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जर्नी टू अनॉदर वर्ल्ड

बदनसीबी का कोई चेहरा होता, तो वो बिलकुल मेरे जैसा होता। हेलो दोस्तों, मेरा नाम सूरज पाटिल है और मै दूसरी दुनिया मे फस गया हु। जिसे हम 'पैरेलल वर्ल्ड' के नाम से जानते है। ये सब कब, कैसे हुआ, पता नही... पर इतना जरूर पता है की, मेरी अच्छी-खासी लाईफ की एक झटके मे बँड बज गयी है। हे भगवान, ये सब मेरे साथ ही होना था?

D_World · Fantasia
Classificações insuficientes
13 Chs

Chapter 03- मेरे तो लग गए!

नशा एक ऐसी चीज होती है, जिसके अंदर आदमीको सच-झूठ का पता ही नहीं चलता।

कई घंटे बाद...

मैंने धीरे धीरे अपनी आँखे खोली। खिड़कीसे आनेवाली रौशनीके कारण मेरी आँखे आधी बंद थी। मै धीरेसे उठ खड़ा हुआ। मेरा सर काफी भारी हो गया था और दर्द भी ज्यादा कर रहा था। कल रात क्या हुआ है, मुझे ठीकसे याद नहीं आ रहा था। फिलाल मै जहापे था, वो एक घर का कमरा था। उसकी हालत से ये साफ पता चल रहा था की, पिछले कई सालोसे ये बिलकुल खाली है। मकड़ीके जाले, गंदगी, धुल से वो घर सजा हुआ था। मै यहापर आया कैसे, ये सवाल मेरे भारी दिमाग़ मे तूफान मचा रहा था। मै उस घरको टटोलने लगा। तभी... मेरी नजर सामने के दिवार पे लगे बड़े से-पुराने शीशे के ऊपर चली गयी।... क्या... क्या मै इसके अंदरसे यहाँ पहुंचा हूँ? धुँधलासा कुछ याद आने लगा। मै धीरे -धीरे शीशे की तरफ बढ़ा। अपना हाथ शीशेकी ओर बढ़ाया... शीशे को छुआ।... वो एक शिशाही था। एक साधारण शीशा। मुझे खुदपर हसीं आयी। सचमुच नशेकी हालत मे इंसान को कुछ भी महसूस होता है। मैंने अपनी घड़ीमे देखा। शामके 4बजे थे। मै अपने कपडे झटकके घरसे बाहर आया।

उस पुरे इलाकेमे सिर्फ घास ही नजर आ रही थी। हवाके झोंकोपे लहराती हुयी घास। इस घरको छोड़, वहाँपे कुछ नहीं था। पता नहीं, मै नशे मे कोनसी जगह आया था। मै सामनेवाली सडकके पास गया। गाडीका इंतजार करने लगा। एक गाड़ी आयी-मैंने लिफ्ट का इशारा किया-गाडी रुक गयी।

गाड़ीका शीशा निचे करके उस आदमीने पूछा, "कहाँपे?"

... फिलाल मेरा सर बहुत दर्द कर रहा था। मुझे एक strong कॉफीकी जरुरत थी तो...

*-*-*

वो गाड़ी शहरमे आके एक चौक मे रुक गयी। "थैंक्स", कहकर मै निचे उतर गया-गाड़ी चली गयी। मै अपने आजु-बाजु देखने लगा और मेरा सर फिरसे चक्कर खाने लगा। ये जगह कोनसी है, मुझे पता नहीं था। होटल्स, बिल्डिंग्स, रोड, कार सब कुछ दिखाई दे रहा था पर ये जगह कोनसी है, ये एरिया कोनसा है, काफ़ी सारे सवाल मेरे मनमे घर करने लगे। मै यहाँ-वहां देखने लगा। साला मै शहरमे इतना घुमा हूँ, मुझे शहरका चप्पा-चप्पा मालूम है पर ये जगह कभी नहीं देखि थी। कहीँ मै नशेकी हालतमे दूसरे शहर तो नहीं आ गया?... और देखते-देखते मेरी नजर एक कॉफ़ी शॉपपे जा रुकी।... सब सवाल मेरे मनसे डिलीट हो गए।... फिलाल, कॉफ़ी पी लेते है। मै कॉफ़ी शॉप की तरफ बढ़ा।

*-*-*

"Your order, sir?"

"One strong black coffee please!"

