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Ch 1 - पहली मुलाकात ❤

इंटरवियेवेर-  आपके बारें में काफी बातें हे की , आपको जो असल जिंदगी में अनुभव हुआ हें । या  आपके साथ बिता हें, आप वही बातें अपनी कहानियों में बयाँ करते हैं । इसमे कितना सच हे ओर झूठ हें ।

अभिलाश- हा यह ज्यादा हद तक सही भी हें, ओर ज्यादा हद तक नही भी । पर मेरी ज्यादातर कहानियाँ मैं वही लिखता हूँ जिन्हें मेने खुद जिया हें ,

जेसे मेरी नयी कहानी अभी-लीसा ।यह उन दो शक़्क्ष की कहानी हें,

जो मेने जी हें, मेने देखी हें मेने महसूस की हें । हम खुदा को अक्सर अपनी बद्क़िस्मती के लिये कोस्ते हें,पर कभी वो उन् शक़्क्ष को हमारे पास भेजता हें जिन से हम जीना सीखते हें ।

इंटरवियेवेर - आपने यह बात भी सही कही हें  क्या हम आप से आपकी कहानी सुन सकते हैं ?

अभिलाश- क्यू नही ,अभिलाश गहरी सांस लेते हुए कहानी शुरु करता हें ।

बरसात का मौसम्ं ,

ज़ोरो से बारिश हो रही थी ओर उसी बारिश में स्कूल से एक लड्की  आ रही थी, करीबन 17 साल की ,अपनी धुन मे बैग टाँगे हुए छाता लिये हुए । उसका नाम लीसा ,उसका चेहरा एसा था की जेसे उसके चेहरे से जहा रोशन होता हो , ओर तभी एक कार वाला पानी में  जोर से गाडी  ले जा के उसपे कीचड़ उछाल देता हे । ओर लीसा का चेहरा कपड़े सारे गंदे हो जाते हें ।

कुछ दुर् में एक लडका लग भग उसी की उम्र का उसे दूर से देख लेता हें । ओर उसके पास भाग के जाता हें ओर उसे अपना रुमाल देता हे।

कहता हें यह लो इस से तुम अपना चेहरा साफ कर लो ।

ओर लीसा भी झीझक्ते हुए उस से रुमाल लेती हें ओर वहा से चले जाती हैं ।

वो लडका सोचता हें, इसने तो थैंक्स भी नही कहा  , पर खैर

लीसा खुश थी की किसी ने उसकी मदद की,

वो घर पहोचती हें ओर अपने घर वालो को सब बात बताती हें ।

उसके पिता कहते हें बेटा क्या तुमने उस लडके को थैंक्स बोला?

लीसा कहती हें यह तो में भुल ही गई।

उसके पिता कहते हें,अगर वो तुम्हे दुबारा दिखे तो उसे थैंक्स ज़रूर कहना । वो जी में जवाब देती हें ।

फ़िर लीसा शाम को अपने कमरे में पढ़ने जेसी बेठ ती हें,

तो उसे उस लडके का दिया हुआ रुमाल याद आता हें।

वो रुमाल अपनी स्कूल की ड्रेस में ढूंडती हें ओर उसे मिल जाता हें,

उसमे नाम लिखा था (अभी)

वो एक मुस्कान के साथ  यू ही कहती हें (लीसा-अभी) (अभी-लीसा),

ओर उसके रुमाल को साफ करके रख देती हें  ताकी अभी के मिलने पर उसे रुमाल वापस कर सके ।

ओर फिर अगले दिन वो स्कूल के लिये उठतीं हें,ओर स्कूल के लिये चले जाती हैं।

जेसी वो स्कूल पहुच्ती हें ओर अपनी क्लास में बेठ ती हें, उसे अपनी च्लास के बहार 'अभी' दिखता हें ।

वो शॉक भी होती हें ओर खुश भी ।

लंच होता हे लीसा 'अभी' के पास जाती हें  ओर कहती हे 'हाय'

वो भी उसका जवाब देता हें, लीसा कहती हें थैंक्स तुमने जो मेरी मदद की ओर उसे उसका रुमाल वापस कर रही होती हें की,

अभी कहता हें इसे तुम रख लो ओर जेसे ही वो वहा से जा रहा होता हें ।

लीसा कहती हे मेने तम्हें पहलें कभी यहा नही देखा,तुम नये हो यहा।

अभी कहता हे हा मेरे पापा आर्मी में हें तो ट्रांसफर में आए है।

लीसा कहती हें अच्छा ,

ओर कहती हें तुम लंच लाये हो ।

अभी कहता हें हा , क्यू  ना हम साथ लंच करे ?

