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Heartless king

न्यूयोर्क शहर एक उँची ईमारत से, एक शख्स शीशे क़ी खिड़की के पास खड़ा  निचे आते -जाते हुए गाड़ीयों और लोगों को देख रहा होता हैँ..... उतनी ऊंचाई लोग और गड़िया उसे कीड़े माकोड़े क़ी तरह दिख रही होती हैं। वो निचे देखते हुए कुछ सोचे जा रहा था। तभी दो लोग अंदर आते हैँ, चलो हमें निकलना हैँ, काका हुजूर का बार बार फ़ोन आ रहा हैँ .... राजस्थान के लिए.... जैट तैयार हैँ......... वो शख्स, "हम्म्म " कहते हुए फिर से खिड़की क़ी तरफ देखते हुए और कहता हैं........... क्या उसके बारे कुछ मालूम हुआ, कहते हुए उसके आखों में एक दर्द उभर आया। दूसरा शख्स, "तुम आज तक नहीं भूले हो उसे..... सात साल हो गए.... कौन थी, कहाँ से आयी थी, केसी दिखती हैं,अब तक हमें मालूम नहीं हुआ,जैसे उसे जमीन खा गयी या आसमान निगल गया। जिन्दा भी हैं या मर गयी। तभी वो गुस्से में, उसका गला पकड़.... जस्ट शटअप दुबरा ये कहने की हिम्मत मत करना ये कहते हुए उसके आँखो में खून उतर आया। फिर झटके से उसे छोड़ दिया। वो खाँसते हुए अपने गले को सहलाता हैं। तभी वो मुड़ता हैँ और कहता हैँ..... उसकी पहली मुलकात के बाद यही कहूँगा क़ी उसके बगैर दिल कही लगता नहीं ज़ब तक जियूँगा उसे आखिरी सांस तक ढूढ़गा..... आगे महादेव क़ी मर्जी। तभी तीसरा शख्स छोड़ ना तू इसे जानता तो हैँ। तीनों निकल जाते हैं इंडिया के लिए.....

Dhaara_shree · perkotaan
Peringkat tidak cukup
32 Chs

Ch-22

प्रजापति महल

इधर ज़ब लड़के लड़कियों की तरफ रंग लगाने आते है, सभी बड़ो के बिच मे इस तरह से अनजान बन बैठ जाती है की उन्हें कुछ मालूम ही. नहीं। ये देख कर रौनक कहता है, भाई सा!!अनीश भाई ने ठीक कहा था ये सब कोई साजिश कर रही है। दक्ष ज़ब दीक्षा क़ो. घूरता और और पृथ्वी शुभ क़ो तो दोनों अपनी नजर दाए बाएं कर लेती है। जिसे देख पृथ्वी कहता है, तुम ठीक कह रहे हो. छोटे।

दक्ष कहता है, नहीं भाई सा!!इसके अलावा भी ये कुछ सोच रही है। अंकित तू पता लगा कर बता अपनी वाली से !! ये सुनकर अतुल कहता है इसकी वाली कौन है ? दक्ष अंकित क़ो घूरता हुआ कहता है तुम जाओ !! अनीश उसे पकड़ कर कहता है पहले ये बताएगा की इसकी वाली कौन है? दक्ष कहता है, हमारी बहन सौम्या !! क्या!!अतुल उसके माथे पर मारते हुए कहता है, ऐसे क्यों चीख रहा है।

अनीश अंकित क़ो घूर कर कहता है साले मुझे कब बताने वाला था और ये सारी बात इस कमीने दक्ष क़ो कैसे मालूम होती है। अंकित हकलाते हुए कहता है, अनीश भाई !!आप मेरे साले है मै आपका नहीं!!अरे तेरी तो..... बहनोई के बच्चे....!!सभी हँसते हुए उसे पकड़ कर रोक लेते है।

दक्ष कहता है, तो. दिक्कत क्या है तुमने भी तो रीती से बिना बताये शादी की और अंकित अच्छा लड़का है हमारी सोमू के लिए। अनीश कहता है, बात ये नहीं है,!बात ये है की तुझे कमीने कैसे मालूम?

अंकित कहता है दक्ष भाई से कुछ छिपा है आज तक जो अब छिपेगा!!और दक्ष भाई आप सौम्या क़ो मासूम और प्यारी मत समझना वो मुझे कुछ नहीं बताएगी। अनीश उसकी बात सुनकर कहता है तो क्या मेरी बहन बदमाश है !! अतुल. उसकी बात सुनकर कहता है, इसने बदमाश नहीं कहा और ये सच है सौम्या सीक्रेट एजेंट है तो उससे बात निकलवाना भूल. ही जा !!

अरे भाई लोग आप लोग इधर लगे है उधर देखिये क्या हो रहा है। सब उधर देखते है सारी लडकियाँ ठंडाई वाले के पास है और दीक्षा, रानी माँ से कुछ कह रही है।

दक्ष अपनी आँखे छोटी करते हुए कहता है, "हम्म्म्म!!ये लडकियाँ कही भाँग पीने का तरीका तो नहीं निकाल रही है। दक्ष की बातें सुनकर अनीश और रौनक एक साथ जोर से कहते है,"भाँग "!! ये सुनकर शुभम और अतुल दोनों का मुँह दबा देते है। दक्ष उन्दोनो क़ो कहता है, एक तो ये सभी हमें रंग लगा खुद रंग लगवा नहीं रही ऊपर से भाँग भाँग खेल रही है। और तुमलोग बंदरो की तरह चिल्ला रहे हो। दक्ष की बात सुनकर अनीश कहता है तो तू कुछ क्यों नहीं सोच लेता है।

दक्ष कहता है सोच चुका हूँ। सारी परेशानी की कीमत ब्याज के साथ लूँगा। ये सुन सभी की आँखे चमक जाती है। दक्ष कहता है, भाँग उन्हें लगेगा की वो पी रही है, बल्कि भाँग वाली ठंडई हम पियेंगे। शुभम तुम पुल तैयार करवाओ और आकाश - हार्दिक कुछ देर बाद तुम सभी अपनी भाभियों से कहना, की भाई भाँग पी कर पुल मे गिर गए है।

ये सुनकर पृथ्वी कहता है, और जैसे ही वो पुल के करीब आएगी। सबको मालूम है की क्या करना है। ये कहते हुए सभी अपने अपने कामों मे लग जाते है।

दीक्षा ज़ब रानी माँ क़ो मना लेती है तो सभी ठंडाई वालों के पास जाती है। तूलिका कहती है ये है भाँग इसे ठंडाई मे मिला दो। तब तक सुमन जी उनको आवाज़ देती हुई बुलाती है। शुभ अनामिका और अंकिता से कहती है, यहाँ पर नजर रखना।

उनके जाने के बाद, शुभम आकर कहता है आकाश जरा दोनों चिड़िया क़ो पकड़ना रंग लगाएंगे.। अकेली है ये सुनते ही अनामिका और अंकिता भाग जाती है। शुभम के साथ सभी हँसते हुए आते है और कहते है, चलो काका एक एकभाँग वाली ठंडाई देना।

सब जैसे ही बड़ो के बिच मे जाती है। सभी रंग मे रंगे बैठे हुए थे। दीक्षा कहती है, अचानक आप सबको किसने रंग दिया। तभी पीछे से दक्ष के साथ सभी बाल्टी मे रंग घोले हुए सब पर गिराते हुए कहते है, हमने !! इस तरह रंगने से सभी लाल -पीली -हरी -नीली हो जाती है। जिन्हें देख सभी हंसने लगते है। दक्ष, दीक्षा की बाजु पकड़ उसके कानों मे कहता है, " नोट फेयर महरानी सा!! कहते हुए उसके कानों क़ो काट लेता है।

