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बड़ी हवेली (श्रापित हीरे की खोज)

"शाहजहां ने अपने लिए एक विशेष सिंहासन बनवाया। इस सिंहासन को बनाने में सैयद गिलानी नाम के शिल्पकार और उसका कारीगरों का टीम को कोई सात साल लगा। इस सिंहासन में कई किलो सोना मढ़ा गया, इसे अनेकानेक जवाहरातों से सजाया गया। इस सिंहासन का नाम रखा गया तख्त—ए—मुरस्सा। बाद में यह 'मयूर सिंहासन' का नाम से जाना जाने लगा। बाबर के हीरे को भी इसमें मढ़ दिया गया। दुनिया भर के जौहरी इस सिंहासन को देखने आते थे। इन में से एक था वेनिस शहर का होर्टेंसो बोर्जिया। बादशाह औरंगजेब ने हीरे का चमक बढ़ाने के लिए इसे बोर्जिया को दिया। बोर्जिया ने इतने फूहड़पन से काम किया कि उसने हीरे का टुकड़ा टुकड़ा कर दिया। यह 793 कैरट का जगह महज 186 कैरट का रह गया... औरंगजेब ने दरअसल कोहिनूर के एक टुकड़े से हीरा तराशने का काम बोर्जिया को खुफ़िया रूप से दिया था और उसी कोहिनूर के हिस्से को शाह जंहा कि जेल की दीवार में चुनवा दिया गया था जिसकी सहायता से वह ताजमहल तथा अपनी अज़ीज़ बेगम की रूह को देखते थे ।

Ivan_Edwin · ホラー
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कल आज और कल

"वीरे ओ वीरे, रुक मैं भी आ रहा हूँ, देख माँ ने गाजर का हलवा बनाया है, अरे थोड़ा धीरे चल अभी पाठशाला शुरु होने में बहुत समय है, साथ में बैठ कर खाया जाएगा, सुन न यार जीते आज गणित की परीक्षा के वक़्त थोड़ा मदद कर देना," 15 वर्ष का हरप्रीत अपने मित्र इंद्रजीत से कहता है।

उसका मित्र इंद्रजीत जवाब देता है" ठीक है मैं तेरी मदद कर दूँगा बस याद रखना गाजर का हलवा पूरा मैं खाऊँगा "।

" हाँ,.. चल खा लेना, पर मदद ज़रूर करना ", हरप्रीत अपने मित्र से कहता है।

पाठशाला के बाद दोनों सीधा अपने घर की ओर जाते हैं, गाँव के चौराहे पर काफ़ी भीड़ लगी थी, इंद्रजीत का घर वहीं पर था, दोनों दौड़ते हुए भीड़ को चीरकर घर के मुख्य दरवाज़े से अंदर पहुंचते हैं, सामने चार लाशें रखी थीं जो सफ़ेद चादर से लिपटी हुई थीं, उनमें से एक लाश हरप्रीत के पिता की थी और बाकी तीन लाशें इंद्रजीत के पिता और दो बड़े भाईयों की थीं। घर में मातम का माहौल छाया हुआ था, एक ओर घर और पड़ोस की महिलाएँ बैठकर रो रहीं थीं तो दूसरी ओर पुरुषों का झुंड सिरों को झुकाए बैठा था, इंद्रजीत और हरप्रीत रोते हुए उन लाशों से लिपट गये, कुछ महिलाएं उनके करीब आकर उन्हें चुप कराने में लग गईं। इंद्रजीत अपनी माँ से लिपट गया और बोला "ये क्या हो गया माँ, कैसे और किसने किया ये", उसकी आँखें बदले के क्रोध से भरी हुई थीं जो आँसुओं के रूप में बह रही थीं।

"सच्चे बादशाह की सेवा करते हुए तेरे पिता शहीद हुए हैं बेटा, ये फक्र की बात है, शाहजहाँ की सेना से लड़ते हुए उन्होंने और तेरे भाइयों वीरतापूर्वक अपने प्राणों की आहुति दी है, तुझे भी इन्ही की तरह बनना है और इनकी मौत का बदला लेना है", इंद्रजीत की माँ अपने दिल पर पत्थर रखकर कहती है।

