राम्या आश्चर्य से उस शिष्य को देखने लगा जो गुरु जी के चरण में स्खलितहोना हो गया था, वो शिष्य गुरु जी के पैर पकड़ कर रोने लगा था, ये सब देख कर गुरु जी को प्रतिभा नही हो पा रहा था, गुरु जी कुछ बोल पाते उसे पहले वो शिष्य खड़ा हो कर अपने आंसू पोंछ कर इतमीनान से कहने लगे," गुरु जी मुझे छाम्मा कर दीजिए, मुझसे बहुत बड़ी हो गई है!." गुरु जी उस शिष्य की वाक्य सुन कर आश्चर्य से पूछे," परंतु कैसा अभियोग हुआ है!." वो शिष्य गुरु जी शब्द सुन कर कहा," गुरु जी कल रात्रि को हम आपके प्रकोष्ठ में ब्रम्हा शास्त्र को चुगलखोर करने गय थे,अर्थात मैं उस बाण को अगवा नहीं कर पाया!." गुरु जी इस शिष्य के वाक्य सुन कर गुस्सा हो गाय, राम्या भी इस शिष्य का शब्द सुन कर डर गया और सोचने लगा," वो... तो काल में ये था, परंतु कुछ करना होगा नही तो ये सब गुरु जी को कह दिया तो फिर समस्या हो सकता है!." गुरु जी गुस्सा तो हो गय थे परंतु वो शिष्य अपना सत्य वाक्य गुरु जी को कह दिया था, इस लिए गुरु जी उसे तजना कर दिए, फिर वो गुरु जी उस शिष्य से कहे," बालक कोई बात नही, तुम अपना सत्य वाक्य तो अपने गुरु के पास रख दिए, अब तुम जाओ अपना परीक्षण दो!." वो शिष्य वहा से गोला में गया और अपनी धनुष तान कर बाण को छोड़ा, वो बाण सीधा जाकर अशोक चक्र के कर्नेल में लग गया, सारे शिष्य, गुरु जी और ऋषिमुनी देख कर खुश हो गय और इस शिष्य का नाम था आदित्य, गुरु जी फिर से चौथा शिष्य को कहे," पुत्र अब तुम्हारा वक्त है जाओ!." वो चौथा शिष्य भी गया और अपना बाण को छोड़ा परंतु वो बाण कर्नेल से अलग लग गया, सारे शिष्य और ऋषिमुनी देख कर आश्चर्य से शान्त हो गय, परंतु गुरु जी देख कर गुस्सा में कहे," चले जाओ यहां से मत आना कभी यहां पे!." वो शिष्य गुरु जी से ना उत्तर किया और नही प्रश्न किया, सीधा उस आश्रम से निकल कर बाहर चला गया, वो कौवा राज भी पेड़ से बैठ कर सब देख रहा था,परंतु वो कौवा राज काम्या का प्रतीक्षा कर रहा था, कौवा राज उस शिष्य को बाहर निकलते हुए देख कर आश्चर्य से सोचा," लगता है इसी बालक से कुछ खबर मिलेगा काम्या के बारे में, चलता हूं देखता हूं क्या होता है!." वो कौवा राज उस शिष्य के पास चल दिया, वो शिष्य जैसे एक पेड़ के पास गया, तभी वो कौवा राज उस शिष्य के पास उस पेड़ पे जाकर बैठ गया, वो शिष्य आश्चर्य से उस कौवा राज को देखा, तो कौवा राज उस शिष्य से पूछा," बालक तुम कहा जा रहे हो, अर्थात तुम्हारे मन से पता चलता है की तुम्हारे गुरु जी ने तुम्हे आश्रम से बाहर कर दिया है!." वो शिष्य उस कौवा राज की वाक्य सुन कर आश्चर्य से पूछा," परंतु आप है कौन और मेरे बारे में इतना ज्ञान कहां से आया आपको!." वो कौवा राज उस शिष्य का वाक्य सुन कर कहा," बालक ये सब तो उप्पर वालों का देन है, अर्थात तुम से एक शब्द पूछना था क्या सत्य जवाब दोगे!." वो शिष्य उस कौवा राज की बात सुन कर इतमीनान से कहे," अवश्य बताऊंगा, आप प्रश्न तो कीजिए!." वो कौवा राज उस शिष्य से पूछा," क्या तुम काम्या को जानते हो, अर्थात यदि जानते हो तो मुझे उसे मिला सकते हो!." वो शिष्य कौवा राज की वाक्य सुन कर आश्चर्य से कहा," परंतु आप तो एक पक्षी हो, फिर भी मनुष्य को कैसे जानते हो!." वो कौवा राज उस शिष्य का शब्द सुन कर इतमीनान से जवाब दिया," बालक क्या मुझे हक नही है मनुष्य