पृथ्वी कहता है, छोटे !! बुरा ना मानो होली है कहते हुए शुभ क़ो गोद मे उठा लेता है और उसके देखा देखी सभी अपनी वाली क़ो गोद मे उठा लेते है।

सुमन और निशा के साथ सभी हँस रही होती है, तुलसी जी कहती है लो मेरे छोटकन क़ो कोई नहीं मिली। हार्दिक मुँह बनाते हुए कहता है, " चाहिए नहीं दादी माँ और तेजी से भाइयों के पीछे भाग जाता है। राजेंद्र जी कहते है, रानी सा हम सब अंदर चलते है कल की रात से जाग रहे है और अब बच्चों की होली मे हमारा यहाँ क्या काम। लक्ष्य कहता है, चलिए बाबा सा!!वैसे भी हम सबको तो सबने रंग ही डाला है।

सबको ले कर पुल मे सभी कूद जाते है और हार्दिक कहता है, गाना बजाओ। शुभ, पृथ्वी क़ो खुद के करीब आते देख कहती है, हुकुम सा यहाँ सभी है !!लेकिन पृथ्वी कहता है, रानी सा ये तो हम सब से पंगा लेने से पहले सोचना था।

रौनक कनक क़ो बाहों मे लिए उसके कंधे पर हल्का काट लेता है। कनक कहती है, कुंवर जी यहाँ हमसे बड़े भी है मत कीजिये ऐसे। अरे ऐसे कैसे कनक !! आपने हमसे रंग नहीं लगवाया तो. उसकी सजा तो मिलनी है।

तूलिका कहती है, देखो अतुल रंग नहीं लगवाया लेकिन अब तो हम सबको तुम सभी ने रंग डाला है। अतुल उसकी खुली पेट पर अपने हाथों क़ो फेरते हुए कहता है, सजा तो सजा है स्वीटहार्ट।

वकील साहब आपको चढ़ गयी है क्या छोड़िये हमारा आँचल। ऐसे कैसे वकील साहिबा। अब तो इस आँचल मे हम छिपेगें कहते हुए उसके आँचल मे अपना सर घुसा लेता है।

अंकित तो बस सौम्या क़ो खुद से अलग नहीं कर रहा था। शुभम अंकिता क़ो पानी मे गोद मे लिए घुमाये जा रहा था। अनामिका, झुमकी,आकाश और हार्दिक पानी मे सब क़ो रंग भरी पानी भेंक रहे थे और डांस कर रहे थे।

दीक्षा क़ो गर्दन पर दक्ष के होंठ चल रहे थे। तभी उसकी नजर शुभ पर पड़ी। सभी शर्मिंदा होकर नजर झुका लेती है की तभी तूलिका कहती है, अरे इन लोगों ने भाँग चढ़ा रखी है हमारे हिस्से की इसलिये पागल हो रहे है।

ये सुनकर सभी लडकियाँ उन सब से खुद अलग होकर एक तरफ पुल मे होती है, तो दक्ष के साथ सभी. उनको घेर लेते है। दीक्षा आँख दिखाती हुई कहती है, "दक्ष आप सभी ने भाँग पी है "!!दक्ष कहता है क्यों आप सब पीने वाली थी तो हमने सोचा क्यों. ना हम ही पत्नी धर्म निभा ले।"

सभी अपनी हाथों क़ो बांध कर कहती है, अच्छा जी !! कहती हुई पीछे से अनामिका सबके हाथों. मे पानी भरे हुए गुब्बारे और पिचकारी देती है। शुभ कहती है चलो जरा हम भी पति धर्म निभाए कहती हुई गुब्बारा और पिचकारी से सभी पर पानी मे रंग डालना और भेंकना शुरू कर देती है।

वो लोग खुद क़ो बचाने के लिए पीछे जाते है तो अंकित और शुभम कहते है, लानत है हम पर !! कुछ भी किया लेकिन ये सब नारी हम पर भाड़ी पर गयी। सभी हँसी ठिठोली करती हुई पुल मे ही होली खेल रही होती है।

दक्ष तेजी से दीक्षा क़ो अपनी तरफ खींचता हुआ सीधे उसके होठों पर अपने होठों क़ो रख देता है। ये देख दीक्षा की आँखे बड़ी हो जाती है। सभी मुँह घुमाते है की पृथ्वी शुभ के होठों क़ो चूमने लगता है।और फिर धीरे धीरे सभी अपनी अपनी पार्टनर क़ो लेकर पीछे के दरवाजा से कमरे मे चले जाते है। दक्ष उतने समय मे एक पल के लिए भी दीक्षा क़ो नहीं छोड़ता है और सीधे दोनों बाथरूम मे चले जाते है।

पृथ्वी क़ो शुभ सीने पर मारती है तो. वो उसे छोड़ कर अकेले चला जाता है। शुभ उसे नाराज देख पीछे भागती है।

तूलिका खुद अतुल के होठों क़ो चूमती है तो अतुल अपने होठों क़ो उसके होठों से हटा कर उसके चेहरे क़ो गर्दन मे छिपा लेता है।

रितिका अनीश की बाहों मे खुद क़ो समेटे हुए उसके साथ जा रही थी और कनक भी रौनक की बाहों मे खुद क़ो समेटे हुए जा रही थी।

शुभम और अंकिता एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए जाते है और अंकित सौम्या क़ो अपनी बाहों मे लेकर जाता है।

हार्दिक और झुमकी पहले ही निकल जाते है। अनामिका ज़ब जा रही होती है तो. आकाश उसे पीछे से बाहों मे भरते हुए कहता है, कल तुमने एक हक लिया था तो आज मुझे भी एक हक चाहिए। अनामिका ना समझी मे उसकी तरफ देखती. हुई कहती है, मै कुछ समझी नहीं। आकाश कहता है, मै समझा देता हूँ, "कहते हुए उसके होठों पर अपने होठों क़ो काबिज कर देता है।

पीछे से आवाज़ आती है, डैड मॉम!!!

दक्षांश का प्रजापति महल आना नए सफर की शुरुआत है या पुरानी रंजीशों का अंत!!!!

प्रजापति महल

होली खेलने के बाद सभी बच्चे अपने अपने कमरे मे होते है और सभी बड़े हॉल मे बैठे होते है।तुलसी जी कहती है, आज महरानी बिंदनी ने हमसे भाँग की इज्जाजत लीं लेकिन उन सब के हिस्से मे भाँग नहीं आयी बल्कि हमारे पोतों ने बाजी मार लीं। ये सुनकर सुमन और निशा जी कहती है, वो भाई माँ सा!! हमारे आगे मिन्नतें करवा कर। कैसे दक्ष और पृथ्वी आ कर हमें अपनी कसम दी की सभी क़ो बुला लाये क्योंकि उन्हें मालूम था की हम उनकी बातें कभी नहीं मानेंगे इसलिये दोनों ने अपनी कसम दे दी।

लक्ष्य कहता है, वैसे कुछ कहियेगा बड़े बाबा !! बिन्दनियों के आने के बाद तो हमारे महल की दीवारे भी बोलने लगी है। हाँ ये तो आप ठीक कह रहे है, लक्ष्य।

मॉम डैडा!! मै आ गया !!

