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Heartless king

न्यूयोर्क शहर एक उँची ईमारत से, एक शख्स शीशे क़ी खिड़की के पास खड़ा  निचे आते -जाते हुए गाड़ीयों और लोगों को देख रहा होता हैँ..... उतनी ऊंचाई लोग और गड़िया उसे कीड़े माकोड़े क़ी तरह दिख रही होती हैं। वो निचे देखते हुए कुछ सोचे जा रहा था। तभी दो लोग अंदर आते हैँ, चलो हमें निकलना हैँ, काका हुजूर का बार बार फ़ोन आ रहा हैँ .... राजस्थान के लिए.... जैट तैयार हैँ......... वो शख्स, "हम्म्म " कहते हुए फिर से खिड़की क़ी तरफ देखते हुए और कहता हैं........... क्या उसके बारे कुछ मालूम हुआ, कहते हुए उसके आखों में एक दर्द उभर आया। दूसरा शख्स, "तुम आज तक नहीं भूले हो उसे..... सात साल हो गए.... कौन थी, कहाँ से आयी थी, केसी दिखती हैं,अब तक हमें मालूम नहीं हुआ,जैसे उसे जमीन खा गयी या आसमान निगल गया। जिन्दा भी हैं या मर गयी। तभी वो गुस्से में, उसका गला पकड़.... जस्ट शटअप दुबरा ये कहने की हिम्मत मत करना ये कहते हुए उसके आँखो में खून उतर आया। फिर झटके से उसे छोड़ दिया। वो खाँसते हुए अपने गले को सहलाता हैं। तभी वो मुड़ता हैँ और कहता हैँ..... उसकी पहली मुलकात के बाद यही कहूँगा क़ी उसके बगैर दिल कही लगता नहीं ज़ब तक जियूँगा उसे आखिरी सांस तक ढूढ़गा..... आगे महादेव क़ी मर्जी। तभी तीसरा शख्स छोड़ ना तू इसे जानता तो हैँ। तीनों निकल जाते हैं इंडिया के लिए.....

Dhaara_shree · Urbano
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32 Chs

ch-11दक्ष की रणनिती

दक्ष रितिका की बात सुनकर दीक्षा के पास आता और उसका हाथ पकड़ लेता है। दक्ष के इस तरह करने से दीक्षा उसकी तरफ देखने लगती है। दक्ष उसकी आखों मे देखते हुए कहता है, "मुझे बहुत ख़ुशी है की हमारी पत्नी का दिमाग़ तलवार की धार से भी ज्यादा तेज है और हम पूरी तरह से भाईसा और रितिका की बातों से सहमत है। अगर भविष्य मे हम आप तक नहीं पहुंच सके तो आप अपनी सूझ बुझ से खुद के साथ साथ पुरे परिवार की रक्षा करने मे समक्ष है।

आपकी एक एक बात सही है। हाँ ओमकार रायचंद हमसे मिलने आया था और हमने उसे अच्छी तरह समझा दिया था।

लेकिन इस हरकत के बाद से उसने हमें बता दिया है की उसे हमारी बात समझ मे नहीं आयी और वो हमें चुनौती दे रहा है।

फिर सबकी तरफ देखते हुए कहता है, उससे निपटने से पहले हमें शादी का समारोह खत्म करना होगा क्योंकि हमें उम्मीद है की उसके दिमाग़ मे बहुत कुछ चल रहा होगा।

फिर पृथ्वी कहता है शादी तो महल मे ही होनी है फिर क्या समस्या है दक्ष।

पृथ्वी की बात सुनकर दक्ष कहता है, भाई सा हमने नहीं चाहा था की अभी हमारी शादी खबर सबके सामने आये, लेकिन स्वीट्स के अतीत का सभी अचानक से आ जाना. अब हमें शादी अपनी सभी के सामने लानी होगी। इसलिए आपकी शादी के दिन ही हम और दीक्षा भी हमारी शादी की बात सबके सामने लाएंगे।

उसकी बात सुनकर दीक्षा कहती है लेकिन दक्ष ऐसे तो....!! उसकी बात पूरी होने से पहले ही दक्ष कहता है,"स्वीट्स आप हमारी बात ध्यान से सुनिये... आप तीनों के अतीत आपके सामने आने से पहले आप तीनों को अपने भविष्य से जुड़ना होगा। आपकी और हमारी शादी हो गयी और ये बात ओमकार जानता है इसलिए आप पर कोई अपना अधिकार उतना नहीं जता सकता कोई भी, आपके मायके वाले भी नहीं क्योंकि एक पत्नी पर सबसे ज्यादा अधिकार सिर्फ उसके पति का होता है।

अब बात आयी रितिका की तो.... फिर एक मिनट चुप रह कर रितिका की तरफ देखता हुआ कहता है, इधर आईये रितिका। रितिका उसके पास आती है। रितिका को देखते हुए कहता है, हमने आपको और तूलिका को जुबान से नहीं दिल से अपनी छोटी बहन माना है और उसी हक से आपसे एक बड़े भाई होने के नाते हम पूछना चाहते है की बताईये, "क्या आप अनीश को पसंद करती है।

दक्ष की बातें सुनकर सभी हैरानी से उसकी तरफ देखते है, सिवाय दीक्षा के। अनीश कहता है, यार अभी ये बात कहाँ से आ गयी, अभी तो हमें इस परेशानी और तूलिका को संभालना है.

