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बड़ी हवेली (श्रापित हीरे की खोज)

"शाहजहां ने अपने लिए एक विशेष सिंहासन बनवाया। इस सिंहासन को बनाने में सैयद गिलानी नाम के शिल्पकार और उसका कारीगरों का टीम को कोई सात साल लगा। इस सिंहासन में कई किलो सोना मढ़ा गया, इसे अनेकानेक जवाहरातों से सजाया गया। इस सिंहासन का नाम रखा गया तख्त—ए—मुरस्सा। बाद में यह 'मयूर सिंहासन' का नाम से जाना जाने लगा। बाबर के हीरे को भी इसमें मढ़ दिया गया। दुनिया भर के जौहरी इस सिंहासन को देखने आते थे। इन में से एक था वेनिस शहर का होर्टेंसो बोर्जिया। बादशाह औरंगजेब ने हीरे का चमक बढ़ाने के लिए इसे बोर्जिया को दिया। बोर्जिया ने इतने फूहड़पन से काम किया कि उसने हीरे का टुकड़ा टुकड़ा कर दिया। यह 793 कैरट का जगह महज 186 कैरट का रह गया... औरंगजेब ने दरअसल कोहिनूर के एक टुकड़े से हीरा तराशने का काम बोर्जिया को खुफ़िया रूप से दिया था और उसी कोहिनूर के हिस्से को शाह जंहा कि जेल की दीवार में चुनवा दिया गया था जिसकी सहायता से वह ताजमहल तथा अपनी अज़ीज़ बेगम की रूह को देखते थे ।

Ivan_Edwin · ホラー
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कमांडर इन एक्शन...

तनवीर और अरुण अपने सामानों को अपने कैबिन में रखते ऊपर डेक पर आ गए जहाज से समुन्द्र का मनोरम दृश्य उनके दिलों को लुभा रहा था, साथ में विशाल बॉम्बे शहर जो दूर से भी उतना ही सुन्दर था जितना समुन्द्र से दिख रहा था, तभी उनके पास कैप्टन आता है और उनसे पूछता है "तनवीर आपके साथ जो ताबूत है, वो क्या काफ़ी पुराना है, इसकी क्या कोई खास डिमांड है विदेश में, जो डॉक्टर इसे रिसर्च के लिए मंगवाया है", कैप्टन उनकी तरफ आश्चर्य के भाव से देखता है।

तनवीर उसका जवाब देता है "जी हाँ, ये डॉक्टर ज़ाकिर को एक पुरातात्विक खोज में मिला था, लंदन जाने से पहले उन्होंने मेरे वालिद से इसे किसी तरह वहां भिजवाने के लिए बोला था, पर मेरे वालिद की तबीयत नासाज़ हो गई, इसलिए उन्होंने मुझे इसे डॉक्टर तक पहुंचाने के लिए कहा था, डॉक्टर इसपर अपनी रिसर्च अधूरी ही छोड़ गए थे ", तनवीर ने बड़ी कुशलता पूर्वक झूठ बोल दिया और कैप्टन ने उसकी बात मान ली।

फ़िर कैप्टन ने अपनी बात ज़ारी रखते हुए कहा" हमारे जहाज के कुछ नियम हैं, सुबह, दोपहर, रात के भोजन के लिए डाइनिंग हॉल में ही आना होगा, सफ़र लम्बा है अगर आप लोग चाहेंगे तो हमारे काम में हाँथ बंटा सकते हैं, अब ज़रा मेरे साथ मेरे कैबिन में आइए, वहाँ चलकर हम पैसों का लेन देन कर लेते हैं", कैप्टन उन्हें अपने साथ चलने का इशारा करते हुए कहता है और ऊपर अपने कैबिन में ले जाता है।

