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टिफिन

आयत अगले दिन से उसके लिए टिफिन तयार करती है जो की शाहिद बिना लिए चला जाता आयत को बुरा तो लगता है लेकिन वो हार नही मानती ऐसे ही आयत रोज उसके लिए टिफिन तयार करती और शाहिद उसको हर्ट करने के लिए जानबूझ कर छोड़ कर जाता एक दिन सुबह आयत शाहिद से हिम्मत करके बोलती आपकी नाराज़गी मुझसे है खाने से नही मे घर मे अकेले रह कर बोर हो जाती हु इसलिए यह सब काम करती इसको ज्यादा सोचने की जरूरत नही है आपको और टिफिन टेबल पे रख चली जाती उस दिन शाहिद टिफिन ले जाता यह आयत की पहली जीत थी शाहिद को अपने हाथ का बना खाना खिलाना भी उसको एक गर्व की बात लगती वो रात को शाहिद का इंतज़ार करती शाहिद के आते ही उसके चहरे गुलाब की तरह खिल जाता वो उसको गले लगाना चाहती थी शाहिद को देखते ही वो एक अलग ही खुशी चाहे वो उसको देख भले ही खुश न होता हो आयत शाहिद के लिए डिनर लगाती और उसको पास चुप बैठ उसको देखने लगती शाहिद को इस बार हिम्मत नही हुई की वो यह सब छोड़ चला जाए तो शाहिद कहता तुम नही खा रही हो? आयत हड़बड़ा कर जवाब देती जी मैं भी खा रही हु और कापते हाथो से अपने लिए खाना निकलती यह पहली बार था की शाहिद आयत से कुछ सही से बोला शाहिद सोने के लिए जाना ही वाला था की आयत उसे बोलती शाहिद एक बात पूछनी करनी थी मुझे आयत उसकी तरफ देखता अब क्या है आयत कहती कभी अकेली नही रही हु मैं मुझे उस अकेले कमरे में डर लगता है आप बेड पे सो जाना मै सोफा पर लेकिन plz उस केमरे मे ही सोए आयत यह कहते हुए डर रही थी और शाहिद ने उसकी यह बात सुन कर भी कोई वैल्यू भी करता और चला जाता आयत अपने कमरे में जाती हालाकि आयत एक मज़बूत लड़की थी फिर भी अब उसे अकेले नही रहा जाता था मानो अकेलापन उसको काट रहा हो वो रूम की लाइट ऑफ करके सोने की ट्राई ही करती की उसको अपने कमरे में किसी के पारो की आहट सुनाई देती वो जल्दी से लाइट ऑन करके देखती तो वो शाहिद था आयत का दिल धड़कता यह बहूत छोटी बात थी लकेन फिर भी यह उसके लिए स्पेशल था शाहिद वही सोफे पर सो जाता आयत उस रात बस शाहिद को देखती रहती वो उसको एक ख्वाब लगता और यह बात शाहिद को पता थी लेकिन यह अजीब बात थी की शाहिद को यह अच्छा लगरा था उसको न चाहते हुए भी यह अच्छा लगरा था ऐसे ही कुछ दिन चला अब शाहिद आयत को कुछ कहने की हिम्मत नही कर पाता था उसके अंदर से यह गवारा नही होता