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बड़ी हवेली (श्रापित हीरे की खोज)

"शाहजहां ने अपने लिए एक विशेष सिंहासन बनवाया। इस सिंहासन को बनाने में सैयद गिलानी नाम के शिल्पकार और उसका कारीगरों का टीम को कोई सात साल लगा। इस सिंहासन में कई किलो सोना मढ़ा गया, इसे अनेकानेक जवाहरातों से सजाया गया। इस सिंहासन का नाम रखा गया तख्त—ए—मुरस्सा। बाद में यह 'मयूर सिंहासन' का नाम से जाना जाने लगा। बाबर के हीरे को भी इसमें मढ़ दिया गया। दुनिया भर के जौहरी इस सिंहासन को देखने आते थे। इन में से एक था वेनिस शहर का होर्टेंसो बोर्जिया। बादशाह औरंगजेब ने हीरे का चमक बढ़ाने के लिए इसे बोर्जिया को दिया। बोर्जिया ने इतने फूहड़पन से काम किया कि उसने हीरे का टुकड़ा टुकड़ा कर दिया। यह 793 कैरट का जगह महज 186 कैरट का रह गया... औरंगजेब ने दरअसल कोहिनूर के एक टुकड़े से हीरा तराशने का काम बोर्जिया को खुफ़िया रूप से दिया था और उसी कोहिनूर के हिस्से को शाह जंहा कि जेल की दीवार में चुनवा दिया गया था जिसकी सहायता से वह ताजमहल तथा अपनी अज़ीज़ बेगम की रूह को देखते थे ।

Ivan_Edwin · ホラー
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27 Chs

डायरी-4

सब कुछ समेटने के बाद हमलोग सफ़र की शुरुआत करने के लिए तैयार थे। आज घोड़ों के साथ ऊँची और खतरनाक पहाड़ी चढ़ना था। हालाँकि पहाड़ी ज़्यादा ऊंची नहीं थी लेकिन पत्थरिली होने की वजह से घोड़ों के साथ काफी दिक्कत होती है, खासकर तब जब आपके साथ ज़्यादा वजनदार सामान हों और हमारे पास तो कई घोड़ों पर ख़ज़ाने के बक्से तथा झोले लदे हुए थे।

पहाड़ी आने से पहले ही डॉक्टर ज़ाकिर मेरे पास आकर बोले "प्रोफेसर तुम एक मंझे हुए घुड़सवार हो तो पहाड़ी पर अपने घोड़ों सहित पहले तुम्हें ही चढ़ना पड़ेगा फ़िर पहाड़ी पर रुक कर पीछे आ रहे घोड़ों को बड़ी सावधानी के साथ उन्हें चढ़ाई पर चढ़ाना पड़ेगा, एक बार चढ़ गए तो फिर नीचे उतरने में उतनी दिक्कत नहीं होगी"।

मैंने डॉक्टर से कहा " परेशान ना हों मैं उन्हें आराम से चढ़ा लूंगा पहाड़ी पर "।

पहाड़ी आते ही मैं अपने घोड़ों के साथ दल की अगुवाई करने के लिए आगे चलने लगा, मैंने बड़ी सावधानी से पहले अपने घोड़ों को चढ़ाया फिर रुक कर दल के सभी सदस्यों के घोड़ों को ऊपर चढ़ाया, मैं दल के सदस्यों को दिशा निर्देश देता जा रहा था कि कैसे उन्हें लगाम सही ढंग से थामना है, एक एक करके सभी घोड़ों को पहाड़ी चढ़ा कर फिर उन्हें बड़ी सावधानी से नीचे उतार लिया। घोड़े बड़े होशियार जानवर होते हैं अगर घुड़सवार अच्छा हो तो उनसे बहुत कुछ करवा सकता है। पहाड़ों पर घोड़े वज़न लाद कर भी बड़े अच्छे से चढ़ाई चढ़ लेते हैं बस उन्हें सही दिशा निर्देश देने वाला चाहिए।

