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बड़ी हवेली (श्रापित हीरे की खोज)

"शाहजहां ने अपने लिए एक विशेष सिंहासन बनवाया। इस सिंहासन को बनाने में सैयद गिलानी नाम के शिल्पकार और उसका कारीगरों का टीम को कोई सात साल लगा। इस सिंहासन में कई किलो सोना मढ़ा गया, इसे अनेकानेक जवाहरातों से सजाया गया। इस सिंहासन का नाम रखा गया तख्त—ए—मुरस्सा। बाद में यह 'मयूर सिंहासन' का नाम से जाना जाने लगा। बाबर के हीरे को भी इसमें मढ़ दिया गया। दुनिया भर के जौहरी इस सिंहासन को देखने आते थे। इन में से एक था वेनिस शहर का होर्टेंसो बोर्जिया। बादशाह औरंगजेब ने हीरे का चमक बढ़ाने के लिए इसे बोर्जिया को दिया। बोर्जिया ने इतने फूहड़पन से काम किया कि उसने हीरे का टुकड़ा टुकड़ा कर दिया। यह 793 कैरट का जगह महज 186 कैरट का रह गया... औरंगजेब ने दरअसल कोहिनूर के एक टुकड़े से हीरा तराशने का काम बोर्जिया को खुफ़िया रूप से दिया था और उसी कोहिनूर के हिस्से को शाह जंहा कि जेल की दीवार में चुनवा दिया गया था जिसकी सहायता से वह ताजमहल तथा अपनी अज़ीज़ बेगम की रूह को देखते थे ।

Ivan_Edwin · ホラー
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डायरी-5

तुमको भी जो सोना चांदी का मूर्ति उस गुफा में मिला है ज़्यादातर शाहजहाँ का मंझा हुआ शिल्पकार और राज्य का प्रसिद्ध शिल्पीकार के हाथों का है, जो उस सदी में सोने को गला कर उसका मूर्ति बनाने का काम करता था। उस काल में ये एक सफल व्यापार के रूप में उभर कर आया। केवल शाही परिवार ही नहीं बल्कि व्यापार करने आया विदेशी मुल्कों ने इसका भरपूर फायदा उठाया। उस समय कुछ विदेशी मुल्क भारत से इसी तरह सोने का चोरी करता था मूर्ति और कीमती शो पीस बनवाकर। इन्हें ले जाते समय शाही परिवार का भेंट बताया जाता था।

दिनों को बीतते ज़्यादा समय नहीं लगा और वह पल भी आ गया जिसका हमको, औरंगजेब और उस गुमनाम लुटेरे को बेसब्री से इंतजार था। एक इम्तिहान का घड़ी आ पहुंचा था जिस पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का तकदीर दाव पर लगा था और हम इस बाज़ी को खेलने के लिए तैयार था। हालाँकि दिल का एक कोने में अनजाना सा डर भी था लेकिन आज आर या पार होना ही था।

एक ओर ऐसा लग रहा था कि कुछ यही हाल उस लुटेरे का भी रहा होगा जिसके प्रति मेरे मन में थोड़ा दुविधा था कि अगर ख़ज़ाना का पीछे आया होगा तो उसमें कोहिनूर ना शामिल हो जाए नहीं तो हमारा योजना बेकार पड़ जाएगा और एमेलिया कोहिनूर नहीं चूरा पाएगा। क्या है, जब दो चोरों का नज़र एक ही लूट का सामान पर हो तो उसे चुराना कभी कभी नामुमकिन हो जाता है।

वहीं दूसरा ओर अपना सैनिकों का चौकसी के ऊपर हम लोगों को कुछ ज़्यादा ही भरोसा था और हम सभी इस बात से निश्चिंत हो गया था कि वह भी मेहफिल में पहुंच सकता है।

ऐसा लग रहा था जैसा उस महफ़िल में केवल मेरे ही मन में यह शक़ था कि वह कहीं न कहीं यहीं इसी महफ़िल में है इसलिए मेरा नज़र केवल कोहिनूर के आसपास ही घूम रहा था"।

