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BHARAM...part--1

"नूर" ये है हमारी कहानी की नायिका जो कार में बैंठी कार के विड़ों से बाहर झांकती हुई चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए रेडियों सुनती जा रही होती है। और साथ ही साथ दुसरी तरफ वरदा भी अपने गारडेन में बैंठे हाथ में गुलाब का फुल लिए रेडियों सुन रही होती है। रेडियो पर R.J. मारिफ-- जनाब बात यु कुछ है कि हम सबको एक दुसरे से बहोत सारी शिकायते होती है अपनो से शिकायते होती है। दुसरो से शिकायते होती है। बाहिर गाड़ी चलाते वक्त दुसरे कि गलत ओवर टेकिंग से शिकायत होती है। पार्किंग में किसी दुसरे गलत पार्किंग से शिकायत , हॉस्पिटल में डॉक्टर के लापारवाही पे शिकायत, अपने बच्चों की बेहतर मुस्तकबिल के लिए किसी अच्छे स्कूल में एडमिशन ना होने से शिकायत और एडमिशन हो भी जाता है तो उस स्कुल के भारी भरकम फीस से शिकायत---नहीं मैं ये बिल्कुल नही कह रहा कि ये शिकायतें दुरूस्त नही है मैं सिर्फ ये कहना चाह रहा हुं कि जरा सोचिए कि इस सब बीमारियों को सच बनाया किसने है। ऑफकॉर्स आपने , मैंने, हम सबने और ऐसे हर मामले में दुसरे को पॉइंट ऑट करना बहोत आसान होता है। इसिलिए हम सब यहीं करते है। आजकल हर इंसान अपने हाथ में मोबाइल लिए अपने किस्मत लिखने पर तुला है। अब हमें कौन समझाए कि दुनिया में कोई भी ऐसा मोबाइल नहीं है जिसमें अपनी किस्मत को गुगल किया जा सकता हो। किस्मत सवारने के लिए खुद से जुड़े रिश्तो को सवारना पड़ता है खुद से जुड़े रिश्तों को निभाना पड़ता है। और ये बात तो सभी जानते है कि पुराने वक्तों में लोगों का इतना राब्त़ा नही था लेकिन फिर भी एक-दुसरे पर कितना भरोसा था और अब हाल यु हैं जनाब कि राब्त़ा तो हर वक्त रहता है लेकिन भरोसा किसी वक्त नही रहता है। फिर रिश्ते चाहे खुन के हो या दिल के हम सभी इन रिश्तो में नाकाम नजर आते है। और इन रिश्तों से शिकायत करते नज़र आते है कि इन रिश्तों ने हमपे जुल्म किया। जुल्म क्यूं न हो जब मोहब्बत कि जगह नफ़रत को पालेंगे तो जुल्म तो होगा ना "मोहब्बत करनी हमें खुद नही आती और इल्ज़ाम मोहब्बत पर लगाते है। इंसान जिससे मोहब्बत करता है सिर्फ उसी से मोहब्बत करें तो अच्छा है। मोहब्बत में बातों से ज्यादा मोहब्बत निभाना अच्छा लगता है। हम मोहब्बत को इतना कुछ देते नही है जितना मोहब्बत से मांग रहे होते है। जनाब मोहब्बत में देना सीखिए और फिर मोहब्बत के रंग देखिए। ख़ुदा की कसम ये मोहब्बत आपकी जिंदगी बदल देगी। जी जनाब ये तो था मेरा पॉइंट ऑफ भ्यु लेकिन मुझे इंतजार है आपकी पॉइंट ऑफ भ्यु का आपकी पहली कॉल का तबतक ये ट्रैक आप सबके नाम।

वरदा गारडेन से हाथों मे फुल लिए अंदर जाती है और अपने मामा (बरहान) से बोलती है- अस्सलाम वालेकुम मामु।

बरहान- वालेकुम अस्सलाम फिर मुस्कुराते हुए बोले जब भी तुम मुझे इस तरह सलाम करती हो तो मुझे मेरी बहन याद आ जाती है और वरदा के सर पर हाथ रखते हुए बोले जीती रहो। तभी वरदा की मामी (फराह) वहां आती है और फिर इशारो से वरदा को ऊपर जाकर हमाद (जो कि वरदा के मामु का बेटा है) को उठाने को बोलती है।

बरहान- फराह को गुस्से में देखकर बोला हमाद कहाँ है..?