वहाँ पैसों का लेन देन कर के दोनों फ़िर से डेक पर आ जाते हैं, जहाँ समुंद्री यात्रा का दोबारा लुत्फ़ उठाने लगते हैं, खुशी के पल बिताते हुए वो दोनों जहाज में मौजूदा सभी कर्मचारियों से मुलाकात कर लेते हैं और जहाज पर उनके काम को लेकर थोड़ी जानकारियां भी इकट्ठा कर लेते हैं। जहाज पर पहला दिन यूँ ही बीत जाता है।

अगले दिन सुबह होते ही दोनों डेक पर सुबह की परेड के लिए इकट्ठा होते हैं, उसके बाद उन्हें नाश्ता मिलता है, मेस में नाश्ता ख़त्म करते ही ऊपर के डेक की सफ़ाई का काम उन्हें दिया जाता है, जहाज के फर्श से शीशे तक उन्हें साफ़ करने के लिए दिए गए, नवाब होते हुए भी तन्नू ने जहाज के कड़े नियमों का पालन किया क्यूँकि यह उस जहाज के कर्मियों की दिन चर्या का हिस्सा था, हर रोज़ उन्हें अपनी अपनी ड्यूटी बदलनी पड़ती थी। आज अगर सफ़ाई का काम है तो कल हो सकता है मेस में खाना बनाने में मदद करना पड़े, इसलिए दोनों ने ऊपर के डेक की सफ़ाई मन लगाकर की। देखते ही देखते दिन बीत गया शाम होते ही नहा धोकर, अपने कैबिन में दोनों आराम करने लगे।

"शुक्र है मैं अपने साथ बैग में छुपा कर दो स्कॉच की बोतल लेकर आया था, रोज़ाना काम के बाद दो दो पेग पी लिया जाएगा, ये देखो बोतल", अरुण कहते ही बैग से एक बोतल स्कॉच की निकालता है, तनवीर भी थकान मिटाने के लिए हामी भर देता है। अरुण कॉफी पीने वाले दो स्टील मग में एक एक लार्ज पेग बनाता है और दोनों उन्हें टकराने के बाद पीने लगते हैं। एक ही सांस में दोनों उस बड़े स्टील के मग खाली कर देते हैं।

"आह! बॉटम्स अप का मज़ा ही कुछ और है एक ही सिप में खाली, फिर बच्चा लोग बजाओ ताली, न चखने की ज़रूरत न किसी चीज़ की, वैसे मेरे बैग में भुने चने हैं, लो तुम भी खाओ", अरुण अपने बैग से एक छोटा टिफिन बॉक्स निकलता है जिसमें भूने चने भरे हुए थे, तनवीर एक मुट्ठी चना लेकर खाने लगता है।

अरुण दूसरा पेग बनाता है और उसमें थर्मस से पानी मिला कर तन्नू के उठाने का इंतजार करता है, तनवीर कुछ सोच रहा था।

" अमां यार इतना क्या सोच रहे हो, कोई प्रॉब्लम हो तो बताओ, अभी हल किए देते हैं, नहीं तो महफिल न बिगाड़ो लो अगला पेग जल्दी से सुड़क जाओ, कहीं कोई आ न जाए", अरुण तनवीर की ओर मग बढ़ाते हुए कहता है। तनवीर उसे हाथ से पकड़ता है और एक साँस में पी लेता है। फिर दोनों एक साथ स्टील मग नीचे अटैच फोल्डिंग टेबल पर रखते हैं। फिर चने खाने लगते हैं।

" भाई आज के लिए इतना ही बाकी के दारू चने सफ़र भर चलाने हैं, अपना कोटा आखिर अपना होता है, अभी तो जहाज का सफ़र शुरु ही हुआ है, हम लोगों को तो अब तक ये भी नहीं पता यहाँ कौन अपनी तरह महफिल जमाने का शौक रखता है, पता चलने तक अपना कोटा संभाल कर रखना है", अरुण कहते ही स्कॉच की बोतल और चने अपने बैग में रख लेता है। फिर दोनों बातें करने लगते हैं।