" मैं कसम खाता हूँ माँ, शाहजहाँ को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी, मैं मुग़ल सल्तनत की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा दूँगा ", 15 वर्ष का इंद्रजीत अपनी माँ से वादा करता है। धीरे धीरे समय बीतता जाता है, इंद्रजीत और हरप्रीत बड़े हो जाते हैं, दोनों ने मिलकर अपने गांव और आसपास के गांवों के नौजवानो की छोटी टुकड़ी बना ली, जिसका काम शाही ख़ज़ाना और विदेशी व्यापारियों को लूटना था। दोनों ने गुमनामी में रहकर नामुमकिन डकैती को भी अंजाम दिया था। उनके कुछ ख़ास साथियों के अलावा कि‍सी को उनका असली नाम और पता ठिकाना मालूम नहीं था।

समय बीतते देर नहीं लगती और सारे हिन्दुस्तान में उनके दल द्वारा लूट के किस्से फैल जाते हैं और मुग़ल सल्तनत तथा अंग्रेजी हुकूमत के कानों तक भी पहुँचता है। ठीक ऐसे ही ताजमहल और काले ताज की खबर इंद्रजीत और उसके दल को मिलती है। इंद्रजीत अपने दल के साथ शाहजहाँ से पुराना हिसाब चुकता करने के लिए तैयार बैठा था और सही समय का इंतजार कर रहा था, जो बादशाह के सालगिरह का दिन था। अपने साथियों के साथ मुग़ल सिपाहियों के रूप में सालगिरह के मौके पर पहुँचा और देखा ख़ुद औरंगजेब के ख़ास सिपाही ख़ज़ाने का एक बड़ा हिस्सा किले के पीछे के गुप्त द्वार से निकाल रहे हैं, उन्होंने पीछा किया और उस ख़ज़ाने को छुपाने वाली जगह देख ली। एक रात पूरी तैयारी के साथ ख़ज़ाने को लूट लिया और जंगल की ओर चल दिए।

कुछ दिनों बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के कुछ सिपाहियों ने चारों ओर से घेर कर हमला किया, उनका बचना नामुमकिन सा था, पर हरप्रीत ने योजना बनाई और केवल कुछ साथियों के साथ रुककर हिम्मत के साथ अंग्रेजी सिपाहियों का सामना किया जिसमें वह शहीद हुआ, पर उसने इंद्रजीत और बाकी साथियों की जान बचा ली। थोड़े दिनों बाद कमांडर ब्राड शॉ राउडी और उसके शिकारी दल का सामना उससे होता है, कमांडर को मार उसे ख़ज़ाने की गुफ़ा के सामने बर्फ़ में गाड़ कर वह पहाड़ों से नीचे उतरता है, जहाँ उसका सामना एक बार फिर से मुग़ल सल्तनत के सिपाहियों से होता है।

उसे कारागार में डाल दिया जाता है, जहाँ उसे बुरी तरह प्रताड़ित किया जाता है, उसके दाएँ हाथ की दो उँगलियाँ काट दी जाती हैं, पगड़ी बांधने वाले सरदार की पगड़ी की बेज़त्ती की जाती है, उसके बाल और दाढ़ी नोच लिए जाते हैं, उससे बार बार ख़ज़ाने का पता और उसका नाम पूछा जाता है, पर दिल में शाहजहाँ के प्रति नफरत भरे हुए इंद्रजीत की ज़ुबान कोई नहीं खुलवा पाता है। अंत में शेर की तरह जीवन बिताने वाले इंद्रजीत की कारागार में ही मृत्यु हो जाती है।

"मालिक... ओ... छोटे मालिक, आपकी आँखें खुल रही हैं थोड़ा और ज़ोर लगाइए", अनजान आवाज़ सुनकर तनवीर आँखे खोलता है और ख़ुद को फ़ार्म हाउस में पाता है, वो उठने की कोशिश करता है पर सिर में ज़ोर का दर्द शुरू हो जाता है, सिर को हांथों से पकड़ने पर पता चलता है कि पट्टी बंधी हुई है। उसे सब याद आने लगता है, बरसात की वो रात, कमांडर की बात, अचानक होने वाला वो हादसा जो उस रात हुआ था।