मै खिड़कीवाले टेबल पे बैठा कॉफ़ी का इंतजार कर रहा था। बाहरका नजारा देख रहा था। मैंने अपने घरपे कॉल किया होता पर... दोनों सिमकार्ड बंद दिखाई दे रहे थे। कॉफ़ी शॉप छोटा मगर सुन्दर था। वेटरने गरमागरम कॉफी लाके मेरे टेबल पे रख दी। मैंने कप को अपने दोनों हाथोमे पकड़ा और उस कप की गर्माहटने मेरे दिल को पिघला दिया। मैंने कॉफ़ी का घूंट लिया। वाह्ह्ह... क्या बेस्ट फीलिंग आई यार! भागंभाग करनेके बाद आप जब कॉफ़ीका घूंट लेते हो, माँ-कसम, पूरी थकान झटकेमे भाग जाती है। मेरा सूखा-मुरझाया चेहरा अब खिलने लगा। कुछ भी कहो यार, पर इस दिन का ये पल मुझे काफ़ी सुहावना लगा।

कॉफ़ी ख़त्म करके मै एक स्माइल के साथ उठ गया। बिल भरनेकेलिए काउंटर पे आ गया।

"How much?"

"50rupees.", काउंटरपे बैठे पतले केशियरने मुझे कहाँ।

मैंने जेबसे पचास का नोट निकाला और काउंटरपे रखके चलने लगा तब... उस केशियरने मुझे आवाज दी,

"सर !"

मै उसके पास आया,"yes."

"सर... पैसे?"

उसने शायद मैंने रखे हुए नोटको नहीं देखा था। मैंने वो पचास का नोट उसकी ओर बढ़ाया और फिरसे निकलने लगा। तभी,

"सर!"

"अब क्या है?", मैंने थोड़ा परेशान होके बोला।

"सर... पैसे?"

"ये रहे पैसे!", मैंने उस नोट पे ऊँगली रखते हुए कहाँ।

"सर, क्यों मज़ाक कर रहे हो, पैसे दे दोना।", उसने फिर से वही बात बोली।

मुझे थोड़ासा शक हुआ। मैने उसके थोड़ा नजदीक जाके पूछा,

"Prank चल रहा है ना?"

"वो क्या होता है सर?", prank इस शब्दको उसने पहली बार सुना हो, इस तरह उसने कहाँ।

सबसे बुरा पल ! जब आपका मूड बहुत अच्छा हो पर कोई उस अच्छे मूड की बँड बजाये।

"सर, जल्दी पैसे दे दो ना। मालिक चिल्लायेंगे। ", उसने याचना करतेहुए कहाँ।

"अरे तो ये रहे तुम्हारे पचास रूपए। यहाँ रखे है, फिर भी पूछ रहा है यार", मैं भड़क गया।

... हमारा शोर सुनके शॉपका मालिक हमारे पास आया। उसने चौड़ेवाली आवाजमे केशियरसे पूछा,

"ये क्या चल रहा है? सर को परेशान क्यों कर रहे हो?"

"मालिक, देखोना। कॉफ़ी के पैसे नहीं दे रहे।", उसने फिरसे वही दोहराया।

उस मालिकने मुझसे कहाँ, "क्या सर! अच्छे-खासे घरके लगते हो और ऐसी हरकत? जल्दी से पैसे दे दो।"

... अब मेरा दिमाग़ आपेसे बाहर गया। मैंने उस नोटको उठाया और उसे दिखाते हुए बोला,

"ये रहे पैसे। इतना दिखाई नहीं देता। "

"सर, आप मजाक मत कीजिये... "

उसकी बातको बिचमे ही काटते हुए मै भड़का,

"मज़ाक? तुम लोग क्या पागल खानेसे आये हो क्या?", मै उस नोटको मालिकके आँखोंके सामने दीखाते हुए कहने लगा, "ये रहे तुम्हारे पचास रूपय।"

मालिकने उस नोटको हाथमे लेके घूरते हुए कहा,"अरे ये क्या रद्दी दे रहे हो!"

"रद्दी!", मै पुरा का पूरा शॉक हो गया। पूरी लाइफ मे मेरे भेजेकी इतनी वाट कभी नहीं लगी थी। मालिक उस नोट को घूरे जा रहा था। वो आगे बोला,

"रद्दी नहीं तो क्या? मैंने आपको पैसे देनेकेलिए बोला और आप हो की, ये रद्दी दे रहे हो?... और इसपे ये फोटो किसकी है? आपके पिताजी है क्या? "

"What? तू इन्हे नहीं जानता? ", मै चिल्लाया।

"नहीं।"

"अबे कैसा देशभक्त है तू? बापुको पहचाननेसे इनकार कर रहा है! अबे अंग्रेजोने हमपे देड़सौ साल तक राज किया था, तब इन्होने हमें आजादी दिलाई थी। भूल गया क्या?", मै चिल्लाने लगा।

"चुप!", उसने जोरसे अपना हाथ टेबलपे पटका। मै जरासा हिल गया। उसने गुस्सेसे कहाँ,"पागल है क्या तू? कौन अंग्रेज, कौन बापू, किसपे राज किया? तू सीधी तरीकेसे मेरा पैसा दे दे। "