कमांडर अपनी कहानी जारी रखता है "शालीमार और कोहिनूर दो ऐसा बेशकीमती नगीना था भारत के पास जिनका रंग, आकार, वज़न का जानकारी दुनिया का हर शाही परिवार के पास मिल जाता, ऐसा ही जानकारी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया को भी था, इंगलिस्तान में इन दोनों बेशकीमती रत्न का काफ़ी चर्चा रहता था, इसलिए इन दोनों रत्नों का डुप्लीकेट खोजना उतना मुश्किल काम नहीं था।

अक्सर हर साल भारत में कई शाही परिवारों में ऐसा ही दौलत का नुमाइश किया जाता था जहाँ इन कीमती रत्नों को देखने का वास्ते दूर दूर से रत्न विशेषज्ञों का दल और शाही परिवार के मेहमान पहुंचता था।

उस दिन भी बादशाह का सालगिरह का महफिल में काफ़ी भीड़ था रत्न विशेषज्ञों का। हमने एक नकली हीरा जो हुबहू कोहिनूर की तरह दिखता था एमेलिया को दे दिया था बस उसे बदलना था। कुछ सैनिकों का टुकड़ी को उसका सहायता का वास्ते बादशाह का महफिल में लगवा दिया था ताकि उसे कोहिनूर लेकर जाते समय कोई रोक टोक ना सके।

महफिल का काफ़ी अच्छा इंतज़ाम किया गया था, हर ओर टर्की, ईरान और कई अरब देशों से आया रक्कासाओं का दिल लुभाने वाला नृत्य हो रहा था, सब एक से एक खूबसूरत था, मुगल सल्तनत खूबसूरती पर फ़िदा रहता था और शाही परिवारों के ख़ज़ाने का एक मोटा हिस्सा हरम खाने में खर्च होता था।

कुछ ही देर में बादशाह अपना शानदार महफिल में आया, सब लोग उसका रेस्पेक्ट में खड़ा हो गया, इस बार का जलसा कुछ ख़ास इसलिए था क्यूँकि यह सफ़ेद ताजमहल बनने और काले ताजमहल का नींव में काले संगमरमर से रखने का खुशी में भी था। इस बात का एलान होते ही हमने औरंगजेब का चेहरा देखा, उसके चेहरे पर क्रोध तो था ही साथ में एक खतरनाक मुस्कान भी, ऐसा लग रहा था जैसे उसने कोई खतरनाक साज़िश रचा हो जिसके बारे में शायद मुझे भी मालूम ना था।

शाही फरमान सुनाए जाने के बाद महफिल का शुरुआत होता है। सबसे पहले अपने समय का मशहूर गायिका हीरा बाई ने महफिल का शुरुआत अपना मधुर आवाज़ में किया। हम कभी हीरा बाई को तो कभी औरंगजेब को देख रहा था। हीरा बाई जैसे महफिल में औरंगजेब के लिए अकेले गा रहा हो, उसका ध्यान और किसी पर नहीं जा रहा था, ऐसा ही कुछ हाल औरंगजेब का भी था। हमारे अलावा उस समय औरंगजेब का ख़ास आदमी ही जानता था कि हीरा बाई से औरंगजेब का मोहब्बत चलता था केवल बादशाह को इसका पता नहीं था। अगर पता चलता तो पहले की तरह शाही खानदान में एक बार फिर प्यार का वास्ते बगावत हो जाता।

हीरा बाई का कोयल जैसा गाने का बाद कई और कलाकारों ने अपना जलवा बिखेरा और महफिल में चार चाँद लगा दिया। ऐसा शानदार महफिल हम पहले कभी नहीं देखा था। कुछ देर बाद एमेलिया का बारी आया, बादशाह और उनका दरबार का सारा आदमी एमेलिया के हुस्न और मोहक नृत्य को देख कर जैसा खो सा गया, महफिल के हर कोने में खड़े और बैठे लोगों को उसने अपना खूबसूरत जिस्म का प्रदर्शन कर अपना ओर आकर्षित कर लिया। मोहक नृत्य देखकर बादशाह ने ख़ुद खड़े होकर उसका तारीफ़ किया, बादशाह के खड़े होते ही महफिल का सारा मेहमान खड़ा होकर उसका अभिनंदन करने लगा, ख़ुश होकर बादशाह ने उसे कुछ अशर्फ़ी और कुछ हीरा उपहार स्वरूप दिया। ऐसे ही महफ़िल आगे बढ़ा।