" अगर कमांडर जहाज पर लोगों को दिखने लगेगा तो क्या होगा ", तनवीर ने अरुण से पूछा।

" होगा क्या जहाज और जहाजियों की पतलून गीली पीली हो जाएगी ", अरुण ने हिलते हिलते जवाब दिया, स्कॉच का नशा उस पर असर करने लगा था। कुछ देर बातें करते करते उनका नशा थोड़ा हल्का होता है तो सीधा ऊपर के डेक पर निकल जाते हैं। थोड़ी खुली हवा में उन्हें अच्छा लगता है। दोनों कुछ देर खड़े होकर बातें करते हैं, फिर एक बेंच पर बैठ जाते हैं। तभी उस जहाज पर काम करने वाला एक आदमी उनके पास आकर कहता है "बात ही करते रहोगे या डाइनिंग हॉल में खाना खाने भी चलोगे, पता है न कैप्टन का ऑर्डर है सबको एक साथ ही खाना है, समय निकल गया तो खाना नहीं मिलेगा", तनवीर और अरुण उसके पीछे नीचे डाइनिंग हॉल तक जाते हैं। एक साथ खाना खाने के बाद दोनों थोड़ा टहल कर सोने चले जाते हैं।

एक रात और बीत जाती है। अगले दिन सुबह होते ही सबसे पहले परेड में शामिल होते हैं। फिर सुबह का नाश्ता कर काम पर लग जाते हैं। इसी तरह यात्रा के दो दिन और निकल जाते हैं।

एक शाम महफिल ख़त्म करने के बाद दोनों बैठकर बातें कर रहे थे कि अचानक वहाँ एक अज्ञात शख्स ने कैबिन के दरवाजे पर दस्तक दी। अरुण ने दरवाजा खोला। एक लम्बा चौड़ा आदमी सामने खड़ा था, अरुण ने उसे कमरे के अंदर प्रवेश करने दिया। वह अज्ञात शख्स तनवीर के पास आकर बोला "क्या आप ही तनवीर हैं, तनवीर ने सिर हिलाकर जवाब दिया, वह उसके बिस्तर पर बैठ गया और तनवीर से कहा" मैं अजीत हूँ, यहां के लगेज कंपार्ट्मेंट की देखरेख का ज़िम्मा मेरा ही है, पर कल रात जो हादसा हुआ मेरा उसपर यकीन कर पाना नामुमकिन है, मैंने अब तक इसका ज़िक्र किसी से नहीं किया, सबसे पहले मैं आप से मिलने चला आया, कल रात मैं देर तक उस कंपार्ट्मेंट की सफाई करने में लगा हुआ था, तभी मेरी नज़र आपके ताबूत पर पड़ी जिसके अन्दर से तेज़ लाल रोशनी चमक रही थी, उस ताबूत में कई जगह दरार है जिससे चमकती लाल रोशनी को साफ़ देखा जा सकता था, कुछ देर तक मैं उसे बड़े आश्चर्यजनक रूप से देखता रहा क्यूँकि मैं जो देख रहा था उसपर यकीन कर पाना नामुमकिन था, थोड़ी देर बाद वह रोशनी चमकना बंद हो गई और मैं ऊपर डेक पर आ गया", वह अपनी बात आगे जारी रखते हुए कहता है" मैं आज दिन भर इसके बारे में ही सोचता रहा फिर मैं आप ही के पास इस पहेली का हल पूछने आ गया", उसने तनवीर की ओर जिज्ञासा से देखते हुए कहा।

" लगता है आप को कोई वहम हुआ है है या आँखो का धोखा हुआ है, उस ताबूत के अंदर एक पुरातात्विक खोज में मिली कुछ वस्तुएं हैं और कुछ नहीं, इसी वजह से हम लोग लंदन जा रहे हैं",

