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बड़ी हवेली (श्रापित हीरे की खोज)

"शाहजहां ने अपने लिए एक विशेष सिंहासन बनवाया। इस सिंहासन को बनाने में सैयद गिलानी नाम के शिल्पकार और उसका कारीगरों का टीम को कोई सात साल लगा। इस सिंहासन में कई किलो सोना मढ़ा गया, इसे अनेकानेक जवाहरातों से सजाया गया। इस सिंहासन का नाम रखा गया तख्त—ए—मुरस्सा। बाद में यह 'मयूर सिंहासन' का नाम से जाना जाने लगा। बाबर के हीरे को भी इसमें मढ़ दिया गया। दुनिया भर के जौहरी इस सिंहासन को देखने आते थे। इन में से एक था वेनिस शहर का होर्टेंसो बोर्जिया। बादशाह औरंगजेब ने हीरे का चमक बढ़ाने के लिए इसे बोर्जिया को दिया। बोर्जिया ने इतने फूहड़पन से काम किया कि उसने हीरे का टुकड़ा टुकड़ा कर दिया। यह 793 कैरट का जगह महज 186 कैरट का रह गया... औरंगजेब ने दरअसल कोहिनूर के एक टुकड़े से हीरा तराशने का काम बोर्जिया को खुफ़िया रूप से दिया था और उसी कोहिनूर के हिस्से को शाह जंहा कि जेल की दीवार में चुनवा दिया गया था जिसकी सहायता से वह ताजमहल तथा अपनी अज़ीज़ बेगम की रूह को देखते थे ।

Ivan_Edwin · ホラー
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खोपड़ी का कहर-2

"अब आज के ज़माने में तो भाग्य केवल कहानियों में ही दिखता है, हम लोग पढ़े लिखे कॉलेज जाने वाले नौजवान विज्ञान के इस दौर में भाग्‍य जैसी चीज़ों पर नहीं बल्कि कर्मों पर विश्वास करते हैं", तनवीर थोड़ा सोचने के बाद कमांडर को उसके पूछे हुए सवाल का जवाब देता है।

" जो ख़ज़ाना डॉक्टर ज़ाकिर और प्रोफेसर को मिला, उसे पाने का वास्ते न जाने कितना लोगों ने अपना जान गँवाया फिर भी इसका भनक तक किसी को नहीं मिला, पर अचानक 300 साल बाद बर्फ़ में जमा हमारा शरीर ऊपर की तरफ आता है और साथ ही गुफा का पत्थर भी खिसक जाता है जिससे गुफा का द्वार हल्का सा खुल जाता है, इतना सालों से जो प्रकृति ने छुपा कर रखा था वो दिखने लगता है जिस पर डॉक्टर ज़ाकिर का टीम के एक सदस्य का नज़र पड़ता है, फिर ख़ज़ाना और हमारा शरीर मिलता है ", कमांडर, तनवीर से कहता है।

" आप कहते जाइए मैं सुन रहा हूँ, जहाँ कुछ बीच में पूछना होगा तो मैं बीच में ही टोक दूँगा ", तनवीर ने कमांडर से कहा और उसकी बातों को ध्यान से सुनने लगा।

" हम ये कहना चाहता है कि इतना बेशकीमती ख़ज़ाना जिसके पीछे कितने लोगों ने जान गंवाया, अगर किसी के भाग्‍य में होता तो पहले ही मिल जाता फ़िर भी ये 300 साल बाद ही तुम्हारा डैडी और उसके दोस्त को ही क्यूँ मिला, इस बारे में आराम से सोचकर देखना, पर अभी जो हम बताने जा रहा है वो तुम्हारे डैडी को भी नहीं बताया ", कमांडर की बातें सुनकर तन्नू के मन में जिज्ञासा का सैलाब उमड़ पड़ता है।