सो रहा होगा अभी तक...?

फराह--नहीं-नहीं हमाद तो जागा हुआ है। वरदा बताने गई है उसे...

बरहान- क्या बताने गई है फराह...क्या बताने गई है कब तक उसकी तरफदारी करती रहोगी तुम...और कब तक वरदा उसके करतुतों पर परदें डालती रहेगी। अगर मैं खामोश हुँ...इसका मतलब ये नही कि मैं कुछ जानता नहीं हुं। उसे कहो कि अपने तौर-तरीकें दुरुस्त कर लें। अपने सोने और जागने के टाइमिंग्स को भी....

फराह- बरहान के बाजु पर हाथ रखकर बोली अच्छा..आप चलें न नाश्ता कर लें...।

वरदा उपर जाकर कमरा खोलती है और जाते ही बोलती है ये लड़का भी न...और करटेन को हटाते हुए बोली हमाद...हमाद...उठ भी जाओ इतनी देर हो गई सारी दुनिया सुरज निकलने पर जागती है...और तुम हमेशा सुरज डुबने पर ही जागते हो। उठो...ऐसे नहीं मनेगा। ठीक है मामुजान बाहिर ही बैठे हुए है मैं खुद उन्हें कह देती हुं कि तुम्हे आके जगा दें..

हमाद-- रुको...

वरदा-- पहले तो तुम जाग नही रहें थे। अब जाग गए हो तो आंखें झपकना भुल गए हो ।

हमाद--मैं तो बस ये देख रहा हुं कि तुम मेरी नींद की दुश्मन क्यूं बनी हुई हो।

वरदा,,नजरे झुकाकर बोली वो तो मेरी नींद के तुम भी बने हुए हो।

हमाद--क्या मतलब..?

वरदा जो कि अभी भी नजरे झुकाए हुए थी,,,वो बोली--सारे मतलब मुझे ही बताने पड़ेंगे या खुद भी कुछ समझोगे...अब जल्दी से उठ जाओं मैं नीचे तुम्हारे लिए नाश्ता बनाकर रखती हुं।

दुसरी तरफ नूर की माँ (इसरत)- अपने मरहूम सौहर की तस्वीर लेकर थोड़ा भावुक होकर उसे देख रही थी। तभी दरवाजे पर नॉक हुआ। इसरत बोली आ जाओ...

फिर एक मुलाज़िमा दरवाजे से ही बोलती है..बीबी जी आपको बड़े साहब बुला रहे है।

इसरत--ठीक है..! फिर वो नीचे हॉल में जाती है और सफ़ीक (नूर के ताया अब्बु) से बोलती है..भाई साहब आपने बुलाया..?

सफ़ीक--अपने हाथ से एक फाइल टेबल पर रखते हुए बोले जी...बैठिये...इसरत मुझे समझ नहीं आ रहा कि मै बात कहा से शुरू करूं...अगर आज मेरा भाई मुस्ताक जिंदा होता न तो मूझे इस तरह से बात ना करनी पड़ती जिस तरह से मैं कर रहा हुँ। क्योंकि ये मेरे मरहूम भाई की बात है...उसकी खुशी और ख्वाइश इसी में थी।

इसरत--भाई साहब...आप बात किजिए मरहूम की ख्वाइश मैं खुद समझ जाउंगी।

सफ़ीक--मासाअल्लाह "लीना" (नूर के ताया अब्बु की बेटी) और "नूर" की पढ़ाई मुकमल हो चुकी है। मैं ये कहना चाह रहा हूं कि दोनों की शादी एक साथ कर देते है।

इसरत--सोचा तो बहोत अच्छा है भाई साहब नूर के वालिद की भी यहीं ख्वाइश होती और मेरी भी यहीं है।

सफ़ीक--हाँ ठीक कह रही हो और ये होनी भी चाहिए।

मेरे मरहूम भाई मुस्ताक कि ये ख्वाइश थी कि उसकी बेटी नूर कि शादी मेरे बेटे ओजैब से हो जाए।

इसरत थोड़ा आश्चर्य होकर बोलती है...बात तो आपकी ठीक है भाई साहब लेकिन,,, बच्चों की मर्जी भी जान लेना जरूरी है।

सफ़ीक--ओजैब की मैं गारंटी लेता हुँ। वो मेरे फैसले से इंकार कर ही नही सकता।

इसरत--बात गारंटी की नही है...बात,,खुशी की है और बच्चें ये रिश्ता खुशी से कुबुल करें तो ख़ुशी होगी।

सफ़ीक--तुम नूर से बात करों अगर उसे,, हां करने के लिए जितना भी वक्त चाहिए दे दो।

इसरत--भाई साहब आपने घर की दुसरी बेटी के लिए क्या सोचा है..?

