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chapter no 2

भाग 2

पढ़ाई की है या नहीं की है तूने मैं भी उनसे सच तो क्या बोलता मगर इतना कह देता हूं हां मैंने तैयारी की है और मैं आ जाता हूं। घर पहुंचने में अगर दिन में जाए तो पूरा दिन लग जाता। और अगर रात में सफ़र किया जाए तो पूरी रात। वैसे मेरे पास एक अच्छा रास्ता था।

क्योंकि सीकर से एक सीधी बस थी स्लीपर जिसमें टिकट खरीदो और जाकर सो जाओ और सुबह आराम से अपने घर पर उतर जाओ। वह शाम को 7:00 बजे से चलती और सुबह 5:00 बजे अपने शहर में उतार देती।मैंने पापा को बोला कि मैं उसी बस से आ जाऊंगा।

उन्होंने कहा ठीक है मगर एक दिन पहले आ जाता वह ज्यादा अच्छा रहता। मैं फिर भी लापरवाही कर रहा था इसीलिए मैंने जिस दिन पेपर था उसे एक दिन पहले जाना ही ठीक समझा। मैंने टिकट कटवाई और शाम को बस में जाकर आराम से सो गया। और सुबह घर पर जाकर उतर गया। मुझे मेरी दीदी ने एक सीरीज पहुंचाई थी। मैंने उसे बस थोड़ा बहुत खोल कर देखा था। मगर इतना कुछ समझ में नहीं आया।

इसीलिए जब सुबह मैं अपने घर पर पहुंच गया था तब मैंने वह सीरीज ली और उसको पढ़ना चालू कर दिया एग्जाम से बस थोड़ी देर पहले दिमाग तो ऐसे चलता है जैसे 24 कैरेट सोना होता है कुछ भी पढ़ो वह साथ की साथ दिमाग में फिट होता जाता है कुछ भी इधर-उधर नहीं जाता बस टेंशन होती है तो पेपर की। और पेपर से रिलेटेड सवालों की।  मुझे ऐसे लग रहा था जैसे मैं सीरीज के एक-एक पेज को बस पढ़ते ही याद करता जा रहा हूं।

मुझे बस पेपर ही दिख रहा था इसीलिए मैं सीरीज को जल्दी-जल्दी पढ़ता जा रहा था। वैसे RSCIT कोर्स में इतनी मुश्किल भी नहीं है उसका एग्जाम बिल्कुल साधारण सा होता है। और डेली लाइफ से जुड़े हुए सवाल उसमें आते हैं। अगर कोई ना भी पढ़कर जाए तो भी उस एग्जाम को आराम से पास कर ले। बस उसको थोड़ी सी टेक्नोलॉजी की जानकारी होनी चाहिए। मगर मैं तो बस उसको पढ़े ही जा रहा था पढ़े ही जा रहा था।

मुझे तो अभी तक अपना प्रवेश पत्र भी नहीं मिला था। ना मुझे यह पता था कि मेरा पेपर कहां पर लगेगा। और ना ही मुझे मेरा रोल नंबर याद था। जब पेपर का टाइम हुआ उस से एक घंटे पहले मैं देखता हूं। कि मेरा पेपर का जो सेंटर था। वह ज्यादा दूर नहीं है पास ही है। मैं अपने घर से निकलकर सेंटर तक पहुंच गया था। और एडमिट कार्ड लेकर गया था साथ में और बस एक पेन और एक आईडी कार्ड बस फिर क्या था पापा ने मुझको जहां पर सेंटर था वहां छोड़ दिया।