गुरु जी हवन के आगे बैठ कर हवन कर रहे थे राम्या की मां अंजन गुरु जी के चरण में गिर कर रो रही थी तभी गुरु जी कुछ सोच कर कहे," देखो पुत्री मैं तुम्हारे बालक को इस श्राप से मुक्त तो नही कर सकते परंतु मैं अपने प्रभु से प्रार्थना करूंगा की राम्या को शक्ति मिले!." अंजन गुरु जी की बात सुन कर रोते हुए अपना मगज़ गगनस्पर्शी कर के गुरु जी को देखने लगी, तो गुरु जी फिर से कहे," पुत्री आप अब जल लेकर आओ मेरे साथ बैठ कर प्रार्थना करो, दृढ़ शिष्य का परीक्षण होगा!." अंजन गुरु जी की शब्द सुन कर आश्चर्य से पूछी," परंतु कैसा परीक्षण गुरु जी!." गुरु जी अंजन की बात सुन कर कहे," यदि जो प्रजित हुआ उसको इस आश्रम से बाहर किया जायेगा, अर्थात जो विजय होगा उसे शक्ति साली बाण दिया जायेगा, अर्थात यदि कोई शिष्य विजय नही हुआ तो उस बाण को ब्रम्हा जी को शॉप दिया जायेगा!." राम्या की मां अंजन गुरु जी की आज्ञा मान कर वही से एक लोटियां उठा कर जल लाने के लिए चल दी, गुरु जी वही पे फिर अपनी आंख बंद कर के मंत्र पढ़ने लगे,"
ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः स्वाहा ।
ॐ श्री गुरुभ्यो नमः स्वाहा ।
ॐ इष्टदेवताभ्यो नमः स्वाहा ।
ॐ कुलदेवताभ्यो नमः स्वाहा ।
ॐ ग्रामदेवताभ्यो नमः स्वाहा ।
ॐ वास्तुदेवताभ्यो नमः स्वाहा ।
ॐ स्थानदेवताभ्यो नमः स्वाहा ।
ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः स्वाहा ।
ॐ उमामहेश्वराभ्यां नमः स्वाहा ।
ॐ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः स्वाहा ।
ॐ शचीपुरन्दनाभ्यां नमः स्वाहा ।
ॐ मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः स्वाहा ।
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः स्वाहा ।
ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः स्वाहा ।
फिर गुरु जी जब अपना आंख खोले तो उस आग में श्री राम चंद्र यों बजरंग बल्ली जो राम जी की चरण में गिर थे वो दोनो चेहरा दिखने लगा, परंतु गुरु जी के सिवा कोई और नहीं देख सकता था, गुरु श्री राम चंद्र यों बजरंग बल्ली को देख कर प्रणाम किए, श्री राम चंद्र गुरु जी को आशीर्वाद देकर इतमीनान से पूछे," हरिदास बोलो क्या बला है!." गुरु जी राम जी और बजरंग बल्ली को देख कर कहे," प्रभु मैं अपने शिष्य का निरीक्षण करना चाहते है, अर्थात अपना विकल्प रख सकते है!." राम जी गुरु जी की वाक्य सुन कर कहे," परंतु मैं कैसा निजी पसंद रख सकता हूं, अर्थात आप जो चाहे परीक्षण कर सकते है!." गुरु जी राम जी शब्द सुन कर कहे," परंतु आप मेरे परमेश्वर है, आपके आज्ञा के अतिरिक्त ये आलोचन करना भूलयुक्त है, अर्थात स्वतः स्वकीय वाक्य रखिए प्रभु!." श्री राम चंद्र गुरु जी शब्द सुन कर कहे," यदि आप अपने शिष्य का निरीक्षण करना चाहते है तो, आप अवश्य कर सकते है, अर्थात शिष्य का परीक्षण लेना तो समुचित है!." गुरु जी श्री राम चंद्र की देखते हुए दोनो हाथ जोड़ कर प्रणाम किए, श्री राम चंद्र गुरु जी को आशीर्वाद देकर वहा से बजरंग बल्ली के साथ चले गय, तभी एक ऋषिमुनी