अब उसकी हसी गायब हो गई थी। उसके चेहरे पर डर था। उसके चेहरे का डर बता रहा था कि वह कुछ छुपा रही है। शायद अब वह सच बता देगी। इसलिए भास्कर ने जितने शांत स्वर में पूछ सकता था, उतने शांत स्वर में पूछा, "सैली, मेरे जाने के बाद इस कमरे में कौन आया था?"
"कोई भी नहीं," उसने सरलता से कहा।
भास्कर उसकी आँखों में विश्वास देख सकता था। उसने बहुत ही आसानी से झूठ बोला था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि क्या वह वही थी जिससे वह प्यार करता था? यह सब भास्कर की सहनशक्ति से परे था। उसने सैली के कान के नीचे जोर से थप्पड़ मारा। आवाज़ पूरे कमरे में गूँज उठी। उसके गोल-सुंदर गालों पर तीन उंगलियाँ दिखाई दे रही थीं। उसकी आँखों में पानी आ गया था। पहली बार उसने सैली पर हाथ उठाया था। इस बात का उसे भी दर्द हो रहा था।
तब अचानक भास्कर के सामने अंधकार छा गया था, मानो वह दूसरी जगह पहुँच गया हो, जहां सिर्फ अंधेरा था। इसके अलावा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। उसके सामने एक नई दुनिया आ गई थी। वहां एक रोशनी थी। अब उसे सब कुछ दिखाई दे रहा था। उसे बस एक कदम उठाना था, लेकिन तब वह अकेला था। वह एक कदम भी नहीं उठा सकता था। उसे जीवन भर उसी दुनिया में रहना था। अब उसकी जिंदगी का कोई मतलब नहीं रह गया था। वह एक कंपनी का सीईओ था, बैंक बैलेस, गाड़ी, बड़ा बंगला, पैसा - यह सब अब वह पीछे छोड़ चुका था। उसके जीवन में कोई लक्ष्य नहीं था। वह अब कोई नहीं था।
एक रात, चाँदनी की किरणों ने सैली के चेहरे पर अपनी चमक बिखेरी थी। वह अपने प्यार भरे सपनों में खोई थी, परंतु उसकी धारणा जल्द ही उसे वास्तविकता के कठपुतले से झटका देने वाली थी। सैलीने उसे बहुत दर्द दिया था, उसके दिल को चोट पहुँचाई थी। और फिर, एक बार फिर, उसने दोबारा सैली के कान के नीचे मारा। उसके गालों पर चार उंगलियाँ उठ गयी थीं, जो कुछ घंटों के बाद भी दिखाई देती रहेगी। लेकिन उसके दिल में जो दर्द था वह जीवन भर रहने वाला था। इसका कोई अंत नहीं था।
सैलीने अपने गाल पर हाथ रखा और बोली, "तुने सच में मेरे कान के नीचे मारा? नहीं, तूने ऐसा कुछ नहीं किया है। यह गलत है। मैं सपने देख रही हूं।"
"सैली यह कोई सपना नहीं है।" भास्कर की आवाज़ में गुस्सा और दुख दोनों थे।
"भास्कर, मैंने जरूर कुछ गलत किया होगा, तभी तुमने मेरे कान के नीचे मारा। लेकिन मुझे बताओ कि मुझसे क्या गलती हुई। मैं वह गलती नहीं दोहराऊंगी।" सैली की आवाज़ शिकायत और दर्द से भरी थी।
"तुम अच्छी तरह जानती हो कि तुमने क्या किया है। एक बेशर्म लड़की की तरह तुम मुझसे कैसे बता सकती हो कि, मुझसे कहा गलती हुई। तूने जो कि है उसके लिए में तुझे कभी माफ़ नहीं कर सकता।" भास्कर की आवाज में निराशा और नफरत थी।
"प्लीज मुझे बताओ कि मैंने क्या किया है?" सैली ने दोनों हाथ जोड़कर कहा।
