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बड़ी हवेली (श्रापित हीरे की खोज)

"शाहजहां ने अपने लिए एक विशेष सिंहासन बनवाया। इस सिंहासन को बनाने में सैयद गिलानी नाम के शिल्पकार और उसका कारीगरों का टीम को कोई सात साल लगा। इस सिंहासन में कई किलो सोना मढ़ा गया, इसे अनेकानेक जवाहरातों से सजाया गया। इस सिंहासन का नाम रखा गया तख्त—ए—मुरस्सा। बाद में यह 'मयूर सिंहासन' का नाम से जाना जाने लगा। बाबर के हीरे को भी इसमें मढ़ दिया गया। दुनिया भर के जौहरी इस सिंहासन को देखने आते थे। इन में से एक था वेनिस शहर का होर्टेंसो बोर्जिया। बादशाह औरंगजेब ने हीरे का चमक बढ़ाने के लिए इसे बोर्जिया को दिया। बोर्जिया ने इतने फूहड़पन से काम किया कि उसने हीरे का टुकड़ा टुकड़ा कर दिया। यह 793 कैरट का जगह महज 186 कैरट का रह गया... औरंगजेब ने दरअसल कोहिनूर के एक टुकड़े से हीरा तराशने का काम बोर्जिया को खुफ़िया रूप से दिया था और उसी कोहिनूर के हिस्से को शाह जंहा कि जेल की दीवार में चुनवा दिया गया था जिसकी सहायता से वह ताजमहल तथा अपनी अज़ीज़ बेगम की रूह को देखते थे ।

Ivan_Edwin · ホラー
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27 Chs

खोपड़ी का कहर...

डायरी पढ़ते पढ़ते कब सुबह हो गई तन्नू को इस बात का पता ही नहीं चला, सुबह उसकी पलकें भारी हो जाने के कारण उसे नींद आ जाती है। सपने में उसकी आँखों के सामने उस डायरी की कहानी के दृश्य चलते हैं, तभी शहनाज़ वहाँ पहुँच कर, खिड़कियों पर टंगे परदों को सरकाती है, गुड मॉर्निंग, नवाब साहब", शहनाज़ ज़ोर से कहती है।

तनवीर (तन्नू) की नींद खुलती है," ओह तुम, थोड़ी देर और सोने दो न प्लीज़ ", तन्नू शहनाज़ से कहता है।

" आज मोती झील जाने का प्लान बनाया था, भूल गए क्या, तुमने मेरे छोटे भाई हैदर को कानपुर घुमाने का वादा किया था और वह डाइनिंग टेबल पर ब्रेक फास्ट के लिए तुम्हारा इंतजार कर रहा है ", शहनाज़ अपनी बात पूरी करती है।

" मुझे 10 मिनट दो मैं तैयार होकर आता हूँ", तन्नू कहते ही सीधे बाथरूम की ओर फ्रेश होने चला जाता है।

नाश्ते के बाद तन्नू, हैदर को अपने वालिद की कार से कानपुर घुमाने ले जाता है। काफ़ी घूम कर खिलौने और सामान खरीदने के बाद दोनों गाड़ी की ओर बढ़ ही रहे थे कि तनवीर की नज़र एक लड़की पर पड़ती है," यह यहाँ.... ये तो निहारिका है, ये यहाँ पर क्या कर रही है, इसे तो अपने गांव में होना चाहिए था। इसका पीछा करना पड़ेगा, आखिर ये कौन सी नई पहेली है, इसका पता तो लगाना ही पड़ेगा," तनवीर अपने मन में कहता है ।

तनवीर हैदर को सामान सहित अपने हाथों से पकड़ उठा लेता है और जल्दी से अपनी कार की तरफ लपकता है।

निहारिका सामने रोड क्रॉस कर रही थी। तनवीर बिना देरी किए रोड क्रॉस कर, गाड़ी उसके पीछे पीछे चलाने लगता है।

अब तक निहारिका की नज़र तनवीर पर नहीं पड़ी थी, वो एक अस्पताल के अंदर चली जाती है। तनवीर भी गाड़ी पार्क करके अस्पताल के अंदर चला जाता है, हैदर भी उसके साथ ही था।

