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Shairy No 7

अर्ज़ कुछ यूँ किया है ज़रा गौर फरमाइयेगा

चाँद जाने कहाँ खो गया......

चाँद जाने कहाँ खो गया......

सुबह शाम ढूंढ कर परेशान हो गया

भूल गया था रात में दिकते हैं

भूल गया था रात में दिकते हैं

सुबह शाम ढूंढ कर परेशान हो गया