कमांडर अपनी बात जारी रखता है " तुम्हारे डैडी का दोस्त डॉक्टर ज़ाकिर ने ख़ज़ाना मिलते ही अपना असली रंग दिखाया, गुफा से ख़ज़ाना निकालने के बाद हमने उनके टीम का हर सदस्य को एक एक करके मारना शुरू किया जिससे सभी लोग डर गया था, उन लोगों के समक्ष में नहीं आ रहा था क्या करें, हम ख़ज़ाने से जुड़ा हुआ था इसलिए कोई हमको छोड़ कर भी जाता तो भी मुसीबत में पड़ता इसलिए साथ ले जाने का फैसला किया, जब हमने गुफा का खोज करने वाले सभी लोगों को मार दिया तो प्रोफेसर ने हमारा सिर और धड़ को अलग कर के रख दिया क्यूँकि अगला नंबर डॉक्टर ज़ाकिर फ़िर तुम्हारा डैडी का था। पर उस धोखेबाज़ डॉक्टर ने अपना जान बचाने और बाकी सबके मरने का वास्ते ख़ज़ाने का हिस्सा पहले ही बांट दिया जिसमें कुछ हीरे तुम्हारे वालिद के हिस्से में और एक एक अपना टीम का साथियों में बांट दिया, इस वजह से आज वो ज़िंदा है और तुम्हारे वालिद के साथ साथ सभी लोग मर गया। उस डॉक्टर को पहले से पता था कि ख़ज़ाने से जुड़ा मौत सीरियल नंबर के हिसाब से चलता है इसलिए उसने मौत का सिरीज़ तोड़ने के वास्ते ऐसा किया, ख़ज़ाना भले ही सरकार को सौंप दिया हो पर वो अधूरा ही था क्यूँकि उसका बंटवारा उसने पहले से ही कर दिया था, इसी तरह सबके मरने के बाद वो लंदन का यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के नाम से चला गया और अब तक ज़िन्दा है "।

कमांडर की बातें सुनकर तन्नू एक गहरी सोच में चला गया, उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसके वालिद के दोस्त ने ही उन्हें धोखा दिया था, जिस वजह से उसके वालिद और टीम के बाकि के सदस्यों की मौत हो गई थी।

कमांडर अपनी बात जारी रखता है "ख़ज़ाना मिलने के बाद जब हम लोग लौट रहा था तब से कई बार डॉक्टर ज़ाकिर ने ये कोशिश किया कि तुम्हारे फादर का जान चला जाए, इसलिए डॉक्टर ने मेरा सिर उस कपड़े का बटुआ से बाहर निकाला और संदूक में ऐसे ही बंद कर दिया, उसने सोचा हम तुम्हारे फादर को मार देगा, पर मौत तो सिरीज़ में होना था जो शरीर के टुकड़ों को अलग कर के थम गया था। फिर भी अगर हम चाहता तो भी डॉक्टर ज़ाकिर और प्रोफेसर को तब भी मार सकता था"।

तनवीर ने कमांडर को बीच ही में टोकते हुए कहा " इसका मतलब यह है कि आपने जान बूझकर उन्हें ज़िन्दा छोड़ा, पर किसलिए, मेरी समझ में कुछ नहीं आया, ज़रा खुलकर बताइए ", तनवीर के चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे।

" अब अगर बीच बीच में टोकेगा तो हम भी भूल जायेगा, राज़ की बातें ज़्यादा हैं और रात बहुत ही छोटा , कुछ ही देर बाद सुबह हो जाएगा, एक रात और बर्बाद होगा, हम तो सारा बात आज ही सुना कर ख़त्म करना चाहता है ताकि अपना धड़ तक पहुंचने का सफ़र जल्द ही तय कर सके। अब सुनो, अगर हम चाहता तो उस समय भी इस संदूक से बाहर निकल कर डॉक्टर और तुम्हारा फादर का सफाया कर सकता था, पर हम उस समय ही डॉक्टर का भविष्य देख लिया था, उसे ख़ज़ाना भारत सरकार के हवाले करते ही लंदन यूनिवर्सिटी का टिकिट मिलना तय था,

