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बड़ी हवेली (श्रापित हीरे की खोज)

"शाहजहां ने अपने लिए एक विशेष सिंहासन बनवाया। इस सिंहासन को बनाने में सैयद गिलानी नाम के शिल्पकार और उसका कारीगरों का टीम को कोई सात साल लगा। इस सिंहासन में कई किलो सोना मढ़ा गया, इसे अनेकानेक जवाहरातों से सजाया गया। इस सिंहासन का नाम रखा गया तख्त—ए—मुरस्सा। बाद में यह 'मयूर सिंहासन' का नाम से जाना जाने लगा। बाबर के हीरे को भी इसमें मढ़ दिया गया। दुनिया भर के जौहरी इस सिंहासन को देखने आते थे। इन में से एक था वेनिस शहर का होर्टेंसो बोर्जिया। बादशाह औरंगजेब ने हीरे का चमक बढ़ाने के लिए इसे बोर्जिया को दिया। बोर्जिया ने इतने फूहड़पन से काम किया कि उसने हीरे का टुकड़ा टुकड़ा कर दिया। यह 793 कैरट का जगह महज 186 कैरट का रह गया... औरंगजेब ने दरअसल कोहिनूर के एक टुकड़े से हीरा तराशने का काम बोर्जिया को खुफ़िया रूप से दिया था और उसी कोहिनूर के हिस्से को शाह जंहा कि जेल की दीवार में चुनवा दिया गया था जिसकी सहायता से वह ताजमहल तथा अपनी अज़ीज़ बेगम की रूह को देखते थे ।

Ivan_Edwin · ホラー
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कमांडर इन एक्शन-2

"अमां यार तन्नू ज़रा इसका चेहरा देखो ये कौन महाशय हैं" अरुण ने पकड़ में ज़ोर लगाते हुए तनवीर से कहा।

कमांडर के ताबूत से निकल रही रोशनी काफ़ी थी उस साये का चेहरा देखने के लिए, सो तनवीर ने आगे आकर उसका चेहरा देखा, तनवीर के पैरों तले जमीन खिसक गई थी जब उसने देखा वह अनजान साया कोई और नहीं बल्कि कैप्टन विक्रम प्रजापती थे। लेकिन वह अपने पूरे होश में नहीं थे ऐसा लग रहा था कि कोई उन्हें यहां तक खींच कर लाया है, तनवीर और अरुण उन्हें लगैज कंपार्ट्मेंट के बाहर तक ले कर जाते हैं, कैप्टन बहुत छुड़ाने की कोशिश करते हैं लेकिन जवान लड़को के ज़ोर के आगे उनकी नहीं चलती है।

"कैप्टन... कैप्टन... कैप्टन ख़ुद को संभालिए," तनवीर ने कैप्टन को खींचते हुए कहा। दोनों उन्हे खींचते हुए कॉरिडोर में ले कर चल रहे थे, तभी अचानक कैप्टन बेहोश हो जाते हैं।

तनवीर और अरुण उन्हे उनके कैबिन तक लेकर जाते हैं और उन्हें बड़ी सावधानी से लेटा देते हैं।

" चलो शुक्र है इन्हें लाते हुए किसी ने देखा नहीं" तनवीर ने अरुण की ओर देखते हुए कहा।

"तुम्हें नहीं लगता हमें कमांडर से इस विषय पर एक बार बात करनी चाहिए", अरुण ने तनवीर से क्रोध जताते हुए कहा, फिर उसने अपनी बात जारी रखी "जब हमलोग उसे सात समंदर पार लंदन लेकर जा रहे हैं तो इस प्रकार की बेवकूफ़ी का क्या मतलब बनता है", अरुण की बाते सुनकर तनवीर भी सोच में पड़ जाता है और कुछ देर बाद कहता है" मेरे ख्याल से तुम बिलकुल सही कह रहे हो, एक तो हमलोग इतना बड़ा जोखिम उठा रहे हैं ऊपर से इस प्रकार की हरकत का क्या मतलब बनता है, चलो उसी से पता कर लेते हैं",

