कुछ देर बाद राजकुमारी भी अपने कमरे में आ गई.
राजकुमार ने कहा:-
"स्वर्णा कुमारी, तुम जादूगर को बातों में लगाकर उससे यह पूछना कि तुम्हारा जीव कहां है? यह तलवार से नहीं मर सकता. तुम पूछ कर मुझे बताना."
दूसरे दिन जब जादूगर आया तो राजकुमारी बोली:-
"अगर तुम्हारा दुश्मन तुम्हें मारने आ जाए तो.."
जादूगर हंसकर बोला:-
"मुझे कोई नहीं मार सकता. मैं अमर हूँ."
"ऐसी क्या खासियत है तुम में?"
राजकुमारी बोली.
"खासियत यह है कि मेरा जीव मेरे खुद में नहीं है."
"तो कहां है?"
राजकुमारी ने कहा:-
"मुझे आने-जाने का पूरा पता बताओ. क्या पता कोई शत्रु आपको मारने आए, तो मैं उसको मेरे वश में कर लूं. जिससे आप मरेंगे नहीं."
जादूगर राजकुमारी की मीठी-मीठी बातों में आ गया. वह कहने लगा,
"जहां मेरा खजाना है, उसके बाएं ओर एक दरवाज़ा है. उसे खोलने पर एक सुरंग है. वह सुरंग सर्पों से भरी पड़ी है. वह सर्प जादू के हैं. आगे रास्ते में बिच्छू फिर भयानक शेर है. इसके बाद वहां रास्ते में राक्षसों की नगरी है. उनसे बचकर कोई नहीं जा सकता. सुरंग के शुरू में एक चक्का है, वह हरदम फिरता रहता है. जो भी दरवाजा खोले तो पहले ही कट जाए. इन सब कठिनाइयों को दूर करने के लिए, बाबा जड़िक का मंत्र काम आता है या जड़िक की लाल मणि. मुझे तो जड़िक का मंत्र आता है. आगे सुरंग एक बाग़ में खुलती है. उस बाग में सोने के तने, चांदी की पत्ति और हीरे के फल वाले निरे ही पेड़ है. उनके बीचों बीच एक चंदन का पेड़ है. उसके तनों पर भयानक सर्प लिपटे पड़े है उस चंदन की शाखा पर एक सोने का पिंजरा है. उसमें एक तोता है. जिसमें मेरा जीव है."
जादूगर यह कहकर चला गया. राजकुमार के सामने, राजकुमारी ने जो-जो जादूगर ने कहा था, सुना दिया. राजकुमार ने कहा:-
"मैं अब उस तोते को लेने जा रहा हूँ. तुम इंतजार करना."
यह कहकर राजकुमार चल पड़ा, तहखाने की ओर.