जब एक ताकतवर आत्मा किसी के पीछे लगता है तो उसका भूत, वर्तमान भविष्य सब जानता है।

प्रोफेसर इस ख़ज़ाने का क्रेडिट अपने ऊपर टीम का सहायक बन कर लेता और डॉक्टर टीम का लीडर, ये बात हमको तब ही पता चल गया था, इसलिए हम इतना साल इंतजार किया, अब जब इतना साल बीत ही गया है तो हम तुमको ये सारा हीरा बस एक ही शर्त पर ले जाने देगा, अगर तुम हमारा धड़ के पास हमको लेकर जाएगा और किसी भी तरह से लंदन लेकर जाएगा, हमारा मदर लैंड में डॉक्टर छुप कर बैठा है उसको भी सबक तो सिखाना पड़ेगा, अब बोलो अगर तुम तैयार हो तो कल ही निकलते हैं यहाँ से कानपुर के लिए", कमांडर अपनी बात ख़त्म करते ही तनवीर की तरफ देख मुस्कुराता है।

" इसका मतलब यह है कि आप इतने सालों से इसी योजना पर काम कर रहे थे, मान लीजिए मुझे पता ही नहीं चलता आपके धड़ के बारे में फ़िर क्या होता, ये भी तो हो सकता था कि मुझे डायरी नहीं मिलती तो कभी कुछ पता ही नहीं चलता, या सब कुछ जानते हुए भी कोई ये जोखिम उठा आप तक आने की कोशिश ही न करता ", तनवीर कमांडर की ओर देखते हुए पूछता है।

"हम तुमसे पहले ही एक सवाल किया था क्या तुम destiny पर विश्वास रखता है, हमारा मिलना पहले से तय था, तुम कहीं भी होते फ़िर भी हम दोनों ज़रूर मिलते, प्रोफेसर भी ख़ज़ाने का खोज में ऐसे ही नहीं निकला था, हम भी उनलोगों को ऐसे ही नहीं मिला था, डॉक्टर ने भी धोखा ऐसे ही नहीं दिया था, ये सब कुछ पहले से तय था, इन सब घटनाओं के पीछे एक ख़ास मकसद था नियति हम सबको मिलवाना चाहता था ताकि एक दूसरे का सहायता से हम लोग अपना अधूरा सफ़र पूरा ख़त्म कर सके, आखिर हमको भी इस ख़ज़ाने और इस जगह से छुटकारा चाहिए था, कब तक कटा हुआ सिर के साथ लोगों को डराने का काम करता रहेगा हम ", कमांडर अपनी बात ख़त्म करते ही तनवीर की ओर सवालिया निगाहों से देखता है।

तनवीर उसकी बातें सुनकर चिंतित हो जाता है, उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, उसे एक ओर तो कमांडर की बातों पर यकीन भी था तो दूसरी ओर इस बात का डर भी था कि कहीं कमांडर किसी प्रकार की कोई साज़िश तो नहीं रच रहा है।

तनवीर को चिन्तित देख कमांडर उससे कहता है "इतना सोच रहा है तुम, इतना तो तुम्हारा फ़ादर और डॉक्टर ख़ज़ाना उड़ाने से पहले नहीं सोचा, आज से तीन सौ साल पहले का इंसान सोचता नहीं था कर गुज़रता था क्यूँकि सोचने से हौसला धीरे धीरे पस्त पड़ने लगता है, अगर शाहजहाँ इतना सोचता तो कभी ताज महल नहीं बनता, अगर औरंगजेब इतना सोचता तो कभी शाहजहाँ को बन्दी बना कर बादशाह नहीं बन पाता, अगर हम यानि कमांडर ब्राड शॉ रोउडी इतना सोचता तो कभी कोहिनूर चूरा कर भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का राज्य स्थापित नहीं कर पाता, इतना तो तुम तब नहीं सोचा जब तीन सौ साल पहले सिर्फ एक गुमनाम लुटेरा था जिसने मुग़ल सल्तनत और ब्रिटिश गवर्नमेंट के नाक में उंगली नहीं कर दिया था यही नहीं हमारा सिर भी धड़ से अलग कर दिया था , ज़्यादा सोचने से जोश ख़त्म हो जाता है और इंसान अपने बालों का रंग सफेद कर लेता है"। तनवीर कमांडर की बातें सुनकर अचंभित था।