उसकी बात सुनकर दक्ष कहता है, उसी परेशानी का हल निकाल रहा हूँ अनीश लेकिन मैं कुछ कहूं, उससे पहले मैं चाहता हूँ की, तुमदोनों मुझे बताओं की क्या तुम दोनों एक दूसरे को पसंद करते हो याँ नहीं। अनीश उसकी बात सुनकर समझ जाता है की दक्ष बहुत गंभीर है और कहता है की,"हाँ मैं रितिका को पसंद भी करता हूँ और मुझे उससे प्यार भी है।"जिसे सुनकर दक्ष मुस्कुराते हुए रितिका की तरफ देखता है।

रितिका दीक्षा की तरफ देखती है, दीक्षा अपनी पलक झपका कर उसे सभी ठीक होने का इशारा देती है। जिसे देख कर रितिका कहती है,"प्यार का नहीं कह सकती लेकिन  हाँ!मुझे अनीश अच्छे लगते है और उनके साथ खुद को महफूज समझती हूँ।"

उसकी बात सुनकर सभी मुस्कुरा देते है तभी दक्ष रितिका को देखते हुए कहता है तो क्या इतना काफ़ी है तुम्हारे लिए अनीश के साथ जीवनभर के लिए बंधने के लिए।

जिसे सुनकर रितिका कहती है, "हाँ इतना काफ़ी है। जिसे सुनकर दीक्षा उसके गले लग जाती है और अनीश मुस्कान लिए रितिका को देखता है। जिससे देख रितिका शरमा कर अपनी नजरें झुका लेती है।

दक्ष कहता है, मेरा ये कहना सिर्फ इतना है की रितिका और तूलिका दोनों पर अभी किसी से ज्यादा हक उसके परिवार वालों का होगा और अगर वो ये हक लेने आते है तो हम मे से किसी का अधिकार नहीं होगा की उसे रोक सके।

इसलिए मैं चाहता हूँ की कुछ और सामना करने से पहले इनदोनो को एक महबूत घेरे मे बांध दूँ और वो मजबूत घेरा है शादी का।

फिर अनीश तरफ देख कर कहता है की मैं चाहता हूँ की तुम और रितिका आज की आज कोर्टमेंरेज कर लो। फिर अतुल की तरफ देखते हुए कहता है और मैं जानता हूँ की तुझे तूलिका से प्यार है और उसका बड़ा भाई होने के नाते मुझे यकीन है की तूलिका को तुझ से ज्यादा प्यार करने वाला कोई नहीं मिलेगा।लेकिन तूलिका के साथ हुए हादसे के साथ क्या तू उससे शादी करेंगे।

ये सुनकर अतुल कहता है, क्या तुझे अपने यार पर इतना ही भरोसा है? उसकी बातें सुनकर दक्ष कहता है अपने यार पर पूरा भरोसा है लेकिन ये बात तेरा दोस्त दक्ष नहीं पूछ रहा बल्कि तूलिका का बड़ा भाई पूछ रहा है क्योंकि बड़े भाई होने के नाते इतना तो मेरा हक बनता है।

अतुल कहता है मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता उसके अतीत से मैं सिर्फ उससे प्यार करता हूँ और उसको पूरी जिंदगी ख़ुश रखना चाहता हूँ।

उसकी बात सुनकर दक्ष मुस्कुराते हुए अनीश से कहता है, कोर्टमेंरेज की तैयारी कर लो और एक हलफनामा सतीश पोदार के खिलाफ भी दाखिल कर दो ताकि वो उसका पति होने का अधिकार नहीं रख सके बाक़ी तो तुम्हें मालूम है ना की क्या करना है। अनीश कहता है अच्छी तरह से।

दक्ष दीक्षा की तरफ देखते हुए कहता है, हम चाहते है स्वीट्स की आप तलवारबाजी चलाने का प्रशिक्षण ले और इसमें आपको निपुण पृथ्वी भाई सा और हम करेंगे करेंगे, क्योंकि हम आपको बता दे की आने वाला समय आप सबको को बहुत कुछ दिखायेगा। इसके लिए आपको और आपके साथ शुभ भाभी, तूलिका और रितिका को भी तैयार होने होगा।

दीक्षा उसकी बात सुनकर कहती है मतलब हम कुछ समझे नहीं।

पृथ्वी कहता है, हम आपको समझाते है। शादी की खरीदारी और शॉपिंग हमारी शैतान टोली और रौनक -कनक संभाल लेगे। आज से पांच दिन है शादी के और शादी प्रजापति महल मे होनी है।

दक्ष उसी दिन पुरे राजस्थान को आपसे मिलवाएगा और आपके और दक्ष की शादी की खबर पुरे आगे की तरह फैल जाएगी और ये खबर हमारे दुश्मनो की नींद उड़ा देगी। क्योंकि उसके बाद दक्ष का राज्यभिषेक होगा।

बहुत कुछ उसके साथ घटेगी और होगी भी जिसका हमें कोई अंदाजा नहीं है। ऊपर से आपके अतीत से भी हमें निपटना होगा। इतना कुछ जानने के बाद ये तो जान गयी होगी की हम और रौनक सीधे तरीके से दक्ष की मदद नहीं कर सकते और राजस्थान की रानी सा को हर कला मे निपुण होने की जरूरत है।

इस पांच दिन मे तूलिका को छोड़ कर आप तीनों को बहुत हद तक हम सभी कुछ सीखा देंगे उसके बाद सिर्फ रोज आपको अभ्यास की जरूरत होगी वो आप सभी आपस मे कर सकती है और सुना है कनकलता भी पारंगत है तलवार बाजी मे, साथ साथ आपकी शैतान सेना भी. होगी।