कुछ देर बाद बादशाह का वजन करने का बारी आया, सभी कीमती उपहार जैसे हीरे, पन्ना, नीलम, मोती कीमती रत्नों से वजन करने के बाद उन्हें राज कोष के लिए रख दिया गया उसका बाद चाँदी के सिक्कों से तौला गया और बादशाह का वजन के बराबर सिक्कों को प्रजा में बांट दिया गया, अब सोना का अशर्फी का बारी था जिससे कई बार बादशाह का वजन कर राजकोष में रखने का वास्ते अलग किया गया, उसका बाद रेश्मी वस्त्रों से दो बार तौला गया जिसका एक हिस्सा प्रजा में बांटा गया, रेश्मी वस्त्रों के बाद आभूषणों का बारी आया जिसमें बादशाह का वजन के बराबर हीरा मोती, सोना चांदी तथा अन्य नगीनों के हार, अंगूठी, कड़ा, चूड़ी, बालीयां इत्यादि शामिल था करीब दो बार बादशाह को इन आभूषणों से तौला गया। इसके बाद पृथ्वी का हर कीमती चीज़ से बादशाह को तौला गया।

इसके कुछ ही देर बाद महफिल में कुछ हलचल सा हुआ, औरंगजेब का विशेष सैनिक दल कुछ परेशान सा था, बार बार मंच पर आकर उसका एक सैनिक कान में कुछ बोलता था फिर औरंगजेब उसको कुछ बोलकर भेजता था, जब बात हाँथ से निकल गया होगा तो औरंगजेब ख़ुद उसका साथ गया।

पहले तो हम थोड़ा डर गया कि कहीं एमेलिया तो नहीं पकड़ा गया, पर उसे महफिल और महल से गए काफ़ी समय हो गया था, उसे तो रात मेरे बंगले पर हमबिस्तर होकर बिताना था। फिर हमने मन में सोचा चाहे कुछ भी हो जाकर देखना पड़ेगा, तो हम भी औरंगजेब के पीछे चल पड़ा। वह अपने राजकोष की तरफ़ जा रहा था, कुछ दूर आगे बढ़ते ही राजकोष के द्वार के सामने करीब दो दर्जन सैनिक मरा हुआ पड़ा था। अन्दर से ख़ज़ाना देखकर आए एक सैनिक ने कहा "हुज़ूर ख़ज़ाने का कुछ हिस्सा लूट लिया गया है और किले से बाहर ले जाया जा चुका है"।

औरंगजेब ने मेरा तरफ़ देखते हुए कहा "कमांडर फौरन अपना सिपाहियों को बोलकर नाकाबंदी कराएं, लुटेरा अभी ज़्यादा दूर नहीं गया होगा, हम उसे पकड़ सकते हैं"।

हम भागते हुए गया और किले में मौजूद ब्रिटिश सिपाहियों को लेकर ख़ुद नगर के दौरे पर निकल गया। उस लूटेरे को पकड़ने के लिए चारों ओर फैल गए। नगर और जंगल के रास्तों पर सैनिक टुकड़ी लगा दिया गया।

अच्छा खासा रात खराब हो चुका था और सारे किए कराए पर इस लूटेरे ने पानी फेर दिया था, क्या सोचा था और क्या हो गया, सोचा था आज रात एमेलिया का नाज़ुक बाहों में बीतेगा, पर इस लूटेरे ने तो नाइट ड्यूटी लगवा दिया था।

साथ में हम यह भी सोच रहा था क्या एमेलिया ने कोहिनूर चूरा लिया होगा, अगर हां तो उसे होशियार रहने का ज़रूरत था। "

अंतिम अध्याय -

कमांडर कहानी जारी रखता है "रात भर गश्त लगाने के बाद भी लुटेरा हाँथ नहीं लगा हम अपना जूनियर ऑफिसर को पोस्ट संभालने को बोला ताकि अपने बंगले का एक चक्कर लगा कर ये पता लगा सके कि क्या एमेलिया ने कोहिनूर चूरा लिया?