" क्यूँ चौंक गया, यही तो destiny का खेल था, खरबों का ख़ज़ाना और ख़ज़ाने के साथ जुड़ी दो अधूरी कहानी, एक कहानी तुम्हारी..... एक कहानी हमारी... हा.. हा.. हा.. हा..... अब समझ में आया तीन सौ साल बाद वही ख़ज़ाना डॉक्टर और प्रोफेसर को ही क्यूँ मिला, क्यूँकि हमको तुमसे मिलना था", कमांडर अपनी बात ख़त्म करता है और तनवीर की तरफ हँसते हुए देखता है।

तनवीर बुरी तरह से डर गया था, उसका पूरा शरीर जैसे डर से जमकर ठंडा और सुन्न सा पड़ गया था, उसे समझ ही में नहीं आ रहा था कि क्या करे।

कमांडर इस बात को भांप गया कि तनवीर डर गया है, उसने तन्नू से कहा "डरो नहीं, तुमने उस समय जो किया अपना जगह पर सही था, तुम्हारा जैसा साहसी आदमी के हांथों मरने का फक्र है, अब उस बात को तीन सौ साल बीत चुके हैं, कई बार दूसरा जन्म लेने पर भी इंसान का अपना पिछला ज़िंदगी याद कर पाना नामुमकिन होता है, इसलिए किस्मत ने हम दोनों को दुबारा मिलवाया एंड इन द नेम ऑफ द क्वीन, मिलकर अच्छा लगा "।

" हमको प्रोफेसर से मिलते ही इस बात का पता चल गया था और ये दूसरा सबसे बड़ा कारण था हम इस खेल को अंजाम दिया , तुम्हारा फादर और डॉक्टर ज़ाकिर यही सोचता रहा कि दोनों ने बड़ा हिम्मत के साथ मिलकर हम पर काबू पा लिया था, हकीकत तो यह है हमने खुद उनको अपने ऊपर काबू पाने दिया, उस लड़की उर्मिला को भी इसलिए भेजा ताकि हम दोनों के मिलने का रास्ता बने ", कमांडर कहते ही खिड़की की ओर देखता है, सुबह होने ही वाली थी।

तनवीर की आँखें फटी की फटी ही रह गई थी, उसे अंदर से जैसे झटका सा लगा हो कमांडर की बातों को सुनकर। तनवीर अपने मन में सोच रहा था कि किस्मत का ये कैसा खेल है जिसने उसे तीन सौ साल पहले के इतिहास से जोड़ दिया। ऐसा इतिहास जो अधूरा ही रह गया जिसे एक बार फिर से पूरा करने का मौका दिया है विधाता ने।

कमांडर की खोपड़ी से बात करते करते कब सुबह हो गई तनवीर को पता ही नहीं चला, उसने खिड़की से बाहर देखा तो पाया कि सूर्य की पहली किरण धरती पर पड़ने ही वाली थी, उसने कमांडर की खोपड़ी को संदूक में वापस रख दिया और उस संदूक को दीवार की रैक पर रख शेर की तस्वीर टांग दी।