बच्चे की हॉल मे ये आवाज़ सुनते ही सभी पीछे मुड़ जाते है। दक्षाशं, वीर के साथ खड़े सबको देख रहा होता है। राजेंद्र जी और तुलसी जी के आलवा सबको मालूम था की दक्ष और दीक्षा का एक सात साल का बच्चा है, लेकिन किसी ने नहीं देखा था।

राजेंद्र जी बच्चे क़ो देख काँपते हुए अपनी छड़ी उठा कर खड़े होने लगते है तो एक तरफ लक्ष्य और दूसरी तरफ से मुकुल उन्हें थाम लेते है। राजेंद्र जी के साथ तुलसी जी भी नम आखों बच्चे क़ो देखती है। रानी सा!!ये हमारा दक्ष है !! तुलसी जी उनके साथ उस बच्चे की तरफ बढ़ती है की अचानक वो लड़खराने लगती है, जिसे दक्षांश दौड़ कर उनको पकड़ते हुए कहता है, " आप ठीक तो है बड़ी दादी माँ !! ये सुनकर तुलसी भावुक होकर कहती है, हाँ मेरे बच्चे हम ठीक है !!आपने जो हमें संभाल लिया।दक्षांश की बातें सुनकर, तुलसी जी  उसके  चेहरे को अपने हाथों में पकड़कर माथे को चूमते हुए कहती है, "आपने तो हमें गिरने से बचा लिया हमारे छोटे दक्ष।

राजेंद्र जी लक्ष्य और मुकुल जी क़ो घूरते हुए कहते है, अगर आप दोनों ने हमें पकड़ा नहीं होता तो. हमें भी हमारे छोटे दक्ष ने संभाल लिया होता है। दक्षांश उनकी बातें सुनकर, उनके पास आकर कहता है, छोटे दक्ष नहीं बड़े दादू, "दक्षाशं प्रजापति नाम है हमारा !!"

राजेंद्र जी कहते हैं," हमसे नहीं मिलेंगे दक्षांश प्रजापति । वह मुस्कुरा के उन दोनों के पैर छूता है बारी-बारी सब के पैर छूते हुए कहता है हम सब को जानते हैं। राजेंद्र जी वीर की तरफ देखते हैं तो फिर कहता है यह सारी बातें आपको दक्ष भाई सा बताएंगें । राजेंद्र जी कहते हैं पहले हम अच्छे से अपने पर पोते से मिलकर बातें करेंगे फिर दक्ष को नीचे बुलाइएगें । यह सुनकर दक्षांश कहता है, " तो क्या बड़े दादू जी!!  आप डैड को डांटेगे। राजेंद्र जी उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहते हैं नहीं बच्चे हम आपके डैड को नहीं डाटेंगे, हम बस उनसे बात करेंगे।

लक्ष्य कहता है तो हमारे पोते तो बड़े दादू और बड़े दादी से मिल लिए। अब हमसे नहीं मिलेंगे। यब सुनकर दक्षांश कहता है, ये बड़े दादू हुए तो मैं आपको क्या बुलाऊ !! यह सुनकर लक्ष्य के साथ साथ मुकुल जी कहते है, आप जो चाहे हमें बुला ले। ठीक है, फिर दक्षाशं सामने खड़े होके राजेंद्र जी और तुलसी जी दोनों का हाथ पकड़ कहते है, "आज से आप दोनों राजा दादू और रानी दादी माँ!!

फिर लक्ष्य और सुमन जी का हाथ पकड़ कर कहता है आप दोनों दादा -दादी की तरह नहीं लगते है इसलिए आप मेरे बडी दादू और ये मेरी सोन परी !! ये सुनकर दोनों की आँखे आंसूओ से डबडबा जाती है। जिसे देख दक्षांश कहता है, क्या आपको हमारा दिया हुए नाम पसंद नहीं आये। दोनों उससे लिपट कर कहते है, आप तो हमारे घर का वो सूरज है जिसकी चमक से हमारा वंश और परिवार हमेशा आगे बढेगा।

फिर दक्षांश निशा जी और मुकुल जी के पास आता है और कहता है, आपने तो हमारी मम्मा, मासी क़ो बेटी बनाया तो आप हमारे हुए बड़े नानू और बड़ी नानी माँ। फिर सुकन्या और चेतन्य जी के पास आते हुए कहता है और आप हुए हमारे कैंडी नानू क्योंकि आपको देख हमें कैंडी का ख्याल आता है और आप हुई हमारी मीठी नानी माँ क्योंकि आप हमें मीठी लगती है।

उसकी बातें सुनकर सभी हंसने लगते है। फिर दक्षांश अनंत जी और अर्चना जी के पास आते है। दोनों आश्चर्य से उसे देखते और सबको उत्सुकता होती है की अब क्या करने वाला है दक्षाशं !! आप हमारी सबसे छोटी माँ की मॉम डैड है तो आप हमारे हुए छोटे नानू और छोटी नानी माँ।

ये सुनकर पहली बार वो दोनों पति -पत्नी उसे अपनी सीने से लगा कर कहते है,"हाँ!!हाँ!! हम आपके छोटे नानी -नानू है और हमें आपसे ढ़ेर सारा प्यार करेंगे।

इतने दिन मे पहली बार सब उन्दोनो पति पत्नी क़ो बोलते और अपनी भावना क़ो दिखाते हुए देख रहे होते है। जल्दी से सुकना और सुमन जी अर्चना जी क़ो और चैतन्य जी अनंत जी क़ो संभालते हुए कहते है,"हमें भरोसा नहीं था की आप सब कभी उस सदमे से बाहर आएंगे।

निशा कहती है ये सब हमारे पोते का चमत्कार है।

राजेंद्र जी दक्षांश क़ो गले से लगाते हुए कहते हैं, " आज हमारी छाती को  सुकून मिल गया रानी का।"सभी एक-एक करके उससे प्यार करते हैं और फिर राजेंद्र जी कहते है, " आपको हमारे बारे में कैसे पता चला !!" दक्षाशं कहता है, " राजा दादू!! डैड ने सबके बारे में मुझे बता रखा है और रोज मुझे वीर चाचू सबको दिखाते रहते थे। तब तक शुभम के साथ साथ सभी बच्चे  बाहर आ जाते हैं।सामने छोटे बच्चे क़ो देख सभी समझ जाते है की दक्षाशं आ गया है। अंकित दक्ष क़ो पुकारता, तब तक दक्ष -दीक्षा, पृथ्वी -शुभ सभी अपनी अपनी जोड़े के साथ निचे आने लगते है।

दीक्षा और दक्ष जब सीढ़ियों से आते हैं। तो दक्षाशं निचे सब के बीच से निकल कर चिल्लाते हुए सीढ़ियों की तरफ भागता हुआ कहता हैं, "  मॉम डैड " । दीक्षा अपने बच्चे क़ो देख सीढ़ियों से तेजी से उतरने लगती है, लेकिन तभी उसकी साड़ी फंस जाती है, उसे लड़खराते देख... निचे से दक्षांश.... मॉम.... ऊपर से दक्ष के साथ सभी... कहते है.... दीक्षा!!