लेकिन अभी आप सभी का बेसिक जानकारी होने जरूरी होगी। सभी हाँ कर देती है। शुभ कहती है., मैं रात की खाने की तैयारी करती हूँ। रितिका कहती है जीजी मैं भी चलती हूँ और वो दोनों चली जाती है।

अनीश कहता है मैं सीधे रात को खाने पर मिलुंगा तब तक सारे पेपर वर्क कर लेता हूँ। अतुल सभी के बीच से उठ ते हुए कहता है की मैं तूलिका के पास जाता हूँ और चला जाता है।

दक्ष और दीक्षा और पृथ्वी होते है। तभी दीक्षा कहती है चली आज से ही शुरुआत करते है। दक्ष मुस्कुराते हुए कहता है, बहुत जल्दी है आपको स्वीट्स! जल्दी नहीं राजा साहब जरूरी है इसलिए चलिए। तीनों तलवार अभ्यास को निकला जाते है।

दीक्षा बहुत तेजी से बारीकीयों पर ध्यान दे रही होती है। दक्ष कहता है, रानी सा तलवार बाजी चलाने पहले आप उसके कभी नहीं भूलने वाली कुछ दाव -पेंच समझ लीजिये।

तलवारबाजी में कुछ ऐसे दांव-पेच हैं जो अद्वितीय हैं।

तैयारी: हमला शुरू करने से पहले आपको खुद की चाल को परखना होता है, जिसे तैयारी के रूप में जाना जात है। किसी भी लड़ाई मे आपका दुश्मन पहले आपकी चाल को समझता है और फिर आप पर हमला कर सकता है, जिसे आप अपनी तैयारी से उस हमले से खुद की रक्षा कर सके।

आपको अपने दुश्मन  आक्रामकता से बचाव करने के लिए पैरों का इस्तेमाल करता है।आपको उसके  आक्रामकता से बचाव करने की बजाय जवाबी हमले का दांव लगाना है । यानि वो हमले को तैयार ना रहे और आप उस पर वार कर सके।ज़ब आप सामने वाले को तलवार खोपना चाहती है तो इसमें प्रहार करने के लिए एक पैर सामने और दूसरा पीछे करते हुए तलवार के हाथ को सीधा करते हुए प्रहार किया जाता है।

साथ ही साथ सबसे अहम और जरूरी बात आपको हमेशा दुश्मन की आखों पर ध्यान देना होगा तभी आप उसके वार और चाल को समझ पायेगी.

रात मे सभी खाना खाने बाद अपने अपने कमरे मे चले जाते है। दीक्षा ज़ब कमरे मे आती है तो पीछे से उसे दक्ष अपने बाहों मे भर लेता है। उसकी खुशबु का अहसास होते ही मुस्कान के साथ दीक्षा ;दक्ष के हाथों पर अपना हाथ रख देती है। दक्ष अपनी गहरी सांसों को उसके कंधे पर छोड़ता हुआ अपने लबों को उसके कंधे पर रब करते हुए कहता है, "स्वीट्स मुझे तुम्हारी जरूरत है, कहते हुए उसके कानों को चुम लेता है। दीक्षा के हाथ उसके हाथों पर कस जाते है और वो तेजी से दक्ष की तरफ घूम जाती है। उसके गर्दन को प्यार से चूमती हुई कहती है, आपको रोका किसने है दक्ष!!!

उसकी बातें सुनकर कर दक्ष के लबों पर मुस्कान आ जाती है और वो उसे गोद मे उठा लेता है और प्यार से बिस्तर पर सुलाते हुए कहता है। मुझे तुम्हारा नशा होने लगा है स्वीट्स और ये नशा तुम्हारे करीब आने से बढ़ने लगता है, कहते हुए उसके होठों पर अपने होठों को रख देता है। दोनों फिर अपनी मोहब्बत की गहराइयों मे खुद को डूबो लेते है।

अनीश ख़ामोशी से रितिका के कमरे मे आता है तो देखता है की रितिका जो ख़ामोश होकर सिर्फ खिड़की के बाहर देख रही होती है जहाँ सिर्फ अंधेरा रहता है और जुगनू की आवाज़ आ रही होती है। अनीश उसे पीछे से अपनी बाहों मे भर लेता है और वो भी खिड़की के  बाहर देखने लगता है।

अनीश दोनों के बीच की ख़ामोशी को तोड़ते हुए, रितिका को देख कर कहता है, क्या तुम ख़ुश नहीं हो मेरे साथ जीवनभर बंध कर। उसकी बातें सुनकर रितिका कहती है,"नहीं अनीश जी ऐसी बात नहीं है। माँ -पापा के जाने के बाद मै अपनी ख़ुशी और मर्जी से जीना भूल ही गयी थी। मेरी मर्जी का सिर्फ एक ही काम था वो थी मेरी दोनों दोस्त। उसके अलावा हर काम, खाना -पीना, कपड़े, पढ़ाई सभी भाई और भाभी की मर्जी से थी। मुझे भी दीक्षा के साथ आईटी की पढ़ाई करनी थी. स्कॉलर शिप भी पा लिया था मैंने लेकिन भैया नहीं माने फिर मैंने लॉ की पढ़ाई की। आपको पता है मै जिंदगी मे तीन बार बहुत ख़ुश हुई। एक बार तब ज़ब मै सिक्स मे थी और कुछ बच्चे मुझे तंग कर रहे थे तब तूलिका और दीक्षा ने मुझे उन सभी से बचाया और उसके बाद से वो दोनों मेरी दोस्त बनी। दोनों के मुकाबले मै हमेशा से शांत रही हूँ । जिस दिन  उनसे दोस्ती हुई,उस दिन बहुत ख़ुश थी।