कमांडर की बातें तनवीर को परेशान करने लगीं थीं। " क्या कमांडर ने जो कहा वाकई में सच था, क्या मैं ही वो लुटेरा था जिसने कमांडर की गर्दन को धड़ से अलग किया था और अगर ऐसा था तो कमांडर के दिमाग में भी बदला लेने की बात तो नहीं चल रही है", तनवीर के मन में लगातार ऐसे ख्याल आ रहे थे।

तनवीर जहाँ कमांडर की बातों से परेशान था वहीं उसकी बातें सुनकर काफ़ी डरा हुआ था। उसने अपने डर के कारण ही एक ऐसा फैसला लिया जिसकी कमांडर को भी उम्मीद ना थी। तनवीर ने फौरन ही अरुण को जगाया और सामान बाँधने की तैयारी करने लगा, उसने अपने पिता के कमरे में रखे हाथियों की मूर्तियों को भी अपने बैग में रखा और अरुण के साथ फ़ार्म हाउस से गाड़ी लेकर निकल गया।

गाड़ी अरुण ही ड्राइव कर रहा था, रास्ते में अरुण ने तनवीर से पूछा "अरे यार तन्नू, कल रात ऐसा क्या हुआ जो तुमने अचानक ही फ़ार्म हाउस छोड़ने का निर्णय ले लिया, कितना मज़ा आ रहा था वहाँ, बिलकुल शांत और शुद्ध वातावरण को छोड़कर एक दम से कानपुर के दूषित वातावरण में जाने का फैसला कर लिया, इन हाथियों की मूर्तियों में ऐसा क्या है जो इन्हें भी अपने सामान के साथ बाँध लिया "?

" कुछ नहीं बस एक ज़रूरी काम याद आ गया जो अधूरा ही छोड़ आया था और ये हाथियों की मूर्तियां मेरे वालिद की आखिरी पुरातात्विक खोज थी जो उन्होंने बड़ी हवेली में रखने को कहा था क्यूँकि ये काफ़ी रेयर कलेक्शन है बस ", तनवीर ने अरुण के सवालों का जवाब देते हुए कहा, उसने अरुण को अब तक ख़ज़ाने के उन हीरों के बारे में नहीं बताया था।

" मुझे याद है तुमने कमांडर की बात की थी, पर फ़ार्म हाउस में तो ऐसा कोई भूत नहीं दिखा मुझे तो लगता है शायद ये तुम्हारा कोई मज़ाक था, हमदोनों तो इतनी दूर आ चुके हैं अगर कोई भूत होता तो फ़ार्म हाउस पर ही रोक लेता, तुम भी यार तन्नू आज के ज़माने में भूत प्रेत पर यकीन करते हो, बहुत ताज्जुब होता है तुम्हारी बातों को सुनकर, अच्छा अब इतनी दूर पहुंच ही गए हैं तो थोड़ा नाश्ता पानी किया जाए, सुबह से अब तक कुछ गया नहीं है पेट में ", अरुण ने तनवीर से गाड़ी चलाते हुए कहा।

तनवीर गहरी सोच में था, उसने अरुण की बात सुनकर केवल अपनी गर्दन हां के इशारे में हिलाई। अरुण ने गाड़ी एक ढाबे पर रोक दी। गाड़ी से उतरते ही उसे लॉक किया और दोनों चारपाई पर बैठ गए, चारपाई के बीच में एक लकड़ी का तख्ता रखा था जिसपर एक ग्लास और एक पानी से भरा जग रखा था, दोनों अलग अलग चारपाई पर बैठे हुए थे। 15 वर्ष का एक लड़का उनके पास आया और बोला "क्या लेंगे साहब , नाश्ता अभी अभी बना है, 6 ताजी कचोरी, जलेबी, आलू पालक, मटर पनीर और रायते की प्लेट का दाम केवल दस रुपए है", लड़का अपनी बात ख़त्म करते ही उनकी ओर देखने लगा।