तब तक दक्ष उसे संभाल लेता है और सीधे अपने गोद में उठा लेता कहता संभल के रानी सा गिर ना जाए।दक्ष निचे उतारीये सभी यही है। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता स्वीट्स !! और अब आप चुप रहिये। निचे खड़ा दक्षाशं ज़ब ऊपर आने लगता है तो दक्ष उसे शांत होकर इशारे से वहीं रुकने कहता है।

दक्षांश वही सीढ़ियों के नीचे अपने मां-बाप के आने का इंतजार करता है। सभी बाप बेटे की आपसी समझ देख मुस्कुरा देते है। राजेंद्र जी कहते है, लक्ष्य!!लगता है हमारा पर पोता दक्ष से भी दस कदम आगे है। आप सही कह रहे है बड़े बाबा सा!!

दक्ष पीछे पृथ्वी  सभी क़ो आते हैं, दक्षाशं सब को देखते हुए कहता ख़ुशी से कहता है, " चाचू - मासी, बड़े पापा बड़ी मां। छोटे पापा -छोटी माँ। यह सुनकर रौनक और पृथ्वी धीरे से दक्ष से कहते है, " हमारे शेर को सब कुछ बता दिया है। दक्ष कहता है  उसे वीर ने सबके बारे में बता रखा है। जब सभी नीचे आते हैं दीक्षा, दक्ष की गोद से निकल कर अपने बच्चे के पूरे चेहरे को चूमने लगती है।

दक्षांश से ज़ब दीक्षा बहुत सारा प्यार कर रही थी। तब दक्षांश कहता है, मॉम अब और कितनी किशी करोगे!!मैं बड़ा हो गया हूँ। ये सुनते ही दीक्षा का मुँह बन जाता है और दक्ष के साथ सभी मुस्कुरा देते है। दीक्षा कहती है मेरी किशी से तुम्हे दिक्क़त है दक्षु !! नो मॉम !! आपको देखते ही दोनों मासी भी मुझ पड़ टूट पड़ेगी!!कौन ज्यादा? कौन ज्यादा करते हुए मेरे पुरे चेहरे क़ो गिला कर देगी। ये सुनते ही रितिका और तूलिका आकर कहती है अच्छा बच्चू !! लो फिर !! दोनों उसे चूमने लगती है। दक्षाशं कहता है, डैड!!चाचू बचाओ मुझे !! देखो क्या कर रही है !!

दक्ष कुछ कहता है उससे पहले अतुल और अनीश उसे गोद मे उठाते हुए कहते है, "अरे बस करो !! हमें सबको भी मिलना। अभी तो कनक और शुभ भाभी और इसकी बुआ सब बाक़ी है। ये सुनकर सभी हँस देते है। फिर दक्षांश पृथ्वी क़ो देखते हुए कहता है, बड़े पापा!!बचा लो मुझे। क्यों बचा लो !! अतुल कहता है क्या हमें भूल गए!! हमसे नहीं मिलना!!चाचू आपसब से मिल चुका हूँ अब जिनसे नहीं मिला हूँ, उनसे मिलना तो मेरा फर्ज है ना !!

पृथ्वी उसकी बातें सुनकर,उसे गोद में उठाते हुए कहते आपको पता है कि हम आपके बड़े पापा हैं और इतनी बड़ी बड़ी बातें आपने  कहाँ से सीखी !! तभी वो कहता है, हाँ हमें पता है आप बड़े पापा है और शुभ की तरफ देख, और ये बड़ी माँ है।

रौनक और कनक क़ो देख कहता है, और ये छोटे पापा और छोटी माँ है।कनक और शुभ उसकी बलाईया उतारती हुई कहती है, नजर ना लगे हमारे राज कुमार क़ो। रौनक कहता है, मेरा शेर बेटा कहते हुए उसके माथे क़ो चूम लेता है।

तभी हार्दिक और अनामिका के साथ सब आकर कहते है और हम कौन है !!!  पृथ्वी के गोद से ही दक्षाशं कहता है,"आप मेरी क्यूटी पाई हो अनी बुआ । आप मेरे डूड हो हार्दिक चाचू। आप मेरी बटरफ्लाई हो सौम्या बुआ और आप मेरी परी हो अंकिता बुआ। आप तीनों मेरे पार्टनर हो काकु क्योंकि मैं बदमाशी करुँगा तो मुझे बचाएंगे आप सब तो, इसलिये आप सब मेरे अच्छे वाले कैंडी हो। उसकी बातें सुनकर सभी जोर से हंसने लगते है।

तभी हार्दिक पृथ्वी से उसे गोद मे ले लेता है। तभी शुभ और कनक कहती है अरे हमें तो मिलने दो राजकुमार से, तभी शुभम कहता है,नहीं भाभी मां!! अब आप आराम कीजिए!!  बच्चा हमारा हुआ और हम हमारे बच्चे के हैं।सभी लेकर ज़ब उसे जाने लगते है तो. दीक्षा की आँखे नंबर हो जाती है। जिसे देख दक्ष कहता है, "क्या हुआ महरानी सा!! कुछ नहीं दक्ष !! दक्षु के लिए इतनी मोहब्बत देख हमारा दिल भर आया। घर के सभी छोटे दक्षाशं क़ो लेकर चले जाते है। अब दक्ष सभी भाई और घर के बड़े होते है।

इसके साथ दक्ष अपने दादा दादी को देखता है। उनकी आंखों में सवाल देख दक्ष कहता है मैं जानता हूं आप लोगों के मन में बहुत सवाल है । यकीन मानिए मुझे भी यह बात पता नहीं थी । राजेंद्र जी उसके उसके  गले लगाते हुए कहते हैं चाहे जो बात थी आपको पता हो या ना हो लेकिन आज हम बहुत खुश हैं।तुलसी जी और राजेंद्र जी दीक्षा के पास आकर उसके माथे पड़ स्नेह का आशीर्वाद देते हुए कहते है,"धन्य है आपके माता पिता जिन्होंने आप जैसी संतान क़ो जन्म दिया। अगर आप चाहती तो खुद की जिंदगी बचाने के लिए बच्चे क़ो हटा सकती थी। लेकिन आपने उसे जन्म दिया और बिना किसी उम्मीद के उसे अपने दम पड़ पाला और आपकी दोनों अनमोल सहेलिया जिन्होंने हर कदम पड़ बिना किसी शर्त और उम्मीद के आपके साथ  खड़ी रही। जहाँ अपने साथ छोड़ देते है, वहाँ आप तीनों दोस्ती की मिसाल है, देवी माँ आप तीनों की दोस्ती बनाये रखे। हमारे घर का वंश देने और उसे संभालने के लिए आपका जितना आभार करे कम है।"

नहीं दादी माँ!! ऐसा मत कहिये। ये तो मेरा सौभाग्य है की जहाँ लोग सालों साथ रहने पड़ भी अपनी पत्नी के प्रति ईमानदार नहीं रह पाते। वहाँ मुझे बिना जाने, बिना देखें पूरी ईमानदारी से दक्ष ने पूरी सिद्द्त से मेरा इंतजार किया और चाहा। तो ताली एक हाथ से नहीं बजती दादी माँ !! दोनों हाथों से बजती है। मैंने निभाया तो इन्होंने उसे जिया।

सुमन और लक्ष्य कहते है, " एक तरह से ये होनी थी और देवी माँ की यही मर्जी थी।वैसे भी बच्चा दूर था इसीलिए हमारा वंश जिंदा था। सर हिलाती हुई तुलसी जी कहती है, " आपने ठीक कहा लक्ष्य।

