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3. मातम

उधर गाँव की दूसरी तरफ  ,, फैक्ट्री में वर्कर्स परेशान नज़र आ रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे वो कई दिनों से सोये नहीं हैं, उनकी तकलीफ आँखों में साफ़ झलक रही थी.

भट्टी से तपे हुए जिस्म कोयले से नज़र आ रहे थे, जिनमें अगर एक भी चिंगारी छिड़क दी जाए तो पूरा शरीर राख में तब्दील हो जाए.

तभी फैक्ट्री के दूसरे दरवाज़े से कुछ लाशें स्ट्रेचर पर लाई गईं, वर्कर के हांथ कुछ देर के लिए थम गए, फैक्ट्री का शटर जल्दी से बंद कर दिया गया, लाशों को दूसरे कमरे में भरा जाने लगा. एक नौजवान जिसका चेहरा गमछे से ढका था, वो जल्दी काम निपटाने का इशारा कर रहा था.

"अभी और भी बाकी हैं, जल्दी हाथ चलाओ"

स्ट्रेचर पकड़े हुए दो लड़कों ने अपने कदम तेज़ी से बढ़ाने शुरू कर दिए.

तभी एक acid से भरा बड़ा plastic ड्रम ट्रक से unload हुआ, ड्रम को अंदर के कमरे में रखा जाने लगा.

 

फिर एक स्ट्रेचर कमरे से बाहर लाया गया, जिसमें सफ़ेद कपड़ा डाला हुआ था, एक आदमी ने कपड़ा हटाया तो उसमें कुछ इंसानी शरीर के टुकड़े मौजूद थे, कटे हुए हांथ, पैरो की उँगलियाँ और एक सर जिसकी आँखें ज़ख़्मी थी. यह नज़ारा किसी को भी दहला सकता था. उस आदमी ने इन इंसानी टुकड़ों को इस acid ड्रम में डाल दिया, एक उबाल सा ड्रम की सतह पर आ छलका, देखते ही देखते सभी टुकड़े इस ड्रम में समा गए.

उधर गाँव में लोग जो जंगल की तरफ गए थे अभी तक लौट कर नहीं आये थे, उनकी फिक्र परिवार वालों को सताए जा रही थी.

" इतने वक़्त से वो लोग आये नहीं कहीं कोई बात न हो गई हो! " एक  गाँव वाले ने जंगल की ओर देखते हुए कहा.

खतरा तो सबसे बड़ा डायन का ही है. अब उसके दायरे में कोई जाएगा तो मुसीबत ही घर लाएगा।

क्या एक बार हमें देख के आना चाहिए?

तो फिर सभी की लाश ही लौट कर आएगी, पहले वाले तो अभी लौटे नहीं और दूसरी खेप की तैयारी करने चले हो.  

 

ये सुनते ही वहां मौजूद सभी लोगों में ख़ौफ़ फैल गया, डायन से मुकाबला करना किसी के बस में नहीं था, उसके श्राप से पहले ही गाँव में मुसीबतों का अम्बार लगा था, हर एक दिन किसी चुनौती से कम नहीं था. गाँव वालों की नज़र अभी भी दूर जंगल में ही टिकी हुई थी.

उधर फैक्ट्री में कुछ और लाश के टुकड़ों को acid ड्रम में फेंका गया, एक वर्कर इसे देख न पाया, उसे बेचैनी होने लगी. वो इस जगह से तुरंत निकलना चाहता था. ...

उसने मौका पाते ही पहला गेट पार किया तो उसके चेहरे पर ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी,  ।

अब उसे सिर्फ एक और  गेट पार करना था और फिर वो हमेशा के लिए आज़ाद हो जाता , दूसरे गेट का दरवाज़ा ज़रा सा खुला नज़र आ रहा था.

उसे इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता था, उसने तेज़ी से दूसरा गेट पार कर लिआ लेकिन बाहर निकलने का रास्ता अभी तक उसे नहीं मिल पाया, हर तरफ कटीली तारों की आड़ बनी हुई थी, उसने इन्ही तारो से पार पहुँचने का फैसला किया, पर जैसे ही उसने इन तारों को छुआ एक तेज़ करंट की लहर उसके शरीर में दौड़ पड़ी, वो इसी तार पर चिपक कर रह गया. जलने की बू से एक चौकीदार वहां पहुंचा, तब तक वर्कर अपनी आखरी सांस ले चुका था. कुछ और वर्कर भी वहां इकट्ठा हुए, 

यही हश्र एक दिन सभी का होगा। चाहे काम करो या न करो. एक वर्कर ने लाश को देख कर कहा. 

लेकिन कोई तो रास्ता होगा यहाँ से बाहर निकलने का?

रास्ता ढूंढ़ने की कोशिश तो कर रहा था ये, मिला क्या सिर्फ मौत!

तो क्या कभी यहाँ से नहीं निकल पाएंगे!

कोई खुशनसीब हुआ तो निकल जाएगा।

और फिर उस वर्कर की लाश को तारों से निकाला गया, उसकी इस दशा में लाचारी नज़र आ रही थी और बाकी वर्कर्स के चेहरे पर भी. यह घटना देख कर उनके मन में डर बैठ गया और यहाँ से बाहर निकलने का सपना सिर्फ सपना ही बनकर रह गया.

गाँव में हर बीतते लम्हे के साथ उनकी फिक्र बढ़ती जा रही थी, गाँव के वो लोग जो जंगल की तरफ से  गायब हुए लोगो को ढूंढने गए थे उनका कुछ पता नहीं चला था. ...तभी नीरज की पत्नी शान्ति उसे ढूंढने के लिए जंगल की तरफ चल पड़ी 

, कुछ लोगो ने उसे मानाने की कोशिश की लेकिन वो आगे.. बढ़ती चली जा रही थी.

"चाहे मेरी भी जान चली जाए लेकिन मैं यूँ बैठ कर उनका इंतज़ार नहीं कर सकती।"

" वो आ जाएगा, और लोग भी हैं उसके साथ. "  

" और लोग हैं लेकिन खबर तो किसी की भी नहीं आई...."

गाँव की औरतों ने उसे समझने की कोशिश की, लेकिन मन में डर तो उनके भी था.

वहीँ गाँव में कमलेश के बूढ़े माँ बाप अभी तक यही सोच रहे थे की उनका बेटा जल्द घर लौट कर आएगा , लेकिन वो इस बात से बेखबर थे की उनका बेटा अब कभी लौट कर नहीं आ सकेगा।

तभी जंगल में गए लोग हाँफते हुए गाँव में पहुंचे, उन्हे देख कर लोगो को सुकून तो मिला लेकिन कुछ आंखें उन्हे तलाश रही थी जो उनके साथ गए तो थे मगर लौट कर नहीं आये थे.

"दीनू और भीमा नज़र नहीं आ रहे!"

जिस एक सवाल से सभी घबरा रहे थे, आखिर वो पूछ ही लिया गया. सभी के चेहरे उतर आये जैसे उनकी मायूसी में ही जवाब छुपा हो.

बोलिये न आप लोग चुप क्यों हैं! भीमा की पत्नी ने पूछा।

"हम उन्हे नहीं बचा पाए". एक बुजुर्ग ने गाँव वालों से आँख चुरा कर जवाब दिया।

ये सुनते ही गाँव में मातम पसर गया, जैसे किसी तूफ़ान ने गाँव को अपने आग़ोश में ले लिया हो. सभी की आँखों में पानी उतर आया था.

.....