तनवीर ने अजीत की आँखो में देखकर बड़ी कुशलता पूर्वक झूठ बोल कर उसकी बातों को टाल दिया। अजीत तनवीर के जवाब से संतुष्ट नहीं था, पर वह उससे जवाब पाकर वहां से चला गया। उसके जाते ही अरुण ने दरवाज़ा बंद किया और पलटकर चिंतित होकर तनवीर की ओर देखते हुए बोला" अमां यार इसे कहीं शक़ तो नहीं हो गया कि तुम झूठ बोल रहे हो क्यूँकि उसके चेहरे से लग नहीं रहा था कि वो तुम्हारे जवाब से संतुष्ट होकर गया है, लगता है रात में कमांडर जब जागा होगा उस वक़्त सफ़ाई कर रहा होगा, कमांडर को जब इस बात का एहसास हुआ होगा कि कोई आस पास खड़ा है तो उसने दुबारा आँखे बंद कर ली होंगी "।

" मुझे भी ऐसा ही लगता है, अब सवाल यह है कि इन महाशय ने अगर अपने से कुछ जाँच पड़ताल करने के चक्कर में संदूक को खोल दिया तो फिर क्या होगा, इस जहाज पर अब हमें कोई खतरा है तो वह इन्ही महाशय से है इसलिए इनके ऊपर दिन रात नज़र रखनी पड़ेगी ", तनवीर ने चिन्तित मुद्रा में अपनी बात को अरुण के सामने प्रकट किया।

दोनों के मन में सच बाहर आने का भय था कि अगर कमांडर का असली रूप सामने आ गया तो क्या होगा, साथ ही साथ अब उन्हें अजीत नाम की चिन्ता भी सताए जा रही थी।

रात होते ही जहाज पर खामोशी छा जाती थी, केवल कुछ गिने चुने अधिकारियों को ही नाइट ड्यूटी करनी पड़ती थी खासकर वो जिन्हें जहाज चलाना और रात में निगरानी रखना था।

जहाज काफी बड़ा था और उसे कंट्रोल करना एक बड़ी बात थी जिसे मर्चेंट नेवी का मंझे हुआ युवा दल चला रहा था। कैप्टन अपने कैबिन से निकलकर बीच बीच में हवा का बहाव और दिशा का पता पूछ वापस अपने कैबिन में चले जाते थे।

इसी बीच एक अनजान साया डेक से नीचे उतर अंदर की लॉबी को पार करते हुए पीछे की सीढ़ी से उतरकर नीचे लगेज डिपार्टमेंट के अंदर प्रवेश करता है, चारों तरफ़ अंधेरा फैला हुआ था, कुछ भी देख पाना नामुमकिन था सिवाय कमांडर के ताबूत की दरारों से निकलती तेज लाल रोशनी को जो उस अनजान शख्स को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। वह शख्स उस संदूक के पास पहुंचा पर उसपर जंजीर बंधी हुई थी जिस पर मोटा सा ताला लगा जो उस बड़ी जंजीर से ताबूत को बांधे हुए था। वो अनजान शख्स अपने जैकेट की जेब से एक स्टील का हेयर पिन निकलता है, जिसकी सहायता से वह ताला खोल ताबूत को उन जंजीरों से मुक्त कर देता है, पर तभी अचानक एक झटके में ताबूत खुलता है और कमांडर बड़ी फुर्ती से उस अनजान शख्स का गला दबोच लेता है और हवा में ऊपर की ओर ले जाता है , फिर थोड़ी दूरी पर रुक जाता। कमांडर अपने सिर को बाएं हाथ में पकड़े हुए था फिर धीरे धीरे अपनी खोपड़ी को धड़ से जोड़ता है, एक तेज़ प्रकाश उस अनजान शख्स पर पड़ता है तो उसका चेहरा दिखाई देता है और वह कोई दूसरा नहीं बल्कि अजीत था, जिसने जिज्ञासा में ताबूत खोल दिया था, कमांडर इतनी ज़ोर से उसका गला घोंट रहा था कि उसकी चीख़ निकलना मुश्किल था लेकिन तभी कमांडर अपने बाएं हाथ को उसके पेट के अंदर घुसा देता है जिससे उसकी खतरनाक चीख़ निकल पड़ती है और अचानक ही तनवीर की नींद खुल जाती है , देखा तो सवेरा हो चुका था।

