अर्ज़ कुछ यूँ किया हैं जरा गौर फरमाइयेगा
जन्म जन्मान्तर का यह नाता हैं
रिश्ते चाहे जो कोई भी क्यों ना हो
जब हम बने ही एक दूजे के लिए हैं
तो यह दुनिया हमें अलग कैसे करें