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एक कथा।

एक स्त्री जब भी जन्म लेती है उसकी व्यथा वही से शुरू हो जाती है। जन्म लेते ही लोग कोसने लगते है कि लड़की हुई है पहले माँ को फिर बेटी को। बड़ी हुई तो स्कूल कॉलेज में छेड़खानी जैसी बातों का सामना फिर थोड़ी बडी हो जाये तो माँ बाप को उसकी शादी की चिंता होने लागती है। जैसे तैसे शादी हो जाये तो फिर शुरू होता ज़िन्दगी सबसे बड़ा अध्याय या ये समझ लीजिए उसके होने का मतलब उसे समझाया जाता हैं, ये कहकर की स्त्री का तो जन्म ही इसीलिए होता है कि वो घर संभाले बच्चों को संभाले। और उसको कैद कर दिया जाता है इन ज़िम्मेदारियों की बेडियो में बावजूद इसके की एक स्त्री पूरी दुनिया जीतने की ताक़त रखती है ये समाज उसको सिर्फ घर मे बांध के रख देता है।

एक स्त्री को कब तक हम कम आंकते रहेंगे कब तक हम ये ही मानते रहेंगे की स्त्री सिर्फ घर ही चला सकती है बाहर की दुनिया उसके लिए नही है। इस बदलाव की शुरुआत सिर्फ एक जगह से हो सकती है और वो जगह है उसके मा बाप के घर से। अगर हर वो व्यक्ति जिसके घर में बेटी है बेहन है वो ये ठान ले कि पहले इनको सशक्त बनाना है उसके बाद ही इनको ससुराल भेजना है तो शायद हम इस सामाजिक सोच को बदल सकते है। दूसरी पहल उनको करनी है जिनके घर लड़का है भाई है उन्हें हम ये शिक्षा दे कि हमे हमारी स्त्री को कैसे निखारना है कैसे उनकी तरक्की में उन्हें साथ देना , हम उन्हें ये सिखाये की वो भी एक इंसान है उसको भी पूरा हक़ है अपने जीवन का हर फैसला खूद करने का। आपकी जीवनसंगिनी होने का या बहन होने का ये अर्थ नही की आप उसपर अपना हुकुम चलाये और उसको हर चीज़ से दूर रखें जो आपको पसंद नहीं।

आजकल हम देखते हैं स्त्रियों में एक बीमारी बोहत बढ़ गई ह जिसका नाम है थाइरोइड। क्या आप सब इसकी वजह जान सकते हैं बोहत बड़ी एक वजह है stress और depression। जिसके लिए कही न कही हमारे समाज की बेड़िया है क्योंकि आज की स्त्री खुद को आज़ाद देखना पसंद करती है ना कि चूल्हे चोके में ।

बोहत सी व्यथा होते हुए भी हम स्त्रियां मुस्कराहट के साथ जीवन व्यतीत करती है क्योंकि हम बोहत मजबूत होते है। जीवन मे कई प्रकार के समझौते करते हुए सबको खुश रखने की इच्छा रखते हुए अपनो का अपमान सहते हुए भी कही न कही हम अपने आप को उस माहौल में ढाल लेती है जहाँ हमारा कोई नही होता ना दीवारे ना इंसान । बस दिल के एक कोने में अपने सपनो को दबाये हुए एक ऐसी धारणा में जीती चली जाती है कि हम बने ही सेवा के लिए है। कोई हमे हमारी शक्ति से परिचय नही होने देता क्योंकि सबको डर है कि अगर स्त्री आगे बढ़ गई तो हमारा खयाल कौंन रखेगा और हमारे काम कौन करेगा।

दोस्तो ज़िन्दगी का नाम एक दूसरे की टांग खीचना नही है बस एक दुसरे का साथ निभाना है। हम एक दूसरे को स्त्री पुरुष ना समझ कर इंसान समझे तो काफी हद तक इस दूरी को कम किया जा सकता है।

ये मेरी लिखी हुई पहली छोटी सी कहानी है। अगर आप सबको अच्छी लगे तो कृपया लाइक करें और कुछ गलतियां हो तो अपनी राय भी ज़रूर दे।

धन्यवाद।।