तनवीर और अरुण तैयार होकर डेक पर पहुंच जाते हैं सुबह की परेड के लिए, उसके बाद नाश्ता कर उन्हें सफ़ाई का काम फ़िर से मिलता है, दोनों सफ़ाई में लगे थे, तभी अचानक अरुण चिल्लाता है "अमां तनवीर वो देखो शार्क की छोटी बहन डॉलफिन, देखो वहां कैसे झुण्ड में छलाँग मार रहीं हैं सब, कितना सुन्दर दृश्य है ", अरुण अपनी उँगली से उनके झुंड की तरफ इशारा कर के तनवीर को दिखाता है। तनवीर भी ये मनोरम दृश्य देखकर काफ़ी ख़ुश होता है।

धीरे धीरे दिन बीतता है और उनका काम भी समाप्त हो गया था, दोनों शावर लेने के बाद अपने कैबिन में आराम कर रहे थे। शाम ढलते ही उनकी महफिल दोबारा जमती है, उसके बाद दोनों डाइनिंग हॉल की तरफ़ निकल पड़ते हैं। खाने में अब भी काफ़ी समय था इसलिए सभी टेबल पर बैठ अपना मनोरंजन कर रहे थे, कुछ ताश के पत्तों का खेल खेलने में लगे थे, तो कुछ किताबें पढ़ रहे थे, कुछ बातें करने में मग्न थे, तो कुछ अंताक्षरी का खेल खेलने में मशरूफ थे। तन्नू और अरुण ने खाली कुर्सियों पर अपनी तशरीफ़ रख दी।

कुछ लोग अपने में कोई विशेष बात कर रहे थे, अरुण और तनवीर को देखते ही ख़ामोश हो गए, अरुण ने उनसे उत्सुकता पूर्वक पूछा "अमां क्या बात है भाई लोग, हम दोनों के आते ही चुप क्यूँ हो गए, हमें भी तो बताओ ऐसा क्या है", अरुण के चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे।

उनमें से एक ने जवाब दिया "कोई खास बात नहीं है, अजीत के बारे में है, कल ही हमारे जहाज का कुक जो असली ज़िंदगी में अजीत का पड़ोसी है बता रहा था, कुछ दिनों से अजीत का बर्ताव कुछ सही नहीं है, उस कुक बनवारी का कैबिन अजित के बगल ही में है इस जहाज पर, उसका कहना है कि रात में कभी कभी कैबिन के बाहर से डरावनी आवाजें आती हैं, ऐसा लगता है जैसे कोई गुर्राते हुए बाहर लॉबी में आना जाना करता हो ", वो अपनी बात कह ही रहा था कि उसके बगल में बैठे उसके साथी ने, उसे बीच ही में टोकते हुए कहा

