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tumhari duriyan

'प्रेरणा खुदकुशी करने के लिए प्रयास करती है मगर बच जाती है"। प्रेरणा - एक बेहद ही शांत स्वभाव की लड़की अपनी उच्च शिक्षा के लिए कलकत्ता जाकर पढ़ना चाहती थी । लेकिन उसके माता-पिता उसे मना कर देते हैं और अपने घर के नजदीक ही एक स्कूल में दाखिला करवा देते हैं । वह स्कूल जाती है । जहां उसकी मुलाकात आकाश से होती है । आकाश पढ़ने में तेज लड़का था जिससे प्रेरणा की दोस्ती होती है और यह दोस्ती कुछ ही महीनों में प्यार में बदल जाती है । प्रेरणा अपनी बारहवीं की परीक्षा पास करने के बाद कलकत्ता पढ़ने के लिए चली जाती है और आकाश वहीं की कॉलेज में पढ़ने लगता है । प्रेरणा के कलकत्ता चले आने पर आकाश के मन में अब प्रेरणा के प्रति प्यार कम होने लगता है और वह किसी दूसरी लड़की के साथ एक नये बंधन में जुड़ने लगता है । प्रेरणा अपने और आकाश के बीच प्यार के रिश्ते में खटास देखकर अवसाद में चली जाती है और खुदकुशी करने का प्रयास करती है ।

Ranjanshaw1998 · perkotaan
Peringkat tidak cukup
12 Chs

२.

डी.ए.वी पब्लिक स्कूल सेन्ट्रल कॉलोनी फुसरो में स्थित एक सुप्रसिद्ध स्कूल था । जो फुसरो बाजार के मकुल मोड़ पर था । इस स्कूल में सी.बी.एस.सी के अनुसार पाठ्यक्रम थे । यह बोकारो में डी.ए.वी पब्लिक स्कूल डोरी के नाम से ज्यादा जाना जाता है । अपनी शिक्षा व्यवस्था के लिए विख्यात इस स्कूल की सेकेंडरी शिक्षा के चर्चे पूरे जिले भर में थी। प्रेरणा के पिताजी ने जिस स्कूल की शिक्षा व्यवस्था की तुलना कलकत्ता के स्कूलों से की थी ; वह स्कूल यही डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल ( डोरी ) था । उसी सप्ताह प्रेरणा के पिताजी अपनी बेटी की स्कूल में एडमिशन के लिए स्कूल के अथॉरिटी से बात करने के लिए जाते हैं । ऑफिस के भीतर एक सज्जन व्यक्ति बैठे थे। प्रेरणा के पिताजी दरवाजा खोलते हैं " सर, क्या मैं अंदर आ सकता हूं ? । अंदर से आवाज आई " जी हां आइए ; बोलिए क्या बात है । " सर मैं अपने लड़की को स्कूल में एडमिशन करवाने के लिए आया । आपके स्कूल में अन्य स्कूलों की तुलना में विज्ञान शाखा की पढ़ाई बहुत अच्छी होती है । मेरी बेटी का एडमिशन क्लास 11 वीं के विज्ञान शाखा में करवाना है "। सज्जन व्यक्ति ने एक फॉर्म निकाला और उसे भरकर एडमिशन की फीस के साथ स्कूल में जमा कर देने के लिए बोलते हैं । प्रेरणा के पिताजी फॉर्म भरकर डी.ए.वी में प्रेरणा का एडमिशन करवा देते हैं।

प्रेरणा के पिताजी उसका एडमिशन करवाने के बाद घर आते हैं और इस बात की जानकारी पूरे घर वालों को देते हैं । घर में यह बात सुनते ही सभी लोग खुश हो जाते हैं । लेकिन प्रेरणा खुश नहीं होती है । वह फिर से उदास हो जाती है । उसे बता दिया जाता है की इसी महीने की आखिरी सप्ताह से उसकी क्लासेज शुरू हो जाएंगी ।

देखते ही देखते पता ही नहीं चलता है और महीने की आखिरी सप्ताह की सुबह हो ही गई । सुबह के किरणें खिड़की से झांकते हुए प्रेरणा के चेहरे पर पड़ रही थी । उसका चेहरा धूप की किरणों से खिल उठा था और खिलता भी क्यों न , उसे तो आज स्कूल के पहले ही दिन एक अजनबी से जो मिलना था । जहां से उसकी प्यार की शुरुआत होने वाली थी ।

26 जून का दिन था । मगर गर्मी का दिन होते हुए भी उस दिन गर्मी अधिक नहीं पड़ी थी थी । मौसम साफ और खुशनुमा था । " प्रेरणा.., प्रेरणा...; अब उठ भी जाओ । आज तुम्हारे स्कूल का पहला दिन है ।" उसकी मां भरे प्यार से उसे उठाती है ।" हां.. मां...., मैं उठ गई हूं । अभी स्कूल के लिए ही तैयार हो रही हूं ।" प्रेरणा तैयार होते हुए अपनी मां को बोलती है ।" ठीक है बेटा जल्दी करो थोड़ी देर में स्कूल बस आने वाली है , नहीं तो तुम पहले ही दिन स्कूल के लिए लेट हो जाओगी "। मां के इतना कहते-कहते प्रेरणा अपना स्कूल बैग उठाये अपनी मां के सामने हाजिर हो जाती है । लेकिन इतनी खुशनुमा मौसम में भी उसका चेहरा उदासी के साए में कहीं गुम सा था । उसकी मां उसके लिए खाना निकालती है । वह खाना खाने के बाद स्कूल बस के आने का इंतजार करती है । उसके घर से स्कूल की दूरी तकरीबन 4 किलोमीटर थी ।

हॉर्न बजती है , प्रेरणा बस में चढ़ती है । बस में चढ़ाते ही उसकी उदासी है थोड़ी सी गुम हो जाती है । बस मैं उसकी सेकेंडरी स्कूल वाली दो दोस्त सुमन और सोनल पहले से ही मौजूद रहती हैं । वह दोनों स्कूल बस के सामने की तरफ वाली सीट पर बैठी थी । प्रेरणा अपने पुराने दोस्तों के साथ बातों में लग जाती है ।

बस के नीचे प्रेरणा के पिताजी मोटरसाइकिल पर बैठे-बैठे ही उसको बाय कहते हैं । प्रेरणा के पिताजी के सिर पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती थी । स्कूल का पहला दिन था , तो चिंता तो होनी ही थी । स्कूल के लिए बस खुलती है । बस के खुलते हैं प्रेरणा के पिता भी अपनी में मोटरसाइकिल स्टार्ट करते हैं और बस के साथ-साथ ही चलने लगते हैं ।

15 मिनट के बाद डीएवी पब्लिक स्कूल ( डोरी ) आ जाता है । प्रेरणा बस से उतरती है । हम अपने पिताजी के पास जाती है और उनसे गले मिलती है । उसके पिताजी उसे समझाते हैं " देखो बेटा अब तुम्हें हर रोज इसी तरह बस से स्कूल आना जाना पड़ेगा । स्कूल बहुत अच्छा है, इस स्कूल में भी मन लगाकर पढ़ना " ।"ठीक है पापा" कहकर प्रेरणा डी.ए.वी. स्कूल की मेन गेट से प्रवेश करती है ।