तनवीर ने अरुण को अपने पीछे आने का इशारा करता है।

तनवीर और अरुण अपने कैबिन से उस ताबूत की चाबी निकाल कर सीधे लगैज कंपार्ट्मेंट की ओर जाते हैं। कमांडर के ताबूत को खोलते हैं, खुलते ही कमांडर हवा में चार फुट ऊपर रुक कर अपनी खोपड़ी को धड़ से जोड़ने और तेज़ लाल प्रकाश फैलाने के बाद उनसे कहता है "इन द नेम ऑफ क्वीन, कितना समय बीत गया हम बाहर का दुनिया नहीं देख पाया था, तुम लोग क्या पूछने आया है ये हम पहले से ही जानता है, पर हम भी क्या कर सकता था उस अजीत ने एक रात ताबूत का दरारों से लाल प्रकाश जलता हुआ देख लिया, उसने जहाज पर कुछ लोगों को इसका बारे में बताया जिसमें वो कुक और कैप्टन शामिल था, यही नहीं कल रात उसने कैप्टन को ताबूत से निकलता लाल प्रकाश निकलते हुए दिखा दिया, तब से हम दोनों को अपना दिमाग से चला रहा था, अगर हम ऐसा नहीं करता तो सारा खेल बिगड़ जाता ", कमांडर ने दोनों को भरोसा दिलाने की कोशिश की।

पर तनवीर का दिल नहीं माना उसने कमांडर से कहा" लेकिन कल रात को ही अजीत हम दोनों के पास आया था और यह कह रहा था कि वह हम दोनों को ही सबसे पहले इस बात के बारे में जानकारी दे रहा था, फिर आज पूरा दिन कैप्टन ने हम दोनों को इस बारे में कुछ नहीं पूछा", तनवीर ने थोड़ा एतराज जताया।

"अरे जब वह तुम्हारे पास से सारी कहानी बताने के बाद गया तो कल रात को ही अजीत ने कैप्टन को ताबूत से निकलता प्रकाश दिखा दिया था और तभी मैंने इन दोनों के दिमाग़ अपने काबू में कर लिया था, अजीत तो दो दिन पहले ही ताबूत के बारे में जान गया था, उसने सबसे पहले बनवारी को ये बात बताया लेकिन उसे विश्वास नहीं हुआ, तुम दोनों से उसने झूठ बोला था", कमांडर ने अपनी बातों से ख़ुद की सफ़ाई दी जिसे सुन तनवीर और अरुण को सारा मामला समझ में आ गया।

फ़िर कमांडर ने उनसे कहा" ये हमारा आखरी सफ़र है, इसलिए हमारा तुम दोनों से रिक्वेस्ट है कि ताबूत को जंजीरों से मत बांधों क्यूँकि कोई भी रात को यहाँ ड्यूटी करने वाला इसे देख सकता है, हम अपना हिफाज़त इंसानों से कहीं अच्छा से कर सकता है, चिन्ता का कोई बात नहीं हम उन सभी का ब्रेन वॉश कर देगा जिसने ये सब कुछ देखा है", कमांडर ने उन दोनों को समझाते हुए कहा।

" अगर रात में ताबूत के बाहर निकले और किसी ने देख लिया तो फिर क्या होगा ", अरुण ने आशंका जताते हुए पूछा।