वो उस शख्स की तरफ़ देखता है और कहता है "तुम कौन हो और मैं यहाँ कैसे पहुंचा, मेरा तो एक्सिडेंट हुआ था न और अरुण कैसा है, उस लड़की का क्या हुआ जो साथ में थी", तनवीर काफ़ी घबराया हुआ सा था।

वो अनजान शख्स उससे कहता है "मैं इस फ़ार्म हाउस में ही काम करता हूँ, छोटे मालिक, उस दिन भी तो आपके लिए खाना बनाने आया था लगता है आपको याद नहीं है, आपकी गाड़ी जंगल में मिली थी कुछ गाँव वालों को और भगवान की कृपा से उसमें से एक आपको जनता था, सो आप लोगों को यहाँ ले आया, आपको पूरे दो दिन बाद होश आया है, आपके दोस्त और वो लड़की भी सुरक्षित हैं और यहीं पर हैं, बस आपको सिर पर थोड़ी ज़्यादा चोट लगने के कारण कुछ दिनों बाद होश आया है "।

तनवीर उस नौकर की बातें सुनकर सब समझ जाता है। यहाँ तक कि दुर्घटना के बाद उसे अपने पिछले जन्म की कहानी भी याद आ जाती है, अब उसे कमांडर की बातों पर यकीन हो गया था, उसे पता चल चुका था कि इंद्रजीत ही वो लुटेरा था जिसने शाहजहाँ का ख़ज़ाना लूटा था और कमांडर की गर्दन को धड़ से अलग कर दिया था, अब उसे उस तीन सौ साल पुराने इतिहास पर पूरी तरह से विश्वास हो गया था। पर उसे एक बात खाए जा रही थी कि कहीं उसके साथ घटित दुर्घटना में कमांडर का हाँथ तो नहीं था, अगर था तो इसका मतलब यह था कि कमांडर ने उनसे झूठ बोला था कि वह उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाएगा। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए तन्नू इस नतीजे पर पहुँचा कि कमांडर पर इस बात का यकीन नहीं किया जा सकता है कि वह उनकी जान नहीं लेगा, अगर इस हादसे में उसी का हाँथ था तो कमांडर जानलेवा होने के साथ साथ विश्वास करने के लायक भी नहीं है। तनवीर को ये सारी बातें आने वाले कल के लिए आगाह कर रही थीं।

तनवीर नौकर की बाते सुनकर सारी कहानी समझ जाता है, वह सबसे पहले अपने सामान और अपने साथियों को देखने के लिए बिस्तर से उठता है। उसे हीरों की चिन्ता तो थी ही साथ ही अरुण की चिन्ता भी थी। अरुण फ़ार्म हाउस के एक कमरे में आराम कर रहा था और वह अनजान लड़की नीचे के कमरे में थी, उस दुर्घटना में सबसे कम चोट उसे ही लगी थी। अरुण को सोता हुआ पा कर तनवीर उसके कमरे में रखे अपने सामान की तलाशी लेता है, हाथियों की मूर्ति सुरक्षित थी तथा उसके अंदर हीरे भी सुरक्षित थे। वह उन्हें उसी तरह रख कर अपने समान को अपने कमरे में ले जाकर रखता है और कमरा लॉक कर देता है, फिर सीढ़ियों से नीचे उतर कर हॉल के सोफ़े पर बैठता है, थोड़ी देर बाद फ़ार्म हाउस में काम करने वाला नौकर वहाँ से गुज़रता है। तनवीर उससे पूछता है "गाड़ी का क्या हुआ", नौकर तनवीर की तरफ़ पलट कर देखता है और जवाब देता है "कल तक मैकेनिक गाड़ी बनवाकर ले आएगा छोटे मालिक"।

तनवीर नौकर के जवाब से संतुष्ट हो गया, उसे राहत मिली ये जानकर कि कल इस फ़ार्म हाउस को छोड़कर निकला जा सकता है। वैसे भी इस फ़ार्म हाउस का तजुर्बा उसे कुछ ख़ास रास नहीं आया था। शाम हो चली थी कुछ घंटों बाद कमांडर के भी जागने का वक़्त होने ही वाला था, तनवीर इस सोच में था कि पता नहीं आज कमांडर कौन सी क्लास लेगा, इतने में वो अनजान लड़की भी अपने कमरे से आराम फरमा के बाहर हॉल की ओर निकली थी। तन्नू को सोफ़े पर बैठा देख वह उसकी तरफ बढ़ी, उसके नज़दीक पहुँचते ही बोली "अब आपकी तबीयत कैसी है, आपके सिर पर काफ़ी चोट लगी थी", लड़की ने तनवीर के चेहरे को पढ़ने की कोशिश की।