गाँव पहुंचते ही हम सभी सीधा मुखिया के बंगलों में चले गए, मुखिया के पास गाँव में तीन आवास थे, एक में वो खुद रहता था और बाकी दोनों बंगलों में यात्रियों के रहने का इंतज़ाम कर रखा था। अब अक्सर तो यात्री आते नहीं थे लेकिन फिर भी इन्हीं बंगलों से उसकी अच्छी कमाई हो जाती थी। यात्रियों के खाने पीने का इंतज़ाम भी था जो मुखिया अपने परिवार की महिलाओं से बनवा लेता था। मज़े की बात यह थी कि मुखिया जी ने चार शादियां कर रखी थीं लेकिन बिना लड़े सारी महिलाएँ एक साथ रहती थीं। बंगले पर पहुंचते ही डॉक्टर ज़ाकिर और मैंने अपने कमरों में सावधानी से अपना अपना सामान रखवा दिया। काफ़ी थक चुके थे इसलिए आराम भी करना ज़रूरी था इसलिए थोड़ी देर कमर सीधी करने के लिए बिस्तर पर लेट गए।

कमांडर का सिर वाला संदूक मैंने टेबल पर रखवा दिया था और धड़ का ताबूत अलग कमरे में था जो डॉक्टर के ठीक सामने वाला कमरा था। दल के सदस्यों ने भी अपने कमरों में थोड़ा आराम कर लिया।

करीब नौ बजे मुखिया ने खाने का इंतज़ाम करवा दिया, बहुत दिनों के बाद घर का खाना नसीब हुआ था और काफ़ी स्वादिष्ट बना था। खाने के बाद हम सब अपने अपने कमरों में चले गए।

मैंने पेट भर कर खाया और कमरे में जाते ही बिस्तर पर लेट गया। थकान की वजह से मुझे नींद आ गई।

"कहाँ रह गया टुम..... आज का रात डॉक्टर का टमाम करना है..... इन द नेम ऑफ क्वीन अब तो आ जा नहीं तो सुबह हो जाएगा", कमांडर ने अपने धड़ को फिर से आवाज़ लगाई।

मैं कमांडर की आवाज़ सुन कर जाग गया। एक ग्लास पानी पीने के बाद मैंने उससे कहा "आ गए मी लॉर्ड, अब आगे की कहानी तो सुना दीजिए सरकार"।

"ओ! प्रोफेसर कहानी सुनना है, ब्रिटिश गवर्नमेंट का ख़ज़ाना चुरा लिया डॉक्टर के साथ मिलकर, अब कहानी सुनकर कोहिनूर पर हाँथ साफ़ करना चाहता है, सुना है तुम्हारा इस टीम में एक धोखेबाज भी है पर तुमको उसका परवाह नहीं है ", कमांडर ने मुझसे पूछा।

" अरे उसका तो पता मैं लगा लूँगा आप तो बस कहानी सुनाओ", मैंने कमांडर से कहा।

" ठीक है, बताता है सुनो, अर्जुमंद का पैदाइश था 27 अप्रैल, 1593 का था। बेइन्तहा खूबसूरत था वो। बला का हसीना। कहते हैं शाहजहां ने पहला बार अर्जुमंद को आगरा का मीना बाज़ार का किसी गली में देखा था। उसका अनहद खूबसूरती देख शाहजहां को पहला नज़र में उससे प्यार हो गया।

शाहजहां और अर्जुमंद का शादी में कोई दीवार नहीं था इसलिए 14 साल का अर्जुमंद और 15 साल का खुर्रम (शाहजहां का शुरुआती नाम) का सगाई हो गया, यह साल 1607 का बात है ।

फिर 10 मई, 1612 को सगाई का करीब पांच साल और तीन महीना बाद इन दोनों का निकाह हुआ। निकाह के समय शाहजहां का उम्र 20 बरस और तीन महीने था। अर्जुमंद था 19 साल और एक महीने का। उस ज़माने का बच्चा बच्चा लोगों को उन दोनों का कहानी मालूम था। शाहजहाँ को एक आशिक का रूप में भी जाना जाता था और ताजमहल इस बात का सबूत है।

अर्जुमंद और खुर्रम की जब सगाई हुआ था, तब खुर्रम का एक भी शादी नहीं हुया था। मगर सगाई और शादी के बीच खुर्रम का एक शादी फारस का शहजादी क्वानदरी बेगम से हो गया। वो सियासी कारणों से करवाया गया रिश्ता था। अर्जुमंद से निकाह के बाद भी उसने एक और निकाह किया। अपना तीन बीवियों में सबसे ज्यादा मुहब्बत शाहजहां अर्जुमंद बानो बेगम से करता था। अर्जुमंद यानी मुमताज का बुआ था मेहरुन्निसा। जिनकी शादी शाहजहां के पिता जहांगीर से हुआ और आगे चलकर इनका नाम 'नूरजहां' मशहूर हुआ।