अरुण ने उसकी ओर देखते हुए कहा "ऐसा करो दो प्लेट नाश्ता लगाओ और मेरे लिए जो प्लेट लाओगे उसमे जलेबी की जगह कचोरी बढ़ा देना "।

" ठीक है साहब, अभी लाता हूँ ", लड़का नाश्ते का ऑर्डर लेकर चला जाता है।

" तुम भी किस सोच में डूबे हो यार तनवीर, चलो जब तक वह नाश्ता लाता है हम लोग हाँथ मुँह धो लेते हैं ", तनवीर से अरुण ने कहा और दोनों सामने लगे हैंड पंप के पास चले गए, दोनों ने बारी बारी हाँथ मुँह धोएं फिर गाड़ी की ओर गए, उसका लॉक खोलकर अपने बैग में टॉवेल और टूथ ब्रश रखा, फिर गाड़ी लॉक कर के वापस ढाबे की ओर चल दिए।

लड़का उनकी चारपाई पर नाश्ता लेकर पहुंचा, दोनों ने जमकर नाश्ता किया, फिर वापस अपने सफ़र पर निकल पड़े, अब तक वो दोनों फ़ार्म हाउस से लगभग पचास किलोमीटर दूर निकल आए थे।

सफ़र भर तनवीर ख़ामोशी से कुछ सोच रहा था जबकि अरुण उससे लगातार बातचीत कर रहा था। तनवीर को अब भी कमांडर की बातें परेशान कर रही थी, उसने अब भी कमांडर की बातों पर यकीन नहीं किया था, उसे ज़रा भी यकीन नहीं हो रहा था कि वह 300 साल पुराने इतिहास से जुड़ा हुआ था, उसे अब भी यही लग रहा था कि कमांडर के दिमाग में कोई खेल चल रहा है। इसी तरह से सफ़र करते करते करीब दोपहर के दो बज गए थे, अरुण ने गाड़ी को फिर एक ढाबे पर रोक तन्नू से कहा " तुम ज़रा यहीं ढाबे पर खाने का ऑर्डर दो, मैं ज़रा गाड़ी के टायर्स की हवा चेक करवा कर आता हूँ, पास में ही एक मैकेनिक शॉप है, फिर खाना खाकर अपने सफ़र पर दुबारा निकल पड़ेंगे", तनवीर गाड़ी से उतरकर ढाबे की ओर चल दिया।

ढाबे पर उसने खाने का ऑर्डर दिया और अरुण का इंतजार करने लगा, अब वह फ़ार्म हाउस की बात से थोड़ा निश्चिंत हो गया था क्यूँकि अब तक वह दोनों कमांडर की गिरफ्त से काफ़ी दूर जा चुके थे, पर तन्नू के मन में कहीं न कहीं कमांडर का डर था, उसके मन को एक बात लगातार परेशान कर रही थी कि क्या वह उन हीरों को बिना कमांडर की इच्छा पूरी किए बेच सकता था क्यूँकि कमांडर ने उसे बताया था कि डॉक्टर ज़ाकिर ने अपने सहायको को जो हीरे बांटे थे वो सभी उन्हें बेचने पर मर गए, पर फिर भी डॉक्टर ज़ाकिर अब तक ज़िन्दा कैसे हैं, यह बात तनवीर को सबसे ज्यादा परेशान कर रही थी। थोड़ी देर बाद ढाबे पर अरुण भी पहुंच जाता है, हाँथ मुँह धोकर तनवीर के पास की चारपाई पर बैठ जाता है।

"ऑर्डर दे दिया भाई", तनवीर की ओर देखते हुए अरुण उससे पूछता है।

"हाँ दे दिया है, अभी लाता ही होगा, मैंने उसे बता दिया था कि मेरे साथ एक सज्जन और हैं उनके आते ही खाना लगा दे", तनवीर ने अरुण के सवाल का जवाब दिया।