तनवीर ने कहा "मैं बिलकुल ठीक हूँ, सिर पर कुछ टाँके लगे हैं नहीं तो और कहीं चोट नहीं आई"।

"चलो शुक्र है, क्या कल यहां से निकलने की तैयारी है, यहाँ के नौकर बता रहे थे कि कल तक गाड़ी ठीक हो जायेगी, अगर मुझे भी छोड़ देंगे तो काफ़ी मेहरबानी होगी, यहाँ दो दिन लग गए आप दोनों को होश में आने को ", लड़की ने तनवीर से अनुरोध करते हुए कहा।

तनवीर ने कहा "चलो ठीक है, कल सुबह गाड़ी आते ही, हम लोग निकल चलेंगे, तुम्हें रास्ते में गाँव ही उतार देंगे, मुझे पता है तुम्हारे घर वाले भी परेशान हो रहे होंगे, बस एक रात की बात है, तुम चिंता मत करो, इसे अपना ही घर समझो, जिस चीज़ की ज़रूरत हो बेझिझक नौकरों से मंगवा सकती हो ", तनवीर उस लड़की को दिलासा देता है।

कुछ देर बाद अरुण भी नीचे हॉल की तरफ़ आता है, उसके हाँथ और पाँव में थोड़ी चोट आई थी बाकि सब कुछ सुरक्षित था। तन्नू ने अरुण को सारा हाल बताया और उसकी तबीयत के बारे में भी पूछा। अरुण को ये जानकर खुशी हुई कि कल इस फ़ार्म हाउस से रवाना हो जाएंगे हालाकि उसे फ़ार्म हाउस पसंद आ गया था पर तनवीर कि एक बेवकूफ़ी ने कमांडर को गुस्सा दिला दिया था।

शाम हो चली थी और जैसे ही जैसे वक़्त बीत रहा था कमांडर का भय उन तीनों के चेहरों पर दस्तक दे रहा था। कमांडर जिसने दो दिन पहले ही तीनों का वो हाल किया था कि इन्हें जीवन भर याद रखना था। तीनों बैठकर उस रात हुए हादसे को ही याद करने की कोशिश कर रहे थे। तभी नौकर ने लाकर चाय रखी, तन्नू ने उससे पूछा "तुमने इस फ़ार्म हाउस पर कुछ अजीब घटना होते हुए देखी है, तुम तो यहां काफी सालों से काम कर रहे हो न, तनवीर ने चाय की चुस्की लेते हुए उसकी तरफ देखा।

नौकर ने उसकी तरफ देखते हुए जवाब दिया " ऐसा तो कुछ नहीं देखा मालिक बस, कुछ सालों पहले जो केयर टेकर रहते थे उन्हें शायद इस घर में कोई बुरी आत्मा दिखी थी शायद, उसके बाद से ही उनके जीवन में अजीब सी परेशानी होने लगी, घर के किसी न किसी सदस्य का नुकसान होने लगा, उसके कुछ महीनों बाद पूरा परिवार ही फ़ार्म हाउस छोड़कर चला गया, किसी को कानो कान ख़बर नहीं लगी उनके जाने की, बस सुबह काम पर आते ही ताला लगा हुआ मिला, सो हर रोज़ केवल माली ही आकर बाग बगीचे की सफ़ाई कर चला जाता था, हमलोगो ने अपने अपने खेतों पर ही काम करना शुरू कर दिया था , आपके आने की खबर मिलते ही हम लोग यहाँ काम करने पहुँच गए "।

" अच्छा ठीक है तुम जाओ अपना काम करो ", तनवीर ने नौकर से कहा और वह रसोई की ओर बाकि नौकरों का साथ देने चला गया।