मुमताज और शाहजहां का बीच इतना मुहब्बत था कि लोग कहते हैं शौहर और बीवी में ऐसा इश्क़ किसी ने देखा नहीं था. दोनों का 13 बच्चे हुआ। तीसरे नंबर का औलाद था दारा शिकोह। और छठे नंबर पर पैदा हुआ था औरंगजेब। 1631 का साल था और महीना था जून. शाहजहां अपना सेना के साथ बुरहानपुर में था। जहान लोदी पर चढ़ाई था। मुमताज भी था शाहजहां के साथ। यहीं पर करीब 30 घंटे लंबे लेबर पेन के बाद अपना 14वें बच्चे को जन्म देते हुए मुमताज का मौत हो गया। मुमताज के डॉक्टर वज़ीर खान और उनके साथ रहने वाला दासी सति-उन-निसा ने बहुत कोशिश किया लेकिन वो मुमताज को बचा नहीं पाया।

मुमताज का मौत के ग़म में शाहजहां ने अपने पूरे साम्राज्य में शोक का ऐलान कर दिया। पूरे मुगल साम्राज्य में दो साल तक मुमताज के मौत का ग़म मनाया गया था। कहते हैं कि मुमताज जब आगरा में होता था , तो यमुना किनारे के एक बाग में अक्सर जाया करता था। शायद इसी वजह से शाहजहां ने जब मुमताज का याद में एक मास्टरपीस इमारत बनाने का सोचा, तो यमुना का किनारा तय किया।

38-39 बरस का उम्र तक मुमताज तकरीबन हर साल गर्भवती रहा। शाहजहांनामा में मुमताज के बच्चों का ज़िक्र है।

1. मार्च 1613: शहजादी हुरल-अ-निसा

2. अप्रैल 1614: शहजादी जहांआरा

3. मार्च 1615: दारा शिकोह

4. जुलाई 1616: शाह शूजा

5. सितंबर 1617: शहजादी रोशनआरा

6. नवंबर 1618: औरंगजेब

7. दिसंबर 1619: बच्चा उम्मैद बख्श

8. जून 1621: सुरैया बानो

9. 1622: शहजादा, जो शायद होते ही मर गया

10. सितंबर 1624: मुराद बख्श

11. नवंबर 1626: लुफ्त्ल्लाह

12. मई 1628: दौलत अफ्जा

13. अप्रैल 1630: हुसैनआरा

14. जून 1631: गौहरआरा

ऐसा नहीं कि बस मुमताज का मौत हुआ हो। कई बच्चे भी मरे उनके। पहली बेटी तीन साल काउम्र में चल बसा। उम्मैद बख्श भी तीन साल में मर गया। सुरैया बानो सात साल में चल बसा। लुफ्त अल्लाह भी दो साल में गुजर गया। दौलत अफ्ज़ा एक बरस में और हुस्नआरा एक बरस का भी नहीं था , जब मरा। यानी 14 में से छह नहीं रहा।

शाहजहां और मुमताज इतिहास का जिस हिस्सा में हुआ , वहां परिवार नियोजन नाम का कोई शब्द नहीं था। न ही ऐसी कोई रवायत था। फैमिली प्लानिंग बहुत मॉडर्न कॉन्सेप्ट है। तब लोग सोचता था, बच्चे ऊपरवाला का देन हैं। जितना होता है , होने दो। कम उम्र में लड़कियों की शादी हो जाता था। ऐसा नहीं है कि भारत में ही औरतें बच्चे पैदा करने में मरती थीं बल्कि यूरोप में भी ऐसा ही हाल था। जब तक हमारा महारानी ने इन सबको इसका बारे में शिक्षित करने के लिए अस्पतालों तथा अन्य सरकारी कार्यालयों में अलग से एक टीम का इंतज़ाम किया जिसमें नए डॉक्टर और नर्स हुआ करता था, इनका काम जगह जगह जा कर सबको "हम दो हमारा दो या हम दो हमारा एक" का मतलब समझाना था।

