2010 में, सैली और भास्कर छोटे बच्चे थे, जो जीवन की राह पर नन्हें कदमों से चलना सीख रहे थे। वह दोनों पहली बार स्कूल के खेल के मैदान में मिले थे और धीरे-धीरे अच्छे दोस्त बन गए। भास्कर के दिल में बचपन से ही प्रेम का सागर उमड़ रहा था, और सैली उसकी उस भावना की साक्षी बन चुकी थी। वह दोनों एक-दूसरे के साथ समय बिताने लगे, मानो उन्हें सांसों की जरूरत नहीं थी, बस एक-दूसरे के प्यार की। वह दोनों उस गहरे सागर में जीवित थे, जहां एक-दूसरे को सांसे देकर जिन्दा रह रहे थे.
एक दिन, वह समुद्र की ओर देख रहे थे। उनकी आँखों में जीवन के सुख की चमक थी। घर पर रहकर भी वे प्रकृति के हर कोने में अपने प्रेम की गहराई को महसूस कर रहे थे। उनका प्यार इतना गहरा था कि खोजने पर भी कोई उन्हें अलग नहीं कर सकता था। उनके जीवन में एक और खास दोस्त था - मुकुल। मुकुल एक वैज्ञानिक थे, जो उनसे करीब 16-17 साल बड़े थे। वह हमेशा एक्सपेरिमेंट्स में व्यस्त रहते थे और दिन-रात किसी न किसी प्रयोग में डूबे रहते थे। वह अपने काम में इतने मशगूल रहते कि किसी से बात तक नहीं करते थे और घर से बाहर भी नहीं निकलते थे। लेकिन, एक दिन उनके और सैली के बीच एक किस्सा घटा जिसने उनकी दोस्ती को जन्म दिया।
एक बार सैली सड़क पर साइकिल चला रही थी, वह अकेली थी और तेजी से साइकिल चला रही थी। सड़क पर कुछ रेत बिखरी हुई थी, जिससे उसकी साइकिल फिसल गई और वह नीचे गिर गई। उसका हाथ छिल गया था, और बायाँ टखना टूट गया था। वह बहुत दर्द में थी और जोर-जोर से "माँ" कहकर रो रही थी। मुकुल का घर वहीं पास में था और सैली की चीख सुनकर वह तुरंत बाहर आ गए। उन्होंने सैली की मदद की, उसकी साइकिल उठाई और उसे घर ले गए। मुकुल ने उसके छिले हुए हाथ और चोटिल घुटने पर पट्टी बांध दी। सैली कुछ देर वहीं बैठी रही, मुकुल ने उसे चिप्स खाने के लिए दिए। सैली ने उन्हें खाया और घर चली गई। उसने भास्कर को सारी बातें बता दीं। इसलिए, भास्कर भी मुकुल से मिलना चाहता था और एक बार थैंक यू कहना चाहता था। दोनों ने मुकुल से मिलने का फैसला किया।
अगले दिन मुकुल अपने घर में एक मशीन पर काम कर रहे थे, तभी किसी ने दरवाजे की घंटी बजाई। उनके घर कोई नहीं आता था, इसलिए वह सोच में पड़ गए कि घंटी कौन बजा सकता है। उन्होंने दरवाजा खोला, लेकिन वहां कोई नहीं था। दरवाजे के सामने एक बॉक्स पड़ा था। मुकुल ने बॉक्स खोला तो उसमें बिस्किट के टुकड़े और चॉकलेट थीं। उन्होंने चारों ओर देखा और सैली और भास्कर को एक पेड़ के पीछे छिपे देखा। मुकुल की नजर उन पर पड़ गई और वह तुरंत उनके पास गए। उन्होंने दोनों से कहा, "तुम दोनों मेरे घर आओ।"
सैली और भास्कर मुकुल के घर गए। मुकुल ने उन्हें बॉक्स से चॉकलेट और बिस्किट दिए।
"बताओ, ये चॉकलेट और बिस्किट तुम दोनों ने लाए हो?" मुकुल ने पूछा।
"हाँ," दोनों ने एक साथ कहा।
"क्यों?" मुकुल ने मुस्कराते हुए पूछा।
