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chapter 2 - महागुरु अनंत

चन्द्रावती इतनी जोर जोर चीख रही थी की पुरा युध छेत्र भी काप रहा था.... जब रेवती और शुक्ल ने चन्द्रा की चीखने की आवाज सुनी... तब...  वो भाग कर जल्दी दे उनके पास पोहोच गए.... ( रेवती और शुक्ल चन्द्रावती के अंग रक्षक  थे.... ) 

 

रेवती तुरंत चन्द्रा को पकड़ती है... और बोलती राजकुमारी सम्हाले आपने आप को... आपको सम्हलना ही होगा.....  आप यू खुद को टूटने नही दे सकती.. . . अब राजकुमार नहीं है राजकुमारी. . . समझे आप इस बात को. . . चन्दर्वती अपने सामने खड़ी. . रेवती को देखते हुए बोली. . .

 

तुम जानती क्या हो. . . वो हमे छोड़ के नही जा सकते. . उन्हे वापस आना होगा जिस तरह वो हर बार आते है उन्हे इस बार भी आना होगा. . . रेवती और शुक्ल को तो कुछ समझ मै हि नही आ रहा था की राजकुमारी केह क्या रही. . . . उन्हे लग रहा था की राजकुमार की मृत्यु के बाद वो अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठी है. . . . 

 

शुक्ल. . बोलता है. . राजकुमारी आपको बहोत चोट आई है चले आप. .... हम आपको अभी राज्वेद के पास ले कर चलते है.....  चन्द्रावती अपने जगहा से उठते हुए बोलती नही हमे इस वक़्त कही और जाना. . . . दोनो हेराणा हो कर चन्द्रावती को देखने लगते है... . 

 

देखे हमारे पंख कट चुके है. .   तो हम स्व्यम उतनी दूर नही चल सकते. . . हमे उस नीलगिरि प्रवत पर जान है. . . . पर्वत पर जाना है. . . परंतु राजकुमारी वो यहाँ से दो महासागर के उस और इस्थित है. .

 

  वहाँ जाना हम जैसे आम आयारो के लिए मुश्किल होगा. .   ( आयार और आयारा जादूगर या जिनके पास जदुइ शक्तिया होती है उन्हे केहते है ।. . .   ) हमे पता हैं. . . लेकिन आप जितना ना करे ये आप जैसे साधारण लोगो के लिए मुश्किल होगा. . . परंतु हमारे लिए नही. . . आप दोनो बस इतना बतय की आप हमे ले कर उड़ सकते है नही तो हम पैडल ही निकल सकते है. . .

 

   नही नही राजकुमारी आप ऐसा ना कहे हम दोनो आपको वाह ले जायेगे. . . बस चिंता ये है की हमे मार्ग नही पता. . .  रेवती ने चन्द्रावती को पकड़ते हुए कहा. . .  चन्द्रा अपने दर्द को सहन करते हुए बोली. . . कोई बात नही हमे पता है मार्ग  आप बस हमे उस दक्षिण दिशा की और ले चलिये. . . . उसके बाद शुक्ल ने चन्द्रावती को अपने पीठ पर बैठाया और आसमान की उड़ गया. . रेवती भी उनके पीछे पीछे उड़ गयी. . .

 

धीरे धीरे चन्द्रावती रास्ता बताते गई.. . वो लोग शाम होने से पहले ही नीलगिरि पर्वत पहोच गये. . . . . रेवती संबलहल कर चन्द्रावती को शुक्ल पीठ से उतरती है. . . . नीलगिरि पर्वत मे एक बहोत बड़ा सा गुफा दिखाई दे रहा था. . . . चन्द्रावती बिना की की और देखे और बोले. . . . अपने कदम उस गुफा की और बढ़ा देती हैं. . . .

रेवती और शुक्ल भी अपने कदम चन्द्रावती के पीछे बढ़ा देती हैं. . . जब वो सब गुफा तक पहुँचते है तो चंद्रावती रुक जाती है और शुक्ल और रेवती को अंदर आने से मना कर देती है. . . . दोनो कुछ केहना चाहते थे. . . . लेकिन चन्द्रावती उनसे. अपनी आखे दिखा कर केहती है. . . .