" कल वाली बात बता न, कल रात में जो हुआ ", उसने बहुत उत्सुकता पूर्ण रूप से कहा।

उस कहानी सुनाने वाले ने आगे बताया

" कल आधी रात के बाद बनवारी नींद न आने की वजह से बाहर डेक पर सिगरेट पीने चला गया, वो आराम से वहां खड़ा सिगरेट पी ही रहा था कि अचानक किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा, बनवारी की डर से हालत खराब हो गई, एक दम से किसी के पीछे से हाँथ रखने की वजह से वह चौंक गया, इससे पहले कि वह पीछे पलट कर देखता कि कौन है, उस अनजान शख्स ने अंग्रेजी में सिगरेट मांगी, बनवारी ने अपने ओवर कोट से डिब्बा निकाला और उसकी ओर पीछे बिना देखे बढ़ा दिया, उस अनजान शख्स ने उससे कहा "कमांडर को माचिस या लाइटर चाहिए," बनवारी ने निकाल कर दे दिया, वो अनजान शख्स बनवारी के पीछे से आगे आकर खड़ा हो गया, बनवारी की तो जैसे साँस ही अटक गई हो उस शख्स को देख कर, वो कोई और नहीं जहाज के लगेज डिपार्टमेंट में काम करने वाला अजीत था, बनवारी का कहना है कि उसके हाव भाव बिलकुल बदले हुए थे, उसका चेहरा सुर्ख सफ़ेद पड़ चुका था और आखों की पुतलियाँ लाल रोशनी चमका रही थी, ऐसा लग रहा था कि उसके शरीर पर किसी रूहानी ताकत ने कब्ज़ा कर रखा हो, अजीत बड़े अजीब ढंग से पेश आ रहा था, उसकी बातों से ऐसा लग रहा था जैसे किसी अंग्रेज ने उसके शरीर काबू में किया हो, कुछ देर बाद वहीं बेहोश हो गया, बनवारी उसे उठाकर उसके कैबिन तक ले गया और उसे बिस्तर पर लेटा दिया, अब तक के अपने जहाज की यात्रा के इतने सालों अनुभवों में ऐसा किस्सा पहली बार सुनने को मिल रहा है ", वह हैरत जताते हुए अपनी बात पूरी करता है।

तनवीर और अरुण पहले तो ये कहानी सुनकर थोड़ा घबरा गए लेकिन फिर तनवीर ने हंसते हुए कहा" अरे कुछ नहीं भाइयों अजीत के ऊपर काम का बोझ थोड़ा ज़्यादा होगा इसलिए ऐसी अजीब हरकत करने लगा होगा, काम का प्रेशर कभी कभी दिमाग पर ज़्यादा डालने से ऐसे मानसिक तनाव के किस्से ज़्यादा सामने आते हैं जिसमें इंसान का व्यक्तित्व कभी कभी पूरी तरह से बदल जाता है और ऐसा ही उसका एक व्यक्तित्व का हिस्सा कल बनवारी ने देख लिया, वर्ना आज कल के ज़माने में कहीं भूत प्रेत होता है, ज़माना कितना आगे बढ़ गया है, आप लोग पढ़े लिखे होकर ऐसी बातें करते हैं ", तनवीर ने आपत्ति जताते हुए बड़ी कुशलता से उनसे झूठ बोल दिया।

तभी अरुण भी बोल पड़ता है" अब अजीत की हालत कैसी है, डॉक्टर को दिखाया कि नहीं ", अरुण भी तनवीर के झूठ में साथ देते हुए उनसे पूछता है।

उस टेबल पर बैठे एक सज्जन कहते हैं " अब खतरे जैसी तो कोई बात नहीं, रात ही को बनवारी ने डॉक्टर को बुला दिया था, उसने जांच के बाद कहा अजीत को काफ़ी कमज़ोरी है, जिस वजह से बेहोश हो गया था, उसका शरीर भी तप रहा था इसलिए उसे बुखार की भी दवाई दे दी गई है, जिस वजह से उसे दिन भर नींद आने की वजह से कैप्टन ने भी तबीयत सही होने तक की छुट्टी दे रखी है, अब लगेज डिपार्टमेंट का काम किशोर संभाल रहा है ", उस आदमी ने सारी बातें विस्तार से समझाते हुए कहा।

इतने में डाइनिंग हॉल के खाने की बेल बजती है, जिसे जहाज के हर कैबिन में सुना जा सकता था ताकि सभी डाइनिंग हॉल में खाने के लिये उपस्थित हो जाएं।

कैप्टन के आते ही लगभग जहाज के सभी कर्मचारी डाइनिंग हॉल में आ जाते हैं। कैप्टन की थाली लगने के बाद, सभी लाइन में लग कर खाना लेते हैं और टेबल पर बैठ खाना खाने लगते हैं।