और फिर सैली और भास्कर ने मुकुल को अपनी मासूमियत और सच्ची भावनाओं से भरपूर कहानी सुनाई। मुकुल उनकी बात सुनकर हँस पड़े और उनकी मासूम दोस्ती की गहराई को समझते हुए उन्हें अपने जीवन में शामिल कर लिया। उनके बीच की यह दोस्ती एक नई दिशा की ओर बढ़ चली, जहां विज्ञान और बचपन का मेल एक अद्भुत कहानी का सूत्रपात कर रहा था।
"क्योंकि कल आपने मेरी गर्लफ्रेंड की मदद की थी।" भास्कर ने अपनी मासूमियत से कहा।
"क्या यह तुम्हारी गर्लफ्रेंड है?" मुकुल ने आश्चर्य से पूछा, उसकी आँखों में एक हल्की मुस्कान तैर गई।
"हाँ," भास्कर ने गर्व से उत्तर दिया।
"तुम दोनों किस कक्षा में हो?" मुकुल ने बच्चों की जिज्ञासा को देखते हुए पूछा।
"हम नौवीं में हैं। अंकल, आपका नाम क्या है?" भास्कर ने संकोच करते हुए पूछा।
"अंकल नहीं, तुम मुझे मुकुल बुलाओगे," मुकुल ने प्यार से कहा।
"लेकिन आप हमसे बड़े हो," सैली ने थोड़ी झिझक के साथ कहा।
"मैं अब तुम्हारा दोस्त हूँ। इसलिए तुम दोनों मुझे अपना मित्र समझो।" मुकुल ने भास्कर की ओर देखते हुए कहा, "तुम अपने दोस्तों को नाम लेकर बुलाते हो, इसलिए मुझे भी नाम से बुलाओ।"
"नहीं अंकल, मैं एक दोस्त को उसके पिता के नाम से बुलाता हूं। आपके पिता का नाम क्या है?" भास्कर ने जल्दी में कहा।
"उन्हें उनके नाम से बुलाओ। वे बड़े हैं।" सैली ने गुस्से में कहा।
"ठीक है, मुकुल," भास्कर ने उनकी तरफ देखा और धीमी आवाज में कहा।
यह देख मुकुल हसने लगा।
सैली और भास्कर वहां से निकल गए, लेकिन उसके बाद कभी-कभी वह मुकुल के घर जाने लगे। मुकुल हमेशा कुछ न कुछ काम कर रहा होता। दोनों के आने के बाद वह उनके लिए चाय बनाता, और फिर वे चाय पीकर निकल जाते। धीरे-धीरे यह उनकी आदत बन गई। दोनों हर रोज जाने लगे, लेकिन जब भी वे जाते, मुकुल या तो मशीन पर काम कर रहा होता या नई मशीन बना रहा होता। मुकुल दिन-रात उसी पर काम करता रहता था।
एक दिन, मुकुल काम करते-करते बहुत थक गया था, इसलिए वहीं पर सो गया। उस समय सुबह के 4 बजे थे। उस कमरे की एक दीवार पर उसके माता-पिता की तस्वीर लगी हुई थी। उस फोटो पर एक हार चढ़ा हुआ था, जिससे साफ था कि उसके माता-पिता इस दुनिया में नहीं थे। मुकुल का कोई भाई-बहन नहीं था और वह उस घर में अकेला था। उसका घर छोटा था, जिसमें दो कमरे थे। पहला कमरा हॉल था, जबकि दूसरा कमरा बेडरूम। वह हमेशा हॉल में कुछ न कुछ काम करता रहता था, कोई मशीन बना रहा होता, लेकिन सैली और भास्कर को समझ नहीं आता था कि वह कैसी मशीन बना रहा है।
उसी दिन सैली और भास्कर उसके घर गए। मुकुल गहरी नींद में सो रहा था। सैली ने भास्कर से कहा, "वह सो रहा है। भास्कर, हम बाद में आएंगे।"
सैली जा ही रही थी कि भास्कर ने कहा, "सैली, रुको। चलो देखते हैं कि वह सच में सो गया है या नहीं।"
भास्कर ने मुकुल को हिलाया और कहा, "मुकुल, क्या तुम जाग रहे हो?"