दूसरी बार ज़ब दक्षांश का जन्म हुआ और उसे मैंने अपनी गोद मे लिया। ये कहते हुए रितिका की आवाज़ मे ख़ुशी थी, जो अनीश महसूस कर रहा था। फिर उसे अपनी तरफ घुमाते हुए कहता है और तीसरी बार तुम कब ख़ुश हुई थी।

रितिका उसकी आखों मे देखती हुई कहती है, तीसरी बार ख़ुशी हुई थी नहीं ख़ुश हूँ। आपकी जीवनसाथी बन कर। ये सुनकर अनीश ख़ुशी से कहता है सच। रितिका अपनी पलकें झपका कर हाँ कहती है। अनीश उसे अपनी बाहों मे भरते हुए कहता है, थैंक्यू मेरी जिंदगी मे आने के लिए। आपका भी शुक्रिया मुझे अपनी जिंदगी मे शामिल करने के लिए। अनीश ये सुनकर उसके होठों को किश करने लग जाता है और रितिका भी उसे चूमने लगती है। दोनों एक दूसरे से आज खुल कर मोहब्बत कर रहे होते है। दोनों अपनी नई जिंदगी की एक राह चुन ली थी।

पृथ्वी के सीने पर सोई शुभ कहती है, "एक बात पुछु आपसे "!पृथ्वी उसे बाहों मे भरे हुए कहता है, पूछो क्या पूछना है? क्या सच मे दक्ष देवर सा की जिंदगी आसान नहीं है। उसकी बात सुनकर पृथ्वी कहता है,"आप जानती है शुभ!हर किसी को ऊंचाई पर पहुंचने की चाहत होती है। हर कोई चाहता है की वो कुर्सी पर बैठे। क्योंकि उसे सिर्फ उस कुर्सी पर बैठने वाले की ताकत, शोहरत दिखती है, जिसका लालच उन्हें इस कदर अंधा कर देता है की वो ये नहीं देख पाते की, उस कुर्सी पर बैठने वाला ख़ुश है याँ मजबूर।

ज़ब कभी हमें बड़ा ओहदा याँ रुतबा मिलता है तो हम उससे मिलने वाली अच्छी चीजों की तरफ इस कदर मोहित हो जाते है की ये नहीं देख पाते उससे बहुत बुरी चीजे भी हमें मिलने वाली है।"

पृथ्वी की बातें सुनकर, शुभ कहती है, हम कुछ समझे नहीं हुकुम सा! पृथ्वी मुस्कुराते हुए कहता है, " आसान शब्दों मे समझिये शुभ की,;ज़ब कोई राजा बनता है तो उसकी जिम्मेदारी इतनी बड़ी हो जाती है की उसे निभाना आसान नहीं होता है। उसकी जिंदगी हर वक़्त सबकी नजरों मे रहती है।

अगर वो अच्छा राजा बनना चाहता है तो भी उसकी जिंदगी सामान्य नहीं रहती है। वो कभी शुकुन से नहीं रहा सकता क्योंकि उसके ऊपर पूरी प्रजा की जिम्मेदारी होती है।उसके लिए दिन रात एक जैसे होते है।उसका हर काम उचित और अनुचित की कसौटी पर तोला जाता है। वो चाहकर भी गलती से एक गलती नहीं कर सकता। लेकिन लोगों को उस राजा के कंधे पर नहीं दिखने वाली जिम्मेदारी नहीं नजर आती है, उन्हें दिखता है उसका रुतबा, ताकत, पैसा, शोहरत.... ये देख सोचते है की राजा कितना किस्मत वाला है और उसकी जगह पाने के लिए साजिश, युद्ध रचते है।

और अगर वो बुरा राजा बनना चाहता है फिर भी उसकी जिंदगी सामान्य नहीं रहा जाती। उसे हर वक़्त अपनी कुर्सी छीनने का डर लगा रहता है। उसे मजबूत करने के लिए वो दिन रात लड़ते रहता है। किसी पर भरोसा नहीं कर सकता है और ज़ब तक जीता है उसकी जिंदगी अकेले ही रह जाती है।आप सिकंदर की कहानी देख ले उसका पूरा जीवन युद्ध मे और स्मराज बनाने मे गया लेकिन क्या वो सुख भोग सका।

फिर हमारे पृथ्वीराज चौहान को देख लीजिये, गजनवी को माफ़ी करने की एक गलती, उनके मौत का कारण बनी।

हमारा पूरा इतिहास इसी से भरा पड़ा है। हम अपने इतिहास से बहुत कुछ सीखते है।

फिर शुभ की तरफ देखते हुए कहता है, दक्ष इन दोनों मे बीच का!उसने बहुत कम उम्र मे बहुत कुछ देखा है, इसलिए वो अच्छा भी है और बुरा भी। उसने खुद को इसी तरह तैयार किया है। वो राजनीती से ज्यादा कूटनीति मे भरोसा करता है। वो कभी भी सांप को हल्का चोट करके नहीं छोड़ता बल्कि उसके पूरी जाती खत्म कर देता है। क्योंकि उसका मानना है की हम भारतीय क्षमा भावना, दयालुता की बलि हर बार चढ़े है। आप चाहे तो हमारा इतिहास देख ले।

हमारी भूमि का इतिहास तो ज्ञान और सबक का भंडार है। बस दक्ष उसी के निष्कर्ष के साथ अपनी जिंदगी जीते है और सबसे ख़ुशी की बात ये है की, "उनकी पत्नी उसकी तरह काबिल है और हमें इस बात की ख़ुशी है "।