ब्रिटिश गवर्नमेंट का ये योजना काफ़ी कामयाब रहा खासकर यूरोपीय देशों में लोगों को यह बात जल्दी समझ में आ गया अगर आज तक किसी के समक्ष में नहीं आया है तो वो भारत, चीन, पाकिस्तान और एशिया के ही देश हैं, जिनमें भारत सबसे ऊपर था और अब भी है, आखिर था तो कमासूत्र का ज्ञान देने वाला देश और इसके इसी ज्ञान का वजह से पहले मुग़ल फ़िर उसका पीछे सारा दुनिया चला आया, इन द नेम ऑफ क्वीन ", कमांडर ने अपनी बात कही और मैं उसकी बातें सुनकर मुस्कुराने लगा।

मैंने कमांडर से कहा "कहाँ आप टाँग खीचने लगे, मी लॉर्ड, कहानी तो सुनाईये"।

"कहानी सुनने का मज़ा तब नहीं आता जब कहानी के केवल कुछ हिस्से ही बताए जाएं, कहानी सुनने का मज़ा तब आता है जब सब कुछ विस्तार से बताया जाए", कमांडर ने कहा।

"अब ताज महल का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ 1630 में शुरू हुआ ताजमहल का बनने का काम करीब 22 साल तक चला। इसे बनाने में करीब 20 हजार मजदूरों ने योगदान दिया। जिनका हाँथ औरंगजेब ने कटवा दिया लेकिन इतिहास इसका इल्ज़ाम शाहजहाँ के ऊपर लगाता है पर हुआ ये था कि शाहजहाँ ताजमहल के निर्माण के बाद ठीक उसका सामने एक और ताज बनाना चाहता था जिसका नाम वह काला ताज रखने वाला था।

ताज महल बनाने का काम चल ही रहा था कि उसी समय हमारा पोस्टिंग हिन्दुस्तान में हुआ, हम हमारा सीनियर ऑफिसर के साथ आगरा का पोस्ट संभाला, हमारे सीनियर ऑफिसर और हमारा उठना बैठना अब शाहजहाँ के दरबार में होने लगा।

देखते ही देखते कुछ ही दिनों में हम औरंगजेब का ख़ास आदमी में से बन गया, जिससे वह अपना दिल का सारा बात हमको बताने लगा, हम पर विश्वास करने लगा। उन्ही दिनों आगरा के आसपास का इलाकों से अक्सर लूट पाट का काफ़ी ख़बर आने लगा। एक ऐसा लुटेरा जो सिर्फ शाही परिवार को ही नहीं बल्कि व्यापार करने आए सभी मुल्कों का सरकारी सामान लूट लेता था।

उस लुटेरे ने जैसे अपना शिकार चुन लिया हो और उसका निशाना पर मुग़ल सल्तनत के साथ सारा व्यापार करने आया विदेशी मुल्क था । उसकी बुद्धि और ताकत के चर्चे जगह जगह हो रहे थे। उसके निशाने पर खास तौर से शाहजहाँ का शाही खानदान था और औरंगजेब का सेना उससे कई बार मात खा चुका था।

एक युद्ध जो सेनाओं का साथ मिलकर लड़ा जाता है कुशल मार्ग दर्शन से जीता जा सकता है लेकिन एक युद्ध जो छुप कर लड़ा जाता है उसे जीतना मुश्किल होता है। ऐसा ही कुछ भारत के कई राज्यों में हो रहा था और इसे लड़ने वाला शख्स ख़ुद को गुमनाम रखता था। देखते ही देखते भारत के कई शाही परिवारों को चूना लगने लगा उनका वो ख़ज़ाना खाली होने लगा जिसे वह बड़ा शान से दिखाया करता था।

इसी सिलसिले में एक बार हमारा ऑफिसर को बादशाह शाहजहाँ का दरबार में बुलाया गया। हम अपना सीनियर का साथ वहां पहुंचा। दरबार में उसी लूटेरा को लेकर चर्चा हुआ। बादशाह ने पहला बार ब्रिटिश को हर राज्य के नगरों में पहला पुलिस चौंकी (पोस्ट) बनाने का अनुमती दिया और इसका काम नगर के साधारण लोगों में से मुखबिरों को बनाना और उन्हें अलग अलग राज्यों में खबरें इकट्ठा कर गुनहगारों को सज़ा दिलवाने में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का मदद करना था, बादशाह ने यह शर्त रखा था कि अगर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी इसमें कामयाब हो गया तो अधिकारिक तौर पर उसे इन चौकियों का अधिकार दे दिया जाएगा वर्ना उन पर बादशाह के ही सैनिकों का अधिकार रहेगा।