तीनों फ़िर से आपस में बैठकर बातें करने लगे। देखते ही देखते खाने का समय हो गया, खाना खाते ही अरुण ने तनवीर के साथ रात में जागने का प्लान बना लिया। उसे रात में कमांडर से मुलाकात करने की तीव्र इच्छा थी। रात बीतते ज़्यादा समय नहीं लगा और घड़ी ने बारह बजे का घंटा बजा। तनवीर ने संदूक पहले से ही टेबल पर निकाल कर रख दिया था, अरुण कुर्सी पर जमकर बैठा हुआ था, संदूक के खुलते ही तेज़ लाल रोशनी चमकने लगती है, कमांडर संदूक के बाहर आते ही अरुण और तनवीर को देख मुस्कुराते हुए कहता "गुड ईवनिंग माय चिल्ड्रन, हाउ आर यू टुडे, सब कुछ याद आ गया होगा, क्यूँ इंद्रजीत मेरा मतलब है नवाब तनवीर और क्या हाल है हरप्रीत, कुछ याद आया कि नहीं, दो दिन से लगातार पिछले जन्म का सपना देख रहा था तुम दोनों हा.... हा..... हा", कमांडर के बोल सुनकर तनवीर और अरुण के होश उड़ गए थे। वो दोनों एक दूसरे को अजनबियों की तरह देख रहे थे। अब तक दोनों ने एकदूसरे से इस बात का ज़िक्र नहीं किया था।

कमांडर ने अपनी बात ज़ारी रखते हुए कहा" ये सब वीनस ग्रह का कमाल है, जिन इंसानो का दूसरा जन्म इस पृथ्वी पर होता है उनका याददाश्त इसी ग्रह का वजह से आता है। ब्रह्माण्ड में उसी ग्रह का समय बाकी ग्रहों से कहीं आगे है, हम आत्माओ का भी इस पृथ्वी पर आना और जाना उसी ग्रह का वजह से है, यही नहीं हम सब के मरने की एक वजह थी ख़ज़ाना और अप्राकृतिक मौत, जो समय से पहले ही हो गया था हम ख़ज़ाने का रखवाला बन गया और तुम दोनों का तीन सौ साल बाद जन्म हुआ", कमांडर उन्हें समझाते हुए आगे बताता है, अगर हम दो दिन पहले उस लड़की के अंदर घुसकर तुम दोनों का एक्सिडेंट नहीं करवाता तो तुम्हारा याददाश्त कभी वापस नहीं आता, लेकिन हमको तीन सौ साल पहले ही पता चल गया था कि तुम दोनों से कब मुलाकात होगा", कमांडर ठण्डी साँसे भरते हुए कहता है, "कितना लम्बा इंतज़ार करना पड़ा, अब सोचो तनवीर ने तुमको ही क्यूँ चुना इस फ़ार्म हाउस में आने के लिए, क्यूँकि तुमको अपना पिछला जन्म यहीं याद आना था ", कमांडर ने अरुण की ओर देखते हुए कहा। अरुण कमांडर को आश्चर्य से देख रहा था उसकी चमकती हुई लाल आँखो में कई राज़ दफ़न थे, जिसे वह धीरे धीरे खोल रहा था।

" अगर हम उस गाँव की लड़की के अंदर प्रवेश कर सकता है तो तनवीर के बड़ी हवेली पर तो उर्मिला थी, उसके शरीर पर तो हम पहले से ही काबू कर रखा था, उर्मिला जो भी सुनता, बोलता और देखता था, सब कुछ हम देख और सुन सकता था, अब जब सारा बात तुम दोनों को पता चल ही गया है तो अब तुम दोनों को एक आखरी काम करना पड़ेगा, जिससे हमको मुक्ति मिल जाएगा और हम भी इस पहेरेदारी से मुक्त हो जाएगा, तुम दोनों को हमको लंदन लेकर जाना पड़ेगा जहाँ डॉक्टर ज़ाकिर है, उससे एक आखरी मुलाकात करना बाकी है", कमांडर ने उन्हें आदेश देते हुए कहा।

दोनों कमांडर का चेहरा गंभीरता से देख रहे थे। कमांडर के आँखों की लाल चमक बढ़ती ही जा रही थी। कमांडर ने उन्हें देखते अपनी बात ज़ारी रखते हुए कहा" लंदन में डॉक्टर ज़ाकिर का आखिरी रात होगा, एक रात कमांडर के साथ "।