हम जैसे ही अपना बंगला पर पहुंचा एमेलिया भागते हुए आया और हमारे सीने से लग कर बोला "What took you so long, I waited for you whole night, my love", हम एमेलिया को सारा बात बताया कि उसका वहाँ से जाने के बाद क्या हुआ। फिर हमने उससे कोहिनूर का बारे में पूछा।

एमेलिया ने जवाब दिया "तुमको क्या लगता है ब्राड हम उस हीरा को चुरा पाया होगा, हम इंग्लैंड से इतना दूर अपना जान जोखिम में डाल कर सिर्फ तुम्हारा वास्ते ही हीरा चूरा लिया, पर तुम है कि ड्यूटी में लगा है"।

हमने एमेलिया को अपना बाहों में भर लिया और चूम लिया, फिर उससे कोहिनूर लेकर उसे अच्छी तरह से देखने लगा क्यूँकि इस एक कीमती पत्थर ने ना जाने कितने लोगों का लहू बहाया होगा, ना जाने कितने राज्यों का बीच झगड़ा कराया होगा, यह एक ब्लड स्टोन था जो उसी का शान बनता था, जो रक्त पात करने में पीछे नहीं हटता था। हमारा एक योजना तो काम कर गया था और अब किसी को शक़ भी नहीं होना था कि ये ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के पास है। इसे चुराने का भी आरोप अब उस लुटेरे के ऊपर लगना था।

थोड़ा देर बाद किले से बादशाह का एक सिपाही आया और उसने बताया कि बादशाह ने फौरन याद किया है । हम अपना सीनियर के साथ बादशाह के दरबार में पहुँचा। वहां जाकर सारा हाल पता चला कि ख़ज़ाना का एक बड़ा हिस्सा लूट लिया गया था , जिसके बारे में कल रात में अच्छी तरह से पता नहीं चल पाया था, ख़ज़ाने का साथ बेशकीमती कोहिनूर भी लूट लिया गया था। बादशाह ने हमारा सीनियर को फटकार लगाते हुए कहा "ब्रिटिश कंपनी तो बड़े बड़े दावे कर रही थी कि लुटेरे को पकड़ लेगी, राज्य में अमन शान्ति रहेगी, अब क्या हुआ, कैसे हमारे उस अधूरे सपने काले ताजमहल का निर्माण होगा, बताइए है कोई जवाब, अब उन चौकियों पर मुगल सल्तनत के सिपाहियों का राज रहेगा, जब तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया की ओर से उस लुटेरे और ख़ज़ाने से संबंधित सुराग़ हाँथ नहीं लगता या लुटेरा पकड़ने की कोई कार्यवाही नहीं की जाती ", बादशाह क्रोध से आग बबूला हो गया था।

दरबार ख़त्म होने के बाद औरंगजेब ने अकेले में बुलाया फिर हमसे कहा" क्यूँ कमांडर अब तो चौकियों पर मुगल सल्तनत का सिपाही लोगों का ही राज रहेगा, मेरे पास तुम्हारे लिए एक सुझाव है अपने अधिकारियों से कहो नगर चौकसी करना और बादशाह का हिफाज़त करना उनके बस का नहीं है, मुग़ल सल्तनत के सिपाही जनता की कामज़ोरी जानते हैं, फिरंगी इसमें कुछ नहीं कर पाएंगे, ख़ैर अब जब बादशाह ने हुक्म दिया है तो अमल में लाना पड़ेगा जाइए और उस लुटेरे का पता लगाइए देखिए कोई सुराग हाँथ लगता है या नहीं "।