"मेरे यहाँ से जाने के बाद तुम एक पराए आदमी के साथ शारीरिक संबंध बना रही थी। मैंने तुझे शारीरिक संबंध बनाते हुए अपनी आँखों से देखा है।" भास्कर ने दुखी और आहत होकर कहा।
"तुम झूठ बोल रहे हो।" सैली ने भास्कर को गुस्से में देखकर कहा।
"मैंने नहीं सोचा था कि तुम मुझे कभी धोखा दोगी। सैली, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। तुम पर भरोसा करता हूँ और तुमनेही मुझे" बोलते-बोलते उसके आँखों में भी आँसू आ गये।
"भास्कर, पागलों की तरह बात मत करो। मैं तुम्हारी पत्नी हूं। मैं तुमसे झूठ क्यों बोलूंगी?" सैली ने लगभग रोते हुए कहा।
"तुम एक बेकार औरत हो।" भास्कर की आँखों में नफरत की ज्वाला जल रही थी। ऐसा कहकर उसने सैली के कान के नीचे फिर से जोर से चाटा मारा। उसकी आँखों में आंसू भर आए, लेकिन भास्कर के चेहरे पर कोई दया नहीं थी। उसने उसके बालों को पकड़कर उसे दूर धकेल दिया। सैली बुरी तरह से फर्श पर गिरी, उसका सिर हल्के से दीवार से टकराया और एक दर्दनाक झटका महसूस हुआ।
सैली की आँखों में अब भी आँसू थे, लेकिन भास्कर ने बिना किसी भावना के कहा, "सैली, आज मैं तुमसे सारे रिश्ते तोड़ता हूँ। अब तुम मेरी पत्नी नहीं हो, इसलिए तुम्हें जो करना है करो। मुझे अब कोई परवाह नहीं है।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सा ठंडापन था, जिसने सैली के दिल को और भी चोट पहुंचाई। वह बेबसी से देखती रही, जबकि भास्कर दरवाजा बंद करके बाहर निकल गया। सैली का दिल टूट चुका था, उसकी दुनिया अब पहले जैसी नहीं रही।
भास्कर के आखिरी शब्दों की तेज ताकत ने सैली की दिल को एक और झटका दिया। उसकी आँखों में आंसू थम नहीं पा रहे थे। उसका जीवन एक पल में पलट गया था। वह अब अपने रिश्तों की उस अपेक्षा में खड़ी थी, जो कहीं एक सुनहरे किताब की पन्नों में ही मिल सकती थी।
भास्कर ने कमरे का दरवाजा जोर से बंद किया और तेजी से बाहर निकल कर लिफ्ट की ओर बढ़ गया। उसके चेहरे पर क्रोध और तिरस्कार की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं। सैली ने बमुश्किल खुद को संभाला और लड़खड़ाते कदमों से खड़ी हो गई। उसके मन में हज़ारों सवाल और दर्द का समंदर उमड़ रहा था। उसने अपने आंसुओं को पोछते हुए खुद को मजबूत किया और लिफ्ट की तरफ दौड़ी।
लिफ्ट का दरवाजा खुला और भास्कर अंदर चला गया। सैली ने अंतिम प्रयास के तौर पर अपनी सारी ताकत लगाकर लिफ्ट का दरवाजा पकड़ा और अंदर चली गई। उसके कदम कांप रहे थे, लेकिन उसने हार नहीं मानी। जैसे ही वह भास्कर के पास पहुंची, उसने अपने सारे अहंकार को छोड़कर भास्कर के पैरों को पकड़ लिया।