अस्पताल के कुछ कमरों में देखने के बाद निहारिका उसे दिखती है, वो अस्पताल में किसी मरीज़ को देखने पहुंची थी, तनवीर को अपने सामने देखकर पहले तो वह थोड़ा चौंक जाती है फिर बाद में तनवीर को बाहर आने का इशारा कर कॉरिडोर की तरफ चल पड़ती है।

तन्नू अपने साथ हैदर को लेकर उसके पीछे चल देता है, बाहर जाकर निहारिका उसे बताती है कि उसके पिता जो अन्दर बेहोश पड़े हैं नैनीताल के फ़ार्म हाउस की देखभाल करते थे, वह तनवीर को बताती है कि उसे झूठ बोल कर तनवीर के यहाँ नौकरानी का काम करना पड़ा क्यूँकि उसकी वजह वो कमांडर का कटा हुआ सिर है।

तनवीर उसे सारी बातें विस्तार से बताने को कहता है।

"मेरा नाम उर्मिला है, मैं आपके पिता द्वारा रखे गए फ़ार्म हाउस के केयर टेकर की बेटी हूँ, मैं पढ़ी लिखी हूँ और बी. ए फ़र्स्ट ईयर की स्टूडेंट हूँ। हम लोग नैनीताल में बड़ी हंसी खुशी जीवन बिता रहे थे। एक दिन आपके वालिद वहाँ पहुँचे उनके हाथों में वज़न दार छोटा संदूक था। साथ में कुछ पुरातत्व से संबंधित कलाकृतियां थीं।

फ़ार्म हाउस के माली और नौकरों ने मिलकर सामान उनके कमरे में रखवा दिया। वह ज़्यादातर समय अकेले ही बिताते थे, वो वहाँ दो दिन रुके थे, अपने जाने से पहले उन्होंने अपने कमरे का ताला ख़ुद बंद किया और चाभी मेरे पिता जी को दे दी।

ऐसे तो कभी आपके वालिद के कमरे को हाँथ नहीं लगाया जाता था, पर आपके वालिद को गुज़रे हुए जब काफ़ी साल बीत गए। तो एक दिन फ़ार्म हाउस को फिर से पेंट करने का फैसला लिया गया, क्यूँकि दीवारों से पानी रिसने लगा था ऐसा पहली बार हो रहा था इतने सालों में। आपके पिता के कमरे की दीवारों पर भी पेंट करने का फैसला किया गया, उनके कमरे का ताला खोला गया और अंदर जाकर साफ़ सफ़ाई शुरू हुई, पहले दो दिन तो सबकुछ ठीक था, फिर आपके पिताजी का कमरा खोल कर ही रखा जाने लगा क्यूँकि पेंट करने का काम तब भी चालू था ।

पर एक रात जब सभी अपने अपने कमरों में सो रहे थे, तभी अचानक मेरे पिताजी अपने बिस्तर से उठ सीधे आपके पिताजी के कमरे की ओर चल दिए। ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें नींद में कोई पूकार रहा हो और उन्हें उस कमरे तक लेकर गया। उस रात मैं अपनी खिड़की के सामने स्टडी टेबल पर बैठकर अगले दिन होने वाले अपने पेपर की तैयारी कर रही थी, खिड़की से आपके पिताजी का कमरा साफ़ दिखता है जो ठीक नीचे है, मैंने देखा कि मेरे पिताजी अंदर गए और वहां एक ओर लटकी शेर की तस्वीर के सामने जाकर खड़े हो गए, फिर थोड़ी देर खड़े रहने के बाद उन्होंने उस तस्वीर को हटाया। उसके पीछे एक दीवार पर बनी अलमारी में संदूक रखा हुआ मिला।

मेरे पिताजी ने संदूक को नीचे उतारा और पास ही एक टेबल पर रख दिया। उसे हेयर पिन की मदद से खोल उसके अंदर से एक कपड़े के झोले जैसे बटुए को बाहर निकाला, फिर उसकी रस्सी ढीली कर जैसे ही अंदर देखा तो तेज़ लाल रोशनी चमकी, मेरे पिताजी बेहोश होकर वहीं गिर पड़े , कपड़े का बटुआ हाँथ से नीचे गिर चुका था।

