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तीन वचन

Chapter - 38

अब कृशव का पेट भर चुका था तो उसने कहा - अब चलो चलते हैं वरना ये ऋषि मुनि जाग गए तो हम यहीं फंस जाएंगे श्रीशि उन ऋषि मुनि को ध्यान से देख रही थी श्रीशि को उसे ऐसा देख कृशव ने कहा - क्या हुआ तुम ऋषि मुनि को ऐसे क्यों देख रही हो l

श्रीशि उस ऋषि को ध्यान से देखते हुए कहती है - मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कि मैंने इन्हें कहीं देखा मैं इन्हें जैसे बरसों से जानती हूँ l

कृशव कुछ सोच फिर श्रीशि को मुस्काते हुए देख कहता है - मेरी प्यारी श्री तुमको ऐसा क्यों लगता है कि तुम इन्हें जानती हो ये कई युगों से यहीं बैठे हैं अपनी तपस्या में लीन

श्रीशि उसे घूरते हुए देखती है कृशव उसे देख घबराते हुए कहता है - क.. क.. क्या हुआ तुम मुझे ऐसे क्यों देख रही हो l

श्रीशि थोड़ा गुस्से में पूछा - तुम्हें कैसे पता कि ये कई युगों से तपस्या कर रहे हैं क्या तुम इन्हें जानते हो l

कृशव उसके सवाल सुन इधर उधर देखने लगा और ऋषि मुनि को देखकर उसने हिचकिचाते हुए कहा - म.. म.. म.. मुझे क्या पता कि ये कितने युग से यहां हैं l

मुझे तो मेरी माता ने.. इनकी.. कथा सुनाई थी.. इसलिए.. मैं.. बोल रहा हूँ.. मुझे सच में.. थोड़े ही.. पता है की.. ये.. वही ऋषि हैं.. l

श्रीशि ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा - अच्छा तुम्हें नहीं पता l

कृशव - अच्छा अब ये सब छोड़ो चलो हम यहां से चलते हैं वरना अगर हमारे शोर से इनकी तपस्या टूट गयी न तो कहीं इन्होंने हमें श्राप दे दिया तो l

दोनों उस पत्थर की मूर्ति बनें ऋषि मुनि के सामने खड़े थे l

श्रीशि उसके मुँह पर हाथ रख कहती है - चुप रहो ऐसी बातें मत करो ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला ( श्रीशि ने कृशव के दोनों हाथ पकड़ मुस्कराते हुए उससे कहती है ) तुम्हारा हर श्राप, हर पाप, तुम पर दी हुई पीड़ा आकर मुझे लगे l

कृशव न में सर हिलाते हुए उसे देख उसके होंठों पर अपनी उंगली रख देता है कि वो ऐसा न कहे लेकिन श्रीशि उसका हाथ हटाकर हाथ में लेकर मुस्कराते हुए बोली - मुझे पता है मेरा और तुम्हारा जन्म - जन्मांतर का कोई संबंध है इसलिये जब चोट मुझे लगती है तो मेरे दर्द का अनुभव तुम्हें होता है और जब चोट तुम्हें लगी हो तो मेरा हृदय तुम्हारी चोट के दर्द से भर उठता है l

मुझे लगता है कि शायद मैं तुम्हें भूल गयी हूँ लेकिन मेरी हर याद में तुम रहते हो मैं तुमसे अपने हृदय के जितना प्रेम करती हूँ जैसे मेरे हृदय की धड़कन के बिना मेरे हृदय का कोई अस्तित्व नहीं वैसे ही तुम्हारे बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं है l

कृशव मुस्कराते हुए उसकी ओर देख कर कहता है - आज तुमने मुझे बहुत खुशी दी है मुझे तृप्त कर दिया है अपने इन शब्दों से इसलिए मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूँ तुम जो माँगना चाहती हो तुम मांग सकती हो बोलो क्या चाहिए तुम्हें मैं तुम्हें तीन वरदान दूँगा l

श्रीशि उसकी बातें सुनकर हंसने लगी वो उससे बोली - क्यों तुम कोई भगवान हो l

कृशव मुस्कराते हुए उसकी ओर देख बोला - नहीं लेकिन मैं तुम्हारी कोई भी मनोकामना पूर्ण कर सकता हूं l