पूरी रात कमांडर से बातचीत करके तनवीर और अरुण अपने कमरों में आराम करने चले गए। सुबह करीब ग्यारह बजे गाड़ी बनकर आ गई। तनवीर और अरुण ने सारा सामान गाड़ी के अंदर रख लिया, तनवीर ने संदूक को संभालकर गाड़ी में रख लिया क्यूँकि इस बार कमांडर को फ़ार्म हाउस पर छोड़ना एक बेवकूफ़ी होती। तीनों कानपुर के सफ़र के लिए निकल पड़े।

रास्ते में उस अनजान लड़की जिसका नाम राधिका था, उसका गाँव आते ही उसे उतार दिया और अपने सफ़र पर रवाना हो गए।

कुछ दिनों बाद दोनों कानपुर की बड़ी हवेली पहुंचे। अरुण कुछ देर हवेली पर रुककर अपने घर चला गया, ये कहकर कि कल आऊँगा। हवेली पर तनवीर और अरुण कि घाव देखकर सभी परेशान थे पर तन्नू ने उन्हें सारी बातें खुलकर समझा दीं। तनवीर ने कमांडर के सिर वाले संदूक को तहखाने में उसके धड़ के साथ ही रख दिया, उसने संदूक से कमांडर का सिर बाहर निकाल कर उसके धड़ के साथ रख दिया और कमरे में आराम करने चला गया।

सात बजे तनवीर सो कर उठा और सीधा हॉल में आकर बैठ गया जहाँ उर्मिला और शहनाज़ पहले से ही हैदर के साथ बैठे हुए थे। तनवीर के वहां पहुंचते ही दोनों लड़कियां उसके सफ़र के बारे में पूछने लगीं, तनवीर ने उन्हें सारी कहानी सुना दी, कमांडर के साथ हुई मुलाकात के बारे में भी बताया। दोनों लड़कियों का डर से बुरा हाल हो गया था, क्यूँकि आज तो सिर का धड़ के साथ सालों बाद मिलन होना था। आज रात सबको यही खतरा था कि कहीं कमांडर अपनी बातों से मुकर न जाए और सभी का खेल खत्म कर दे।

सभी ने निर्णय लिया कि आज आस पास के कमरों में ही सोया जाएगा, एक साथ रहेंगे तो हम सबका नुकसान नहीं होगा, इसलिए अगल बगल के कमरों में ही सबने सोने का मन बना लिया ताकि किसी को कोई दिक्कत हुई तो अगले कमरे से मदद की पुकार को सुना जा सकता है।