बादशाह शाहजहाँ तो ताजमहल का काम में ज़्यादा लगा रहता था तो लूटेरा और राजनीतिक भागदौड़ का जिम्मा औरंगजेब को दे दिया था। वह राजनीतिक मामलों को अच्छा तरह से संभालने लगा, केवल ताज महल का निर्माण में काफ़ी दौलत खर्च हो गया था और इतना सुन्दर इमारत बनने का चर्चा भारत का हर कोने कोन में होने लगा और यही उस लूटेरे को आकर्षित करने के लिए काफ़ी था उसे पता था, मुग़ल सल्तनत द्वारा बनाया गया ज़्यादातर इमारत लाल मिट्टी का है केवल ताज ही संगमरमर का है और इसे बनाने में काफ़ी दौलत खर्च होगा।

औरंगजेब भी इसी बात से परेशान था ताजमहल दुनिया का सबसे महंगा इमारत था उस ज़माने का और सबसे भव्य भी। शाहजहाँ का इमारतों को बनवाने का शौक कीमती ख़ज़ाने को लगभग आधा कर चुका था।

अब इस ख़ज़ाने पर दो लोगों का नज़र था एक ओर गुमनाम लूटेरा था दूसरा तरफ़ ख़ुद औरंगजेब था जो ये जानता था अगला बादशाह वो नहीं भी बन सकता है और बीच में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का नाक रखा हुआ था ख़ज़ाने को बचाने के लिए , इन द नेम ऑफ क्वीन।

औरंगजेब के दिमाग एक योजना ने जन्म लिया, उसका वालिद शाहजहाँ जिसे मूत्र रोग हो गया, कमज़ोर होने लगा था उसे किसी तरह ये एहसास दिलाया जाए कि ख़ज़ाना लूट लिया गया क्यूँकि ताजमहल के बाद बादशाह काला ताज का निर्माण अपने लिए करना चाहता था, ताजमहल अब लगभग पूरा हो चुका था।

उसने अपनी इस योजना को अंजाम देने के लिए बादशाह के जन्म दिन को इस काम को अंजाम देने के लिए चुना क्यूँकि उस समय बादशाह अब भी इतना ताकतवर था कि उसे बन्दी बनाना नामुमकिन था। उस समय तक बादशाह के कुछ ऐसे वफादार विशेष सैनिकों का अपना दल था जो उनके लिए अपना जान तक देने से पीछे नहीं हटता और दरबार में भी ऐसे वफादार मंत्री मौजूद हैं जिनका राजनीतिक हस्तक्षेप है फिर बादशाह का कई राज्यों से अच्छा संबंध था, औरंगजेब के लिए पहले उन्हें अपना ओर करने का ज़रूरत था और कुछ का हत्या।

उधर वो लूटेरा भी अपना दल का साथ इस ख़ज़ाने को बादशाह के जन्म दिन पर लूटने का योजना बना चुका था क्यूँकि उसी दिन शाही कोष खोला जाता था और ख़ज़ाने का नुमाइश दुनिया भर से आए मेहमानों का वास्ते होता था। यह सालाना जलसा हर साल अपनी ओर दूर दूर से कई लोगों को आकर्षित करता था। बादशाह के पास बहुत अधिक हीरे ज्वाहरात, बेश कीमती कोहिनूर, कई टन सोने का अशरफी चाँदी का सिक्का और बहुत कुछ था ख़ज़ाना में। हर साल जगह जगह का शाही परिवार अपना कीमती भेंट लेकर आता था और उसका जन्मदिन पर सोने , चांदी, हीरे मोती, और कई कीमती चीज़ों से तौला जाता था", कमांडर बताते बताते शांत हो जाता है जैसे कुछ सोच रहा हो।