"भास्कर, तुम मुझे छोड़कर मत जाओ। मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है।" उसकी आवाज़ में गहरी वेदना और सच्चाई थी। उसने उम्मीद भरी आँखों से भास्कर की ओर देखा, जैसे कि वह उसकी एक नजर के इंतजार में हो। उसकी पकड़ में ऐसी मजबूती थी, मानो उसकी सारी दुनिया ही भास्कर के पैरों में समा गई हो। लिफ्ट की ठंडी हवा और दोनों के बीच का तनावपूर्ण माहौल सैली के दिल की धडकनों को और तेज कर रहा था। उसने अपने दिल की गहराइयों से भास्कर से एक आखिरी बार उसे सुनने की प्रार्थना की।
"सैली, मैं तुम्हारा चेहरा नहीं देखना चाहता। इसलिए मेरे सामने मत आना।" भास्कर की आवाज़ में ठंडापन और कठोरता थी। उसने सैली को लिफ्ट से बाहर ढकेल दिया। जैसे ही वह बाहर आई, भास्कर ने ग्राउंड फ्लोर का बटन दबा दिया। उसकी आँखों में आँसू उमड आए थे। वह इतना रो रहा था कि उसे बुखार भी हो गया। सैली के साथ उसने जो किया था, उसके लिए उसे गहरा पछतावा हो रहा था। उसने कभी अपने शत्रु के साथ भी ऐसा व्यवहार नहीं किया था। फिर यह तो उसकी पत्नी थी।
उसने अपने दाहिने हाथ की ओर देखा, वही हाथ जिससे उसने सैली के कान के नीचे मारा था। उसका मन ग्लानि से भर गया। वह लिफ्ट के दरवाजे पर जोर से हाथ मारने लगा, चिल्लाने लगा और अपने ही बाल खींचने लगा। लिफ्ट के दरवाजे पर उसने अपना सिर दो-तीन बार पटक दिया। वह बहुत परेशान था। वह जोर-जोर से रो रहा था। उसे ऐसा लग रहा था कि किसी ने उसके शरीर से उसकी आत्मा छीन ली है।
लिफ्ट अब ग्राउंड फ्लोर पर आ गई थी। उसने अपनी आँखें पोछलीं और होटल से बाहर निकलकर फुटपाथ पर टहलने लगा। उसे यह भी नहीं पता था कि वह कहाँ जा रहा है। जहाँ भी उसे सड़क दिखाई दे रही थी, वह चलता जा रहा था। उसकी आँखों में आँसू बह रहे थे, और वह बार-बार उन्हें पोछ रहा था। कुछ देर बाद सैली उसके पीछे दौड़ती हुई आ गई। वह भी बहुत रो रही थी। उसने भास्कर का दाहिना हाथ पकड़ लिया, लेकिन उसने उसका हाथ झटक दिया। सैली ने फिर से उसका हाथ पकड़ लिया।
"भास्कर, तुझे क्या हुआ? तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हो?" उसने अपनी आँखों से आँसू पोछते हुए कहा। भास्कर बस आगे चलता जा रहा था। वह उसकी बातों पर ध्यान नहीं दे रहा था। सैली उसके सामने आ गई। भास्कर ने उसकी तरफ देखा। सैली बहुत रो रही थी। उसकी आँखें आँसुओं से भर गई थीं, गाल लाल हो गए थे। उसका मासूम चेहरा देखकर किसी को भी उस पर दया आ जाती।
लेकिन भास्कर के मन में एक ठंडापन था। उसे एहसास हुआ कि यह सब उसका नाटक था। अगर वह सच्ची होती तो ऐसी हरकत नहीं करती।
"सैली, तुम गलत हो। तुमने बहुत बड़ी गलती की है, जिसके लिए मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूंगा।" भास्कर की आवाज़ में दर्द और गुस्सा था। दोनों की आँखों में एक साथ आँसू आ गए। दोनों रो रहे थे।
भास्कर ने कहा, "सैली, मैं अपना पूरा जीवन तुम्हारे साथ बिताना चाहता था। मैंने बहुत सपने देखे थे। लेकिन तुमने सभी सपनों को मुझसे दूर कर दिया। सैली, तुम मेरे अलावा किसी और आदमी के बारे में कैसे सोच सकती हो?"