कमांडर ने उसकी ओर देखते हुए कहा " सुन दारूबाज तेरा तो पता नहीं पर कमांडर ब्राड शॉ का ज़ुबान का वजन 300 साल पहले भी था और 300 साल बाद मरने का बाद भी है, एक बार बोल दिया कि इस जहाज पर कोई भी ये नहीं जान पाएगा कि ताबूत में क्या है, बस ताबूत लगे कुंडों पर ही ताला मारो जिसे हम अपना सुपर नैचुरल पॉवर से खोल बंद कर सकता है, क्यूँकि हम चाहता तो जंजीर तोड़ भी सकता था लेकिन फिर उसे कौन जोड़ता, सबको पता चल जाता और भगदड़ मच जाता ", कमांडर ने अरुण को फटकार लगाते हुए अपनी बात को दोनों के सामने रखा, दोनों मान गए और तनवीर अपने कैबिन की ओर दौड़ पड़ा, अपने सामान से ताबूत के पुराने दो ताले लेकर आने के लिए, उसने कमांडर के ताबूत में जाते ही ताबूत के कुंडों को बंद कर उन पर ताला लगा दिया। दोनों ने मिलकर जंजीर को समेट कर एक कोने में रखा और अपने कैबिन की ओर चल दिए। रात भर की भागदौड़ में पता नहीं चल पाया कि कब सुबह हो गई और घड़ी में 4 बज कर 45 मिनट हो गए, कुछ ही देर में सुबह की परेड शुरू होने वाली थी। रात भर कमांडर ने उनकी अच्छी खासी परेड करा दी थी। वह काफ़ी थक चुके थे और उनका बदन दर्द से टूट रहा था। अपने कैबिन में जाते ही दोनों बिस्तर पर खुद को फेंक देते हैं मानो जन्मों से उसी की तलाश रही हो। कुछ देर बाद उन्हें गहरी नींद आ जाती है।

"तनवीर... वेक अप, तनवीर...सुबह की परेड हो चुकी है और तुम दोनों अभी तक सो रहे हो... अरे भाई कैबिन का दरवाज़ा तो खोलो... तनवीर... जाग जाओ" कैप्टन विक्रम ने तन्नू और अरुण के कैबिन के दरवाजे को पीटते हुए कहा। कुछ देर बाद अरुण ने उठ कर दरवाजा खोला, कैप्टन ने जल्दी ही दोनों को अपने कैबिन में बुलवाया।

दोनों फ्रेश होकर कैप्टन के कैबिन में पहुँचे, कैप्टन ने उनकी तरफ देखते हुए कहा" नहीं... नहीं... मेरे जहाज पर ये डिसिप्लिन नहीं चलेगा... कोई भी मेरे नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकता है, खासकर तब, जब आप एक अवैध मेहमान के रूप में हों, जिनकी निजी तौर पर ज़िम्मेदारी जहाज के कैप्टन ने ली हो, चलिए आप ही बताइए क्या आपका दिया हुआ पैसा इतना है कि जहाज के सभी कर्मचारियों में बांट सकते हैं... नहीं... आपकी ज़िम्मेदारी मेरी है और अगर मैं ही अपने जहाज की डिसिप्लिन तोड़ने की छूट दे दूँ, तो जहाज के सभी कर्मचारियों को मेरे ऊपर उंगली उठाते देर नहीं लगेगी, इसलिए उन्हें पैसों की बात न बता कर आप दोनों को एक मजबूर स्टूडेंट के रूप में नज़र आना था, ये बात मैंने आपको पहली मुलाकात में ही बता दी थी, फिर भी आप दोनों ने आज इस जहाज का डिसिप्लिन तोड़ दिया है, सुबह परेड से गायब रहे और फिर डाइनिंग हॉल में ब्रेकफास्ट के लिए भी नहीं पहुँचे... नो... नो... ये नहीं चलेगा, आज तो मैं छोड़ रहा हूँ क्यूँकि पहली बार है, पर कल से बिलकुल समय पर चलना पड़ेगा... एम आई क्लियर... अब आप दोनों जा सकते हैं ", कैप्टन ने एक ज़ोरदार फटकार लगाते हुए दोनों को उनकी ड्यूटी पर लगवा दिया, आज दोनों को कॉरिडोर की सफाई का काम दिया गया था। उन दोनों को ये जानकर प्रसन्नता हुई कि कैप्टन को कल रात के हादसे के बारे में कुछ भी याद नहीं था, इसलिए दोनों उनसे माफी मांग कर कैप्टन के कैबिन से मुस्कुराते हुए निकल लिए।

