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नई सोच

अब सखी घर में बैठे सोच रही है,की क्या गिरधर को ही देखा था उसनेआज या उसका भ्रम है।चलो वो आते हैं तो पूछती हूं,

शाम की चाय के साथ ये लिखने का सिलसिला मुझे बहुत अच्छा लगता है,सखी सोच रही थी।सब काम से फ्री होकर मैं अपनी कविताओं कहानियों में डूब जाती हूं। कोई फिक्र नहीं होती कि कोई कुछ कहेगा।जब शादी करके आई थी तब भी कोई नहीं टोकता था । अच्छा परिवार मिला है मुझे।और चाय की चुस्की भरते कविता लिखने में लग गई।अचानक कई सारे सवाल उसके दिमाग में कौंध गए। गिरधर ही थे क्या, अचानक कुशल भी मिल गया।पता नहीं ये क्या कर रहे थे वहां।फिर अपने दिमाग को केंद्रित कर अपनी कविताओं को लिखने लगी।

ये हवाओं की आवाज़ भी कितनी सुहानी होती है।छूकर जब ये हवा जाती है, मुझमे आज भी कुछ अलग ही एहसास कौंध जाते हैं और हल्की सी मुस्कुराहट उसके होठों पर आ जाती है।

पता नहीं क्या सोच कर मुस्कुरा रही हूं ,लेकिन खुश हूं बस खुश हूं।

सखी आज बहुत खुश है,क्या कारण है उसके खुश होने का ,कुशल से मिली या कविता प्रकाशित हुई ।हम सब शायद एक ही बात सोच रहे हैं।

लेकिन क्या पता सखी क्या सोच रही है।

सखी कविताओं के दौर में डूब जाती है।कब उसकी आंख लग जाती है उसे पता ही नही चलता। कुछ आहट होती है सखी अचानक उठती है तो देखती है की गिरधर आ चुके हैं। अरे,आप कब आप मुझे उठा देते,सखी ने गिरधर की तरफ़ देख कर कहा।गिरधर ने कहा, कोई बात नहीं मैंने सोचा क्या करूंगा, तुम्हें उठाऊं ,तुम्हे बेकार में तंग करू।

ठीक है, मैंने चाय पी ली है ,तुम भी पी लो।सखी चाय का कप लेने किचन की तरफ़ गई।वहां देखा कि आज कोई कप नहीं है,गिरधर शायद आज उसके लिए चाय बनाना भूल गए। उसने बाहर झांका, गिरधर को देखा,तो वह अपने काम में मसरूफ़ था और थोड़ा परेशान भी।उसने सोचा कोई नहीं मैं खुद बना लेती हूं।फिर उसके मन के ख्याल उसे तंग करने लगे।ये तो कभी ऐसा नहीं करते थे कि, मेरे लिए बिना चाय बनाए और अकेले चाय पी ले ।हमेशा शाम की चाय गिरधार बनाया करते थे। तो आज गिरधर को क्या हो गया है।

ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ। क्या मुझे उनसे पूछना चाहिए या रहने देती हूं ,वह अपने काम में मसरूफ़ है, फ्री होंगे तो मैं पूछूंगी। कुछ देर बाद सखी ने गिरधर से पूछा कि - आज चाय अपने लिए ही बनाई । मेरे लिए बनाई नहीं। गिरधर ने कोई जवाब नहीं दिया बस ये कहा थोड़ा ज्यादा व्यस्त हूं, और कुछ नहीं।

सखी ने हम्म कह कर टाल दिया।फिर भी मन की परेशानियां कहां कम होने वाली थीं। सखी फिर अपने काम में लग गई।

वही रोज़ के काम करके बिस्तर पर लेटी ,कब नींद के बोझ तले उसकी आंखे बंद हो गई पता ही नहीं चला। फिर एक नई सोच और नए अहसास के साथ उठने के सपने देखते हुए।