डिनर खत्म होते ही तन्नू और अरुण थोड़ा टहलने के लिए डेक पर निकल जाते हैं, जहाज के दाहिनी ओर खड़े हो रात के सुन्दर दृश्य का आनंद ले रहे थे, रात में समुन्द्र बिलकुल ऐसे प्रतीत हो रहा था जैसे सभी सितारों और चांद ने चादर बन समुन्द्र को ढक लिया हो। ठंडी हवा काफी तेजी से बह रही थी, थोड़ी थोड़ी दूरी पर कोहरे के बादल भी थे।

इतने में तनवीर ने अरुण से कहा "तुम्हें क्या लगता है अजीत की जान को खतरा है, कमांडर ने उसके शरीर पर क्यूँ काबू किया होगा, ये बात मेरी समझ में नहीं आई, कहीं उसने ताबूत को खोला तो नहीं होगा, लेकिन अगर ताबूत खोला है तो कमांडर का शरीर भी जहाज पर ही कहीं होगा, आखिर उसी के शरीर में कमांडर की रूह ने प्रवेश क्यूँ किया ", तनवीर ने आश्चर्य प्रकट करते हुए अरुण से पूछा।

" मुझे लगता है कमांडर ने उसके शरीर में इसलिए प्रवेश किया क्यूँकि वह उस ताबूत का राज़ जान गया था, अगर वह हम दोनों को बताने आया था तो वह जहाज में किसी और को भी उस ताबूत के राज़ के बारे में बता देता, बस इसी राज़ को छुपाने के लिए कमांडर ने ऐसा किया होगा, मुझे नहीं लगता कि कमांडर उस ताबूत के बंधन से मुक्त हो गया होगा नहीं तो लगैज डिपार्टमेंट में नियुक्त हुआ नया शख्स अब तक उन जंजीरों के टूटने या ताला खुलने की खबर हम तक पहुंचा चुका होता ", अरुण ने कुशलता से अपनी बात तनवीर के सामने रखी। तनवीर भी इस बात से काफ़ी हद तक सहमत था, थोड़ी देर बाद दोनों अपने कैबिन में सोने चले गए।

रात जैसे ही जैसे बीतती है, जहाज पर एक खौफ़ ज़दा ख़ामोशी सी छा जाती है। चारों तरफ़ अंधकार फैला हुआ था, केवल जहाज के चालक दल और कुछ गार्ड्स ही ड्यूटी पर तैनात थे, कैप्टन भी सोने चले गए थे। कोहरे ने भी अब जहाज और उसके इर्दगिर्द अपना डेरा जमा दिया था, तभी अचानक रात की भयानक ख़ामोशी को चीरते हुए एक अनजान साया अपने बूट से ज़ोरदार आवाज़ निकलते हुए लॉबी के पास से गुजरता है। तनवीर की नींद उसके कदमों की ज़ोरदार आहटों से खुल चुकी थी, तनवीर कुछ देर तक अपने बिस्तर पर ही पड़े पड़े उस आवाज़ को सुनता है। आवाज़ ने अब उसके कैबिन से अच्छी खासी दूरी बना ली थी, तनवीर अपने कैबिन का दरवाज़ा खोलता है। जहाज की लॉबी बड़ी होने के कारण वह अनजान साया अब तक लॉबी को पार नहीं कर पाया था।

तन्नू की नज़र उसपर पड़ते ही वह उस साये का पीछा करने लगता है, साया बड़ी तेज़ी से लॉबी को पार करने की कोशिश में था, तनवीर भी तेजी के साथ उसके पीछे लगा हुआ था। वह अनजान साया चलते चलते एक दम से रुक गया, तनवीर ने यह देख ख़ुद को लॉबी की आड़ में छुपा लिया, वो अनजान साया पीछे मुड़कर देखने लगा, ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उस साए को भी शक़ हो गया था कि कोई उसका पीछा कर रहा है, इसलिए वह कुछ देर वहीं रुका रहा।