  तुलसी जी दीक्षा माथे पर हाथ फेरती है और अपने हाथों की हीरे के करे उतार के उसके हाथों में डालती हुई कहती है, " हमारे घर की वंश को बढ़ाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद तुम्हारा। हमें यह नहीं पता हमारे पर पोते को क्या अच्छा लगता है तो तुम यह बताओ आज हम अपने परपोते के लिए खाना खुद बनाएंगे? घर में खुशियों का माहौल देख। राजेंद्र जी कहते हैं कि भाई लक्ष्य अब हमारी उम्र थोड़ी ज्यादा बढ़ गई अब लगता है हम 200 साल जिएंगे सब उनकी बातें सुनकर हंस देते हैं।

राठौर हवेली

भुजंग गुस्से मे अपने हाथों क़ो मल रहा होता है। वहाँ दुखी और मायुस जयचंद का परिवार,ओमकार,दाता हुकुम, विराज, रंजीत, कामिनी, लक्षिता और शमशेर बैठे होते है।

लक्षिता कटाक्ष करती हुई भुजंग से कहती है, "क्या बात है मामा सा!! बात हजम नहीं हो रही की एक हजार धुरंधर हमलावरो के बिच उनको खरोच तक नहीं आयी।"

कामिनी गुस्से मे कहती है, लक्षिता चुप हो जाओ!! तभी भुजंग कहता है, बोलने दो उसे बहना!! बात उसकी कटाक्ष सही लेकिन है बिल्कुल खड़ी खड़ी!! दाद तो हम भी दे रहे है प्रजापति की इन नई बिन्दनियों की ! बिना हथियार के क्या लड़ाई लड़ी है इन्होंने। ये सब तो उस दक्ष की माँ पार्वती से भी ज्यादा तेज है।

तभी दाता हुकुम कहता है, अरे नहीं भुजंग सा!! सबसे ज्यादा चोखी और तीखी दक्ष की बिंदनी है। हम्म्म्म अब तो लगता है मुलकात करणो परोगो!!

उसकी बातें सुनकर शमशेर कहता है, उसे देख कर पार्वती क़ो भूल जाओगे दाता हुकुम...!! बात क़ो काटती हुई लक्षिता कहती है, अगर दक्ष शेर है तो वो शेरनी से कम नहीं है। उसे देखना था आप सब क़ो शादी के दिन लगता था उसने जन्म. ही. लिया है आप सब का संघार करने। लक्षिता चीखती हुई कामनी कहती है। चिखिये मत माँ सा!! आप देखी ही बड़ी माँ के तेवर सिर्फ उसके आने भर से बड़ी माँ सा के तेवर जवानी से ज्यादा खतरनाक हो गए। आप का मुझ पर चिल्लाने से ये बात झूठ नहीं हो जाएगी।

इस बार आपका सामना वाकई महल के नहीं जंगल के शेर और शेरनी से हो रखी है। ये जो अपने बेटे का मातम. मनाने बैठी है और साथ मे इन्हें दक्ष का सर चाहिये। स्नेहलता और उसके परिवार क़ो देख कहती है, कही ऐसा ना हो स्नेहलता की दक्ष का सर लाने के चककर मे तुम्हारी पुरे खानदान का सर ही ना रहे।

मानती हूँ आप सभी क़ो मेरी बातें अच्छी नहीं. लग रही. होगी लेकिन सच करवा होता है। विराज कहता है, तो. ठीक है ना जीजी ये करवा सच चख कर देख ही लेगे की कितना करवा है। इसकी करवाहट जान लेकर जाएगी या सिर्फ जुबान तक. ही बेसवाद है।

लक्षिता कहती है, भाई मेरे!! ज़ब खूबसूरती की परत आखों मे होती है तो लोग पागल हो जाते है। अपनी स्वाद का दायरा बढ़ाने से पहले अपने पूजनीय बाबा सा से पूछ लो की इन्होंने बड़ी भाभी और छोटी भाभी के साथ क्या किया था और क्यों भाग गए थे। जिस दिन इनकी करनी बाहर आयी ना !! तो अब तक तो हमले का जबाब ही वो सब दे रहे है। उसके बाद तो नामोनिशान ज़ब तक मिटा नहीं देंगे तब तक वो चैन से बैठेंगे नहीं। और आप मामा जी जरूरी नहीं की इस बार हर्षित भाई या पार्वती भाभी हो, या हिमांशु और हिमानी हो।

इस बार दक्ष के साथ उसकी रानी दीक्षा है। एक पल दक्ष थोड़ा विचार करने भी लगे लेकिन उसकी पत्नी के हाथों मे हथियार आने का मतलब है की वो तब तक. शांत नहीं होती ज़ब तक एक एक क़ो वो मार ना दे।

भुजंग कहता है, वही तो मै सोच रहा हूँ की एक मामूली राय परिवार की लड़की मे क्षत्राणी वाली गुण कहाँ से आये है। इसका तो ऐसा कोई अतीत नहीं है।

लक्षिता कहती है, "आप भूल रहे है, इसकी माँ एक राजसि परिवार से थी आरधना प्रताप माधवगढ़ रियासत की राजकुमारी। याद तो होगा ही आपको। आप उससे शादी करना चाहते थे और क्या हालत की थी. आपकी। एक बात और दीक्षा की माँ पार्वती भाभी की बहुत अच्छी दोस्त थी। आप शुक्रिया कीजिये की दीक्षा क़ो उसकी माँ की जन्मभूमि नहीं मालूम है और माधवगढ़ वालों क़ो मालूम नहीं है की जिनकी तलाश वो कर रहे है इतने सालों से वो राजस्थान की रानी है।

लक्षिता की बात सुनकर सबकी आँखे बड़ी हो गयी।

लक्षिता की बातों ने वहाँ मौजूद हर शख्स क़ो हिला कर रख दिया था। रंजीत जी कहते है, ये सारी बातें तुम्हें कैसे मालूम है लक्षिता। बाबा सा !! क्योंकि मेरे साथ साथ माधवगढ़ की राजकुमारी, सुमन भाभी और पार्वती भाभी हमें सब एक साथ ही कॉलेज मे पढ़ते थे। मैंने ज़ब दीक्षा की जानकारी निकलवाई और उसकी माँ -बाप की तस्वीर देखी तभी मुझे ये मालूम चला।

अभी तों बात आप सब मजे मजे मे ले रहे है, बदला लेकर रहेगें उन्हें मारकर रहेंगे। अभी तों दीक्षा क़ो ये नहीं मालूम है की जिसे वो भूली बैठी है वो खराना उसे कब से ढूढ़ रहा है। जिस दिन माधवगढ़ के राजा सयंम प्रताप क़ो मालूम हो गया की राजस्थान की रानी सा उसकी बुआ की बेटी है दीक्षा है। आप सबको अंदाजा भी नहीं क्या होगा। मैं फिर आप सभी क़ो हिदायत दे रही हूँ सम्भल जाईये।

इस बार आपकी बराबरी का छोड़िये, आपसे कही ताकतरवर है वो सब। जीजी !! आप होश मे नहीं है, विराज अपनी कठोर आवाज़ मे लक्षिता क़ो आगे बोलने से रोक देता है।

लक्षिता कटाक्ष मुस्कान के साथ कहती है, छोटे भाई!!बहुत छोटे हो तुम. तों तुम्हें तों याद भी नहीं होगा की जवानी मे मामा क्या थे। तुम उनके एक इंची भर नहीं हो। मैंने देखा है मामा की ताकत इसलिये मैं इन्हें कह रही हूँ तुम्हें नहीं। क्योंकि मामा जी क़ो मालूम है मुझे बातें हवा मे करने की आदत नहीं छोटे। इसलिये अगर इतनी ही गर्मी है तों लड़ो। मेरा काम था समझाना वो समझा दिया।