सैली ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "तुम मेरे जीवन में एकमात्र हो। मैंने तुम्हारे अलावा कभी किसी के बारे में नहीं सोचा है। मेरे मन में भी कोई पाप नहीं है।" उसकी आवाज़ में सच्चाई और दर्द की झलक थी, लेकिन भास्कर के मन में उथल-पुथल मची थी। वह दोनों के बीच की दरार को पाट नहीं पा रहा था।
वह एक के बाद एक झूठ बोलती जा रही थी। भास्कर के मन में उथल-पुथल मची थी। अगर कोई और होता तो कम से कम अपनी गलती के लिए माफ़ी तो मांग लेता, लेकिन सैली? वह तो जी भर कर झूठ बोल रही थी। उसका मासूम चेहरा देखने वालों को यही यकीन दिलाता कि वह सच कह रही है। उसी मासूम चेहरे का फायदा उठाकर वह उसे धोखा दे रही थी। भास्कर का गुस्सा अब काबू से बाहर हो गया। गुस्से में आकर उसने उसके कान के नीचे फिर जोर से तमाचा जड़ दिया। सैली के मुँह से खून निकलने लगा। "माँ!" यह शब्द उसके मुँह से बाहर आ गए। उसे बहुत दर्द हो रहा था और वह जोर से रोने लगी।
मुंबई की सड़कों पर कुछ ही मिनटों में लॉकडाउन लगने वाला था, इसलिए सड़के खाली थीं। उस शांत माहौल में उनके रोने की आवाजें गूंज रही थीं। भास्कर को सैली के लिए खेद महसूस हुआ। उसे चिंता थी कि अगर वह कुछ मिनट और वहां रुका, तो शायद वह उसे माफ कर देगा। इसलिए उसने वहां न रुकने का निर्णय लिया। लेकिन उसके मन में एक सवाल का तूफान मचा हुआ था। उस कमरे में वह कौन आदमी था, जिसने उसकी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे? यह जानना भास्कर के लिए जरूरी था।
उसने सैली से कहा, "मुझे केवल एक प्रश्न का उत्तर दो। वह कौन आदमी था जिसके साथ तुमने शारीरिक संबंध बनाए?"
सैली ने आँसुओं से भरी आँखों से कहा, "हमारे कमरे में सिर्फ हम दोनों थे। कोई तीसरा व्यक्ति नहीं था।"
भास्कर की आवाज़ में क्रोध और व्याकुलता थी, "प्लीज मुझे बताओ कि वहाँ कौन था? तुमने किसके साथ सेक्स किया?"
सैली ने धीरे से कहा, "तेरे साथ।"
ये सुनकर भास्कर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसने उसके कान के नीचे फिर जोर से थप्पड़ लगाया। थप्पड़ इतना जोर से था कि सैली वहीं गिर गई। भास्कर को एहसास हुआ कि उससे बात करने का कोई फायदा नहीं होगा, वह कभी उस आदमी का नाम नहीं बताएगी। भास्कर वहाँ से चला गया। सैली बैठकर बहुत रो रही थी। उसने उसे ज़ोर से पुकारा, "भास्कर।"
भास्कर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा, लेकिन उसकी आँखों में भी आँसू थे। उसे भी बुरा लग रहा था। वह उसे बहुत प्यार करता था। वह उसके बिना कुछ भी नहीं था। वह अभी भी उसके मन में बसी थी। इसलिए वह उसे छोड़ नहीं सकता था। कुछ कदम चलने के बाद वह रुक गया और पीछे मुड़कर देखा। सैली खड़ी हो गई थी। वह धीरे-धीरे पीछे जा रही थी। वह विपरीत दिशा में चल रही थी और उसे यह नहीं दिख रहा था कि सड़क पर कौन सी कार आ रही है या नहीं।
सैली जोर से चिल्लाई, "भास्कर।"
भास्कर ने पीछे मुड़कर देखा। उसकी आँखों में उसके प्रति गुस्सा और नफरत थी। उसने सैली को पहली बार इस हालत में देखा था। वह उसे देखकर डर गया। वह हमेशा धीमी आवाज में बात करती थी, लेकिन अब उसकी आवाज़ तेज़ हो गई थी। वह पीछे की ओर जा रही थी, मानो वह अपने जीवन की दिशा खो चुकी हो।
उसके शब्द भास्कर के कानों में गूंज रहे थे, और उसके दिल में एक नई कशमकश उठ रही थी। क्या वह सैली को सही मायनों में समझ पाया था? या उसका गुस्सा ही उसकी सबसे बड़ी भूल बन चुका था? भास्कर वहीं खड़ा रहा, अपने विचारों में डूबा, जबकि सैली अंधेरे में खोती जा रही थी।
सैली ने भास्कर से कहा, "मैंने अपने जीवन में तुम्हारे अलावा कभी किसी के बारे में नहीं सोचा। तुम केवल मेरे हो, भास्कर। मैं तुम्हें धोखा देने के बारे में कभी सोच भी नहीं सकती। मेरे शरीर और आत्मा पर केवल तुम्हारा ही अधिकार है।" उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन उनमें सच्चाई की चमक भी थी।
उसने अपना हाथ अपने पेट पर रखा और कहा, "मैं अपने होने वाले बच्चे की कसम खाती हूं। मैंने तुम्हारे अलावा किसी भी व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाए हैं। मैं इतनी बुरी नहीं हूं कि अपने बच्चे की झूठी कसम खाऊं। भास्कर, मैं एक अच्छी पत्नी हूं, एक अच्छी मां हूं। लेकिन तुम एक अच्छे पिता नहीं हो, तुम पुरुष बनने के भी लायक नहीं हो। तुम बहुत स्वार्थी हो, तुम्हें सिर्फ अपनी परवाह है। लेकिन तुमने कभी मेरे और हमारे होने वाले बच्चे के बारे में नहीं सोचा कि हमारा क्या होगा? मेरे बच्चे का क्या होगा?"