हम थोड़ा देर का वास्ते एक गहरा सोच में पड़ गया क्यूँकि औरंगजेब का बातों में ताना मारने का अंदाज़ था ऐसा लग रहा था मानो वह सब जानता हो कि ख़ज़ाना कहां है या उसे किसने लूटा, फ़िर बोला " जल्द ही मिल जाएगा वो अब भी इसी नगर के आसपास ही होगा क्यूँकि नगर से निकलने के हर रास्ते पर चेक पोस्ट बैठा दिया है, जंगल के सभी मार्गों को सीज़ कर दिया गया है, नगर के सभी घरों की तलाशी का ऑर्डर दे दिया गया है, आखिर उस लुटेरे से नुकसान केवल शाही मुग़ल परिवारों को ही नहीं बल्कि ब्रिटिश कंपनी को भी है। हम अभी चलता है इस लुटेरे का निगरानी का काम और ज़ोर पर चालू करवाता है ", हम बोलकर वहाँ से सीधा अपने हेड क्वार्टर गया। सारे सिपाहियों और जूनियर स्टाफ़ को इकट्ठा कर के उस लुटेरे के बारे में जानकारी लाने को कहा, उन्हें नगर की निगरानी बढ़ाने को कहा, उन्हें ये एहसास कराया कि यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के इज़्ज़त का सवाल है, नहीं तो हर नगर में बनी चौकियों पर मुग़ल तथा अन्य सैनिको का अधिकार हो जाएगा।

मामला काफ़ी संगीन हो गया था हालांकि आज पहला ही दिन था लेकिन काफ़ी परेशान कर देने वाला था। शाम तक हेड क्वार्टर में सिपाहियों द्वारा किसी अच्छी खबर सुनाए जाने का इंतजार किया, पर कुछ भी हाँथ नहीं लगा, हम समझ गया कि इतनी आसानी से हाँथ आने वालों में से नहीं है, उसको पकड़ने का वास्ते कुछ अलग ही तरकीब लगाना पड़ेगा। नगर में निगरानी और तलाशी का काम तब तक जारी रखवाना पड़ेगा जब वह या उसके दल के सदस्यों में से एक बारे में पता नहीं चल जाता। सब कुछ सोचते विचारते और अपने सीनियर से इस पर राय मशवरा करने और हेड क्वार्टर से ड्यूटी ख़त्म करने के बाद हम सीधा अपने बंगले की तरफ़ रवाना हो गया जहाँ हुस्न परी एमेलिया हमारा इंतज़ार कर रहा था, उसे तो भारत में केवल हफ़्ते भर ही रहना था, सोचा था हंसी पल बिताएंगे पर इस लुटेरे ने सब चौपट कर दिया।

इतना सालों के बाद दो प्रेमी फिर से मिला था, लंदन में तो लगभग रोज़ मुलाकात होता रहता था। एमेलिया को हम ब्रिटिश कंपनी जॉइन करने के पहले से ही जानता था। हम लोग कभी पड़ोसी हुआ करता था, एक दूसरे के घर में आना जाना लगा रहता था, पर ज़िंदगी आगे बढ़ा हम कंपनी जॉइन किया देश विदेश घूमकर हिन्दुस्तान आ गया और एमेलिया वहीं लंदन में ही स्टेज आर्टिस्ट बन गया।

हम अपना बंगले का तरफ़ जाते समय रास्ते में ये सारा बात सोचते हुए जा रहा था कि अचानक किले से कुछ परछाईयों को घोड़े पर सवार होकर जंगल की तरफ जाते हुए देखा। ये लोग किले के गुप्त रास्ते का इस्तेमाल कर जंगल से होते हुए जा रहे थे, हम भी अपने घोड़े को उनके पीछे दौड़ा दिया, घोड़े के दौड़ लगाने का आवाज़ से उन्हें यह पता नहीं चल पाया कि हम उनका पीछा कर रहा था।

घोड़ों को सरपट दौड़ाते हुए वो लोग जंगल के काफ़ी भीतर जाकर एक सुनसान गुफा के पास रुके जहाँ पहले से ही कुछ लोग जमा थे और चारों तरफ़ मशाल जल रहा था। हम उन अज्ञात घुड़सवारों से उचित दूरी बनाकर जंगल में छुप गया जहाँ से उनपर आसानी से नज़र रखा जा सकता था। उन घुड़सवारों ने अपने चेहरों को नकाब से छुपा रखा था। उनका सरदार घोड़े से उतरकर उस गुफा के सामने खड़े अपने आदमियों से सारा हाल चाल लेता है। फिर वो धीरे से अपने चेहरे से नकाब को हटाता है।

