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जो तुम आ गए

शायद आपको लग रहा होगा वही पुराना घिसा पिटा शीर्षक ,वही कहानी होगी।

सही लिखने को कुछ नया तो नहीं हैं,बस एक दिल की कहानी है जो धड़कता है, सांस लेता है, सपनो की उड़ान भरता है।

आज कई दिनों के बाद, सखी लिखा रही थी, क्योंकि ये लिखने का शौक उसको बचपन से ही था।लेकिन शादी के बाद शायद परिवार और बच्चो में ऐसी खोई की उसे पता ही नहीं चला की लिखना वो कब भूल सी गई।

बच्चो और परिवार से फुर्सत निकाल कर वो लिखने लगी थी।सोचती क्या यही चाहत थी उसकी या ऐसा वो नहीं चाह रही थी। इसी उधेड़ बुन में लगी वो लिखने की कोशिश कर रही थी की अचानक उसे घर में कोई आवाज़ आई।वो सकबका के उठी तो देखा की उसके पुराने दिनों का साथी आया है।

उसने किसी को न देखा और तपाक से बोली,"अरे! कुश तुम आज इतने दिनों के बाद।

सबकी निगाहें उसके इस वाक्य पर रुक गई थी।ये कुश कौन है? अचानक सास ने पूछा।वो सन सी रह गई । सास बोली इनका नाम तो ," कुशल है ना।

हां मांजी। कुशल ही बोला था । ठीक है लेकिन बिना सर ढके यूं ही बेबाक सी यहां चली आई। वो पानी के जग की तरफ इशारा कर सखी कहने लगी पानी पीने आई थी , तेज़ प्यास लगी थी।

हम्म्म... जाओ अंदर जाओ। सखी अंदर चली गई।

और कुशल आज कैसे आना हुआ ,गिरधर ने पूछा।अरे!बहुत सालो बाद आए हो।हां,कुछ सालो के लिए बाहर गया था,कुछ जरूरी काम था तो वापस आया हूं। यहां से गुजर रहा था,बस सोचा तुमसे मिलता चलूं।

अरे! मैं तो आपको बताना ही भूल गई ,गिरधर कौन???? गिरधर सखी का पति।

तो ठीक है अंदर आ , बैठ,और बता, गिरधर ने कुशल से कहा।बस ठीक हूं तू बता।बस बातों का सिलसिला चल पड़ा।इतने में ही सखी चाय लेकर आई और कुशल को चाय का कप पकड़ाने लगी, कुशल उसे देख सोच रहा था,ये वही हसती, चहचहाती सखी है जिसे मैं जानता था।ये खामोशी तो उसके होठों पर कभी छाई ही नहीं। कितना कुछ बदल गया है बस आज भी नहीं बदला तो उसकी लट का उसके गालों को छूना, उसके शब्दों का जादू,ना ही उसकी असर करती निगाहें।

अचानक गिरधर ने बोला," कुशल ,कुछ तो लो चाय अकेले ही पिओगे।

कुशल ने एक बिस्कुट उठाया और फिर बातों में लग गया लेकिन अब बातों का हिस्सा सखी भी थी।

कुछ घंटे बीत गए, बातों बातों में पता ही नहीं चला ,मुझे तो खाना बनाना है।आज सखी खुश थी उसकी मधुर मुस्कान लौट आई थी।

खाना खा कर कुशल भी अपने घर चला गया। वहीं सखी अपने लिखने में लग गई ।

पूरा दिन कहां चला गया पता ही नहीं चला।

एक नई सुबह की उम्मीद में कब नींद में खो गई पता ही नहीं चला। बस अब कल की सुबह का इंतजार था,कोई वादा नहीं था आने का उससे फिर भी तेरा इंतजार था।