को पहचानने की,अर्थात जो हम लोग के अंदर है वोही मनुष्य में भी प्रकट है, बस फर्क इस बात की है की आप लोग बोल सकते है और हम लोग नही बोल सकते है!." वो शिष्य उस कौवा राज की बात सुन कर आश्चर्य से कहा," हा ये वाक्य तो सत्य है परंतु आप किस काम्या की शब्द कर रहे है!." वो कौवा राज इत्मीनान से कहा," तुम्हारे सारे शिष्य में एक राम्या नाम का भी शिष्य है, काम्या उसी की बहन है!." वो शिष्य उस कौवा राज की बात सुन कर घबरा गया और आश्चर्य से कहा," परंतु राम्या की बहन को हम क्या हमारे गुरु जी भी नही देखे है, अर्थात आप को कैसे ठाँव हुआ की काम्या राम्या की बहन है, परंतु मैने तो कभी नही देखा!." वो कौवा राज उस शिष्य को इतमीनान से कहा," बालक ये तो मुझे भी नही पता, ये तो मेरे महाराजा ने मुझे यहां भेजा है अज्ञात करने के लिए!." वो शिष्य उस कौवा राज की बात सुन कर आश्चर्य से पूछा," परंतु आपका महाराजा कौन है, आप तो एक पक्षी हो!." वो कौवा राज इतमीनान से कहा," हा मैं एक पक्षी हूं, परंतु जैसे तुम्हारे गुरु है वैसे ही मेरे भी गुरु है,अर्थात तुम को ऐबी ना हो तो मैं एक वाक्य कहना चाहता हूं!." वो शिष्य उस कौवा राज की वाक्य सुन कर कहा," अवस्य!." वो कौवा राज इस शिष्य की बात सुन कर इतमीनान से कहा," यदि आप मेरे साथ मेरे महाराजा के पास चल कर और मेरे महाराजा को यकीन दिला सकते है की राम्या की बहन कोई काम्या नही है, तो मैं आपका सदा सुक्रगुजार रहूंगा!." वो शिष्य उस कौवा राज की वाक्य सुन कर कहे," परंतु आपका महाराजा रहते कहां है!." वो कौवा राज उस शिष्य के शब्द सुन कर कहे," हमारा महाराजा निम्नगा का उस पार रहते है को हम लोग का एक अलग सा लोक है!." वो शिष्य उस कौवा राज की वाक्य सुन कर कहा," परंतु उधर जाने को तो कोई पगडंडी नही है तो हम कैसे जायेंगे, अर्थात हम अपने गुरु की आज्ञा के बिन कही नही जाते तो हमे अपने गुरु से आज्ञा लेना पड़ेगा!." वो कौवा राज उस शिष्य की बात सुन कर रोने लगा, और साथ ही कहने लगा," ठीक है बालक आप मेरा मदद नहीं करना चाहते हो तो आप जा सकते हो, मैं यहीं पे अपनी जिंदगी गुजार देंगे!." वो शिष्य कौवा राज की वाक्य सुन कर घबरा गया और आश्चर्य से कहने लगा," परंतु रो क्यों रहे हो, में बोला ना अपने गुरु से आज्ञा लेकर आता हूं!." वो कौवा राज उस शिष्य की आवाज सुन कर कहा," ठीक है बालक मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा, जाओ अपने गुरु से आज्ञा लेकर आओ!!." वो शिष्य उस कौवा राज की वाक्य सुन कर वहा से फिर वापस हरिदास बाबा यानी अपने गुरु जी के पास चल दिया,
गुरु जी अपने पांचवे शिष्य को गोला के अंदर खड़ा किए थे, और वो अपना धनुष अशोक चक्र की तरफ तना हुआ था, पांचवे शिष्य जैसे अपना बाण को छोड़ा वो बाण जाकर कर्नेल से अलग लग गया, फिर से सब सारे शिष्य और ऋषिमुनी शांत हो गय, और गुरु जी गुस्सा हो गय, तभी वो कौवा राज के पास से शिष्य गुरु जी के सामने आकर खड़ा हो गया था, गुरु जी उस शिष्य को देख कर आग बबूला हो गय थे.,
to be continued....
क्या होगा इस कहानी का अंजाम, क्या गुरु जी चौथे शिष्य को आज्ञा देंगे उस कौवा राज के साथ महाराजा के पास जाने के लिए, या फिर क्या होगा परीक्षा में हो गया जानने के लिए पढ़े " RAMYA YUDDH-RAMAYAN SHROT"
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