फ़िर हम जो देखा वो मुग़ल सल्तनत के पैरों के नीचे ज़मीन खिसकाने के लिए काफ़ी था, नकाबपोश घुड़सवारों का सरदार औरंगजेब था और उस गुफा में बादशाह का लूटा हुआ ख़ज़ाना रखा गया था, जिसका हिफाज़त औरंगजेब के विशेष सैनिक दल के कुछ सिपाही कर रहे थे। वो लोग वहां काफ़ी देर रुके फिर वही घुड़सवार अपने अपने घोड़ों पर सवार होकर किले की ओर रवाना हो गए। हम थोड़ा देर वहीं रुका रहा उस इलाके और उन सिपाहियों की अच्छी तरह से जानकारी लेने के लिए। जब हम पूरी तरह से आश्वस्त हो गया कि उन गिने हुए 30 सिपाहियों के अलावा वहाँ और कोई नहीं है तब हम वहाँ से चुपचाप रवाना हो गया।

हम मन ही मन काफ़ी ख़ुश था लूटा हुआ ख़ज़ाना मिल गया था, अब उन सभी चौकियों पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया का ही अधिकार रहेगा। पर मन में यह दुविधा था कि औरंगजेब ने ख़ज़ाना लुटवाया था तो कोहिनूर के बारे में भी उसे पता होगा, बादशाह कोहिनूर का भी नाम उस लुटे ख़ज़ाने में ले रहे थे। इसका मतलब यह है कि उस लुटेरे पर ही कोहिनूर को ग़ायब करने का शक़ औरंगजेब को भी है।

पर अब बड़ा सावधानी से चाल चलने का समय है क्यूँकि हमको ये तो पता था कि औरंगजेब काला ताजमहल बनवाने के ख़िलाफ़ है इसलिए ऐसा किया था लेकिन हमको ये नहीं मालूम था कि उसके दिमाग में आगे क्या क्या योजना बन रहा था, अब जब ये पता चल गया था कि ख़ज़ाना ज़्यादा दूर नहीं गया था अभी सीमा के अंदर ही था तो अब बहुत सोच समझ कर सब करने का समय था जल्द बाज़ी में नहीं।

पहले ख़ज़ाने को इस जंगल से निकालना था फिर किसी तरह मौका पाकर इसे बादशाह के समक्ष पेश करना था उनका विश्वास जीतने के लिए और उन सभी चौकियों का ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को अधिकार दिलवाना था।

अगली सुबह हम सीधे हेड क्वार्टर गया और अपने कुछ ख़ास सैनिकों का एक लिस्ट बनाया, जो एक से बढ़कर एक सूरमा था, अब तक ख़ज़ाने का किसी को भनक तक नहीं लगने दिया था, जो कुछ भी करना था सब गोपनीय ढंग से करना था। गुफा के आसपास सैनिक दल अच्छा खासा रोशनी जला कर रहता था रात में ताकि जंगली जानवरों से भी बचे और रात में हर चीज़ अच्छा तरह से दिखाई पड़े इसलिए कुछ तीरंदाज काफ़ी थे उनका सफाया करने के वास्ते, फिर भी हम कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता था इसलिए कुछ बंदूक धारियों को भी साथ में शामिल कर लिया था। तीरंदाजी से काम शांति पूर्वक हो जाता बंदूक से बेवजह शोर होता है इसलिए मेरा योजना था कि औरंगजेब के सैनिकों को रात के समय तीरंदाजों के दल का निशाना बनवाकर ख़ज़ाना लेकर वहाँ से नौ दो ग्यारह हो जाना, अगर बात हाँथ से बिगड़ती तब बंदूक धारियों का दल था संभालने का वास्ते । अब बस रात होने का इंतजार था।