सभी ने जैसा प्लान बनाया था वैसा ही किया, रात को खाने के बाद रात सबने अगल बगल के नीचे के दो कमरों में बिस्तर लगा लिए, दोनों कमरे तनवीर की अम्मी के कमरे के नज़दीक थे, रात भर डर से किसी को नींद नहीं आ रही थी इसलिए कुछ लोग जाग ही रहे थे, जिनमें शहनाज़ और उर्मिला सबसे आगे थे, तन्नू भी अपने कमरे में जाग रहा था , अचानक ही घड़ी में बारह का घंटा बजता है। जितने लोग जागे थे सबकी आत्मा कांप उठती है बारह बजे का घंटा सुनकर। तभी तहखाने के दरवाजे पर एक ज़ोरदार चोट की आवाज़ सुनाईं पड़ती है "धड़ाक" और दरवाज़ा खुल जाता है। आवाज़ इतनी ज़ोरदार थी कि सोए हुए हैदर की भी नींद खुल जाती है, कमांडर हँसते हुए तहखाने की सीढ़ियाँ चढ़ ऊपर की ओर आता है, उसके बूट की आवाज़ हवेली की शांति को चीरते हुए हॉल की तरफ़ बढ़ रही थी। अचानक कमांडर हॉल में चीखता है "हे, आई एम बैक, कहाँ छुप गया सब, कमांडर का कोई स्वागत नहीं करेगा इस हवेली में, लगता है हमको सबको ख़ुद ही ढूंढना पड़ेगा", कमांडर की डरा देने वाली भारी आवाज़ सुनते ही शहनाज़, उर्मिला और हैदर के पसीने छूटने लगते हैं। तनवीर अपने कमरे से बाहर निकल कर आता है तो देखता है कमांडर नीचे शहनाज़ और उर्मिला के कमरों की तरफ बढ़ रहा है, सबसे पहले उर्मिला के कमरे का दरवाज़ा अपने आप खुल जाता है, सामने कमांडर को खड़ा देख उसके मुँह से ज़ोरदार चीख निकल जाती है जिसे सुन शहनाज़ भी अपने कमरे का दरवाज़ा खोल कर देखती है और शहनाज़ की भी खौफनाक दृश्य देखकर चीख निकल जाती है। कमांडर अपना कटा हुआ सिर अपने हांथों में लिए हुए था जिसकी आँखों में तेज़ लाल रौशनी की चमक थी जिससे हवेली का हाल जगमगा रहा था। उनकी चीख सुनते ही तनवीर दौड़ते हुए सीढ़ियाँ उतरता है पर लड़कियों की लगातार चीख सुनकर कमांडर उनसे कहता है "अरे बाबा इतना क्यूँ चीखता है, कान का पर्दा फाड़ डालेगा क्या", कमांडर अपने सिर को अपनी गर्दन पर लगाता है और उसका शरीर हवा में ऊपर उठने लगता है, अब उसके पैर हॉल के फर्श को नहीं छू रहे थे। इस नज़ारे को देख लड़कियां और ज़ोर से चीखने लगीं, हवेली के सारे लोग जाग जाते हैं, जिनमें उर्मिला के परिवार और शहनाज़ के कमरे में सो रहीं सावित्री आंटी भी डर से जाग उठती हैं। हैदर भी इस दृश्य को देख रहा था उस छोटे से बच्चे का डर से नाइट सूट गिला हो जाता है। इतने में कमांडर कहता है "अरे बाबा चीखना बंद करो और हमारा बात सुनो, तनवीर तुम समझाओ इनको", कमांडर तनवीर की ओर देखते हुए कहता है।

तनवीर लड़कियों को खामोश रहने को कहता है, लड़कियां शांत होकर कमांडर की बात सुनने को तैयार हो जाती हैं। कमांडर अपनी बात उनके सामने रखता है "देखो हम यहाँ किसी का नुकसान करने नहीं आया है, लेकिन अगर बिना मतलब का तुमलोग कुछ उल्टा सीधा करेगा तो हम नुकसान पहुंचा भी सकता है, अब सुनो ध्यान से तनवीर हमको समुन्द्र के रास्ते लंदन लेकर जाएगा और हम वादा करता है उर्मिला का फ़ादर और तनवीर की अम्मी को हम सही कर देगा, तनवीर की अम्मी को जो Alzheimer नाम का बिमारी है ये हम ठीक कर सकता है क्यूँकि ये बिमारी भी समय से जुड़ा है तो इसका इलाज भी हम कर देगा पर हमको लंदन डॉक्टर ज़ाकिर से मिलने जाना है जिसमें तनवीर को हमारा साथ देना है और तुम सब घरवालों को हमको बर्दाश्त करना ही पड़ेगा, इन द नेम ऑफ द क्वीन, हम अपना सरज़मीं पर पूरा तीन सौ साल बाद कदम रखेगा, फिर ज़ाकिर से पुराना हिसाब चुकता करते ही इस आधे अधूरे जीवन से मुक्त हो जाएगा ", कमांडर सभी घरवालों की ओर देखते हुए कहता है और हवा में उड़ रहा कमांडर अब धीरे धीरे नीचे आने लगता है। कमांडर की बातें सुनकर हवेली में जग रहे सारे लोग अब थोड़ा संतुष्ट हो जाते हैं। कमांडर उनसे आगे कहता है" अब जितने दिन हम यहाँ पर है हमारा अच्छे से ख़ातिर दारी होना चाहिए, लंदन पहुँचते ही उर्मिला का फादर और तुम्हारा अम्मी ठीक हो जाएगा, अब जल्द से जल्द हमारा लंदन जाने का तैयारी कर दो"।

©IvanMaximusEdwin