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2. डायन का कहर

दीनू को गाँव वालों के सामने डायन घसीट के ले गई , उसके चीखने की आवाज़  अभी भी उस घने जंगल में गूँज रही थी, और गाँव वाले डरे, सहमे हुए थे. दीनू के घसीटे जाने के निशान अभी भी ताज़ा थे, और सामने ही कमलेश की लाश पड़ी थी जिसके मरने की वज़ह भी यही डायन थी,

 .... इस ख़ौफ़ से सभी के बदन सिहर उठे थे. गाँव वालों की नज़र उसी तरफ बनी हुई थी जहाँ से दीनू डायन के शिकंजे में फंसा था .

तभी एक गाँव वाला घुटनो के बल बैठ गया और भगवान को याद करने लगा, जैसे उसे एहसास हो गया हो की अब डायन से बचना न मुमकिन है.

"हे भगवान मैं ऐसी मौत नहीं मरना चाहता, मैं अपने आँगन में दम तोड़ना चाहता हूँ"।

उसकी एसी बातें सुनकर सभी उसे हौंसला देने लगे.

"हम अपने गाँव ज़रूर पहुंचगे भीमा, धीरज रखो".

तभी भीमा का  ख्याल कमलेश की लाश के ऊपर चक्कर लगा रही  भिनभिनाती मक्खियों पे गया जिनकी तादाद अब दोगुनी हो चुकी थी .... और दीनू कभी लौटकर वापस नहीं आ पायेगा, इस ख्याल से उसकी आँखें बंद हो गईं...

इस जंगल से कोसों दूर एक फैक्ट्री में कुछ लोग काम कर रहे थे, फैक्ट्री लोहे की रोड बनाने की थी. लोहे को काटने की आवाज़ चारो ओर गूँज रही थी. सभी लोग अपना काम कर रहे थे,  तभी एक लम्बे कद काठी के नौजवान ने वर्कर से पूछा

"काम हो गया"? ।

"हाँ". वर्कर ने लोहे की रोड को उठाते हुए कहा.

इस शख्स ने अपने चेहरे पर रुमाल बाँधा हुआ था, वो एक कमरे में दाखिल हुआ जहाँ रौशनी बेहद कम थी, वहीं थोड़ी दूर पर एक और शख्स बैठा हुआ था जिसके हाँथ खून से रंगे हुए थे. ...

....उधर गाँव में हवाएं फिर से  तेज़ होने लगीं और सभी गाँव वालों की धड़कनें भी दोबारा बढ़ने लगी, वो आगे बढ़ते लेकिन हवा इतनी तेज़ थी की उनके पैर डगमगा जाते ।

तभी उनमें से किसीने डर के मारे  बोला "डायन फिर से किसी को अपना शिकार बनाने आ रही है. वो हममें से किसी को अपने घर तक नहीं पहुंचने देगी।  .

इसी बीच एक पेड़ की टहनी तेज़ हवा की वजह से  भीमा  के पैर पर जा गिरी। वह ज़ोर से चिल्ला उठा. और अपने पैर को टहनी से हटाने की नामुमकिन कोशिश करने लगा....

 

मुझे बचाओ, वो डायन मुझे भी खा जायेगी। मेरी मदद करो. भीमा गिड़गिड़ाया।

गाँव के बुजुर्ग भीमा की ओर दौड़े कुछ और लोगों ने भी उनका साथ दिया। भीमा दर्द से कराह रहा था.

बुजुर्ग और देवा, भीमा की मदद के लिए आगे आये. भीमा को डायन का डर सता रहा था... ...

. इस जंगल से निकलना सभी के लिए मुश्किल होता जा रहा था. एक के बाद एक मुसीबत उनके आगे चली आ रही थी. जैसे डायन किसी को अपने दायरे से बाहर न जाने देना चाहती हो.

बुजुर्ग भीमा के पास पहुंचे तभी गाँव का नौजवान लड़का नीरज उनके सामने खड़ा हो गया.

"चाचा जी, हमें गाँव जाने के बारे में सोचना चाहिए, अगर हम टाइम रहते यहाँ से नहीं निकले तो सभी की लाशें इसी जंगल में बिखरी हुई मिलेंगी"।

सभी ने नीरज की तरफ देखा।

मगर हम किसी को भी तकलीफ में नहीं छोड़ सकते। बुजुर्ग ने कहा.

"दो लोगो की मौत पहले ही हो चुकी है, इस वक़्त कोई किसी को नहीं बचा सकता सिवाय खुद के. हम दूसरों को बचाने के लिए जाएंगे तो खुद की जान पर बन आएगी"।

यह तू क्या कह रहा है, तेरा दिमाग तो ठीक है, मुझे इस हालत में छोड़ के जाओगे तुम सब. भीमा ने अपनी पूरी ताकत लगा कर कहा.

वो डायन यही चाहती है की हम यहाँ देर तक रुकें और वो हम सभी को अपना शिकार बना ले "  नीरज  बोला . 

चाचाजी आप इसकी बात पर मत आइए, मेरी हालत तो देखिये।

...नीरज की बात को अनसुना कर के बुजुर्ग ने भीमा के पैर से टहनी हटानी चाही और तभी अचानक एक बाज़ तेज़ी से उड़ता हुआ भीमा की तरफ आया और उसपे  झपट पड़ा  .... और पलक झपकते ही वो बाज़ उसके गाल के मांस का लोथड़ा ले उड़ा....,

भीमा चीखने चिल्लाने लगा, दर्द से उसका बुरा हाल था. वहां मौजूद लोगो ने अपनी आँखें फेर ली. ,,,,उसकी चीख से पूरा जंगल गूँज उठा . फिर कुछ ही दूरी पर पेड़ तेज़ी से हिलने लगे और जहाँ दीनू को डायन ले कर गई थी.उस जगह हवा और भी तेज़ हो गई  गाँव वालो को भी कुछ अनहोनी का एहसास होने लगा, यह उसी तरह का माहौल था जो उन्होने दीनू की मौत के समय महसूस किया था. तभी नीरज के साथ सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए भाग पड़े।

भीमा ने अपना सिर झुका लिया, जैसे अब सारी उम्मीद ख़त्म हो गई हों...

हवा और तेज़ हो गई , धूल  सूखे पत्ते सभी हवा में तैरने लगे. भीमा इन्ही पत्तो और धूल में दफ़्न सा हो गया ...

 

अब सिर्फ उसकी गर्दन दिखाई दे रही थी. आस पास कोई मौजूद नहीं था. तभी अचानक भीमा की ओर दो लम्बे हांथ बढ़ते नज़र आए .... इन हाथों के नाखून किसी खंजर से कम नहीं थे. और अचानक से इन नाखूनों ने भीमा की गर्दन पर गहरे वार कर दिए इसी के साथ भीमा की भयानक चीख से पूरा ज़गल गूंज उठा और खून का तेज़ फहवारा हवा में उछल पड़ा...   

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