रात होते ही योजना के मुताबिक तीरंदाज और बंदूक धारियों के दलों को जंगल में दूसरा दिशा से लेकर अंदर घुसा ये रास्ता लम्बा ज़रूर था लेकिन घोड़ों का वास्ते उपयुक्त था। रात में चारों तरफ़ जानवरों के रोने का आवाज़ आ रहा था हमलोग धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे ताकि घोड़ों के तेज़ दौड़ने का आवाज़ सुनकर दुश्मन सतर्क न हो जाए, कुछ ही देर बाद हमलोग गुफा के पास पहुंचे। चारों तरफ़ ख़ामोशी, ऐसा लग ही नहीं रहा था कि एक रात पहले यहाँ इतने सैनिकों का दल था। फिर भी हम लोग घोड़े से उतरकर, अंधेरे में गुफा की तरफ़ आगे बढ़ा, कुछ देर बाद एक अंग्रेज सिपाही ने एक मशाल ढूँढकर उसे अपना जेब में पड़े माचिस से जलाया, तो देखा चारों ओर मुग़ल सिपाहियों का लाश पड़ा हुआ था। वहां एक भी सिपाही ज़िन्दा नहीं बचा था, सबको मार दिया गया था, ख़ज़ाना भी वहाँ से गायब था, हमको बस एक सोने का अशर्फी उस गुफा में पड़ा हुआ मिला।

हम सबने वहाँ ज़्यादा देर रुकना मुनासिब नहीं समझा इसलिए वहां से जांच पड़ताल कर फौरन ही नगर की ओर चल दिए क्यूँकि हो सकता था कि औरंगजेब रात में एक बार चक्कर मारे। हम फौरन समझ गया था कि अब ये काम उस गुमनाम लुटेरे का था, औरंगजेब ने खुद शाही ख़ज़ाना लूटवाकर उसके हाँथ में राज कोष के ताले का चाभी रख दिया था। मेरा भी सारा मेहनत बेकार चला गया।

कमांडर आगे की कहानी सुनाता है "अगला सुबह हम उन्ही सिपाहियों के दल से अपना ख़ास 9 दोस्तों को बुलाया, वो सब मंझा हुआ शिकारी था फिर चाहे इंसान का शिकार हो या जानवर का। हम उनसे बताया कि हम एक योजना बनाया है जिसमें नगर का आस पास के इलाकों में British regiment को ख़ज़ाने के काम पर लगा दिया है, आस पास के नगर में हर खबरी को सोने का मूर्ति और कीमती शो पीस बनाने वाले पर नज़र रखना है और कोई भी ख़बर मिलते ही सीधा हमारे हेड क्वार्टर पर संपर्क करना है, हम लोग आज दोपहर को ही ख़ज़ाने की तलाश में अगले नगर का ओर निकलेंगे जंगल का रास्ता पकड़ कर , ये एक खुफिया मिशन होगा जिसमें शिकारियों का रूप धारण करना पड़ेगा, ब्रिटिश गवर्नमेंट का हर हेड क्वार्टर पर रिपोर्ट देना होगा जहां से हमलोगो को उस लुटेरे का जानकारी भी मिलेगा। उसके पास टनों सोने का अशर्फी था जिसे ले जाने में कम से कम पाँच घोड़ा गाड़ी लगेगा, वो शर्तिया इन सामानों को कम करके ही ले जाएगा इसलिए वह इन अशर्फी की संख्या कम करने का वास्ते इन्हें मूर्ति, आभूषण या शो पीस में बदलने के वास्ते उसे आकार देने वाले से मिलेगा, अगर हमारा अंदाज़ा ग़लत नहीं था तो वो लुटेरे जंगल के रास्ते नज़दीकी समुन्द्र तट के नगर की ओर जाएंगे और वहीं से उसका पीछा कर रहे हम सब मिलकर उसे दबोच लिया जायेगा।

ब्रिटिश हाई औथॉरिटीज़ के अलावा हमारा इस मिशन का जानकारी किसी को नहीं था इसलिए हर नगर में यही दिखाना था कि हम भारत में शिकार का वास्ते आया है ऐसे उन लुटेरों को भी यह यकीन हो जाता कि हम विदेश से आए शिकारी हैं। भारत में खबरें हवा की तरह फैलती थी ऐसे में लुटेरे को पता चल जाता कि हम लोग ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के ऑफिसर हैं, इसलिए सबको यकीन दिलाना ज़रूरी था कि हम सब का जानवरों के सिर का trophy और खाल ही व्यापार है।

©IvanMaximusEdwin