आप जानती है शुभ,"हमारे दादू सा की चाहते है की हम राजस्थान के राजा बने, इसके लिए ना जाने उन्होंने क्या क्या नहीं किया है। लेकिन हम कभी नहीं चाहते है की हम राजा बने। राजा बहुत बड़ी जवाबदारी वाला ओहदा है और हम से दक्ष छोटे जरूर है लेकिन बहुत काबिल है और हमारा मानना है की काबिलियत के आधार पर ओहदा मिलना चाहिए ना की बड़े -छोटे के हिसाब से। इसलिए हमने शुरुआत से ही उनकी रक्षा बड़े भाई की तरह की है और उन्होंने भी हमें हमेशा अपने बड़े भाई होने का सम्मान दिया है।

हम चाहते है की ज़ब आप प्रजापति महल आये तो आपके और दीक्षा के बीच भी वही प्यार और भरोसा रहे जो हमदोनों भाइयों के बीच है।

शुभ उसे देखती हुई कहती है,"हुकुम सा मुझे अपनी जिंदगी से इतना ही चाहिए की ऐसी जिंदगी हो जहाँ जरूरत पूरी हो और जिंदगी ख़ुशीयों से भरी हो। और इससे ज्यादा की चाहतवंही करनी मुझे है, इसलिए आप बेफिक्र रहिये आपकी शुभ को किसी चीज की लालच नहीं है। तो रिश्ता खराब होने की नौबत नहीं आएगी।

पृथ्वी उसकी बातों को सुन कर उसे अपने निचे कर देता है और उसके ऊपर आ कर कहता है, आधी रात तो आपने बातों मे बिता दी अब क्या हमे प्यार करने देगी। शुभ अपनी नजरो झुकाते हुए कहती है और आपको रोका किसने है। पृथ्वी उसकी आखों मे देखता है, और अपने होठों को उसके होठों पर रख देता है। धीरे धीरे दोनों एक दूसरे की प्यार मे डूबने लगते है।

अगली सुबह ज़ब तूलिका की आँख खुलती है तो घबराते हुए इधर उधर देखती है। उसके इस तरह करने से अतुल की आँखे खुल जाती है और वो उसे पकड़ते हुए कहता है, "शांत सब ठीक है!कुछ नहीं हुआ है तुम मेरे साथ हो "। उसकी बातें सुनकर ज़ब उसकी तरफ देखती है तो कहती है,"वो वो अतुल वो आ गया! शांत तूलिका कोई नहीं आया है और अगर कोई आया भी है तो तुम इतनी कमजोर नहीं हो!  कह कर उसे अपनी बाहों मे भर लेता है।

उसके माथे को सहलाते हुए कहता है, अगर तुम खुद को तैयार नहीं करोगी तो कैसे सब कुछ सम्भालोगी। उसकी बात सुनकर तूलिका उसकी तरफ देखती हुई कहती है,' मै कुछ समझी नहीं। अतुल उसकी तरफ देखते हुए कहता है,"देखो हमदोनों कोई बच्चे नहीं है। हमदोनों को मालूम है की हमदोनों एक दूसरे के लिए क्या महसूस करते है।"

उसकी बातें सुनकर तूलिका अपनी नजरो को झुकाती हुई कहती है, "लेकिन तुम मेरे बारे मे कुछ नहीं जानते "। अगर तुम मुझे बताना चाहो तो बता सकती हो लेकिन मै तुम्हें बता दूँ की,मै तुम्हारे बारे मे सब कुछ जानता हूँ और मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फिर उसकी तरफ देख कर कहता है,"अब बताओं क्या कहना है।

मतलब मै समझी नहीं। मतलब ये तूलिका की मुझे तुमसे शादी करनी है। उसकी बात सुनकर वो अचानक उसके बाहों से निकल जाती है। उसे इस तरह से निकलता देख अतुल हैरान हो जाता है,"तूलिका रुको तो। लेकिन तूलिका कमरे से बाहर चली जाती है।

बाहर मे सभी को देख उसके पैर ठिठक जाते है। उसे इस तरह से आते देख और उसके पीछे अतुल को ऐसे परेशान देख।सभी को समझ आ जाता है की क्या बात हुई होगी।

दीक्षा खड़ी होकर तूलिका के पास आती है और उसके हाथों को पकड़ कर सबके बीच बैठा देती है और दक्ष को इशारा देती है।

दक्ष  उठ कर कहता है, हम अभी आते है और सबको इशारा करता है बाहर चलने की और सभी  अतुल को लेकर जाने लगता है। दक्ष रुक यार मुझे तूलिका से बात करनी है। बाद मे बात करने अभी बाहर चल। कहते हुए चारों निकल जाते है।

दीक्षा तूलिका को बिठा कर पूछती है क्या बात है? वो दीक्षा अतुल ने मुझे शादी के लिए कहा? तो इसमें क्या परेशानी है, हम सब जानते है। लेकिन मै कैसे? रितिका फिर कहती है, क्यों नहीं? तुम क्यों नहीं!

दीक्षा उसकी असहजता को देख कर फिर कहती है, देखो तूलिका सब कुछ समझने से पहले एक बात का जबाब दो क्या तुम अतुल भैया से प्यार करती हो?

उसकी बात सुनकर कहती है, इस बात का क्या मतलब है दीक्षा!मै प्यार करती हूँ याँ नहीं!