दोनों अपना काम मन लगाकर कर रहे थे, धीरे धीरे वक़्त और बीतता है और दोपहर के 2:00 बजे हुए थे, लंच का समय हो गया था। दोनों अपना काम ख़त्म करते ही हाँथ मुँह धोकर डाइनिंग हॉल में पहुंच गए। वहाँ पहुँचते ही उनसे सबने सुबह परेड में न आने की वजह पूछी, उन दोनों ने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया। डाइनिंग हॉल में कैप्टन के पहुंचते ही सबसे पहले एक कुक उनका खाना सामने की मेज़ पर लगा देता है, अब उनकी पलटन के सारे सदस्य कतार में लग कर खाना लेते हैं और टेबल पर बैठ जाते हैं खाना खाने के लिए, फिर कैप्टन के शुरुआत करते ही, सभी खाने की शुरुआत करते हैं।

सभी शांति के साथ बैठकर खाना खा ही रहे थे कि थोड़ी ही देर में जहाज के कुछ गार्ड्स सायरन बजाते हैं जो कि एक खतरे की निशानी थी, उसे सुनते ही कैप्टन खाना छोड़ कर डेक की ओर दौड़ पड़ते हैं, उनके पीछे ही डाइनिंग हॉल में बैठे उनके पलटन के सदस्य भी भाग खड़े होते हैं। ऐसा कौन सा खतरा बीच समंदर में आ गया था जिसका सायरन सुन सभी इतनी बुरी तरह भाग खड़े हुए ये जानने के लिए तनवीर और अरुण भी सबसे आख़िर में उनके पीछे भागे।

जहाज पर किसी खतरे का अंदेशा मिलना एक बिन बुलाए मुसीबत की निशानी थी। तनवीर डेक पर जाते समय मन में यही विचार लिए हुए था कि पहले ही कमांडर की वजह से कम मुसीबत न थी और अब कोई अनजान खतरा उनकी तरफ बढ़ता चला आ रहा है। उन दोनों को अंदर से ये भय खाए जा रहा था कि कहीं लंदन तक का ये समुंद्री सफ़र उनके जीवन का आखिरी सफ़र न हो।