श्रीशि - ऐसी बात है तो मेरी पहली इच्छा है कि मैं पूरे जीवनभर सिर्फ तुमसे ही प्रेम करूँ और मेरा ये स्थान तुम्हारे जीवन में कोई चाहकर भी न ले सके मुझे ऐसा वरदान दो l

कृशव उसके इस निस्वार्थ प्रेम भाव को देख कर उससे कहता है - मैं तुम्हें वचन देता हूं कि मेरे पूरे जीवन में तुम्हारा स्थान कोई भी नहीं ले सकेगा ये मेरा वरदान है तुम्हें... और दो वरदान l

श्री ने सोचते हुए कहा - वो कभी और जब कोई महत्वपूर्ण ख्याल आएगा तब अभी कुछ सोचा नहीं है l

कृशव - अच्छा जी चलो ये भी ठीक है l

वो दोनों प्रेम भरी बातें करते हैं और वहाँ से चले जाते हैं l

वो ऋषि मुनि की मूर्ति उन दोनों के जाते ही मुस्करा देती है l

अब धीरे - धीरे दिन बीतने लगा था दिन से रात होती रात से सुबह आती श्री कृशव उसी वन में नर्मदा नदी के घाट के पास रोज मिलते थे और अपने मित्र, सहेलियों के साथ दिन ढलने तक समय बिताते थे l

समय के साथ - साथ सूर्य शेन की नाराजगी भी समाप्त हो गई थी लेकिन उनकी प्रजा बातें बनाती थी कि एक राजा ने दिया हुआ वचन जब खुद ही तोड़ दिया है तो प्रजा को क्या ही सिखाएगा ये बातें सूर्य शेन के महल में पहुंची l

एक दिन शाम के समय राजा अपने सिंहासन पर बैठे हुए थे अपने मंत्रीगड़, सिपाहियों से कुछ बातें कर रहे थे तभी एक सैनिक ने आकर कहा - महाराज की जय हो माफ़ करियेगा महाराज लेकिन आपको एक महत्वपूर्ण सूचना देनी थी l

सभी उस सैनिक की तरफ देखने लगे राजा सूर्य ने कहा - कहो क्या समाचार लाए हो ?

सैनिक ने कहा - महाराज हम जब गांव में भ्रमण कर रहे थे तब कुछ लोग आपस में बातें कर रहे थे l

राजा सूर्य ने कहा - कैसी बातें ?

सैनिक ने कहा - यही की जब एक राजा अपने वचनों को नहीं निभा पाए तो हमें क्या ही सिखाएँगे l

ये बात जैसे राजा के मन में बैठ गयी और वो सभा छोडकर उसी समय वहाँ से चले गए उन्हें ऐसे जाते देख सभी मंत्रीगण, सिपाही, और अन्य लोग परेशान हो गए l

इधर वन में एक फ़ूलों से लदे पेड़ के नीचे श्रीशि कृशव के कंधे सर रखकर बैठे हुए थे उन दोनों ने अपने आंख बंद की थी उनके साथ उनके मित्र और सखियाँ भी थीं वो भी पेड़ों के छांव के नीचे सोये हुए थे l

श्री सो रही थी तो उसे सपने में दिखा कि किसी शादी हो रही है वो अग्नि के चक्कर लगा रहे हैं तभी श्री को उन दोनों का चेहरा दिखता है जिसे देख वो आंख बंद किए ही मुस्करा देती है l

क्योंकि जिनकी शादी हो रही थी वो श्री और कृशव थे श्री ने अपनी आंखें खोली और खिलखिलाती हुई बोली - मैंने एक बहुत ही सुंदर सपना देखा l

उसकी बात सुन सभी अपनी-अपनी आँखें खोल देते हैं और उसकी तरफ देखने लगते हैं l

अगस्त्य - ऐसा क्या देख लिया तुमने हमें भी बताओ ?

श्री ने मुस्कुराते हुए कहा - मैंने देखा मेरी और कृशव का विवाह हो रहा है l

सत्या - अरे वाह ये तो कितना अच्छा सपना है l

तभी श्री की एक सहेली शास्वति ने कहा - श्रीशि क्यों न हम तुम दोनों का विवाह सत्य कराएँ l

श्री ने संकोच करते हुए कहा - लेकिन... माँ और बाबा...