सफ़ीक थोड़ा मुस्कुराते हुए बोले लीना मेरी बेटी जरूर है लेकिन,,मैं जिस तरह नूर को अपनी बेटी समझता हूं। उसी

तरह तुम लीना को भी अपनी बेटी समझों उसके लिए कोई अच्छा रिश्ता देखो...मुझे पुरा यकिन है इसरत कि,, तुम लीना के लिए जो भी करोगी...अच्छा करोगी...!

नूर रेडियो स्टूडियो पहुंचती है और कांच वाली वींडो से मारिफ को देखकर मुस्कुराती है और मारिफ हेडफोन लगाए कुछ सोच रहा होता है तभी उसकी नजर बाहर खड़ी नूर जो उसे देखकर मुस्कुरा रही होती है,,उस पर जाती है और वो खुशी से अंदर से हाथ हिलाकर हाय करता है फिर हेडफोन उतारकर बाहर आकर बोलता है अरे..ह्वाट अ सरप्राइज तुम यहां...स्टूडियो में...?

नूर--रेडियो पर तुम्हारी आवाज सुनी...सोचा एक बार देख भी लुं...!

मारिफ--चलो! अब आ गई हो तो तसल्ली से आराम से बैठकर देख लो।

नूर--नहीं-नहीं मैं बैठुंगी नही।

मारिफ--जानता था...और बाय द वे तुमने मेरा सो कहा सुना...हा...? तुम तो मेरा सो सुनती नही हो....?

नूर--बिल्कुल सही कहा ना तो मैं तुम्हारा सो सुनती हुँ। और ना ही मैं कोई तुम्हारी फैन हुं। बस वो मैं मारकेट से घर जा रही ही थी तो ड्राइवर ने रेडियो ऑन किया जिस पर तुम्हारा सो आ रहा था...तुम्हारी अवाज सुनी तो,,,सोचा घर जाने की बजाय यहां आ जाउं। क्युं कुछ गलत किया क्या...?

मारिफ--नहीं-नहीं बल्कि बहोत अच्छा किया अभी मैं तुम्हे ही "याद" कर रहा था।

नूर--तुम मेरे सामने,,मेरे ही मुंह पर इतना साफ झुठ बोल रहे हो...? तुम तो सो कर रहे थे न...? याद कब कर रहे थे..?

मारिफ--यही तो तुम्हे समझ नही आता...कि जब भी मैं सो मे मोहब्बत की बात करता हुं तो तुम्हे याद करके करता हुं।

नूर तो मारिफ के आंखों में देखकर उसी में खो जाती है।

फिर मुस्कराकर मारिफ,,,, नूर से बोला-- हैलो...! तुम्हे तो देर हो रही थी तो जाओ...। खड़ी क्युं हो...? अब मैंने अपना मुड चेंज कर लिया है। अब मूझे कॉफी पीनी है..मासुमियत से नुर ने बोला। फिर दोनों हसने लगता है।

ये भी अच्छा है...चलो आओ...अरे...आप कहाँ जा रहे है सो ऑन एयर है स्टूडियो का एक स्टाप मारिफ से बोला..!

मारिफ--अरे...यार एक गाना प्ले हुआ है अगला तुम कर देना देर नही करना। मैं आ रहा हुँ..। फिर कॉफी पीते है और अपने घर के लिए निकल जाती है।

ओजैब --अच्छा शादी कर रहे हो तुम...ये तो बहोत अच्छी बात है हां-हां क्यूं नही शरीक़ होंगे भई बचपन के दोस्त हो तुम जाहिर सी बात है। अरे लाजमी आउंगा..! तभी नूर आती है...और वो अपने कमरे में ओजैब को पुरी तरह अनदेखा करके जाने ही वाली थी...तभी ओजैब अपने दोस्त को बोलता है अच्छा मैं फोन रखता हुं। बाद में बात करता हुं...और फिर नूर से बोलता है--"नूर" एक ही घर में एक ही छत्त के नीचे रहते है हम...ऐसे अजनबी बनकर गुज़र जाओगी तो,,खुन के रिश्तों पर से भरोशा उठ जाएगा मेरा..!