मैं भागते हुए उस कमरे में पहुंची तो देखा कि उस बटुए के अंदर का सामान बाहर नहीं निकला था लेकिन रोशनी फिर भी जल रही थी।

अपने पिता जी को उठाने जैसे ही मैं आगे बढ़ी तो इतने में एक आवाज़ सुनाई पड़ी, "इन द नेम ऑफ द क्वीन , आखिर कमांडर ब्राड शॉ रोउडी जाग ही गया। सुनो लड़की ये तुम्हारा बाप अभी मरा नहीं है, आँखो पर रोशनी की चमक से बेहोश हुआ है और ऐसा ही रहेगा जब तक तुम हमारा बाकी का बॉडी का मदद नहीं करता है, तुमको करना ये है कि कानपुर के बड़ी हवेली के तहखाने पर लटकी ताविज़ और जंजीरे हटा देना है, जिससे मेरा शरीर वहाँ टहल सके और लोगों में खौफ़ पैदा हो जाए।

किसी को पता नहीं चल पाए कि तुम कौन हो, वहां तुम्हें रहना पड़ेगा फ़िर जो तुम देखोगी या सुनोगी, हम यहाँ बंद संदूक में देखेंगे और सुनेंगे , अगर कोई होशियारी दिखाई तो तुम्हारा बाप अब भी मेरे ही कब्जे में है जब चाहें इसकी जान ले लें। अब बैठे हुए.... क्या देखता और सुनता है, इधर आ कर हमारा खोपड़ी को उठाओ और इज़्ज़त के साथ संदूक में वापस रख दो"।

पहले तो मैं डर गई फिर थोड़ी हिम्मत उसकी बातों को सुनकर मिली, ऐसा लगा वो जो भी है मुझे नुकसान नहीं पहुंचाएगा सो मैंने वही किया जो उसने कहा मैंने उसे संदूक के अंदर बंद कर उसी जगह पर रख दिया और वही तस्वीर उस जगह को छुपाने के लिए दीवार पर लटका दी।

इस हादसे के बाद मेरे पिताजी की हालत गंभीर हो गई, बहुत इलाज कराया पर कोई फायदा नहीं हुआ, फिर हम सब यहाँ चले आए और मैंने उसकी बताई हुई योजना को मजबूरी में अंजाम दिया। मैं आपके यहाँ हवेली पर दो बार नौकरानी के रूप में काम कर चुकीं हूँ, एक बार नन्दनी के रूप में जब पहली बार मैंने वहाँ आप लोगों के रहने से पहले नौकरानी का काम कर तहखाने पर लटके ताविज़ और जंजीरों को हटाया और उस कमांडर के धड़ कि मदद की। जिससे उसका बिना सिर का शरीर हवेली में इधर-उधर टहलने लगा, नौकरों में दहशत फैल गई और नौकर नौकरी छोड़ कर जाने लगे, कुछ दिनों बाद मैंने भी काम छोड़ दिया।

आपकी अम्मी के आने से पहले एक बार फिर वहां झाड़ फूंक करवाई गई और एक बार फिर से उस तहखाने को ताविज़ और जंजीरों से बांध दिया गया इसलिए इस बार निहारिका का रूप लेना पड़ा।

मैं क्या करूं नवाब साहब मैं मजबूर थी, मुझे अपने पिता की जान बचानी थी, हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिए, " निहारिका ने हांथों को जोड़ते हुए कहा।

तनवीर उसकी मजबूरी समझ गया और उससे हमदर्दी जताते कहा कि " अब जब तहखाना खुल ही चुका है, सब कुछ पता चल ही गया है तो मैंने दो दिन बाद उस फ़ार्म हाउस पर जाने का फैसला किया है, तुम चाहो तो अपने पिता और बाकी परिवार के साथ हवेली पर रह सकती हो । तुम्हारे हवेली पर रहने से मैं भी थोड़ा निश्चिंत हो जाऊंगा और एक ही जगह पर रहने से तुम्हें भी सहारा मिलेगा, कब तक अस्पताल और किराए के मकान पर रुकोगी। एक बार इस कमांडर वाली गुत्थी सुलझ जाए फिर तुमलोग भी आराम से नैनीताल के उसी फ़ार्म हाउस पर रह सकते हो, तब तक हवेली पर ही रुको, मैं कल ही गाड़ी भिजवा दूंगा, अस्पताल से छुट्टी लेकर सीधा परिवार के साथ हवेली पर रहने चले आओ"।