तनवीर और अरुण भागते हुए डेक पर पहुंचते हैं, सभी जगह भगदड़ मची हुई थी। जहाज के चारों ओर मर्चेंट नेवी के सारे कर्मचारियों ने झुंड बना जहाज की रेलिंग को घेर रखा था, कुछ फ्लेयर गन से निशाना तान रहे थे तो, कुछ जहाज के हर कोनों पर लगे मोटे पाइपों को लेकर खड़े थे जो ज़्यादातर जहाज पर आग को बुझाने में इस्तेमाल किए जाते हैं। जहाज पर हँगामा मचा हुआ था, तनवीर और अरुण के समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए, चारों ओर से गोलियां चल रही थी, जहाज को चारों तरफ़ से समुंद्री लुटेरों ने घेर लिया था, वो काफ़ी संख्या में थे, हर जगह yacht के आकार के जहाज नज़र आ रहे थे। उनमें से एक जहाज पर से किसी ने रेमिंग्टन 700 - 1962 मॉडल गन से फ़ायर किया जिसकी गोली सीधा तनवीर के साथ खड़े एक सहायक को लगती हुई जहाज के कैबिन के शीशे को भेदते हुए निकल जाती है, इस दृश्य को देखकर तनवीर और अरुण की रूह कांप उठती है। वो दोनों डर से नीचे बैठ जाते हैं, तभी उनके पास खड़ा एक जहाज कर्मी उनसे खड़े होकर उनकी मदद करने को कहता है, दोनों किसी तरह हिम्मत जुटा पानी का पाइप पकड़ खड़े हो जाते हैं और उन लुटेरों के जहाज पर पानी की तेज़ धार मारते हैं जिससे उन्हें आगे बढ़ने में असुविधा हो क्यूँकि पानी की धार इतनी तेज़ थी कि पाइप को संभालने के लिए दो लोगों की ज़रूरत थी। कैप्टन के पास अपनी स्मिथ एंड वेस्सों मॉडल 60 - 1965 रिवॉल्वर थी जिससे वह जहाज के हर क्षेत्र में दौड़ लगाते हुए पहुंचकर गोलियां चला रहे थे, एक आद बार कामयाबी हाथ लगी जिससे कुछ बंदूक धारी घायल हुए लेकिन कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा। कंट्रोल रूम से भी बार बार मदद के लिए गुहार लगाई जा रही थी पर आस पास नज़दीक में कोई जहाज न होने की वजह से मदद मिल पाना नामुमकिन था। जहाज के कुछ सिक्यूरिटी गार्ड्स के पास G लॉक 17 - 1982 पिस्टल्स, CZ-75 - 1975 मॉडल पिस्टल्स थीं जिससे वह जहाज जहाज के हर कोने में खड़े होकर चला रहे थे इससे कुछ देर तक उनकी रफ़्तार थोड़ी धीमी रही पर जहाज के हर कोने से भारी संख्या में होने के कारण उन्हें ज़्यादा देर रोक पाना नामुमकिन था। तीन घंटों तक चारों ओर अफरा तफरी का माहौल बना हुआ था, सभी अपना पूरा ज़ोर लगाए हुए थे उन लुटेरों को रोकने के लिए, पर होनी को कौन टाल सकता है, आधुनिक हत्यार होने के कारण उन्हें जहाज कि मरम्मत करने वाली सीढ़ियों को चढ़ने से कोई नहीं रोक सका और देखते ही देखते जहाज के हर कोने से हत्यार से लैस लुटेरों ने कब्ज़ा जमा लिया। पर उनके जहाज पर चढ़ने से पहले भागदौड़ में तनवीर जहाज के निचले कॉरिडोर के एक कैबिन में जाकर छुप गया लेकिन वह अरुण को अपने साथ ले जाने में असमर्थ रहा क्यूँकि अचानक उसी समय एक लुटेरे ने प्रकट होकर थाॅम्पसन सबमशीन गन - 1918 मॉडल से अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी थी जिससे बचने के लिए तनवीर ने निचले तल की ओर जाने वाली सीढ़ियाँ लांघ लीं, लेकिन डेक पर जहाज के पांच कर्मचारी शहीद हो गए। जहाज खून से लथपथ हो गया था, इस खतरनाक हमले में जहाज के कुल 12 कर्मचारी मारे गए।

उन समुंद्री लुटेरों के दल ने जहाज के सभी सदस्यों को बन्दी बना जहाज के डाइनिंग हॉल में रख दिया। उन सभी लुटेरे के पास थाॅम्पसन सबमशीन गन्स - 1918 मॉडल , स्मिथ एंड वेस्सों मॉडल 36 पिस्टल , कोल्ट .38, स्टेयर ऑग 9 mm मशीन गन्स, M-16, AK-47 - 1948 मॉडल , स्मिथ एंड वेस्सों मॉडल 29 चेम्बर्ड इन .44 मैगनम जैसे कई घातक हत्यार थे जिनकी सहायता से उन्होंने जहाज के हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का अनुभव सभी को करवा दिया था।

कैप्टन को उनके चालक दल के सदस्यों के साथ इंजिन रूम में बन्दी बना कर रखा गया था, ताकि जहाज अपनी यात्रा जारी रखते हुए आगे बढ़ सके। कंट्रोल रूम से उन लुटेरों ने स्थिति सामान्य हो जाने का गलत संदेश पहुंचाने को कहा, सब ने आदेश का पालन करते हुए सहायता दल को गलत संदेश दिया जिससे आने वाली सहायता भी वापस हो जाए।