लक्षिता जाते जाते अपने माँ बाप से कहती है, मैं तों मजबूर थी क्योंकि मुझे मालूम बाद मे चला। तब लावण्या मेरे पेट मे थी । इसलिये चुप रही और मरते दम तक चुप रहुँगी लेकिन आप सभी क़ो इतना जरूर कहूँगी। जो उस समय हुआ उसके लिए ना मैंने आप दोनों क़ो, ना आपके भाई क़ो और ना आपके दामाद क़ो माफ किया है। और ये बात भी मत समझिये की वो सच कभी सामने आएगा नहीं।

ज़ब तक दीक्षा अपने माधवगढ़ वाले परिचय से अनजान है तब तक ही क्योंकि याद तों होगा की उसके माँ बाप क्यों. मरे थे।

लक्षिता की बातें सबके दिमाग़ की नशे फाड़ रही थी कोई कुछ नहीं बोल रहा था। लेकिन विराज और एकेश्वर गुस्से मे कहता है, "आप अच्छी बात नहीं कर सकती तों कम से कम कायरो की तरह हमें भी भागने क़ो मत कहिये,.। ऐसा क्या हो गया था जो आप ऐसी बातें कर रही है !!!

लक्षिता कहती है ये तुम अपने बाबा से पूछना !! फिर एकेश्वर और जयचंद के परिवार क़ो देख कर कहती है,"आखिरी मौका है अपनी अपनी दुनिया मे लौट जाओ। नहीं तों तुम्हारा नाम. लेने वाला भी कोई नहीं होगा।"

अपने पति की तरफ देख कर कहती है, आप पीछे हटे या नहीं हटे जिस दिन सच बाहर आया। उस दिन आपकी मौत निश्चित है इसलिये आपकी मर्जी की आप क्या करते है और क्या नहीं।

और हाँ!!आप सब अब भी यही बैठेंगे या चलेंगे प्रजापति महल। उतनी देर से लक्षिता की बातें भुजंग और दाता हुकुम सुन रहे थे कोई कुछ उसे कहता नहीं है।

विराज कहता है, चलिए बुआ सा हम आपको छोड़ कर आते है। भुजंग कोई जबाब नहीं देता है। विराज के साथ लक्षिता, कामनी और रंजीत जी चले जाते है।

लक्षिता अपने पीछे एक सन्नाटा छोड़ जाती है।

प्रजापति महल

सभी दक्षांश के साथ खुश थे। राजेंद्र जी और तुलसी तों बस उसके आगे पीछे बच्चों की तरह भाग रहे थे। तभी लक्ष्य जी कहते है, "बड़े बाबा  सा !! आप यहाँ आईये "!! नहीं हम नहीं आएंगे। ये सुनकर सभी मुस्कुरा देते है।

दक्षांश कहता है, राजा दादू!! आप बैठ जाईये आप तक गए होंगे। हाँ !! हमारा राजकुमार ठीक कह रहा है !! राजा साहब आप बैठ जाईये। रानी दादी माँ !! आप भी बैठिये। तभी हँसते हुए राजेंद्र जी कहते है, क्यों आप थक गए है क्या छोटे शेर !! बिल्कुल नहीं दादू !! तों चलिए हमारे साथ एक दौड़ हो जाये।

ये सुनकर दक्ष और पृथ्वी एक साथ कहते है, दादू आप क्यादक्षाशं के साथ रेस लगाने पर है। बैठ जाईये, तबियत खराब हो जाएगी।

खामोश !! क्या आप दोनों भाइयों क़ो जलन हो रही है की हम हमारे छोटे शेर के साथ रेस लगा रहे है। पृथ्वी कहता नहीं, आप  दौड़ पूरी कीजिये। फिर धीरे से, दक्ष कहता है, बुढ़ापे मे हड्डी टूटी तब मालूम होगा की हम जल रहे है इनसे या क्या कर रहे है।

राजेंद्र जी कहते है, हमें सुन रहे है बरखुरदार!! आपने जो अभी अभी फरमाया है लेकिन आप फ़िक्र ना कर,"हमारी हड्डीयाँ बहुत मजबूत है, टूटेगी नहीं। चलिए साहबजादे !! चलिए दादू !! दोनों उस बड़े से हाल मे दौड़ लगा रहे होते है।"

तभी दक्षाशं किसी से टकरा गया। गिरने से पहले उसे हार्दिक ने उठा लिया था। दक्षांश रंजीत से ठकराया था। घर मे इतने छोटे बच्चे क़ो देख उनतीनों की आँखे फेल गयी। कामिनी कहती है ये किसका बच्चा है।

कोई जबाब देता उससे पहले दक्षांश कहता है, "नमस्ते !! हम है दक्षांश दक्ष प्रजापति "!! ये सुनकर उन तीनों के साथ । बाहर से बाहर जा रहे विराज के कान खड़े हो जाते है "!! लेकिन वो अंदर नहीं जा सकता था इसलिये वहाँ से चला गया।

अंदर मे रंजीत के साथ साथ लक्षिता और कामिनी के होश उड़ गए। रंजीत भागते हुए, राजेंद्र जी के पास आता है और कहता है, ये क्या है भाई सा !! राजेंद्र जी से पहले फिर दक्षांश हैरान परेशान तीनों क़ो देख कर कहता है,"क्या बात है काका दादू सा !! आप इस तरह परेशान क्यों हो गए। आपने हमारे नमस्ते का जबाब नही दिया और आप तीनों क़ो देख कर लगता है की आप हमें देख कर खुश नहीं हुए।"बच्चों क़ो देख तों कोई भी खुश हो जाता है।

दक्षांश की बातें सुनकर सभी मुस्कुरा देते है और पृथ्वी कहता है, बाप शेर तों बेटा सवा शेर!! भाई सा !! क्या भाई सा, सुना नहीं. हमारे शेर ने क्या कहा !!!

रंजीत चीखते हुए कहता है, तों आप ने हमारे साथ छल किया भाई सा !!हमारे पोते के शादी के दिन आपका पोता किसी क़ो अपनी पत्नी बता देता है और उसके कुछ दिन बाद इतना बड़ा बच्चा कहता है की वो आपका पोता है, यानी प्रजापति खानदान का सबसे बड़ा वारिश।

कामिनी कहती है, हमारे नाक के निचे इतना बड़ा आप सबने खेल खेला लेकिन हमें खबर तक नहीं पड़ने दी। बहुत अच्छा जीजी।

कोई कुछ कहता उससे पहले दक्ष कहता है, हार्दिक!! उसकी बात सुनकर हार्दिक दक्षांश क़ो लेकर चला जाता है। फिर दक्ष कहता है, आप चाहे तों बैठ कर बात कर सकते है। लेकिन आपकी मर्जी नहीं हो तों हमें जबरदस्ती नहीं करेंगे।

आप हमारा अपमान कर रहे है दक्ष!! बिल्कुल नहीं दादा सा!!आपने आते के साथ छल, झूठ, धोखे भरी बातें कर खुद का और अपने ही खानदान के वारिश का अपमान किया है।

आपको तों खुश होने चाहिए लेकिन आप अलग परेशान है।

ये सुनकर राजेंद्र जी कहते है, आईये हम आप दोनों का इंतजार कर रहे थे किसी जरूर बात के लिए।

अब कौन सी जरूरी बात रह गयी है भाई सा !! जो आप सब क़ो करना था वो कर चुके अब क्या बचा है। रंजीत की बातें सुनकर पृथ्वी कहता है, आपकी समस्या क्या है ?? बच्चा हमारे घर का है बात यही खत्म हुई। बड़े दादू बताईये क्या बात है !!