उर्मिला भी तनवीर के फैसले से सहमत हो गई । तनवीर अपने संग हैदर को लेकर वहाँ से अपनी कार पर सवार होकर सीधा बड़ी हवेली की ओर चल दिया।

हवेली की तरफ़ जाते समय रास्ते भर तनवीर यही सोचता रहा कि आखिर ऐसा कौन सा राज़ था जो उसके वालिद ने डायरी में लिखा था, जिसका ज़िक्र कमांडर ने उनसे किया था, तनवीर के दिमाग में एक तरफ उन करोड़ों के हीरों का भी ख़याल आ रहा था। एक तरफ हीरे और दूसरी तरफ कमांडर के सीने में दफ्न राज़ ने तनवीर के अंदर बेचैनी सी जगा दी थी।

बड़ी हवेली पहुंचते ही तन्नू ने शहनाज़ को सारी बातें बताईं। शहनाज़ सारी बातें सुनकर उर्मिला के ही पक्ष में थी। अगले दिन तनवीर ने उर्मिला और उसके परिवार को बड़ी हवेली लाने के लिए गाड़ी भेज दी।

दोपहर तक अस्पताल का सारी कार्यवाही पूरी करके उर्मिला अपने परिवार के साथ बड़ी हवेली पहुँची। शहनाज़ ने उसे उसका कमरा दिखा दिया, बड़ी हवेली के कमरे काफ़ी बड़े और अलीशान थे इसलिए शहनाज़ ने उन्हें नीचे के फ्लोर पर दो बड़े कमरे दे दिए।

रात में डिनर के बाद तनवीर ने उन दोनों को नैनीताल जाने की योजना के बारे में बताया। तनवीर ने कहा "कमांडर अपने सीने में कोई ख़ास राज़ दबाए है और वह राज़ क्या है ये सिर्फ नैनीताल पहुंच कर ही पता चलेगा। उसने उर्मिला को भी यहाँ इसी ख़ास मकसद से भेजा था", तनवीर ने उन्हें अब तक डायरी के बारे में और उन हीरों के बारे में नहीं बताया था।

"मैंने कल अपने एक दोस्त को बुलवाया है जो नैनीताल जाने में मेरी मदद करेगा, दो लोग रहेंगे तो गाड़ी ड्राइव करने में मदद मिलेगी, उसे ड्राइविंग का काफ़ी तजुर्बा है, उसका नाम अरुण और वह मेरे साथ ही पढ़ता है इलाहाबाद में, वह भी यहीं कानपुर का ही रहने वाला है, मैंने कल ही उससे मिल कर उसे नैनीताल चलने के तैयार कर लिया था, साथ ही अपने वालिद की गाड़ी भी उसे दिखा दी, जिसमें सफ़र तय करना था, कल दोपहर को हम दोनों यहीं से अपने सफ़र के लिए निकलेंगे, तुम दोनों सारी तैयारियां कर देना और हवेली की देखभाल करना ", तनवीर उन दोनों को सब कुछ समझाता है।

शहनाज़ और उर्मिला सारी बातें अच्छे से सुन रहीं थीं, फिर तनवीर से सहमत होकर अपने अपने कमरों में सोने चली गईं।

अगले दिन सुबह ही अरुण बड़ी हवेली पहुँच जाता है । शहनाज़ उसे हॉल में बैठा देती है, थोड़ी देर बाद तनवीर उससे मिलने आता है और दोनों अन्दर डाइनिंग टेबल पर नाश्ते के लिए बैठ जाते हैं। उर्मिला नौकरों की सहायता से नाश्ता टेबल पर रखवा कर, तनवीर की अम्मी के कमरे में चली जाती है।

नाश्ता करते ही तनवीर और अरुण गैराज की ओर चले जाते हैं, जहाँ दोनों मिलकर कार का अच्छी तरह से निरीक्षण करते हैं। सफ़र का सारा ज़रूरी सामान लेकर दोनों चलने की तैयारी शुरू कर देते हैं।