लुटेरों के yacht जैसे छोटे जहाज मर्चेंट नेवी के बड़े cargo जहाज के साथ साथ ही चल रहे थे। शाम हो चुकी थी और डूबते सूरज की लालिमा समुन्द्र को भी अपने आगोश में लिए हुए थी।

"जहाज पर जितना कीमती सामान है सब कुछ हमारे हवाले कर दो", लुटेरों के सरदार ने कैप्टन से कहा।

"देखो कोई बेवकूफ़ी मत करो, हमारे जहाज पर ऐसा कोई कीमती सामान नहीं है जो तुम लोगों के काम आ सके", कैप्टन ने पलटकर लुटेरों के सरदार को जवाब दिया।

"चुप कर हरामज़ादे, ज़्यादा होशियार बनने कि कोशिश की तो तेरा भेजा यहीं पर खोलकर रख दूंगा, जितना कहा गया है उतना ही कर ", लुटेरों का सरदार क्रोध में कैप्टन को फटकार लगाते हुए कहता है, फिर उसने कैप्टन की ओर अपनी रेमिंग्टन 870 - 1951 मॉडल पंप एक्शन शॉट गन तान दी और कहा" सबसे पहले कैप्टन तू अपना सारा कीमती माल, रुपया पैसा, सोने चांदी की चेन, अंगूठी, ब्रेसलेट इत्यादि निकाल और यही आदेश अपने साथियों को भी दे, चल अब उठ और मेरे साथ अपनी पलटन के पास चल", कैप्टन को बंदूक के ज़ोर पर अपने कुछ साथियों के साथ लुटेरों का सरदार डाइनिंग हॉल की ओर ले जाता है, इंजिन रूम तथा कंट्रोल रूम में अपने कुछ बंदूक धारियों को जहाज के कर्मचारियों के साथ जहाज चलाने के लिए वहीं छोड़ देता है।

डाइनिंग हॉल में पहुँचते ही लुटेरों का सरदार कैप्टन को उसकी टेबल और कुर्सी पर बैठा देता है फिर कैप्टन के बाकी की पलटन से कहता है उनके पास जितना भी कीमती सामान है उसके साथियों के हवाले कर दे। इसके लिए उसने अपने हत्यारों से लैस आदमियों के साथ एक एक कर के जहाज के सभी बंधको को उनके कैबिन से सामान लाने के लिए भेजा। सभी अपने कैबिन से कीमती वस्तुएं, रुपए पैसे इत्यादि लेकर आए, उन्हें खाने की बड़ी सी टेबल पर रख दिया गया, वहीं पास बैठा एक आदमी रुपए इकट्ठे कर के उन्हें गिनकर गड्डी बनाकर रबर बैंड चढ़ा रहा था। कैप्टन को भी उनके कैबिन में ले जाकर उनके सामान की तलाशी ली गई जिसमें कई कीमती वस्तुएं बरामद हुईं और उन्ही में तनवीर से लिये गये वह पैसे भी थे जो उन्हें लंदन पहुंचाने के लिए लिया था। सारे पैसों को इकट्ठा कर वही लुटेरा गिनने में लगा हुआ था, गिनती खत्म हो जाने के बाद वह सरदार के कान में कुछ खुस्फुसाता है , जिसे सुन समुंद्री लुटेरों का सरदार उनसे कहता है "देखो जितना माल और पैसा इकट्ठा हुआ है उतना काफी नहीं है इसलिए तुमलोगों को जहाज पर लदे कंटेनरों और अपने लगैज कंपार्ट्मेंट में रखे कीमती सामानों की भी जानकारी देनी पड़ेगी, अब आज तो काफ़ी वक़्त बीत गया है इसलिए हमलोग सुबह होते ही सारी चीजों की तलाशी लेना शुरू करेंगे, अब जहाज के रसोई में काम करने वाले आगे आएं और रसोई का कार्य भार संभाले ताकि सभी को रात का खाना मिल सके, किसी ने भी होशियारी दिखाने की कोशिश की तो मेरे साथी उन्हें गोलियों से छलनी कर देंगे ", लुटेरों के सरदार ने अपनी बंदूक सब पर तानते हुए अपने साथियों की ओर इशारा किया।

