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अगर इतना ही सम्मान की पडी है तो वैदेही को बिठा दीजिए l

Chapter - 35

अगले दिन...

श्रीशि तैयार होकर नीचे आती है शादी की सारी रस्में शुरू हो गयीं थीं सारे नौकर - चाकर इधर उधर भाग रहे थे कि कोई भी कमी न हो तैयारियों में और ज्यादा समय भी न लगे ये सब श्री खड़ी होकर देख रही थी l

तभी उसके पास शगुन का थाल लिए कृशव आता है और उससे बोलता है - ये तुम्हारी माँ ने दिया तुम्हें देने के लिए l

श्री उसे देखती है और बोलती है - तुम तो बहुत खुश होगे मेरे विवाह की तैयारियां देखकर है न l

कृशव - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है श्री..

श्री थोड़ा उदासी में और चिड़चिड़े स्वभाव में कहती है - बस अपनी ये झूठी हमदर्दी अपने पास रखो मुझे इसकी कोई जरूरत नहीं है वैसे भी मुझसे बड़ा दुर्भाग्यवान इस संसार में कोई नहीं है क्या तुम अपने प्रेम को किसी और का होता हुआ देख सकते हो लेकिन मुझे इनसे छीन नहीं सकते l

कहते हुए उसके आँखे भरी हुईं थीं कृशव उसे देख बोला - तुम दुर्भाग्यवान नहीं हो जो मुझे भाग्यशाली बनाती है वो दुर्भाग्यवान कैसे हो सकती है l

श्री - तुम बाते न बनाओ मेरे पास ऐसी कोई वजह नहीं है जो मुझे खुशी दे सके तुम भी नहीं मेरा हृदय दुखा और इसकी पीड़ा ये संसार नहीं ठीक कर सकती l

ये कहकर श्रीशि ने थाल ली और अपने कमरे में जाने लगी कृशव उसे जाते हुए देख रहा था और खुद से बोला - तुम अपने आत्मविश्वास को जागृत नहीं कर पा रही हो तुम्हें अपनी भावनाओं को अपने अंदर दबाना ही होगा नहीं तो भविष्य में होने वाले उस धर्मयुद्ध का क्या होगा जिसकी तुम निर्माता हो l

और ये सिर्फ तुम्हें ही करना हो तुम भाग्यशाली हो जिसके लिए तुम्हें चुना गया है जिससे इस संसार को एक नयी दिशा मिलेगी तुम्हें अंदर से मजबूत बनना होगा तभी ये कार्य सम्भव है l

कृशव ये बोलकर अपनी आँखे बंद कर लेता है और उसे कुछ चित्र दिखाई देने लगते हैं जैसे एक बूढ़े आदमी को कोई मार रहा था और ईश्वर का नाम ले रहा था कुछ बच्चे काम कर रहे थे असुर औरतों के बाल पकड़ उन्हें घसीट कर ले जा रहे थे l

और वो ऊपर वाले को याद कर रही थी - हे ईश्वर हे प्रभु हे संसार की माता हमारी रक्षा कीजिए इन असुरों से हमें बचाएँ इनके प्रकोप से इनके अत्याचारों से हमें मुक्त करायें

वो औरत रो रही थी उसके आँखों से आँसू बह रहे थे कृशव के बंद आँखों से आंसू उसके गाल पर आ जाते हैं l

तभी उसे कोई बुलाता है वो अपनी आँखे खोलता है तो देखता है कि सुगंधा उसे गुस्से से घूर रही थी कृशव ने पूछा - जी आपने बुलाया l

सुगंधा - तुम क्या सृष्टि के संचालन कर्ता हो जो यहाँ खड़े होकर आँखे बंद कर संसार देख रहे हो l

कृशव - जी जा ही रहा था l

सुगंधा - एक बावर्ची हो तो बावर्ची का काम करो जाकर न कि राजा बनने की तैयारी समझे l

कृशव ने सर हिलाया और वहाँ से चला गया फिर सुगंधा और नौकरों पर चिल्लाने लगी - जल्दी जल्दी हाथ चलाओ समझे तुम सब हमारी राजकुमारी का विवाह है कोई कमी नहीं रहनी चाहिए समझे l

जी - नौकरों ने कहा और जल्दी जल्दी हाथ चलाने लगे दिन बीतने लगे श्री और कृशव बस एक दूसरे को देखते लेकिन श्री कोई बात नहीं करती उससे फिर एक हफ्ता बीतने के बाद वो दिन आ गया जिस दिन श्री की शादी थी l