शहनाज़ और उर्मिला तनवीर को यकीन दिलाती हैं कि अपनी अम्मी की तबीयत को लेकर बेफिक्र रहें। तनवीर और अरुण उन दोनों को अलविदा कह कर सफ़र पर निकल पड़ते हैं। उन्हे काफ़ी लम्बा रास्ता तय करना था। तनवीर ने अपने वालिद की डायरी अपने पास ही रखी थी ताकि वह उसे बार बार पढ़कर सारी जानकारी ले सके, कहीं ऐसा न हो कि कोई विशेष जानकारी उससे छुट न जाए।

अपने कुछ दिनों के सफ़र के बाद तनवीर और अरुण नैनीताल हाई वे वाले फ़ार्म हाउस पर पहुँचे। दोपहर हो चुकी थी इसलिए दोनों थकावट के मारे हॉल में ही सो गए। फ़ार्म हाउस की चाबी तन्नू ने उर्मिला से ले ली थी।

"तुम आ गया... हमको पता था तुम ज़रूर आएगा", एक अनजान सी आवाज़ तन्नू को सुनाई पड़ती है और उसकी नींद खुल जाती है। तनवीर इधर-उधर देखने लगता है पर कोई भी नहीं था, सामने अरुण एक सोफ़े पर सो रहा था। तनवीर ने घड़ी पर नज़र डाली तो शाम के पांच बज चुके थे। उसने अपने फ़ार्म हाउस को अच्छी तरह से घूम फिर कर देखा, फिर वो अपने वालिद के कमरे में चला गया जहाँ उसे रैक पर सजे दो हांथी दाँत के हाथियों की मूर्तियां दिखती हैं और ठीक उनके नजदीक ही दीवार पर उसे शेर की तस्वीर टंगी दिखती है, जिसके पीछे संदूक में कमांडर का कटा हुआ सिर रखा था। तनवीर पहले उन हाथियों की मूर्तियों की पीठ खोलकर देखता है जिनके अंदर 50-50 बड़े साइज़ के हीरे रखे हुए थे जिनकी कीमत करोड़ों में थी, पर उन्हें हासिल करने के लिए कमांडर से उसकी अनुमति लेनी थी या कमांडर का कोई अधूरा काम करना था ये तो सिर्फ कमांडर ही जानता था।

वहाँ से तनवीर बाहर निकल कर सीधा फ़ार्म हाउस के गार्डन में पहुंचता है जहां उसे पहले से ही एक माली काम करता हुआ दिखाई पड़ता है। वह उस माली के नज़दीक जाकर उससे पूछता है "नाम क्या है तुम्हारा, क्या तुम यहीं पर काम करते हो, कब से काम कर रहे हो यहाँ", तनवीर उस माली से एक साथ कई सवाल पूछ लेता है। माली पहले तो हाँथ जोड़कर खड़ा हो जाता है फिर तनवीर को देख कर कहता है "हमारा नाम रामू है सरकार, हम यहाँ पर 20 सालों से माली का काम कर रहे हैं, आप प्रोफेसर साहब के बेटे हैं न यानि हमारे छोटे मालिक, आपने आने की खबर दी होती तो सारी तैयारी कर लेते, रुकिए मैं अभी जाकर बाकी नौकरों को ख़बर करता हूँ, आपके खाने पीने की व्यवस्था करवाता हूँ ", इतना बोलते ही वह गाँव की ओर भागता है और वहाँ से तीन चार लोगों को ले आता है। उनमें से कुछ साफ़ सफ़ाई कर तनवीर और अरुण के सोने का कमरा साफ़ कर उनका सामान वहीं रख देते हैं और कुछ रसोई में जाकर दोनों के लिए खाने का इंतजाम करने लगते हैं।

इधर जैसे ही जैसे समय बीत रहा था तनवीर के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी, उसके मन में एक भय घर करने लगा था कि अब तक केवल कमांडर के धड़ से ही सामना हुआ था, जो बिना सिर के कमज़ोर था, पर आज रात तो उसका सामना कमांडर के सिर से होना था जो काफ़ी शक्तिशाली था और कुछ भी कर सकता था। तनवीर को यह चिंता भी खाई जा रही थी कि कहीं कमांडर कोई जानलेवा योजना तो नही बनाए बैठा था। इन सभी बातों का जवाब तो सिर्फ कमांडर ही दे सकता था।

