोड़ा सा दूध चाहिए तो कृपया आप मेरी मदद करें l
उसके इतना बोलते ही वहाँ एक जादू होता है और एक घड़ा दूध का उसके सामने होता है श्री खुश हो जाती है और गाय को धन्यबाद बोल दूध लेकर वापस आ जाती है l
कृशव एक जगह बैठकर मुस्कराते हुए उसे देख रहा था श्री खीर बनाने लगती है उसने सारी सामग्री डालकर खीर तैयार की और फिर उसे कृशव के पास लेकर आती है और उसे देते हुए कहती है - लो बहुत मेहनत से बनाई है अब खाकर अपनी भूख शांत करो l
कृशव को उसे देख मुस्कराते हुए अश्रु आ जाते हैं वो मुस्कराता है और जैसे ही खाने वाला होता है श्री उसे रोक कहती है - रुको मुझे जाँच लेने दो पहले कैसा बना है l
जो खीर कृशव ने हाथ में ली थी श्री ने उसका हाथ पकड़ा और खीर खाने लगी l
कृशव उसे देख रहा था श्री ने अपना सर हिलाते हुए ही मतलब उसे इशारा किया अच्छी बनी है अब तुम खा सकते हो। कृशव खीर खाने लगा
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