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यादें

जैसे दिन बीतते जाते हैं, यादें बनती जाती हैं। कितनी प्यारी यादें थी - सखी सोच रही थी। वही सुबह वही शाम , रात और वही सब ।सोच ही रही थी की फोन बजा ,सखी ने सोचा इतनी सुबह कौन कर रहा होगा फोन।दौड़ के फोन को उठाया ।हेलो! हेलो! कौन है चुप क्यों हो ।वहां से कोई आवाज नहीं आई। नहीं बोलना, तो फोन क्यों करते हो ।प्लीज परेशान मत करो।जैसे ही फोन का रिसीवर रखना चाहा , तभी सुनाई दी सांसों की आवाज।सखी रुक गई। उधर से आवाज आई ,हेलो!जरूर सखी आवाज को बहुत अच्छे से जानती थी। आवाज सुनी आई हेलो । मैं काशी बोल रही हूं । सखी ने उत्तर दिया हां ,मैं पहचान गई और बताओ कैसी हो। काशी ने उत्तर दिया ठीक हूं तुम बताओ और घर गृहस्ती कैसी चल रही है। सखी ने उत्तर दिया सब ठीक है। घर गृहस्ती ऐसी जैसी सबकी होती है ,ठीक ही चल रही है। तुम बताओ काशी ने कहा- कुछ भी नहीं। हां, कुछ दिनों के लिए यहां आई थी तो सोचा अपने कुछ पुराने दोस्तों से मिल लूं। सखी ने व्यंग्यात्मक तरीके से जवाब दिया, इतने सालों बाद दोस्त ठीक है अच्छा है की याद आई,और बताओ किस काम से आई हो। शादी की या नहीं। काशी ने कहा नहीं ,शादी तो नहीं की। हां यहां मैं अपने किसी बिजनेस के सिलसिले में आई हूं ।सखी ने बीच में ही टोकते हुए कहा -अच्छा बिजनेस क्या कर रही हो ? आजकल कौन सा बिजनेस करती हो ?ऐसा लग रहा था मानो सखी बड़े गुस्से में हो और कटाश मार रही हो।

काशी ने कहा मिल कर बताती हूं।अभी तो आई ही हूं।

सखी मन ही मन सोच रही थी,आज भी नहीं बदली उतनी ही सरल उतनी ही शांत और जवाब दिया ठीक है कल मिलोगी।काशी ने कहा कल किसने देखा है आज मिल लेते हैं। काशी ने उसे होटल बुलाया जहां वो ठहरी थी।

सखी ने फौरन हां कह दी।मन में दोस्ती की उमंग उठने लगी और जल्दी ही वो अपनी सासू मां को बोल कर पहुंच गई काशी के होटल।

रिसेप्शन पर पूछने पर पता चला कि को कमरा नंबर ३०१ में ठहरी है। वहां पहुंच कर उसने दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खुला,सखी काशी को देख कर स्तंभ रह गई मानो उसमें जान ही न हो।

सखी ने कहा काशी ये तुम हो , तुम कितनी अलग लग रही हो।कहां तुम सीधी सादी चश्मा पहने वाली ,तेल लगा कर चुटिया बनाने वाली लड़की थी। आज .....आज ...आज तो मुझे शब्द ही नहीं मिल रहे।तुम तो बिल्कुल राजकुमारी लग रही हो।काशी शर्माकर बोली, थैंक्स।लेकिन तुम्हे क्या हुआ।क्या थी और आज ये क्या सारी, चप्पल,घरेलू लड़की।सखी ने बात टालते हुए कहा अरे कुछ नहीं,घर के कामों से फुरसत ही कहां मिलती थी लेकिन अभी अभी मैंने नौकरी ज्वॉइन की है,हो जायेगा फिर बदलाव। तू बता और क्या बिजनेस कर रही है।यहां कैसे इतने सालो बाद कॉलेज के लास्ट दिन के बाद न कोई कॉल,न कोई अता पता,अचानक ।

हां बस बताती हूं अपनी कहानी भी।अभी कुछ खा ले।काशी ने खाना ऑर्डर किया । दरवाजा खटखटाने की आवाज़ आई खाना आ गया था। दोनों खाना कहने में मशगूल हो गई।