थोड़ी देर बाद एक लड़का उनका खाना चारपाई पर लगा देता है। दोनों अपना खाना खत्म करते ही चारपाई पर थोड़ी देर आराम कर फिर अपने सफ़र पर निकल पड़ते हैं। शाम हो चली थी और मौसम में ठंड के साथ बादल भी थे, ऐसा लग रहा था कि बरसात भी अपना कहर ढा ही देगी, फिर भी उन दोनों ने अपना सफ़र जारी रखा।

"अरे यार तन्नू आज मौसम बड़ा सुहाना है, लगातार सफ़र करते हुए पीठ भी दर्द हो रही है, आज मूड बन गया है क्यूँ न पास के गाँव में थोड़ी देर रुक कर ग़म का साथी रम पीकर ठंड भगाई जाए, फिर कहाँ ऐसा मौका मिलेगा, घर पहुंचकर अपने बापू की किट किट सुननी पड़ती है, यही तो मौका है जब एंजॉय किया जा सकता है, तुम्हारी भी परेशानी थोड़ी कम होगी रम लेकर चखने के लिए भी सोचना नहीं पड़ेगा वाइन शॉप के बगल में ही एक छोटा सा होटल है जहाँ खाने पीने की भी व्यवस्था मौजूद है ",अरुण ने तनवीर से कहा।

" तुम्हें कैसे पता आगे के गाँव में वाइन शॉप है ", तनवीर ने आश्चर्य से पूछा।

अरुण ने हंसते हुए कहा " मन्दिर का पता पुजारी को ना रहे तो पुजारी किस काम का, मैंने फ़ार्म हाउस जाते समय रास्ते पर ही देख लिया था कि इस गाँव में वाइन शॉप है, अब बस तुम इजाज़त दो तो गाड़ी वहीं अड्डे पर रोका जाए, पर पीने के बाद तुम ड्राइव करोगे क्यूँकि मैं काफ़ी थक चुका हूँ और फिर मूड भी तो बना रहना चाहिए। अगले शहर पहुंचते ही रहने के लिए लॉज और होटल की सुविधा है अगर चाहो तो वहीं रात सो लिया जायेगा लेकिन शहर जब तक पहुंचेंगे तब तक वाइन शॉप बंद हो जाएगी , चिन्ता मत करो तुम्हें गाड़ी ज़्यादा दूर नहीं चलानी पड़ेगी "।

तनवीर जो कमांडर की बातों से कश़्मकश में पड़ कर उलझ सा गया था अरुण के इस प्रस्ताव को ठुकरा ना सका और उसने भी हामी भर दी।

गाँव के वाइन शॉप के नज़दीक पहुँचते ही अरुण ने गाड़ी होटल पर रोक दी, तनवीर को होटल पर रुकने को कहा और ख़ुद बगल की दुकान से रम का एक खरीदने चला गया । होटल पर पीने वालों की अच्छी खासी संख्या थी, होटल के बाहर तीन गाड़ियां पहले से ही रुकीं थीं। तन्नू ने होटल के वेटर को दो प्लेट चिकेन तंदूरी का ऑर्डर दिया, जब तक वह ऑर्डर लेकर आता अरुण भी रम लेकर पहुंच गया, फिर उसने ग्लास में दो पेग बनाए और एक तनवीर की तरफ़ बढ़ा दिया। दोनों ने अपने अपने पेग पीए। चारों तरफ़ बैठे शराबी अपनी जग जीतने कि कथा सुना रहे थे, उनमें से कुछ जोड़े में टेबल पर बैठे हुए थे तो कुछ ग्रुप में पीने आए थे, जो अकेला आता था तुरंत ही पीकर चला जाता था। कुछ ही देर बाद वेटर उनका खाने का ऑर्डर लाया, दोनों चिकन तंदूरी पर नींबू निचोड़ कर खाने का आनंद लेने लगे, बीच बीच में अपने ग्लास से रम का पेग भी पीते रहते थे।

©IvanMaximusEdwin