नूर उसकी तरफ पलटकर बोली--ऐसी कोई बात नही है...ऐसे मैं कहुं भी तो क्या कहुं..?

ओजैब--कुछ भी कह दो मैंने भी तो कहा है। आपने कहा कब है आपने तो गिला किया है। ओजैब--तो फिर ठीक है हिसाब बराबर हुआ। कौन-सा हिसाब...? तुमने मुझसे गिला किया... मेरे गिले के जबाव में लेकिन,,,तुमने मुझसे जो गिला किया वो मुझे बुरा नही लगा इतना बोलकर वो कुटिल हंसी हसते हुए चला गया।

और नूर अपने कमरे में जाकर मारकेट से लाई हुई समानों को समेटने लगती है,,,कमरे में उसकी माँ आती है और बोलती है--नूर ये सब छोड़ दो मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है...अम्मी सब ठीक तो है न..? हां-हां सब कुछ ठीक है। ऐसे क्यु देख रही हो..? बात जरूरी, जरूर है लेकिन कोई नई बात नही है..! नूर की मां नूर के हाथों को अपने हाथ में पकड़कर बोली। "मतलब..?" मतलब ये कि तुम जानती हो तुम्हारी पढ़ाई मुकम्मल हो चुकी है..इसलिए तुम्हारे ताया ने तुम्हारे रिश्ते की बात की है। इसी वजह से मैनें कहा कि बात नई नही है। ये बात तो हमेशा से हम सब भी जानते है और तुम भी जानती हो कि ऊपर वाले ने तुम्हारा और ओजैब का रिश्ता बहोत पहले से तय कर रखा है। नूर इतना सुनते ही गुस्से से बेड से उठकर दुसरी तरफ अपना चेहरा किए हुए बोली--अपने तय किए हुए रिश्ते को अल्लाह पर क्युं डाल रही हो..एक बार मुझसे ही पुछ लेती। पुंछ तो रही हुं,,,,यही बात करने तो आयी हुँ। और अगर मैं इंकार कर दुं तो,, मैं यहां ये सोचकर नही आयी थी कि... अभी तुमसे हां करवाऊंगी और ना ही ये सोचकर आयी थी..कि अभी तुमसे ना सुनकर जाऊंगी। लेकिन अगर हां करने में जल्दी नही कर सकती तो ना करने में इतनी जल्दी क्युं कर रही हो। अम्मी प्लीज़... मुझे माफ कर दे अगर आपको कोई भी बात बुरी लगी हो लेकिन मैं ओजैब से शादी नही कर सकती..!!! मैने कहा न..कोई जल्दी नही है जितना वक्त लेना है ले लो अच्छी तरह से सोच लो। "मैं चाहे जितना वक्त ले लुं..जितना सोच लुं...मेरा जवाब वही रहेगा तो फिर...सोचना क्या..? नूर की मां गुस्से मे...तो फिर मूझे वक्त दे दो कि मै सोच लुं जब औलाद मुंह पे इंकार करने लग जाय तो एक मां को क्या करना चाहिए और फिर कमरे से बाहर चली जाती है। और नूर उदास होकर बैठ जाती है। रात के आठ बज चुके थे। इधर वरदा, बरहान और फराह साथ में डिनर कर रहे थे। तभी बरहान ,,फराह से बोला-- तुमने बात की हमाद से..? फराह--जी..! वो कह रहा था कि अगले महीने से आपका ऑफिस जॉइन कर लेगा। बरहान--मैं ऑफिस की बात नही कर रहा हूं उसकी शादी की बात कर रहा हुँ। फराह--नही शादी के बारे में तो कोई बात नही हुई। बरहान--किस चीज़ का इंतजार कर रही हो तुम..? उससे बात करते हुए एक बात तुम भी याद रखना और उसे भी बता देना कि शादी की तारीख और लड़की मैं डिसाइड कर चुका हुँ। बरहान अगर आप फैसला करने से पहले हमाद से उसकी मर्जी पुछ लेते तो...गुस्से मे चम्मच प्लेट में पटकर बरहान बोला--देखो फराह हमेशा से हमाद ने अपनी मर्जी की है लेकिन मैने कभी रोक टोक नही की है। तुम इस चीज़ की गवाह हो लेकिन जब-जब उसने अपनी मर्जी की है न तब-तब गलती की है और शादी एक ऐसा मामला है जिसमे गलती की गुंजाइश नही है तो मैं डिसाइड कर चुका हुं कि वरदा से ही शादी होगी उसकी और बहोत जल्द होगी और बिना खाए उठकर चला गया।