राजेंद्र जी फिर कहते है, रंजीत बैठ जाईये नहीं तों फिर आप कहेंगे की हमें क्यों नहीं बताया बैठिये। तभी लक्षिता कहती है, हम कैसे मान ले की ये बच्चा हमारे खानदान का है। उसकी बात सुनकर सभी क़ो गुस्सा आ रहा था। लेकिन तुलसी जी कहती है, बच्ची आप यहाँ पैदा नहीं हुई थी अपने ननिहाल मे हुई थी और ज़ब आप एक. वर्ष की थी तब आपकी माँ सा ने आपको यहाँ लाया था। तों ये बताईये की हमें कैसे मान ले की आप हमारे घर की बच्ची है।

तुलसी जी की बातें सुनकर कामिनी और लक्षिता जोर से कहती है, बड़ी माँ, जीजी !! आप मेरा और मेरी बेटी की अस्तित्व पर सवाल उठा रही है।

कामिनी की बातें सुनकर तुलसी जी कहती है, तों आप हमारी होने वाली रानी की अस्तित्व पर सवाल. उठाने वाली है कौन !! ज़ब हम सब मानते है की दक्षांश हमारे दक्ष और दीक्षा का बच्चा है। हमारे खानदान की चौथी पीढ़ी की पहली संतान है वो !! ख्याल रहे दोबारा हमारे खानदान के तिलक के लिए एक भी अपशब्द किसी ने निकाला तों हम तुलसी प्रजापति उसकी जुबान खींच लेगे।

आज आप दोनों की पहली और आखिरी गलती समझ हम आपको छोड़ रहे है। आइंदा ख्याल रहे की आप किसके बारे मे गुस्ताखी कर रही है। समझी।

तुलसी जी का ये रूप आज पहली बार सब देख रहे होते है, क्योंकि वो हमेशा सौम्यता की देवी रहती है।

उनका ये रूप देख कामिनी और लक्षिता क्या रंजीत भी चुप होकर बैठ गया...!

तुलसी जी का यह रूप देखकर  घर का एक सदस्य हैरान था, क्योंकि आज तक किसी ने उनको इतने गुस्से मे नहीं देखा था।

पृथ्वी कहता है, छोटे ये आज माँ गौरी माँ चंडी कैसे बन गयी !! दक्ष कुछ कहता उससे पहले तुलसी जी कहती है, उसका जबाब हम आपको बाद मे देंगे साहबजादे !! पृथ्वी क़ो डांट खाते देख, अब तो सबकी हिम्मत पस्त हो गयी थी। सभी चुप थे।

राजेंद्र जी उनकी यह उनका यह रूप देखकर बिल्कुल हतप्रभ हो गए और उन्हें धीरे से कहते है, रानी सा!!

तुलसी जी, उनकी तरफ देख कर कहती हैं, " आज नहीं राजा साहब !! फिर कामिनी और रंजीत की तरफ देखती हुई, " हमने आप दोनों की हर हिमाकत क़ो नजरअंदाज किया, जानती है क्यों ? क्योंकि हम टूट चुके थे हमारे चारों बच्चों के जाने के बाद। आप क्या समझेगी उस माँ का दुख, जिन्होंने अपने बच्चों क़ो आखिरी बार नहीं देखा। हमारे बच्चे दुनिया से चले गए लेकिन हमें उनका मृत शरीर तक नसीब नहीं हुआ। हमारी आत्मा मर गयी हमारे बच्चों के साथ और हमने खुद क़ो समेट लिया। सिर्फ हमारे बच्चों की निशानी सलामत रहे उस लिए।

लेकिन आप दोनों ने हमारी चुपी का मतलब ही गलत समझ लिया । आज आप दोनों और आपके जो भाई है उनको भी ये बात ध्यान से कहियेगा का की कुछ भी करे, लेकिन जरा सम्भल कर करे। अगर अगली सी तीखी नजर भी हमने देखी किसी की हमारे परपोते की तरफ तो "माँ भवानी की सौगंध, " वो हमारा वो रूप देखेंगे जो कभी किसी ने नहीं देखा होगा।

जो भी बातें करनी है बिल्कुल तमीज और तहजीब के दायरे में कीजिए आप दोनों और इसमें हमारे राजकुमार को शामिल करने का कोशिश मत कीजिए। वह हमारे घर का अंश है। वह हमारे खानदान की चौथी पीढ़ी का पहला अंश है। तो ध्यान रहे हमें उसकी रानी दादी माँ है और हम उसकी कवच है।

यह  कहती हुई वो बैठ जाती है। तुलसी जी का यह रूप देखकर आगे किसी को कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती सभी बैठ जाते हैं और दीक्षा वगैरह सभी पीछे खड़ी होती है। राजेंद्र जी कहते हैं, "  हम चाहते है की अब राज्याभिषेक दक्ष का हो जाना चाहिए, बाबा साहब की वसीयत के मुताबिक अब राजा का भार दक्ष क़ो संभाल लेनी चाहिए ।क्या इसमें किसी क़ो कोई एतराज है। यह सुनकर सभी कहते हैं, "बिल्कुल नहीं!! अब जरूरी है।राजेंद्र, कमीनी और लक्षिता तो तुलसी जी रूप देख चुप रहना बेहतर समझा।

राजेंद्र जी कहते हम जितना जल्दी हो सके यह राजा का पद त्याग,  आराम से अपने पर पोते के साथ रहना चाहते हैं। इसके लिए हमने फैसला लिया है कि,कल कुल पुरोहित क़ो बुला कर,उनसे हम अच्छी मुहूर्त निकलवा लेते हैं ताकि राज्याभिषेक की तैयारी की जा सके। हमें उम्मीद है कि इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी। सभी एक साथ सहमति देते।हमारी इक्क्षा है की एक जश्न रखा जाए जिसमे हम हमारे परपोते के बारे मे दुनिया क़ो बताये।बताईये लक्ष्य, पृथ्वी क्या ख्याल है आप सभी है।

दोनों एक साथ कहते है, ये सही रहेगा, बड़े बाबा सा!! हम पहले राजभिषेक की मुहूर्त निकलवा लेते है। उसके मुताबिक जश्न रखेंगे। राजेंद्र जी दोनों की बात सुनकर कहते है,"हाँ यह ठीक रहेगा।

सभी उठ कर खास कर रंजीत, कामिनी और लक्षिता उठ कर चले जाते है।

दक्ष को किसी का फोन आता है। दक्ष कहता है दादीसा मुझे किसी काम से बाहर जाना है। तुलसी जी कहती है ठीक है। दक्ष के साथ पृथ्वी,रौनक,अनीस और अतुल निकल जाते हैं। उन सबको ऐसे जाते देख। दीक्षा कहती है रानी मां। जैसे ही दीक्षा रानी मां कहती है, तुलसी जी समझ जाती है कि वह किसी बात की अनुमति मांग रही है।

तुलसी जी मुस्कान लिए कहते हैं,महारानी बिंदनी। दीक्षा उनके सामने आगे आकर सर झुका कर कहती है, " जी दादी माँ!! । तुलसी जी कहती है, " आपको कहीं जाना है। यह सुनकर दीक्षा सब की तरफ सामने देखती है, जहाँ शुभ, कनक के साथ सभी उसे इशारे से हाँ मे अपना सर हिलाने क़ो कहती है । दीक्षा बहुत मुश्किल से कहते हैं, " वो.. हाँ....दादीसा मुझे!!