तनवीर लॉबी की आड़ में छुपकर ये सब कुछ देख रहा था।

कुछ देर बाद वह अनजान साया वापस चलना शुरू कर देता है, तनवीर भी उसके पीछे पीछे चलने लगता है। तनवीर बहुत सतर्क हो कर उस साए का पीछा कर रहा था क्यूँकि उस साए को अब यह शक़ हो चला था कि कोई उसके पीछे लगा हुआ था। वह साया तेजी से फुर्ती के साथ कदम बढ़ाने लगा ताकि अपना पीछा कर रहे तनवीर से वह छुटकारा पा सके।

तनवीर उस साए का पीछा करते हुए ये सोचने में लगा हुआ था कि आखिर ये अनजान साया कौन हो सकता है, कहीं अजीत तो नहीं लेकिन उसकी तो तबीयत खराब है, डॉक्टर ने उसे आराम करने के साथ ही उसे कुछ दवाइयां दी थी जिनके असर से उसका इतनी जल्दी नींद से जागना नामुमकिन था क्यूँकि उसे बुखार चढ़ गया था, तो फिर ये शख्स कौन हो सकता है। तनवीर के मन में यही एक जिज्ञासा ने घर कर रखा था कि आखिर वह अनजान साया है कौन जो चीते जैसी फुर्ती दिखाकर लॉबी पार कर नीचे की सीढ़ियाँ उतर रहा है।

तनवीर अंधेरे में आगे बढ़ रहा था तभी अचानक उसे एहसास होता है कि कोई उसके भी पीछे है, पर तनवीर उसके आगे वाले अनजान साये को अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहता था। इसलिए उसने आगे बढ़ना नहीं छोड़ा, कुछ देर बाद कॉरिडोर के नीचे जाने वाली सीढ़ी उतरने से पहले वह एक बार रुक कर पीछे मुड़कर देखता तनवीर बड़ी फुर्ती के साथ अंधेरे का फायदा उठाते हुए छुप जाता है, तनवीर के पीछे आने वाला अनजान शख्स भी छुप जाता है।

अब वह अनजान साया इस बात से आश्वस्त हो गया था कि कोई उसका पीछा नहीं कर रहा था बल्कि ये उसका वहम था। अब वह निर्भीक होकर नीचे के फ्लोर पर जाने वाली सीढ़ी उतरने लगा, मौका पाते ही तनवीर भी उसके पीछे सीढ़ियाँ उतर नीचे जाने लगा, तनवीर का पीछा करने वाला अनजान शख्स भी लपक कर सीढ़ियाँ उतर जाता है।

तनवीर अब उस अनजान साये का पीछा नीचले फ्लोर के कॉरिडोर में कर रहा था, तनवीर के पीछे आने वाला अनजान शख्स दबे पाँव भागते हुए तनवीर के पास पहुँचता है। वह कोई और नहीं बल्कि अरुण था, तनवीर भी उसे एक पल के लिए पहचान नहीं पाया था, पर ऊपर लगी जलती बुझती हल्की लाइट की रोशनी में अरुण को तन्नू ने पहचान लिया और अपने साथ आने का इशारा किया। अब वह अनजान साया लगैज कंपार्ट्मेंट के दरवाजे के सामने खड़ा था, उसने दरवाजा खोला और अंदर की ओर प्रवेश करने लगा, तनवीर और अरुण भी उसके पीछे चल दिए, वह साया कमांडर के ताबूत के पास जाकर रुका। ताबूत की दरारों से तेज़ लाल रोशनी निकल रही थी। वह ताबूत को खोलने की तैयारी में था, तभी उसे पीछे से अरुण और तनवीर ने धर दबोचा।

©IvanMaximusEdwin