मतलब है तूलिका, बिल्कुल मतलब है! देखो तुली, "जिंदगी बहुत मुश्किल से किसी किसी को सच्ची मोहब्बत से मिलवाती है और तुम बहुत खुशकिश्मत हो की जिंदगी मे तुम्हें ये मौका मिला है। हर कोई इतना ख़ुशक़िस्मत नहीं होता है, कभी कभी पूरी जिंदगी खत्म हो जाती है इस इंतजार मे की सच्ची मोहब्बत मिले लेकिन नहीं मिलती है।

तुझे पता है हमारे समाज मे, बहुत सारे पति पत्नी है, कितने आदर्श जोड़े है, लेकिन कभी उनकी गहराइयों मे जा कर देख तो मालूम पड़े तुझे की हजारों पति पत्नी मे चंद ही ऐसे होंगे जिन्हें एक दूसरे से सच्ची मोहब्बत होगी।लोग तो युहीं मोहब्बत मोहब्बत चिल्लाते है, लेकिन कभी उनसे पूछ की मोहब्बत की बात होती है तो राधा -कृष्ण, मीरा, शिव -पार्वती का नाम लेते है लेकिन क्या सच मे ऐसी मोहब्बत मिलती है किसी को। नहीं तुली!!नहीं मिलती!राधा -कृष्ण जैसी मोहब्बत सिर्फ कहीं जाती है मिलती बहुत मुश्किल से है।

और अगर तुझे खुद की गहराइयों से प्यार करने वाला साथी मिल रहा है तो फिर ख़ुशी से मुँह मोड़ना कहाँ की समझदारी है!! बार बार तुम अपनी दिमाग़ की बदौलत अतुल भैया की मोहब्बत को ठुकरा देती हो, ये कहाँ की समझदारी है। अब दीक्षा की आवाज़ हल्के गुस्से मे थी जिसे देख रितिका और शुभ दोनों उसके कंधे पर हाथ रखती है।

दीक्षा उन्दोनो की तरफ देख कर कहती है मुझे समझाने से बेहतर है की इसे समझाओ आप दोनों। फिर तूलिका की बाजु पकड़ कर कहती है, कब तक अपने अतीत से भागना है या उसके लिए तुझे रोना है। क्या तू लड़ नहीं सकती ! किस बात मे कमजोर है तू !अच्छी नौकरी है, दोस्त है, एक प्यार करने वाला शख्स है ! फिर किस बात से तुझे परेशानी है। क्यों नहीं जीती है अपनी नई जिंदिगी क्यों?

उसकी बातें सुनकर तूलिका रोने लगती है जिसे देख कर दीक्षा गुस्से मे कहती है, "अगर ऐसे ही रोना है तो फिर वापस वही चली जा जहाँ से आयी है। थक गयी मै तुझे समझा समझा कर कहती हुई दीक्षा बाहर निकल जाती है।

शुभ और रितिका उसे रोकती है लेकिन वो रूकती नहीं बाहर चली जाती है।

दीक्षा को इस तरह गुस्से मे आता देख दक्ष उसके पास चला आता है,"स्वीट्स "। दीक्षा उसके सीने से लग कर रोने लगती है और कहती है,"क्यों!क्यों!दक्ष!!मर्द अपनी मनमानी करके आगे बढ़ जाते है। हम औरते क्यों नहीं निकल पाती उनके दिए दर्द से कभी!!क्यों नहीं निकल पाती!! कहते है एक मौत के बराबर होता है एक बच्चे को जन्म देना, हम औरते ये दर्द ख़ुशी ख़ुशी बर्दास्त कर के जी लेती है। भूल जाती है। लेकिन मर्दो के दिए ज़ख्म हमसे भुलाये क्यों नहीं जाते है। सिर्फ इज्जत हमारी ही रुस्वा क्यों होती है उनकी इज्जत क्यों नहीं होती। सिर्फ हमारी रूह पर ज़ख्म क्यों लगते है, उनकी रूह पर क्यों नहीं लगते। कहती हुई चीखनी लगती है और कहती है..... क्यों? क्यों? दक्ष हम औरते मर्दो के आगे क्यों कमजोर हो जाती है क्यों नहीं उनके दिए जख्मो से खुद को बाहर निकाल पाती है। क्यों!!!

दक्ष के साथ पीछे खड़े सबकी आँखे मन और आक्रोश से भर जाती है। दक्ष दीक्षा के चेहरे को. हाथ मे भरते हुए, उसके आंसू पोंछ कर कहता है, शांत हो जाओ स्वीट्स। शांत हो जाओ।

तूलिका जो अब तक दीक्षा बातें सुन रही होती है, उसकी आखिर बात सुनकर रोने लगती है। शुभ उसे गले लगा लेती है और चुप करवाने लगती है। लेकिन रितिका दोनों हाथों को मोड़ कर कहती है, रहने दो जीजी!!जहाँ इसे बोलना था वहाँ तो गूंगी बनी रही। जहाँ लड़ना था वहाँ से भाग जाती है। और जहाँ इसे नहीं बोलना वहाँ बोलेगी, जहाँ और जिससे नहीं लड़ना उससे लड़ेगी।

तूलिका रोती हुई कहती है, क्या कहना है तुम दोनों का की मै वहाँ चली जाऊ फिर से उस नर्क मे तो बोलो मै चली जाती हूँ?

उसकी बातें सुनकर रितिका दोनों हाथों से ताली बजाती हुई कहती है, तुझे मालूम है ना तू क्या कह रही है!तो मेरी सुन तेरी बातें सुनकर ऐसा ही लग रहा है की तू भी यही चाहती है!!!