तुलसी जी हंसते हुए कहती हैं, "जाइए। वह मुस्कुरा कर कहती है,"मैं"। तुलसी जी कहती है,"अरे अपने साथ अपनी जोरीदारों क़ो लेती जाईये जो पीछे से इशारे कर रही है। दीक्षा मुस्कुराकर सर हिला देती। यह देख सुमन जी के साथ सभी कोई हंस देते। तुलसी जी कहते जाइए जरूर लेकिन दक्ष के लौटने से पहले लौट आइए। जी दादी माँ!!"

फिर तुलसी जी कहती है, हमारे राजकुमार कहाँ है, अब उन्हे बुलाइये लक्ष्य !! सभी बच्चों की बारी हो. गयी अब हम. बड़े भी जरा अपने बच्चे क़ो जी भर कर देख ले। लक्ष्य कहते है, " अभी लाया बड़ी माँ  "!!

"बड़ी बिंदनी, सभी छोटी तो बाहर जा रही है। तो. आप सब कुछ चाय वगैरह का इंतजाम कीजिये, हमारा सर दुख रहा है।"तुलसी जी की बातें सुनकर, राजेंद्र जी कहती है, इतनी गर्मी दिखाएगी तो सर दुखेगा ही रानी सा!! निशा बिंदनी चाय के साथ कुछ पकोड़े भी मिल जाते तो..... अच्छा होता।

तुलसी जी कहती है, और कुछ हो तो फरमा दीजिये राजा साहब !! दिमाग़ तो हमारा गरम है लेकिन गर्मी. आपको चढ़ी हुई है। तभी दक्षांश की आवाज़ आती है, जिसे देख तुलसी कहती है,"आ गए हमारे लाडेसर "!!!!

इधर भुजंग राठौर के घर में गुस्से से विराज कहता है

,"  दक्ष प्रजापति का 7 साल का बेटा है क्या आपको मालूम था? यह सुनकर सबकी आंखें बड़ी हो जाती है ओंकार कहता है हां!!   7 साल पहले उसका और दीक्षा का रिश्ता था। इसी दक्ष की वजह से दीक्षा मुझसे रिश्ता तोड़ कर वहां से भाग गई थी अपने दोनों दोस्तों के साथ।

विराज गुस्से में भुजंग राठौर की तरफ देखता है और कहता है मुझे नहीं मालूम था कि दक्ष का 7 साल का बच्चा है।

तभी भुंजग उठ जाता है और कहता है, " मुझे भी तुमसे मालूम हुआ। मानना पड़ेगा दक्ष प्रजापति वाकई बहुत पहुंची चिज है। फिर परेशान होते हुए दाता हुकुम की तरफ देखता है और कहता है, " अगर उसका 7 साल का बच्चा है तो इसका मतलब तुम समझ रहे हो दाता।

दाता हुकुम बहुत गंभीरता से कहता है बहुत अच्छी तरह से भुजंग। विराज कहता हैं,मुझे कोई समझाएगा आखिर हुआ क्या था, इस दक्ष प्रजापति के माँ बाप के साथ ? विराज की बातें सुनकर भुजंग कहता है तुम्हारे जाने लायक बातें नहीं है तुम रहने दो।

विराज गुस्से मे कहता है, ज़ब मै आप सबकी इस लड़ाई का हिस्सा बन ही चुका हूँ तो मुझे जानने का पूरा हक है की हुआ क्या था ? क्यों लक्षिता दीदी की आवाज़ मे खौफ थी ? क्यों वो आप सबको नफ़रत से देख रही थी, यहाँ तक की बुआ फूफा जी क़ो भी,!! इसलिये मुझे आज अभी इसी वक्त जानना है आखिर हुआ क्या था?

भुजंग उसकी आंखों का गुस्सा देख समझ जाता है कि वह अपनी बातें  मनवा कर ही रहेगा। इसलिए वह उसे भी कहता है पहले बैठ जाओ विराज मै तुम्हें सब कुछ बताऊंगा, लेकिन तुम उससे कुछ और मतलब नहीं निकलना। उस समय जो. भी हुआ वो सिर्फ और सिर्फ परिस्थिति के अनुरूप था। या यु कह लो की ताकत और जवानी के नशे मे हम सब चुड़ थे

और फिर बताना शुरू करता है।

जैसे जैसे वह बताना शुरू करता है  विराज और ओमकार की आंखें फैल जाती है। विराज अपने  अपने पिता के मुंह से यह सुनने के बाद। गुस्से मे कहता है, ये क्या किया आपने बाबा सा !! दुश्मनी मे कोई इस हद तक कैसे गिर सकता है। ओमकार कहता है, मेरी उससे दुश्मनी है, लेकिन मै भी इस हद तक नहीं जा सकता।आपने लोगों ने बहुत गलत किया।

विराज अपने पिता से कहता है आपने बहुत गलत किया बाबा सा  और कहां है वह आपका दोगला दोस्त? अब समझ मे आया की लक्षिता जीजी की आवाज़ मे खौफ क्यों था। दक्ष क्या बाबा सा !! अगर उसकी जगह मेरे साथ भी कुछ होता तो मै आपकी बोटी बोटी नोच कर कुत्तो क़ो खिला देता।

भुजंग उसकी  बात का कोई जवाब नहीं देता है और सिर्फ इतना कहता है, तुम्हें जितना जानना था बता दिया !! अब तुम अपने कमरे मे जाओ !!

वह गुस्से से राठौर  हवेली से बाहर निकल जाता है। ओमकार भी वहां से बाहर निकल जाता है और अपने घर की तरफ बढ़ जाता है।

इधर ओमकार ये सुनकर इतना परेशान था की वो घर ना जा कर क्लब चला गया। और उधर विराज गुस्से मे अपनी गाड़ी भगाये जा रहा था। उसका दिमाग़ सोच सोच कर फटा जा रहा था।

भुजंग क़ो परेशान देख, दाता हुकुम कहता है, क्या तुमने ठीक किया, उसे बता कर!! भुजंग कहता है, बिल्कुल ठीक किया वो मेरी तुरूप का इक्का है। जिसे मे ज़ब चाहे दक्ष प्रजापति की नींव हिला सकता हूँ।

भुजंग की बात सुनकर दाता कहता है, समझा नहीं !! भुजंग कहता है, वक़्त आने पर खुद मालूम हो जायेगा।

तभी उसे रंजीत का फोन आता है। उसका फोन देख भुंजग उठा कर कहता है, "खम्हाघणी जीजा सा "!! रंजीत उधर से उसे सब कुछ बता देता है।

फोन रखने के बाद, दाता पूछता है, क्या बात है !! भुजंग कहता है, उस राजेंद्र प्रजापति की बीबी आज बड़ी क्रोध मे थी। दक्ष की राज्यभिषेक की तैयारी की जा रही है। फिर उसे सब कुछ बता देता है, जो कुछ देर पहले उसे फोन पर रंजीत ने बताया था।