गुरु जी के पास आकर इत्मीनान से कहे," गुरु जी परीक्षण का सब तैयारी हो चुका है, आपकी आज्ञा हो तो सुरू करते है!." गुरु जी वहा से उठ कर जैसे ऋषिमुनी के साथ चलने को चाहे तभी अंजन अपने हाथ में जल लेकर गुरु जी से कही," गुरु जी ये जल का क्या करे!." गुरु जी अंजन की बात सुन कर कहे," पुत्री ये जल लेकर चलो मेरे साथ, परीक्षण का अवकाश आ चुका है!." इतना कह कर गुरु जी, ऋषिमुनी और अंजन दोनो परीक्षण अस्थल पे चल दिए थे, साथ में राम्या भी जा रहे थे, उस परीक्षण अस्थल में तय शिष्य मौजूद थे, परीक्षण अस्थल पहुंचने के बाद गुरु जी अपने एक ऋषिमुनी से कहे," युद्ध का आरंभ किया जाए!." सारे शिष्य को एक लाइन से खड़ा कर दिया गया था, और सारे शिष्य से 1 km के अवकाश पे अशोक चक्र लगा था, उस अशोक चक्र पे धनुष को छोड़ ना था, जिसका धनुष अशोक चक्र के दरम्यान के कर्नेल से अलग लगा वो आश्रम से बाहर जायेगा, अर्थात जिसका धनुष उस अशोक चक्र के माँझ के कर्नेल पे लगा वो विजय होगा, गुरु जी अपने सारे शिष्य को ध्यान से देखने के बाद एक शिष्य पे नजर पड़ा, गुरु जी वो शिष्य को इतमीनान से कहे," पुत्र जाओ और अपना परीक्षण दो!." वो शिष्य गुरु जी का आज्ञा मान कर और उस अशोक चक्र के सामने एक गोला था जिसको गुरु जी बनाए थे उस गोला में जाकर खड़ा हो गया, उस शिष्य का उम्र राम्या से एक साल बड़ा था, वो शिष्य अपना धनुष तान कर उस अशोक चक्र की तरफ छोड़ दिया, वो बाण जाकर सीधा अशोक चक्र के मध्य पे लगा, और सारे ऋषिमुनी और गुरु जी खुश हो गाय, फिर गुरु जी अपने दूसरे शिष्य के तरफ देखे और इतमीनान से कहे," पुत्र अब तुम्हारा वक्त, जाओ और अपना परीक्षण दो!." वो दुसरा शिष्य भी जाकर उसी गोला के बीच खड़ा हो गया, इस शिष्य का उम्र भी राम्या से एक साल बड़ा था, दूसरा शिष्य भी अपना धनुष को तान कर अशोक चक्र की तरफ छोड़ दिया, वो बाण जाकर अशोक चक्र के बीच कर्नेल पे लगा, और फिर से सारे ऋषिमुनी और गुरु जी देख कर खुश हो गाय, फिर से गुरु जी अपने तीसरा शिष्य के तरफ नजर घुमा कर देखे, तभी एक ऋषिमुनी कहे," गुरु जी, इसे नही इससे भेजा जाय!." ऋषिमुनी जैसे उस शिष्य के तरफ अपना हाथ बढ़ाए वो शिष्य अपना नजर अधोभाग कर के देखने लगा और थर थर कांपने लगा, परंतु गुरु जी और ऋषिमुनी को पता नही चल पा रहा था, गुरु जी जैसे उस शिष्य के पास जाकर कहे," पुत्र जाओ अब तुम्हारा वक्त है अपना परीक्षण दो!." वो शिष्य अपना सर अधोभाग कर के चुप चाप नीचे की तरफ देखे जा रहे थे, तभी वो ऋषिमुनी उस शिष्य के पास आकर पूछे," पुत्र क्या हुआ जाओ और अपना परीक्षा दो!." वो शिष्य गुरु जी को नही देखा और अंदर से डर भी रहा था, वो शिष्य वहा से उस गोला में जाने को चला, फिर कुछ सोच कर वापस गुरु जी के पास आकर चरण में गिर गया और रोने लगा, राम्या भी ये देख कर डर गया था,
to be continued...
क्या होगा इस कहानी का अंजाम, वो शिष्य क्यू डर गया और गुरु जी के चरण में आकर क्यू रोने लगा, साथ ही राम्या भी डर गया था परंतु क्यू जानने के लिए पढ़े " RAMYA YUDDH"