Chapter - 36
श्रीशि की ये बात सुनकर केशवी उसके बाजू पकड़ उससे कहती है - क्या बोल रही हो श्री l
तभी सुव्रत की माता बोली - ये क्या बोल रही है क्या हमारा अपमान करवाने के लिए ही हमें यहाँ बुलाया था l
सुव्रत के पिता - अगर विवाह नहीं करना था तो पहले ही मना कर देते हमारा और खुद का इतना अपमान कराने की क्या जरूरत थी l
सुगंधा जैसे ही मना करने वाली थी राघव ने उसे रोक दिया और धीरे से कहा - तुम मना नहीं करोगी ये श्री भले ही कुछ भी बोल रही है लेकिन ये हमारा ही कार्य आसान कर रही है l
सुगंधा नासमझी से बोली - मतलब मैं समझी नहीं हम अपनी वैदेही का विवाह क्या इससे करवा दें l
राघव धीरे से बोला - हाँ हमारी वैदेही का विवाह एक राजकुमार से भी हो जाएगा और तो और ये राज्य भी हमारा होगा l
सुगंधा उसे देख मुस्करा देती है और अपना सर हिलाती है सूर्य शेन हाथ जोड़ कर सुब्रत के माता पिता के सामने हाथ जोड़कर बोलते हैं - मुझे माफ कर दो मुझे नहीं पता था कि मेरी ही पुत्री मुझे धोखा देगी l
उसे ऐसे देख राघव उसके पास आता है और उसका हाथ पकड़ उससे बोलता है - अरे ये आप क्या कर रहे हैं आप ऐसे अपना सर न झुकाए मैं आपका अपमान होते नहीं देख सकता हूँ इसलिये मैं अपनी वैदेही का विवाह सुव्रत से कराने के लिये तैयार l
फिर वो श्रीकांत की तरफ देखते हुए हाथ जोड़ कर बोला - भले ही सूर्य शेन जी अपना वादा पूरा नहीं कर पाए लेकिन आप यहाँ से बिना अपनी पुत्र वधू लिए नहीं जाएंगे अगर आपकी आज्ञा हो तो l
श्रीकांत अपनी पत्नी की तरफ देखता है और फिर उसकी तरफ देख हाँ में सर हिला देता है राघव अपनी पत्नी से बोल वैदेही को तैयार करने के लिए बोलता है l
ये सारा नजारा कृशव और उसके सभी दोस्त देख रहे थे सूर्य शेन ने राघव से उसके उपकार के लिए धन्यवाद कहा वैदेही सजी धजी आई और सुव्रत के बगल में बैठ गयी सुव्रत उसे देख बहुत मन ही मन बहुत खुश था l
फिर उस जगह मन्त्रों की गुंजार होती है सुव्रत और वैदेही का विवाह संपन्न होता है वो दोनों उठकर सभी का आशीर्वाद लेते हैं और वो सूर्य शेन का आशीर्वाद लेते हैं सूर्य शेन वैदेही को बहुत सारा आशीर्वाद और उसे खुश रहने का वरदान देते हैं l
फिर वैदेही श्रीशि के सामने खड़ी हो जाती है और उससे हाथ जोड़ कर उसे धन्यवाद कहती है - अगर आप नहीं होती तो ये विवाह कभी नहीं होता मैं आपकी जीवन भर आभारी रहूँगी अगर आप को कभी भी मेरी जरूरत पड़ी तो आप मुझे याद करना मैं जरूर आऊंगी l
सुव्रत - और मैं भी l
श्री मुस्कराइ सुगंधा उसे अपने साथ लेकर गयी सूर्य शेन ने उन्हें बहुत सारा धन दौलत देकर विदा किया उनके अंदर इस वक़्त बहुत क्रोध समाया था जो श्री पर निकलने वाला था l
श्री कृशव को देख रही थी उसे समझ आ गया था कि वो गलत थी और उसे कृशव के माता पिता के साथ क्या हुआ था उसका भी पता चल गया था उसे समझ में आ गया था कि आज जो मुसीबत उसे झेलनी पड़ रही है वही कृशव ने भी महसूस किया था l
सभी प्रजा वासी श्रीशि के बारे में बातें कर रहे थे उसे सुन सूर्य शेन गुस्से से श्री से बोले - अखिर क्या वज़ह थी जो तुमने मेरा इतना बड़ा फैसला नहीं माना क्या वज़ह थी जिसके कारण तुमने मेरा इतना अपमान करवाया l
उसकी बात सुनकर सभी उसकी तरफ देखने लगते हैं सूर्य शेन बोले - मैंने तुमसे पहले ही पूछा था कि क्या तुम इसके लिए तैयार हो या नहीं लेकिन तुमने हाँ बोलकर इसके लिए तैयार भी हुई तो फिर क्यों नहीं किया तुमनें ये विवाह क्या वजह थी l
श्रीशि सर नीचे कर बस अपने पिता की बात सुन रही थी सूर्य शेन उसके ज़वाब का इंतजार कर रहे थे लेकिन जैसे ही श्रीशि बोलने वाली थी बीच में ही सुगंधा बोल पड़ी - अरे उससे क्या पूछ रहे हैं मैं बताती हूँ कि इसने क्यूँ और किसके लिए ये विवाह नहीं किया l
सूर्य शेन उसे देख पूछता है - किसके लिए ?
सुगंधा - ये आपकी लाडली को प्रेम हो गया है l
उसकी बात सुन सभी उसकी तरफ हैरानी से देखने लगते हैं सुगंधा आगे बोली - और जानते हैं वो लड़का कौन है ?