महल में बहुत चहल पहल थी सभी जोरों सोरों से शादी की तैयारियों में जुटे हुए थे राजा रानी भी कोई न कोई काम कर रहे थे श्री अपने कमरे में बैठी थी तभी केशवी, सुगंधा कुछ दासियों के साथ आती हैं l

केशवी श्री को पूजा की थाली देती है और उसे कहती है माता के मंदिर का दर्शन करके आए श्री ने पूजा की थाली ली वैदेही और अपनी सहेलियों के साथ उसी माता के मंदिर जाने लगी केशवी ने साथ में कृशव को भी भेजा सभी माता के मंदिर आए श्री ने पूजा की l

और हाथ जोड़कर आँखे बंद कर मन में बोली - हे जगत माता आप ही सब के भाग्य की विधाता हैं और आप ही सबको एक दूसरे से मिलाती हैं इसलिए मैं भी अपनी आश लेकर आपके पास आई हूँ मेरा विवाह उसी से हो जो मुझसे प्रेम करेगा इस जगत का संरक्षण बनेगा इस संसार को एक नयी दिशा दिखाएगा मेरी आपसे यही विनती है l

वो सोचने लगी कि मैं क्या बोल रही हूँ उसे खुद ही कुछ समझ नहीं आ रहा था सभी महल लौट आए केशवी ने उसे रोक कर उसे तिलक लगाया उसकी आरती की और उसे मीठा खिलाया फिर शादी का जोड़ा उसे दे बोला - इसे पहनकर ही आना l

श्री ने उस जोड़े को लिया और ऊपर चली गई उसके पीछे कुछ दासियाँ भी गयीं उसे तैयार करने के लिए शाम हो चुका था सत्या, अगस्त्य और कृशव रसोईघर में थे सत्या ने उससे कहा - श्रीशि का तो सच में विवाह करने जा रही है तुम कुछ कर क्यों नहीं रहे हो l

अगस्त्य - हाँ तुम क्यों कुछ नहीं कर रहे हो तुमने कहा था कि उसका विवाह नहीं होगा l

कृशव मुस्कुराया और बोला - मैंने कहा था न तो मतलब नहीं होगा तुम सब बस देखते रहो l

तभी उन्हें बाहर आवाजें सुनाईं देने लगती हैं वो बाहर देखते हैं तो सुब्रत और उसके माता पिता बारात लेकर आ गए हैं सूर्य शेन, केशवी, राघव, सुगंधा उनका स्वागत करते हैं वो अंदर आते हैं सुब्रत जाकर मंडप में बैठता है मंत्रोच्चारण चल रहा था l

श्री बिना तैयार होए ही नीचे आती है उसे देख सभी हैरान रह जाते हैं सूर्य शेन और केशवी उसके पास जाते हैं सूर्य शेन कहते हैं - बेटी तुम तैयार नहीं हुई जाओ जल्दी तैयार होकर आओ मुहूर्त बीता जा रहा है l

श्रीशि उन्हें देख बोली - मुझे ये विवाह नहीं करना मुझे माफ़ करिए l

श्री की बात सुन सभी हैरान रह गए सूर्य शेन देखने लगे उसे केशवी उसके पास आई और बोली - ये क्या कह रही हो श्री तुम उपहास मत करो जाओ और तैयार होकर आओ l

श्री - क्षमा करिए माता लेकिन मैं ये विवाह नहीं कर सकती आप कितनी भी कोशिश क्यों न कर लें l

सूर्य शेन उस पर चिल्लाए - ये क्या बोल रही हो जाओ और तैयार होकर आओ मेरे सम्मान के साथ मत खेलो l

श्री ने अपने हाथ जोड़ लिए और कहा - माफ करिए बाबा मैंने आपकी हर बात मानी है लेकिन ये मैं नहीं मान सकती l

सूर्य शेन ने उससे पूछा - लेकिन क्यों तुम ये विवाह क्यों नहीं करना चाहती हो l

सुगंधा और राघव को तो एक बहाना मिल गया था उनको भड़काने का उन्होंने कहा - बताओ श्री अगर कोई बात है तो हमें बताओ कहीं तुम किसी से प्रेम तो नहीं करती हो न l

श्री उसकी बात सुनकर कृशव की तरफ देखने लगी सुगंधा उसके नजर पर नजर रखे हुए थी वो बोली - इसीलिए तो देखिये ये आपका सम्मान किसी और को सौंप चुकी है l

श्री बहते आँखों से कृशव को देखे जा रही थी श्री बोली - आप जैसा समझना चाहती हैं आप समझ सकती हैं अगर आप लोगों को अपने सम्मान की इतनी ही पडी है तो वैदेही को बैठा दीजिए l

ये सुन और भी सब हैरान रह गए l

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