उसकी बातें सुनकर तूलिका हैरान होकर रितिका को देखती है और कहती है, क्या मतलब है तेरा की मै वहाँ??? उसकी बात उसे पूरा नहीं करने देती है रितिका और बीच मे कहती है, "

नहीं जाना चाहती तो फिर ये बता की आगे क्यों नहीं बढ़ जाती। ज़ब प्यार हुआ तो उसे ख़ुशी ख़ुशी क्यों नहीं जीती। अपनी इस कमजोरी को ताकत क्यों नहीं बनाती। ज़ब हम सब तेरे साथ है फिर इतना डर किस लिए! लड़ती क्यों नहीं अपने डर से!!!कब तक रोना है तुझे और कब तक तू चाहती है की कोई तेरे आंसू पोछे।

तूलिका चीखती हुई कहती है नहीं मै ऐसा कुछ नहीं चाहती।

तो ठीक है तो तू बता क्या चाहती है। तुझे मालूम है तुली की सिर्फ तेरी कमजोरी के कारण तू बार बार फंसती है। तो मै क्या करुं तू बता रीती क्या करुं मै? दीक्षि भी नाराज होकर चली गयी मुझसे और तू भी ऐसी बातें कर रही है। तुम दोनों के सिवा मेरा है कौन?

पीछे से दक्ष के साथ सभी कहते हम है.... तुम्हारे बड़े भाई और साथ मे तुम्हारा जीवनसाथी भी। पीछे से दीक्षा को पकड़े चारों आते है। दक्ष, पृथ्वी और अनीश आकर उसके सर पर हाथ रखते हुए कहते है, हम तुम्हारे बीते वक़्त को नहीं बदल सकते है लेकिन तुम्हारे आने वाले वक़्त मे ये वादा करते है की तुम कभी अकेली नहीं रहोगी ये तुम्हारे तीनों भाइयों का वादा है तुमसे। तूलिका रोती हुई तीनों से लिपट कर रोने लगती है और चीख चीख कर कहती है....

डर लगता है मुझे भैया रात की अँधेरे से, वो दस दिन मै भेड़ीयों के बीच थी और मै कुछ नहीं कर सकी। मुझे नोचा जा रहा था लेकिन मे चीख नहीं पा रही थी। कब तक कहाँ मुझे याद नहीं, उसके बाद सिर्फ और सिर्फ दर्द है डर है।उसकी चीख सुनकर सभी आँखे बंद कर उसके दर्द को महसूस करते है और गुस्से मे सबकी मुठिया कस जाती है।सभी अपनी आखों से आंसूओ को गिरने से रोक नहीं पाते।

उसकी बातें पूरी होने से पहले अतुल उसे अपनी बाहों मे भर लेता है।वो फिर भी रो रो कर बोलती है, मै तो ये भी नहीं कहूँगी की मेरे रूह को चोट आयी है। मेरी तो रूह ही खत्म कर दी उन जानवरो ने मै चाह कर भी वो भूल नहीं पाती.। क्या करुं मै बोलो क्या करुं। इसलिए तुमसे भाग रही हूँ जो तुम्हें चाहिए मै कभी नहीं दे सकती।

अतुल उसे बाहों मे भर कर कहता है, आज जितना रोना है रो लो आज के बाद तुम कभी नहीं रोउंगी। हादसे मे अगर  शरीर का एक हिस्सा नहीं रहने से जिंदगी खत्म नहीं हो जाती है। हम उस हादसे के साथ जीना नहीं छोड़ देते बल्कि उसे हिस्सा बना कर जीते है और लड़ते है।

फिर तुम इतनी जल्दी क्यों हार मान रही हो। उसके बाद उसके आखों के आंसू को. पोंछता हुआ उसे बिठा देता है और सभी उसके चारों तरफ होते है।

अतुल उसके घुटनों के पास बैठा कर कहता है, मुझसे शादी कर लो तूलिका मै तुम्हारे बिना नहीं जी सकता है। हमदोनों अपने अपने अतीत से साथ लड़ेंगे और अपने भविष्य के साथ जियेंगे।

तूलिका सबकी तरफ देखती है दक्ष और दीक्षा के साथ सभी कहते है, हाँ कर दो तूलिका। तूलिका हाँ कर देती है। सभी ख़ुश होकर अतुल को उसके घुटने से उठाते है। दक्ष किसी को फोन करता है।

काले कोट मे दो लोगो अंदर आते है।

तूलिका कहती है ये सब क्या है। दीक्षा कहती तुम्हारी और रितिका की आज ही कोटमेरैज है। तूलिका कुछ कहती उससे पहले दीक्षा कहती है पहले साइन करो बाक़ी बातें बाद मे।

चारों पेपर पर साइन करते है और वकील वो पेपर लेकर चले जाते है।

एक साथ सभी गले मिलते हुए कहते है, आज से नई जिंदगी और जिंदगी जितने का जंग दोनों की शुरुआत करते है।

शुभ कहती है मै मिठाई लेकर आती हूँ।

फिर दीक्षा तूलिका को बिठा कर बीती सारी घटनाओं को एक एक करके बताती और समझती है।

दिन अपने हिसाब से बीत रहा था। दीक्षा, शुभ, रितिका और तूलिका को बहुत हद तक सभी ने हथियार चलाने की शिक्षा दे रहे थे। रात का वक़्त दीक्षा अकेली गार्डन मे तलवार चलाने का अभ्यास कर रही थी। तभी दक्ष सब के साथ बाहर से आता है और दीक्षा को अकेले अभ्यास करते देख। अतुल कहता है ये भाभी इतनी रात को भी अभ्यास कर रही है। दक्ष कहता है तुम सब जाओ मै आता हूँ।सभी चले जाते है।