जैसा लुटेरों का सरदार चाहता था सबकुछ वैसा ही चल रहा था।

जहाज का हर कर्मचारी उसके आदेश का पालन करने में लगा हुआ था जैसे जहाज का कैप्टन वही हो, अरुण डाइनिंग हॉल में बैठा हुआ यही बात सोच रहा था। साथ ही साथ उसे तनवीर की भी चिंता सता रही थी कि पता नहीं कहाँ रह गया, ठीक होगा या नहीं। वह एक बात से आश्वस्त हो गया था कि तनवीर अब भी लुटेरों के हाँथ नहीं लगा है वर्ना उसे भी बन्दी बनाकर यहीं लाया गया होता।

उधर तनवीर लगैज कंपार्ट्मेंट के ठीक सामने के कैबिन में छुपा हुआ था, उसे भी अरुण और जहाज के बाकी साथियों की चिन्ता लगी हुई थी, वह भी अपने मन में यही सोच रहा था कि पता नहीं ऊपर डेक पर क्या हो रहा होगा लेकिन उसका यह जानने के लिए ऊपर डेक की ओर जाना खतरे से खाली नहीं था। बस इसी वजह से वह जहाँ था वहीं छुपा रहा।

धीरे धीरे समय थोड़ा और बीतता है, हर तरफ अंधकार छाने से पहले ही जहाज की लाईटों को ऑन किया जाता है। हर तरफ़ रौशनी जगमगाने लगती है, जहाज अपना साइरन बजाते हुए अपनी उपस्थिति का एहसास समुन्द्र में कराता है। मौसम कुछ साफ़ न था और आसमान को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि आज रात भीषण कोहरे की रात होगी, इसलिए जहाज की भी रफ़्तार उसी हिसाब से रखनी पड़ेगी।

डाइनिंग हॉल में रात का खाना खत्म होते ही लुटेरों का सरदार अपने कुछ साथियों को बाहर डेक पर बुलाकर कहता है "तुम लोग गुट में बंट कर जहाज के हर फ्लोर, हर कैबिन, कॉरिडोर, लगैज कंपार्ट्मेंट से लेकर हर जगह कीमती सामान तलाश करो, कोई भी जगह नहीं छोड़ना, मुझे कैप्टन पर भरोसा नहीं है इसलिए सब कुछ ख़ुद देखना सही रहेगा, बाकि कंटेनरों में तो कल तलाश करेंगे, पर आज रात तुम लोग जहाज छान मारो", उसके इशारा करते ही उसके साथी जहाज की तलाशी का काम शुरू करते हैं। जहाज बड़ा था इसलिए दो दो के गुट में बंट कर उन्होंने तलाशी का काम शुरू किया पर इसमें भी काफ़ी वक़्त लगने वाला था।

लुटेरों का सरदार फ़िर से डाइनिंग हॉल के अंदर प्रवेश करता है और कैप्टन की ओर देखते हुए कहता है "सुनो अपने ऑफिस के कैबिन से जाकर कंटेनरों की लिस्ट लेकर आओ ताकि पता चले कंटेनरों में कौन सा कीमती सामान लेकर जा रहे हो, तुम दोनों कैप्टन के साथ जाओ", उसने अपने दो साथियों को कैप्टन के साथ जाने को कहा, वह लोग कैप्टन को अपने साथ लेकर चले गए।

©IvanMaximusEdwin