कमांडर आगे बताता है "औरंगजेब कभी कभी अपना शाही परिवार का बात बताया करता था हमको याद आया कि एक बार उसने कहा था" जानते हो ब्राड शॉ हमारा वालिद बचपन में बताया करता था कि हमारा दादा जानी जहाँगीर उससे कहा करता था कि" एक हीरा का कीमत एक लठ होता है, जिसके हाँथ में लाठी (ताकत) होता है हीरा उसका ही होता है," अब किस्मत का बात देखो कोहिनूर भी उसका ही पास गया जिसके पास ताकत था, जो लोगों पर हुकूमत कर सकता था, कहानी जैसे जैसे आगे बढ़ता जाएगा, प्रोफेसर तुमको ये हकीकत पता चलेगा कि तकदीर कैसा बाज़ी पलट देता है। हम लोग सोचता कुछ और है लेकिन होता या निकलता कुछ और है।

ऐसा खास तौर पर दौलत के मामले में होता है, जहाँ बेइंतहा दौलत का भंडार हो वहां उस पर खराब करने वाला का नीयत भी लगा रहता है, कभी कभी छोटा मोटा योजना सफल हो जाता है लेकिन कभी कभी बड़े हादसे का रूप ले लेता है।

आनेवाले कुछ दिनों बाद मुग़ल सल्तनत को एक करारा झटका लगने वाला था लेकिन उससे पहले हर जगह बादशाह का सालगिरह का तैयारी चल रहा था। नगरों को दुल्हन का तरह सजाया जा रहा था। सारे शाही परिवारों को न्योता भेजने का काम ज़ोरों पर था। देश विदेश का मांझा हुआ कलाकारों को बुलवाया गया था महफिल का शान बढ़ाने के लिए। यही मौका था जब एक कलाकार को महफिल का शान बढ़ाने और हाँथ का सफाई दिखा कोहिनूर गायब करने के लिए रखा जा सकता था।

इस योजना पर हमने पहले से ही काम कर लिया था, एक ब्रिटिश डांसर का सिफारिश औरंगजेब से लगवा दिया था वो बला का खूबसूरत था उसका काम कोहिनूर को सबका नज़रों के सामने से बड़ा होशियारी से निकालना था। हमारा योजना ये था कि बाद में बादशाह को लौटा कर चौकियों पर अधिकारिक रूप से कब्ज़ा मिल जाएगा।

इधर हम कोहिनूर को गायब करने का सोच रहा था , उधर औरंगजेब ही ख़ज़ाने का कुछ हिस्सा को उड़ाना चाहता था ताकि काला ताजमहल न बन सके जिसका नींव तक पड़ चुका था, बाद में तो ख़ज़ाना वापस आ ही जाता और शाही कोष में रख दिया जाता। उन चौकियों पर मुग़ल सल्तनत का अधिकार हो जाता और ब्रिटिश कंपनी मुँह देखता रह जाता।

एक ओर वो लुटेरा बैठा था जो हम दोनों के मंसूबों पर पानी फेरने का मंसूबा बनाए हुए था। सबसे पहले उसको पकड़ कर अपनी योजनाओं को सफल बनाना था। इसके लिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने हर जगह कड़ा निगरानी बैठा रखा था। किसी को भी नगर में बिना तलाशी आने और जाने का अनुमती नहीं था। ऐसा निगरानी नगर का हर चौराहे पर हो रहा था। जंगल का कुछ रास्ते पर भी पहरा था जहां से खतरे का अंदेशा था, इन द नेम ऑफ क्वीन, फिर भी हिम्मत दिखाते हुए वो सनसनी खेज़ इंसान अंदर पहुंच ही गया और अपना दल का आदमियों के साथ नगर का हर कोने में फैल गया।

नगर का हर रास्ते पर बादशाह और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का सैनिकों के होते हुए। ऐसा हिम्मत वाला इंसान लाखों में एक ही पैदा होता है। हमारा कटा गर्दन भी उसी का देन है लेकिन यह हिस्सा तो कहानी के अंत में आता है, अभी तो बादशाह का सालगिरह होना बाकी है और एमेलिया का मंत्र मुग्ध करने वाला डांस भी, जहाँ शाहजहाँ ने खुद अपने ख़ज़ाने से हीरा और सोने का कुछ अशर्फी खुश होकर दिया था।

मुग़ल सल्तनत अपना दरिया दिल होने के लिए जाना जाता था खासतौर पर कलाकारों को ज़्यादा बढ़ावा मिलता था। खुद बादशाह शाहजहाँ का महफिल में एक से एक कलाकार मौजूद था। शाहजहाँ कला और मुमताज महल का दीवाना था।

©IvanMaximusEdwin