मुकुल ने आंखें मलते हुए कहा, "हाँ।"
"तुमने उसे जगाया," सैली ने गुस्से से कहा।
"नहीं, वह जाग रहा था। मैंने उसे बस दोबारा होश में लाया।"
"तुमने उसकी नींद तोड़ दी," सैली ने नाराजगी से कहा।
"मैंने नहीं किया। तुम चाहो तो मुकुल से पूछ सकती हो," भास्कर ने सैली को समझाने की कोशिश की।
मुकुल ने सैली से कहा, "हाँ, मैं जाग रहा था। उसने मुझे मेरा अधूरा काम पूरा करने के लिए होश में लाया।"
भास्कर ने मुकुल से कहा, "मुकुल, जब भी हम यहां आते हैं, आप कुछ काम कर रहे होते हैं। आप क्या बना रहे हैं, यह तो बता दो।"
"एक मशीन बना रहा हूँ।"
"कौन सी?" सैली और भास्कर ने एक साथ पूछा, उनकी आँखों में जिज्ञासा चमक रही थी।
मुकुल ने एक गहरी सांस ली और मुस्कुराते हुए कहा, "आओ, तुम्हें दिखाता हूँ।"
सैली और भास्कर की उत्सुकता अपने चरम पर थी। वे मुकुल के साथ उसकी प्रयोगशाला की ओर बढ़े, जहां एक रहस्यमयी मशीन खड़ी थी। मुकुल ने धीरे-धीरे पर्दा हटाया और कहा, "यह समय यात्रा की मशीन है।"
सैली और भास्कर की आँखें विस्मय से फैल गईं। क्या उनके दोस्त मुकुल वास्तव में समय की सीमाओं को पार करने वाले थे? उनके जीवन में अब एक नया रोमांचक अध्याय शुरू होने वाला था, और इस यात्रा में उन्होंने मुकुल का साथ देने का फैसला किया। इस तरह उनकी मासूम दोस्ती ने एक अद्भुत और अविस्मरणीय कहानी का रूप ले लिया।
"समय सही होने पर मैं आपको बता दूंगा।" मुकुल ने गंभीरता से कहा।
"आप हमेशा घर पर रहते हैं, तो आप कब काम करते हैं? हमने कभी आपको घर से बाहर आते हुए नहीं देखा है।" सैली ने जिज्ञासा से पूछा।
मुकुल मुस्कराते हुए बोला, "मैं पहले नासा में काम करता था। मैंने वहां 10 साल काम किया।"
"तो आप एक वैज्ञानिक हैं?" भास्कर ने आश्चर्य से कहा।
"हाँ," मुकुल ने जवाब दिया।
"तो आप इस मशीन का निर्माण कर रहे हैं, जो एक आविष्कार है?" भास्कर ने
मशीन की ओर इशारा करते हुए कहा।
एक टाइम मशीन। कमरे के कोने में लोहे का एक बड़ा बक्सा पड़ा था, जिस पर एक कुर्सी रखी थी। कुर्सी के बगल में लगभग पाँच या छह फुट के दो बड़े छल्ले थे। बगल में एक लोहे की टोपी थी, जिसमें पाँच तार जुड़े हुए थे। कुर्सी के दोनों ओर पट्टियां बंधी थीं, जिन्हें कुर्सी पर बैठने वाले के हाथों में मजबूती से बांधा जाता था। कुर्सी के चारों ओर 8 छोटी मशीनें थीं, जो तारों से जुड़ी हुई थीं। मशीन के चारों ओर तांबे के दो बड़े छल्ले थे। यह एक टाइम मशीन थी, जिसे मुकुल ने दिन-रात मेहनत करके बनाया था।
मशीन 2012 में तैयार हुई थी, लेकिन भास्कर और सैली की परीक्षा के कारण वे मुकुल के घर नहीं जा सके। उन्हें नहीं पता था कि मशीन तैयार हो चुकी थी। कई महीनों बाद, भास्कर और सैली वडापाव लेकर मुकुल के घर गए। दोनों ने पूरी मशीन को देखा, जबकि मुकुल एक बड़े रिमोट में बैटरियां लगा रहा था। रिमोट शायद उसी टाइम मशीन का था।
"मुकुल, यह क्या है?" सैली ने टाइम मशीन की ओर देखते हुए पूछा।
मुकुल का ध्यान उनकी ओर गया। टाइम मशीन के पूरा होने पर मुकुल के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। उन्होंने पहली बार मुकुल को इतना खुश देखा था। "तुम दोनों सही समय पर आए हो, यह मशीन पूरी हो गई है।"
"कौन सी मशीन?" भास्कर ने उत्सुकता से पूछा।
"यह एक टाइम मशीन है। यह हमें अतीत और भविष्य में लेकर जाएगी।"
"इसका मतलब, आप अतीत या भविष्य में जाकर आए हो?" भास्कर ने आश्चर्य से पूछा।
"नहीं। मैंने अभी यह मशीन बनाई है, लेकिन इसे आजमाया नहीं है कि यह ठीक से काम करती है या नहीं।"
"तो तुम किसका इंतजार कर रहे हो?" भास्कर ने पूछा।
"तुम्हारा," मुकुल ने भास्कर की ओर देखते हुए कहा।
"क्या?" सैली ने पूछा।
मुकुल ने टाइम मशीन का रिमोट हाथ में लेकर कहा, "यह टाइम मशीन का रिमोट है। जिसे सिर्फ मैं ही चला सकता हूं। इसलिए मैं खुद इस मशीन में नहीं बैठ सकता। मैं सिर्फ तुम्हारे आने का इंतजार कर रहा था। भास्कर, तुम भविष्य देखना चाहते हो क्या?"