ये सुनकर भास्कर दंग रह गया। उसे विश्वास था कि सैली अपने बच्चे की झूठी कसम नहीं लेगी। सैली मुह पर हाथ रखकर रो रही थी। उसकी नाक लाल हो गई थी, रोने से उसकी आँखें सूज गई थीं, वह हांफ रही थी, उसके बाल बिखरे हुए थे, और उसका चेहरा दर्द और पीड़ा से भरा हुआ था। वह पीछे की ओर चलती जा रही थी और अब फुटपाथ से सड़क की ओर आ गई थी।
सड़क पर एक कार तेजी से उसकी ओर आ रही थी। जैसे ही कार नजदीक आई, उसकी हेडलाइट की रोशनी सैली के चेहरे पर पड़ गई। सैली ने अपना ध्यान कार की ओर किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। कार सैली के बहुत करीब थी। यह निश्चित था कि वह और कार टकरा जाएंगे। उसने अपना हाथ अपने चेहरे के सामने ले लिया। कार तेजी से आगे बढ़ी और उसे उड़ा दिया। कार की रफ्तार इतनी तेज थी कि सैली करीब 10 फीट हवा में उड़कर नीचे गिर गई।
भास्कर का ध्यान उस कार पर गया। वह कार उसके दोस्त शुभम की थी। कार आगे जाकर एक बिजली के खंभे से टकरा गई। खंभा कार पर गिर गया और कुछ ही सेकंड के बाद कार में विस्फोट हो गया। भास्कर तेजी से सैली के पास आया। वह बुरी तरह से घायल हो गई थी। सड़क पर काफी खून बह गया था। वह सड़क पर औंधे मुह पड़ी हुई थी। भास्कर ने उसका चेहरा अपने पास खींचा। वह जीवित थी, लेकिन उसकी हालत नाजुक थी। भास्कर ने गंभीर स्वर में कहा, "सैली, तुमने क्या किया?"