तनवीर ने अपने और अरुण के लिए उर्मिला का कमरा साफ़ करवाया था। ऐसा उसने इसलिए किया ताकि वह वहाँ से अपने वालिद के कमरे पर नज़र रख सके। उन दोनों में से एक को अगर कुछ होता है तो अगला उसे बचा सके। तनवीर को कमांडर के इरादों पर ज़रा भी भरोसा नहीं था इसलिए उसने अरुण को सतर्क रहने के लिए पहले से ही बता रखा था। उन दोनों की योजना ये थी कि रात में थोड़ा सतर्क रहना है फ़िर चाहे दिन में आराम कर लें। उर्मिला का कमरा ऊपर होने के कारण तनवीर को फ़ार्म हाउस का सबसे सुरक्षित कमरा लगा।

रात का डिनर ख़त्म होते ही दोनों उर्मिला के कमरे में आराम करने चले गए। सफ़र से थके होने के कारण दोनों को नींद आने लगी।

रात गहरी हो चली थी, ऊपर से हवा में हल्की ठंड सी थी, नैनीताल हाई वे पर फ़ार्म हाउस होने की वजह से ठंड का असर कुछ ज़्यादा ही था। यही वजह थी कि दोनों अपने अपने कम्बलों में घुसकर सो रहे थे कि अचानक एक भारी आवाज़ उनके कानों से टकराई "इतना साल इंतज़ार के बाद आखिर तुम आ ही गया... इन द नेम ऑफ द क्वीन, अब हमारा मकसद पूरा हो जाएगा"।

तनवीर चौंक कर उठता है, अरुण अभी तक सो ही रहा था, तनवीर उसकी तरफ देखता है और उसे हिला कर जगाता है, काफ़ी कोशिश के बाद भी अरुण की नींद नहीं खुलती है, ये सफ़र की थकान का असर था। तनवीर भी उसे जगाना उचित नहीं समझता है और ख़ुद ही खिड़की से बाहर अपने वालिद के कमरे की ओर देखने लगता है।

"अब आ ही गया है तुम तो हमारे और थोड़ा नज़दीक आओ... अपना डैडी के कमरे में चले आओ", कमांडर उसे आवाज़ लगा कर प्रोफेसर के कमरे में बुलाता है।

तनवीर घबरा सा जाता है, फिर किसी तरह हिम्मत जुटा कर फ़ार्म हाउस की सीढ़ियाँ धीरे धीरे उतरने लगता है और अपने वालिद के कमरे की तरफ़ बढ़ने लगता है। अपने वालिद के कमरे में पहुँचकर वो लाईट ऑन करता है।

कमांडर उससे कहता है कि "अब ये तस्वीर हटा कर हमारा खोपड़ी को संदूक से बाहर निकालो, हम तुमको देखना चाहता है, हम वादा करता है तुमको सारा सच्चाई बताने तक कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा, बस तुमको भी एक वादा करना होगा, हमको हमारा धड़ तक पहुंचाना होगा"।

तनवीर आगे बढ़ कर तस्वीर को दिवार से नीचे उतारता है, फिर संदूक को टेबल पर रखता है और उसे खोलकर कमांडर का कटा हुआ सिर बाहर निकालता है। उसकी आंखों में लाल रोशनी चमक रही थी पर इतनी तेज़ नहीं थी कि किसी को नुकसान पहुंचा सके। वह कमांडर के सिर को टेबल पर एक जगह रख उसके सामने कुर्सी लगा कर बैठ जाता है। तनवीर को ख़ुद पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उसके अंदर इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई, अभी कुछ देर पहले तो केवल कमांडर की आवाज़ सुनकर उसकी हालत खराब थी।

कमांडर भी तनवीर को देख कर मुस्कुराने लगता है, फिर पूछता है "क्या तुम destiny यानि भाग्य पर विश्वास करता है", कमांडर पूछते ही उसके चेहरे को बड़े ध्यान से देखता है, जैसे वह तनवीर का चेहरा पढ़ रहा हो।

©IvanMaximusEdwin