"हाँ," भास्कर ने उत्साहित होकर कहा।
"फिर इस मशीन में जाओ। मैं तुम्हें भविष्य में भेजता हूं और फिर वर्तमान में वापस लाऊंगा।"
भास्कर बहुत खुश हुआ। वह सोच रहा था, "मैं भविष्य देखूंगा और पूरी दुनिया में मशहूर हो जाऊंगा।" भास्कर खुली आँखों से सपना देख रहा था और यह सपना जल्द ही पूरा होने वाला था। उसे मुकुल और उसकी टाइम मशीन पर पूरा भरोसा था।
भास्कर धीरे-धीरे टाइम मशीन की ओर बढ़ने लगा। जैसे ही वह मशीन में बैठने वाला था, सैली ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे वापस खींच लिया। "तुझे इस मशीन में बैठने की जरूरत नहीं है," सैली ने भास्कर से ऊंची आवाज में कहा।
भास्कर चौंक गया और मुकुल भी सैली की ओर देखने लगा।
"क्यों नहीं?" भास्कर ने निराशा भरी आवाज में पूछा।
"क्योंकि हमें पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह मशीन सुरक्षित है।" सैली ने दृढ़ता से कहा। "तुम्हें अपनी जान जोखिम में नहीं डालनी चाहिए।"
भास्कर ने गहरी सांस ली और सैली की ओर देखा। "ठीक है, सैली। हम पहले सुनिश्चित करेंगे कि यह मशीन सुरक्षित है।"
मुकुल ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम दोनों बहुत समझदार हो। लेकिन तुम दोनों को डरने की कोई जरूरत नहीं है, अगर कोई अड़चने आती है, तो मैं मशीन बंद कर लूंगा।"
"फिर भी हमे भरोवसा नहीं." सैली ने कहा.
"क्यों?" भास्कर ने सैली से पूछा।
"उन्होंने इस मशीन को पहले कभी नहीं आजमाया है। क्या होगा अगर मशीन ठीक से काम नहीं करती है और उसमें बैठने के बाद तुझे करंट लग जाता है?" सैली ने उसे शांत से समझाया। भास्कर ने हामी में गर्दन हिलाई।
मुकुल ने कहा, "चिंता मत करो, सैली। अगर यह मशीन ठीक से काम भी नहीं करेगी, तब भी मशीन में बैठे हुए व्यक्ति को करंट नहीं लगेगा।"
"और अगर करंट लग गया तो?" सैली ने चिंता जताई।
"वह ठीक हो जाएगा, मुझ पर विश्वास करो," मुकुल ने आत्मविश्वास से कहा।
भास्कर ने कहा, "ठीक है। तो फिर मैं बैठने के लिए तैयार हूँ।"
भास्कर तैयार था। उसे भविष्य देखना था। वह बहुत प्रसिद्ध होना चाहता था। सैली ने कहा, "भास्कर, तुम काफी जोखिम उठा रहे हो।"
"रिस्क है, तो इश्क है।" भास्कर ने मुस्कुराते हुए कहा। उसके चेहरे पर कोई डर नहीं था।
"भास्कर, प्लीज मशीन में मत बैठना।" सैली ने विनती की।
मुकुल ने सैली को दोबारा समझाते हुए कहा, "सैली, चिंता मत करो, उसे कुछ नहीं होगा।"
"तुझे अपनी मशीन पर इतना विश्वास है, तो तुम मशीन में क्यों नहीं बैठ जाते?" उसने गुस्से में जोर से कहा।
"सैली, मशीन को शुरू करने में एक व्यक्ति की जरूरत होती है और मशीन में बैठने के लिए दूसरे व्यक्ति की आवश्यकता होती है। एक अकेला व्यक्ति दोनों काम नहीं कर सकता। इसलिए मैं इस मशीन में बैठ नहीं सकता।"
उसने भास्कर की तरफ देखा और कहा, "मुकुल झूठ बोल रहा है। इस पर भरोसा कर जोखिम मत लेना।"
भास्कर ने फिर से कहा, "रिस्क है, तो इश्क है।" भास्कर की बातें सुनकर सैली और भी ज्यादा गुस्से में हो गई। वह मुकुल को देखने लगी। उसने अपने दाँत नाजुक होंठ में घुसा लिया।
यह देखकर मुकुल ने थोड़ी ऊँचे स्वर में सैली से कहा, "मैं तुम्हारा दोस्त हूँ। इसलिए तुम दोनों मुझे शक की निगाह से मत देखो।"
भास्कर को प्रसिद्ध होना था, इसलिए वह कोई भी जोखिम लेने के लिए तैयार था। उसने कहा, "मैं मशीन में बैठने के लिए तैयार हूँ। तुम मशीन चालू करो।"