वरदा--मुमानी जान अगर आप ऐसा नही चाहती तो मुझे बता दिजिए मैं खुद इस बारे में मामु जान से बात करूंगी।

बात मेरे चाहने न चाहने की नही है बात तो तुम दोनो की खुशी की है न...और मै तो सिर्फ ये चाहती हुं कि तुम दोनो एक दुसरे को अपनी खुशी से,,अपनी मर्जी से इंतखाब करो। आप मेरी तरफ से तसल्ली रखें अगर ऐसा होता है तो,,,,ये मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी होगी। इस घर में आपलोगो के साथ रहुंगी जिंदगी गुजारुंगी तो मुझे ऐसा लगेगा कि मुझे इसी दुनिया में जन्नत मिल गई। "जीती रहों बेटे...!" देखिए मुमानी जान मैं भी वही चाहती हूं जो आप चाहती है...हमाद अगर मुझे कुबुल करें तो अपने दिल से करें..! खुशी से करे मामु जान का हुक्म समझकर मत करें।

वरदा अपनी दोस्त लीना (नूर की कजिन सिस्टर) से फोन पर --- मेरा कजिन सिर्फ अब मेरा कजिन नही मेरा सौहर बन जाएगा खुशी से वरदा बोली ये सुनकर लीना छन भर के लिए आश्चर्य हो जाती है और फिर बोली अरे..वाह..! ये तो बहोत खुशी खबर सुनाई तुमने,,,लेकिन ये खबर तुम तक पहुंची कब..? तुम्हें पता है लीना मैं हमेशा से जानती थी..''शायद इसी दिन कि इंतजार में जी रही थी। लेकिन ऑफिशियली मामु जान ने बताई!! बहोत खुशनशीब हो तुम वरना ऐसा सबकी किस्मत में कहा होता है कि जिसे चाहां हो उसी के साथ जीया जाय। वरदा--पता है तुम्हे मैं इतनी खुश हुं...इतनी खुश हुं..और इसी खुशी की वज़ह से मैं तुम्हे दुआ देती हुं कि तुम जिसे चाहो उसके साथ जीओ।

ये सुनकर लीना किसी सोच में डुब जाती है..। हैलो...!! लीना तुम चुप क्युं हो गई। चुप नही हुई हुं,,मैं ये सोच रही हु कि ये सारी बातें तुम्हारे कजिन को पता है या नही..।

कैसी बातें कर रही हो जाहिर सी बात है पता तो होगा न...

उसकी मर्जी के बगैर मेरी खुशी कैसे मुक्कमल हो सकती है। हां ये जरूर है कि उसने अभी तक मुझसे कुछ कहा नही है। "क्युं..?" लीना..अब सारी बातें फोन पर ही करोगी या घर आओगी...मिलने आओ फिर सब कुछ दिल खोलकर बताऊंगी तुम्हे..! हां-हां कल पक्का आउंगी। वरदा--चलो ठीक है फिर कल ही बात करते है। बाय!!

लीना--ओके..बाय!!

नूर:--तो बताओ ऐसे में हमे क्या करना चाहिए...?

मारिफ--बस अपने-अपने हिस्से की मोहब्बत करनी है और क्या...

नूर--तुम्हे नही लगता कि महोब्बत के अच्छे दिन बहोत महदुद होते है और वो हम जी चुके है। इसलिए माजिद (शानदार) दिनों के लिए हमें खुद कुछ करना पड़ेगा।

मारिफ--भई बस करना ये पड़ेगा अपनी महोब्बत के लिए अपनों का सामना करना पड़ेगा।

नूर--हां ये तो करना पड़ेगा न...

मारिफ--पता है मै सामना करने से नही डरता बस नाफरमानी से डरता हुं क्योंकि जहाँ मोहब्बत होती है वहां,,,नाफरमानी हो ही जाती है।

नूर--ताया अब्बु ने तो अपनी तरफ मेरा और ओजैब का रिश्ता तय कर दिया है।