 

ये हमारा यानी राजकुमारी चन्द्रावती का आदेश है कि आप दोनो हमारे पीछे नही आयगे और अगर हम दो दिन तक गुफा से बहार नही आये तो आप दोनो यहाँ वापस मेहल चले जायेंगे. . . और अगर हमरे बारे मे पिता महाराज कुछ पूछे तो उनसे कहिएगा की हम यानी की राजकुमारी चन्द्रावती की मृत्यु युध छेत्र मे ही हो चुकी है. . . समझे आप. . .

 

आप हमे कसम दे की हमने जैसा कहा है वेसा ही आप दोनो करेगे. . . . वचन दे हमे आप. . . . इतना सुनते ही  रेवती और शुक्ल को तो मानो सपा सूंघ गया हो. . .  वो आखँ फाड़े बस उनके सामने खड़ी चन्द्रावती को देखे जा रहे थे. . .   उन्हे तो समझ मे ही नहीं आ रहा था की उनकी राजकुमारी ऐसा क्यों केह रही है. . . . 

 

शुक्ल केहता है. . .  नही राजकुमारी हम ऐसा नही केह सकते और ना हम आपको वचन दे सकते है. . . इसमे रेवती भी केहती है. जी राजकुमारी शुक्ल ब्लिकुल सही केह रहे है हम ऐसा नही कर सकते आप तो अभी जीवित है. .   ऐसा पाप हमसे नही होगा. . . हमे छमा कर दे. .  . .  आप दोनो को हमारी सोघन्द्..  . और एक भी सवाल नही इतना केह कर चन्द्रावती गुफा के अंदर चली जाती है. . . .

 

उसके आधे घाओ को शुर्यांश ने भर दिया था. .   जिसके कारण वो चल पा रही थी किंतु उसके पीठ से अभी भी खून का बहाव रुका नही था. . . .  रेवती और शुक्ल एक दूसरे को देखते रहेते है. . .   उन्हे तो समझ मे ही नही आ रहा था की उनको अब क्या करना चाहिए. . . . इधर गुफा के चन्द्रावती पहोच जाती हैं  .. .    उसके सामने एक बुजुर्ग बाबा बैठे हुए थे. . . उनकी सेफद रंग की पोशाक धारण की हुए थे और वो तापस्य की मुद्रा मे चटान पर बैठे हुए थे. . . . .

 

जैसे उन्हे चन्द्रावती के आने का पता था. . . . चन्द्रावती आते ही महागुर आंनत ने अपनी आखे खोल ली. . . . उन्होंने चन्द्रावती को देखते हुए कहा. . . आउ पुत्री मुझे तुम्हारी ही प्रतिकछा थी. . . . चन्द्रावती वती सीधे जा कर महागुरु के चरणो मे गिर गई. . . . और रोते रोते कहा. . . क्यों गुरुदेव. . . क्यों. . आखिर हम ही क्यों. . . हमारे साथ हर जन्म मैं ऐसा क्यों होता है. . .

 

हर बार हम जन्म लेते और हर बार वो हमसे दूर हो जाते है. . . . हमे ये मान्य नही गुरु देव. . . हमे ये मान्य नहीं. . . ये बोल कर वो रोये जा रही थी. . . . 

 

महागुरु चन्द्रावती को उठाते हुए बोले. . . उठो पुत्री . . . पहले तुम उठो. . . चन्द्रावती खड़ी हो जाती है. . . . गुरुदेव अनंत को अपनी भीगी आखो से देखने लगती है. . . . 

To be continued. . . . . . 

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chndrwati kis baare mein baat kr rhi hai.. .. kaisa janm kiska jnm. . or ye mahaguru aanat hai kon. . kyu aayi h chnderwati  . . mahaguru anant ke paas. . janane ke liye bane rhiye मेरे साथ. . . 

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