दक्ष पीछे खड़ा होकर दीक्षा को देखता है फिर अपनी कोट को उतार कर रख देता है और शर्ट की सलीव को मोड़ते हुए तलवार उठा लेता है। दीक्षा उस पर ध्यान नहीं देती की वो कबसे उसे खड़ा होकर देख रहा होता है और ज़ब उससे बर्दास्त नहीं होता तब तलवार लेकर उसके पास आता है।

दीक्षा ज़ब घूम कर अपनी तलवार चलती है तो दक्ष अपने तलवार से रोक देता है। आप कब आये। ज़ब आप अपने मे तलवार चला रही थी,"स्वीट्स "।

वो मै प्रैक्टिस कर रही थी दक्ष। वो मुस्कान के साथ कहता है तो चलिए जरा आजमा ले की आपने कितनी प्रेक्टिस की है, सम्भालिये स्वीट्स  कहते हुए वार करता है। लेकिन इतनी रात मे क्यों? क्योंकि हमे नहीं मालूम दक्ष कल क्या हो जाये, बस हम कोई चूक नहीं चाहते है। देख लीजिये रानी सा कहीं आप हमे तो नहीं भूल रही है। बिल्कुल नहीं राजा साहब!!

दोनों एक दूसरे को टककर दे रहे थे और बाक़ी सभी उन्दोनो की तलवारबाजी देख रहे थे।

पृथ्वी थोड़ी तेज आवाज़ से कहता है, दक्ष, बहुरानी मेरी सागिर्द है तुमसे हारेगीं नहीं। पृथ्वी की बातें सुनकर दक्ष कहता है, देखते है भाई सा!!

फिर दीक्षा की तरफ देखते हुए कहता है, स्वीट्स बहुत जल्दी आप सिख रही है। बातों मे मत फ़साइये दक्ष पहले इस पर ध्यान दीजिये कहते हुए उस पर वार करती है। फिर दक्ष के एक वार से दीक्षा के हाथों से तलवार छूट जाती है। सभी आते है दक्ष भी तलवार फ़ेंक कर उसकी तरफ आते हुए, उसकी हाथों को पकड़ कर कहता है, आप ठीक है!आपको चोट तो नहीं लगी।

नहीं दक्ष हम ठीक है।

अनीश और अतुल कहता है, वैसे भाभी से आपने तलवार बाजी बहुत अच्छी सिख ली। उन्दोनो की बात सुनकर तूलिका और रितिका कहती क्या हम लोगों ने चाकू चलाना सीखा है। अनीश धीरे से कहता है, क्या यार अतुल जिस दिन से शादी हुई ये देवी से काली माँ बन चुकी है।

पृथ्वी उन्दोनो की बातें सुनकर कर कहता है, शादी करने बाद लडकियाँ गर्लफ्रेंड नहीं बीबी बन जाती है तो तुम दोनों भूलो मत।फिर दीक्षा की तरफ देखते हुए कहता है आपने बहुत अच्छा सीखा है। दीक्षा मुस्कुरा कर सर झुका लेती है।

सभी दीक्षा को कहते है आपने बहुत अच्छा चलाना सिख लिया है। दीक्षा मुस्कुरा कर सबकी बातों को सुनती है। शुभ कहती है, चलिए खाना तैयार है। सभी उसके साथ बढ़ जाते है। दीक्षा जाने लगती है तो दक्ष उसे पीछे से पकड़ लेता है और धीरे से उसके कानों मे कहता है, बिना हमे हमारा इनाम दिए आप कहीं ना जा सकती स्वीट्स!!!

दीक्षा उसे धीरे से कहती है, आपको नहीं लगता की आप कुछ ज्यादा लालची होते जा रहे है, दक्ष। उसे बाहों मे उठाते हुए कहता है, बिल्कुल नहीं रानी सा।

अंदर आते है तो अनीश कहता है, अब ये दोनों कौन सी छिपन -छीपाई खेलने लगे। शुभ हँसते हुए कहती है, आप उन्दोनो को छोड़िये.  । वो दोनों आ जायेगे। रितिका कहती है आज कल तुम्हारी जुबान कुछ ज्यादा नहीं चल रही है!रितिका की बात सुनकर अनीश कहता है, "आज कल तुम भी कुछ ज्यादा नहीं बोल रही हो।"

शुभ कहती है चुप हो जाओ दोनों और चलो। वो दोनो आ जायेगे।

दीक्षा को गोद मे लेकर दक्ष उसकी आखों मे देखता है और उसी तरफ गोद मे लिए उसके होठों को चूमने लगता है। दीक्षा के हाथ खुद ब खुद उसके गर्दन पर चली जाती है। दोनों दस मिनट की गहरी चुम्बन के साथ अंदर आते है। दीक्षा की नजरें निचे झुकी होती है लेकिन दक्ष उसी तरह बिना भाव के सबके साथ आकर बैठ जाता है।

सभी मुस्कुरा रहे होते है और तूलिका कहती है, दीक्षा तू और जीजू कहा रहा गए थे। दीक्षा कुछ कह नहीं पाती है तो दक्ष कहता है, "कल हम प्रजापति महल जा रहे है।"

पृथ्वी उसका बात सुनकर कहता है । मै आज ही निकल रहा हूँ और कल तुम सब आ जाना। दो दिन मे शादी है तो सारी रस्मे वही होगी।

ठीक है फिर दक्ष कहता है, हम कल मिलते है।