"हां तो तूने अपने हाथ क्या मेरा...प... पैसा ही तो पकड़ा है। ", मैंने भी डटके कहाँ।

अब तगड़ा झगड़ा होनेवाला था तभी... वो केशियर मालिक के कानमे कुछ खुस-पुस करने लगा, "मालिक, ये पागल लगता है। इसके साथ भैस करके कोई फायदा नहीं बल्कि हमारी शॉपका ही नाम ख़राब हो जायेगा। "

मै उनकी तरफ देख रहा था। क्या खिचड़ी पक रही है, समझनेकी कोशिश कर रहा था। उन दोनोंकी खुस-पुस बंद हो गयी। उन्होंने मुझे देखा..

... मुझे धक्के मारके सालोने बाहर निकाला।

अब इतनी बेइज्जती होनेके बाद, खिला हुआ चेहरा फिरसे मुरझा गया। कहते है की, दिन की शुरुवात ख़राब हो जाये, तो पूरा दिन ही ख़राब जाता है। और मेरी सुबह तो शामके 4 बजे हुयी थी। इसका मतलब ये तो पक्का था की, मेरी रात जरुर ख़राब जानेवाली है।

*-*-*

... शामके 5:30बजे थे। मै कॉफ़ी शॉपसे निकलने के बाद... सॉरी... निकालनेके बाद, मै वापस जानेकी तैयारीमे लग गया। घर कैसे जाऊ, कुछ पता नहीं चल रहा था। लोगोसे एड्रेस पूछनेपर "हमें नहीं पता", ऐसे जवाब मिलने लगे। घरपे फ़ोन करनेकेलिए मोबाइलमे सिग्नल नहीं था और उपरसे मै बिना बताके आ गया था। बचपनसे माँ-बापको बताके बाहर जाता था, तब कुछ नहीं हुआ। और कल बस एक दिनकेलिए बिना बताके क्या गया, घरका रास्ता ही भूल गया। मैंने बहुत लोगोसे अड्रेस पूछा, मेरे शहरका रास्ता पूछा पर कुछ नहीं मिला।

... शामके 6बज गए। मै एक बेंचपे बैठ था। मेरी पिठ सड़ककी ओर थी और सामने कुछ दुकाने थी। ये सब हो क्या रहा है, ये सोचने लगा। मेरे सामने एक टीवी की दुकान थी। दुकान कांच की थी तो, बाहरसे मुझे टीवी पर क्या चल रहा है, वो साफ-साफ दिखाई दे रहा था। मैंने जेबसे इयरफोन निकाले और कानमे लगाए। धीरेसे आजु-बाजू का शोर काम हुआ। इस बेकारसी दुनियाको इग्नोर मारके मै गानोंकी दुनियामे खो गया। धुनके ऊपर मेरे पैर अनजानेमे जमीं को लाथ मारने लगे। होंठ गानोंको दोहराने लगे।

अचानक से, उस टीवीके दुकान के बाहर भीड़ बढ़ने लगी। और ज्यादा। शायद टीवीपर कुछ खास चल रहा था। मुझे उसमे कोई इंट्रेस्ट नहीं था फिर भी मेरी नजर घूमते-घूमते उस भीड़पे आके रुक रही थी।... इनसानी फितरत!अगर सामने ऐसा नजारा हो तो, आखिर क्या मामला है, ये जाननेकी दिलचस्पी बढ़ती है। और मै ठहरा आम इंसान।... मै भीड़ की और गया। थोड़ी साइड ले-लेके मै सबसे आगे जा पहुंचा। सब लोगोकी आँखे टीवीपर जड़ी थी। टीवी पे एक ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी।

न्यूज़ -"अभी-अभी हमारे शहरमे दिल दहलानेवाली घटना घटी है। मशहूर बिज़नेसमन रविराव की कल रातको सडकपर लाश मिली है। उनकी गोली मारकर हत्या की गयी है। उनके कातिल का अभीतक कोई पता नहीं चला पर सूत्रोंके अनुसार ये कत्ल करनेवाला शक्स (टीवी पर एक आदमीकी फोटो आती है) ये है।"

मेरे पुरे लाइफमे मुझे कभी ऐसा सरप्राइज नहीं मिला था। कत्ल करनेवाले शख्स फोटोमे और कोई नहीं, मै था। मेरे दिल की धड़कन थम गयी। आँखे फटी की फटी रह गयी। ये कैसे हो सकता है, न्यूज़वाले मेरा फोटो क्यों दिखा रहे है, मैंने कोई कत्ल नहीं किया फिर... ये सब क्या है?

सिंपल भाषामे बोलू तो... मेरे लग गए थे।

-go to next chapter...

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