सैली धीरे-धीरे बात कर रही थी। उसने कहा, "मैं तुम्हारे ऊपर बहुत ज्यादा भरोसा करती थी। जब तुमने मेरा भरोसा तोड़ा, तो मुझे आत्महत्या के अलावा कोई रास्ता नहीं दिखा। भास्कर, तुमने मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया? तुम्हें क्या हुआ है? तुम कैसे सोच सकते हो कि मैं किसी पराये व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाऊंगी? भास्कर, तुमने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी है। आई हेट यू।"
भास्कर का दिल टूट गया। उसने सैली को अपने पास खींच लिया और उसके आँसू पोछने की कोशिश की, लेकिन उसे एहसास हुआ कि अब बहुत देर हो चुकी थी। सैली की आँखों में दर्द और नफरत थी, और भास्कर खुद को उसके सामने बेहद छोटा महसूस कर रहा था। उसने अपने हाथों में सैली के चेहरे को थाम लिया और उसके दिल की धडकनें तेज हो गईं, जैसे कि वह उसके हर शब्द को अपने भीतर समेट लेना चाहता हो। लेकिन सच्चाई अब उनके बीच एक गहरी खाई बन चुकी थी, जिसे भरना नामुमकिन था।
वह रो रही थी। उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी। उसने भास्कर का हाथ कस कर पकड़ लिया था, मानो उसकी ज़िंदगी की आखिरी उम्मीद हो। लेकिन धीरे-धीरे उसका हाथ ढीला पड़ने लगा, उसका शरीर हल्का हो रहा था। उसकी साँसें धीमी हो रही थीं। वह मर रही थी। भास्कर की बाँहों में उसने अपनी आखिरी सांस ली। उसके मरते ही भास्कर फूट-फूट कर रो पड़ा, उसका दिल दर्द से कराह उठा। उसने सैली के शव को देखा और टूटे हुए स्वर में कहा, "मैंने जो देखा उस पर भरोसा किया। लेकिन अब मुझे इसका पछतावा हो रहा है। मैंने गलती की है। मुझे माफ कर दो। तुम मुझे छोड़कर मत जाओ। तुम मुझे जो सज़ा देना चाहो दे दो। सैली, मैं तुम्हें चाहता हूँ। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। तुम वापस आ जाओ। मुझे सब ठीक करने का मौका दो। प्लीज वापस आ जाओ, प्लीज।"
उसने सैली को अपनी बाँहों में कस कर लिया। उसी समय आकाश में बिजली चमकी। भास्कर ने फिर सैली से कहा, "तुम वापस आ जाओ। मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा। मैं तुम पर भरोसा करूंगा। प्लीज वापस आ जाओ।"
उसने आकाश की ओर देखा और जोर से चिल्लाया, "सैली, मुझे माफ कर दो।"
भास्कर का पूरा शरीर पसीने से भीग गया था। वह बस उसे ही देख रहा था। उसे पता ही नहीं चला कि वह कितने मिनट तक उसे देखता रहा। वह झूठी उम्मीद में बैठा था कि सैली उससे बात करेगी। उसे भरोसा ही नहीं हो रहा था कि वह उसे हमेशा के लिए छोड़ कर चली गई है। वह इस सच को मानने को तैयार नहीं था। उसने सैली का हाथ अपने हाथ में ले लिया। उसका ध्यान सैली के हाथ की घड़ी पर गया, और उसके मुँह से शब्द निकल पड़े, "टाइम मशीन।"
उसे मुकुल की बात याद आ गई। उन्होंने कहा था, ''टाइम मशीन से हम अतीत और भविष्य में जा सकते हैं।''
उसने खुद से कहा, "शायद मुकुल सब कुछ ठीक कर सकता है।"
मुकुल की टाइम मशीन ठीक से काम कर रही थी। उनके मुताबिक भास्कर की अंगूठी 2012 से 2020 में आ गई थी। शायद वही सच था, तो भास्कर समय में पीछे जाकर सैली को वापस ला सकता था।
उसने सैली के शव से कहा, "सैली, मैं टाइम मशीन के जरिये वापस जाऊंगा। और सब कुछ पहले जैसा ठीक कर दूंगा। मैं तुम्हारा भरोसा कभी नहीं तोड़ूंगा। तुम जैसा कहोगी, मैं वैसा ही करूंगा। तुम चिंता मत करो। सब कुछ वैसा ही होगा जैसा तुम देखना चाहती हो।"
भास्कर ने सैली का माथा चूम लिया और उसे धीरे से फुटपाथ पर रख दिया। उसकी आँखों में एक नई उम्मीद की चमक थी। उसने सैली से वादा किया कि वह समय में पीछे जाकर सब कुछ ठीक कर देगा। वह जल्दी से मुकुल की टाइम मशीन के पास जाने की सोचने लगा। अब उसके दिल में एक ही उद्देश्य था - सैली को वापस लाना और अपनी गलती सुधारना।
उसने अपने आँसू पोछे और दृढ़ निश्चय के साथ वहाँ से चल पड़ा, उसकी आँखों में सैली को वापस लाने की दृढ़ता और आशा की किरणें झलक रही थीं।