अगस्त्य - उन्हें हम कुछ नहीं बतायेंगे और ये विवाह हमेशा रहस्य ही रहेगा l

सभी ने हाँ कहा श्री ने कृशव की तरफ देखा और कहा - अगर तुम चाहोगे तभी ये विवाह होगा तुम्हारी मर्जी के बिना कभी भी नहीं l

कृशव उसे देख मुस्कुराया और उसके गाल पर हाथ रख कर बोला - जो मेरी श्री की इच्छा वही मेरी इच्छा है l

श्री उसकी बात सुनकर मुस्करा देती है उनके सभी दोस्त विवाह के सारी सामाग्री जमा करते हैं वो वन पहले से ही बहुत सुन्दर था l

वहाँ के पेड़ रंग बिरंगे थे गुलाबी, नीला, पीला, लाल बहुत से रंग के जमीन पर रंग बिरंगी फ़ूलों की चादरें बिछी हुईं थीं

ऐसा कोई भी जगह खाली नहीं था जो फूल से ढके न थे l

थोड़ी देर बाद सारी तैयारियाँ हो जाती हैं कृशव श्रीशि के दोनों हाथ पकड़ उसके सामने खड़े हो जाता है l

दोनों अपनी आँखे बंद कर लेते हैं और दोनों के कपड़े बदल जाते हैं श्रीशि की सहेलियाँ अपने अन्तर शक्ति से उस में समाती जाती हैं l

कोई उसके गहने बन जाती हैं तो कोई उसके बाल के गजरे, कोई उसकी पायल तो, कोई उसकी नथ, कोई उसकी कमरबंद, उसके पीछे उसकी छः सखियाँ खड़ी थीं सबकुछ तैयार था वो दोनों यज्ञ के पास बैठे वहाँ पर सात पंडित जी बैठे थे विवाह की विधियां शुरू हुईं l

उन ऋषि मुनियों के मंत्र से पूरा ब्रहमांड गूँज उठा उनकी मंत्र की ध्वनियां प्रकृत्ति में एक सकारात्मक शुद्धता फैला रही थी और पूरा वातावरण उस विवाह का आनंद ले रहा था वहाँ सारे पशु पक्षी जीव - जन्तु और अन्य प्राणी आए थे

हवन कुंड सत्या बना और उसकी अग्नि अगस्त्य ये सच में बहुत ही सुन्दर और मनमोहक दृश्य था जहां का वातावरण पवित्र हो चुका था l

विवाह की सारी विधियां हुईं श्री की छठी सहेली दो सुन्दर हार में बदल गयी उन दोनों ने एक दूसरे को वरमाला पहनाई l फेरे का समय आया तो श्री कृशव के पीछे चल नहीं सकती थी इसलिए उसने आगे के तीन फेरे किए और तीन वचन भी दिए

पहला वचन - इस संसार के सभी प्राणी साथ रहकर साथ निभाने का वचन देते हैं लेकिन मैं तुम्हें वचन देती हूँ कि तुम इस संसार में जहां कहीं भी होगे मैं तुम्हारी परछाई बनकर सदैव तुम्हारे साथ रहूँगी l

दूसरा वचन - हर मनुष्य चाहता है कि उसका जीवनसाथी सदैव उसके साथ रहे उससे प्रेम करे लेकिन मैं तुम्हें वचन देती हूँ कि तुम मुझसे अगर दूर रहे तो मैं तभी भी तुम्हें ही स्मरण करूंगी और तुम्हारे ही ध्यान में रहूँगी सदैव ही तुमसे ही प्रेम करूंगी और अगर कभी भी तुम्हें मेरी जरूरत हुई तो मैं बिना अपना अहित सोचे तुम्हारे पास दौड़ी आऊंगी l

तीसरा वचन - मैं तुम्हें वचन देती हूँ कि मैं तुम्हारे हर कदम पर तुम्हारे साथ चलूँगी तुम्हारे हर कर्म, धर्म में तुम्हारा साथ दूंगी तुम्हारे हर कदम के साथ मेरे कदम होंगे l

तीन फेरे तीन वचन पूरे हो गए लेकिन अब कृशव की बारी थी लेकिन वो आगे नहीं आना चाहता था क्योंकि जब वो दोनों उस दिन मिले थे तो श्री ने उसका श्राप खुद के ऊपर ले लिया था और अगर श्री उसके पास कदम बढ़ाती है तो वो पत्थर की मूर्ति बन जाएगी l

इसलिए उन्होंने तीन फेरों में ही उस शादी को छोड़ दिया पूरी विधि हुई लेकिन चार फेरा नहीं हुआ सभी अपने रूप में आ गए और रात होने से पहले ही अपने घर को चले गए l

Continue...