लीसा की दिल की बात अभी कह देता है,

लीसा केहती हें क्यू नहीं ।

वो दोनो लंच करते-हें,ओर 'अभी' कहता हें ।

तुम पहली शक़्क्ष हो जिसके साथ में लंच कर रहा हूँ,

बातें कर रहा हूँ ।

मेने कभी ना दोस्त बनाए ना कभी बने ।

लीसा कहती हें नये हो शायद इस लिये , बाद में बन जाएंगे।

'अभी' मुस्कुराके कहता हें -उमीद यहीं हें ।

वो दोनो स्कूल की छुट्टी होने के बाद साथ घर जातें हे,

उस से लीसा पूछतीं हें , इस से पहले तुम किस शहर में रहते थे।

'अभी' कहता हें मसूरी में ओर कहता हें वहा की बात ही अगल थी,जब वहा बारिश होती थी तो बादल ज़मीन पर आते थे पता हें ।

'अभी' कहता हें मसूरी से थोडा दूर उसका अपना घर भी हें देहरादून में जहा उसके दादा दादी,चाचा चाची रहते हें ।

ओर वो चाहता हें की वो आगे की पढ़ाई भी वही से करे ।

लीसा झूठी हसी के साथ कहती हे- यह भी बड़ीया हें,

वेसे तुम यहा से भी अपनी पढ़ाई कर सकते हो।

अगर तुम चाहो, यहा भी हें अच्छे कॉलेज,

'अभी' मुस्कुराके कहता हें देखतें हें ।

वो कहतें हें ना जब महोब्बत का आगाज हो तो

दोनो ही वाकिफ़ होते हें ओर एसा ही माहोल था उस वक़्त ।

लीसा कुछ ना कहतें हुए भी सब कह रही थी,

उसकी बातो में महोब्बत झलक रही थी।

पर 'अभी' इसे अपना वहम ही समझ रहा था ।

लीसा बोलती ही इतना प्यारा थी की उसकी बातों की आदत

लग जाना किसी के लिये बड़ी बात नही थी , उसे देख के भुल जाना इतना असान नहीं,

फिर अगले दिन,

आज धूप काफी तेज हें, ओर लीसा अपने घर से निकलती हें ओर बस स्टैंड में  रुक जाती हें ।

वो 'अभी' का इन्तजार कर रही थी,की वो कब आये,

ओर उसके साथ वो स्कूल जा सके ।

उसे 'अभी' दिखता हें ओर लीसा के चेहरे पर मुस्कान, वो उसे 'हाय' करती हें ओर स्कूल जल्दी चलने के लिये कहती हें ।

वो कहतीं हें हम काफी लेट हो गये हें ,

'अभी' कहता हें बस में चले आज।

बस आती हें वो दोनो बस में बेठ जातें  हें,

वो रोज अक्सर साथ ही स्कूल से आते थे ओर साथ ही स्कूल जातें थे।

1-2 महीने में वो इतने अच्छे दोस्त बन गये की उन्हें एक दूसरें की पसंद ना पसंद तक भी पता थी ।

वो खुश थे,

वो कहतें हें ना जब रब खुशियाँ देता हें,

तो इतनी देता हें की सभल्ती नहीं हें।

एक शक़्क्ष वो भेजता हें एसा,

जिसकी सोच तुम्हारे लिये कभी बदलती नहीं हें ।

वो शायद थे एक दूसरें की महोब्बत में पर ना

लीसा ने 'अभी' को कुछ कहा था ना 'अभी' ने लीसा को।

उन्हें अब एक दुसरे के साथ वक़्त बिताना अच्छा लगता था,

वो अक्सर एक दूसरें की बातों पर हस्ते मुस्कुराते रहते थे ।

उन दोनो के खयाल एक दुजे से मिलते थे,

ओर यह काफी था  ।

फिर कुछ दिन बाद उन्के 11 के फाइनल पेपर भी नज़दीक आ रहें थे,

वो दोनो पड़के, अपने अच्छे से पेपर देते हें ।

पर जब रिजल्ट आता हें तो लीसा देखती हे वो पास तो हो गयी हें पर उसके मार्क्स कम आए हें ।

वो रिजल्ट अपने पापा को दिखाती हें, उसके पापा कहते हें

तम्हें पता हें तम्हें क्या बना हें जिन्दगी में।

इस से ज्यादा में कुछ नही कहूँगा,

लीसा डॉक्टर बना चाहती हैं, उसका बचपन से यही सपना भी रहा है।

उसके पापा उसका बेस्ट कोचिंग सेंटर में ऐडमिशन कराते हे।

जहा से उसको मदद मिले पड़ने में ओर अपना सपना पुरा करे।

अब लीसा सिर्फ स्कूल में ही अभी से बात करती थी ओर वहा से कोचिंग । 'अभी' स्कूल जाता-आता भी अकेला था ।

वो चाहता था वो उसके साथ रहें,

वो बहुत सोचता हें वो क्या करे जिस से,

लीसा से मिल पाये।

वो सोचता हें क्यू ना में भी कोचिंग लगवा लू।

पड़ भी लूंगा ओर लीसा से मिल भी लूंगा ।

ओर ऐडमिशन लेके उसके  साथ आ जाता हें ।

लीसा खुश हो जाती उसे वहा देख के

ओर 'अभी' को कहती हें तुम पागल हो,

'अभी' कहता हें एसा क्या किया मेने

लीसा कहती हें तुम्हे सब पता हें ।

कुछ दिनो में अभी का जनम-दिन था,

वो लीसा को कहता हे पार्टी शाम की हें

तूम ज़रूर आना।

लीसा कहती हें अगर पापा भेज दे तो ज़रूर ।

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