ये... ये... बावर्ची है इसका प्रेमी कृशव l
जब सूर्य शेन ने ये सुना कि उसकी पुत्री ने एक बावर्ची के लिए एक राजकुमार का त्याग कर दिया और खास कर बात ये थी कि वो एक बावर्ची है उसे ये बात सहन नहीं हो रही थी कि जिसने उसे इतना प्यार इतना सम्मान दिया उसने एक बावर्ची के लिए उनके सम्मान को छीन लिया l
सूर्य शेन ने श्री से पूछा - क्या ये सच है क्या तुम इस बावर्ची से प्रेम करती हो l
श्री - वो.. वो.. बाबा.. ये..
सूर्य शेन ने तेज आवाज में पूछा - क्या ये सच है l
तभी बीच में कृशव बोल पड़ा - आप शांत हो जाइए l
सूर्य शेन उसे हाथ दिखाते हुए बोले - तुम चुप रहो मैंने तुमसे नहीं अपनी पुत्री से सवाल किया है l
श्री बोली - जी बाबा.. मैं कृशव से प्रेम करती हूँ..
ये सुन सभी उसकी तरफ देखने लगे श्री के आँखों में आंसू थे और होठों पर एक प्रेम भरी मुस्कान वो बोली - ऐसा प्रेम जो इस संसार के रीति रिवाजों से परे है एक ऐसा प्रेम जो अति दुर्लभ जो बार बार नहीं होता l
कृशव उसकी बात सुनते हुए उसकी तरफ देख मुस्करा रहा था और उसके हृदय में एक दुख भी था क्योंकि उसे आने वाले भविष्य के बारे में पता था सूर्य शेन ने कहा - तुम एक बावर्ची से प्रेम कैसे कर सकती हो क्या तुमनें मेरा सारा अपमान कराने का निर्णय ले लिया है l
श्री बोली - नहीं बाबा आपका अपमान मेरा अपमान लेकिन प्रेम कोई जाति कोई नाम कोई धर्म कोई राजकुमार, दास, बावर्ची ये सब देखकर नहीं होता है प्रेम तो बस हो जाता है किसी से भी जरूरी नहीं कि हर राजकुमारी राजकुमार के लिए ही बनी हो l
केशवी उसे डाँटती है - चुप रहो श्री लोग बातें बना रहे हैं l
श्री - लेकिन माता इसमे लोगों से क्या लेना देना l
सूर्य शेन तेज आवाज में चिल्लाये - बस करो चुप हो जाओ बहुत ही घमंड है न तुम्हें अपने प्रेम और प्रेमी पर जिसके लिए तुमने मेरा अपमान किया है और उसी प्रेम के लिए मैं तुम्हें श्राप देता हूँ l
उसके ये शब्द सुन सभी डर गए केशवी - नहीं ऐसा मत करिए l
कृशव - नहीं आप श्राप न दीजिए आप बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं आप रुक जाइए आप अपनी ही बेटी को श्राप कैसे दे सकते हैं l
सूर्य शेन उसकी तरफ देखते हैं और बोले - सही कहा तुमने श्राप तो मुझे तुम्हें देना चाहिए तो मैं तुम्हें श्राप देता हूँ अगर तुम श्री के पास आए तो तुम उसी वक़्त पत्थर की मूर्ति बन जाओगे l
ये सुन श्री के सामने कुछ धुंधली तस्वीरें घूमने लगीं और उसे वही आवाज सुनाई दिया - मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम अलग हो जाओगे l
कृशव ने उनके सामने हाथ जोड़ा और मुस्कराते हुए बोला - मैं आपका ये श्राप स्वीकार करता हूँ l
उसके इस बात से सभी अचम्भे में पड़ जाते हैं कि उसे इतना भयानक श्राप मिला है फिर भी वो उसे मुस्कराते हुए स्वीकार कर रहा है l
श्री तो बस उसे देखती ही रहती है कृशव भी उसे मुस्कराते हुए देख रहा था श्री उसे देखते - देखते ही मूर्छित हो जाती है और उसके आँखों में बस जाती है उसका मुस्कराता चेहरा l
.....
कुछ देर बाद...
श्री बिस्तर पर लेटी हुई थी अंधेरा हो चुका था बस एक दिए जल रहे थे और छज्जे से आती चांद की रौशनी उसके कानों में एक आवाज आती है कोई धुन वो उसे सुन कभी अपना सर दाई तरफ कभी बाई तरफ करती तभी अचानक से वो उठकर बैठ जाती है l
श्री खुद से बोली - ये आवाज.. ये तो वही आवाज जब मुझे उस दिन सुनाईं दी थी ये बांसुरी की आवाज कौन है किसको इतनी पीड़ा हो रही है क्या ये आवाज सिर्फ मुझे ही सुनाई देती है l
वो धुन सुनकर वो छज्जे पर आई उसने बाहर देखा सब सुनसान था बाहर कोई नहीं था तभी उसकी नजर दूर एक जंगल की तरफ जाती है जहां से एक पीली रौशनी निकल रही थी l
उसके दिल में बेचैनी हो रही थी वो पीछे मुड़ी और दौड़ने लगी वो दौड़ते हुए नीचे आई और देखा सभी लोग जहां बैठे थे वहीँ सो गए थे दरवाजा खुला था सारे द्वारपाल सो गए बाहर आँधी चल रही थी और बारिश हो रही थी l
लेकिन उन सबका बिना ख्याल करे श्री नंगे पैर उस तरफ जा रही थी जहां से वो धुन आ रही थी वो जैसे ही पहुंचकर उस उस रौशनी की तरफ देखती है तो वो उसके अंदर चली जाती है उसके सामने पीठ किए एक लड़का एक पत्थर पर बैठा था उसके कदम धीमे हो गए l
वो सामने से उसे देखती है तो हैरान हो जाती है और अपने कदम पीछे कर लेती है
Continue...