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बावळा

यह कहानी एक सच्ची घटना से प्रेरित है जिसमें कहानी के एक पात्र का ही इसे लिखने के लिए प्रोत्साहित करने में योगदान रहा है. यह पूर्णतः हूबहू वैसी नहीं है लेखिका ने कुछ काल्पनिक बदलाव भी किए हैं और काल्पनिक भाव भी समाहित किए हैं.

sharmaarunakks · Realistis
Peringkat tidak cukup
19 Chs

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प्यार के लिए तड़पते बावळे के लिए संजीवनी बन सखी जयपुर घूमने आ रही थी. बावळे को सखी के जयपुर आने का संदेश मिला. बावळा उसकी याद में सचमुच बावळा हो उठा था. पुराना प्यार उसके दिल में हिलोरे लेने लगा था. बरसों बाद सखी का सानिध्य पाने की कल्पना से बावळा खिल उठा था. सखी के साथ घूमने का याद करना उसके तन-मन को पुलकित कर रहा था. पुष्कर जाते समय सखी जानबूझकर कर उल्टी का बहाना कर आगे की सीट पर बैठ गई. सखी बहुत खुश थी. अपने प्रियतम के साथ बैठ उसका दिल बल्लियों उछल रहा था. रास्ते में सखी का कथित पति, बेटी व भतीजा शौचालय के लिए गाड़ी से उतर कर गए. तभी बावळे ने सखी को अकेली पा उसके गालों को चूम लिया. सखी को बरसों की तम्मना पूरी हो गई. जिस प्रियतम से वह कुंवारी बिछुड़ी थी आज 20 वर्ष बाद मिली थी. उसके होठों का स्पर्श पा वह खिल उठी. शर्म से उसकी नजर झुक गई. फिर उसने चुपके से उसके की तरफ हौले से देखा. बावळा मंद-मंद मुस्कुरा रहा था. उसने अपने गाल पर इशारा करते हुए सखी से कहा

"मुझे भी मीठी दो."

सखी ने शर्माते हुए ना में सिर हिला दिया. तभी सखी का कथित पति, बेटी और भतीजा आ गए. सब गंतव्य की ओर चल दिए. आज सखी का मन मयूर हो नाच उठा. गाड़ी सड़क पर सरपट दौड़े जा रही थी. बावळे ने पुराने प्रेम गीत लगा रखे थे. बावळा गाहे-बगाहे गुनगुनाता रहता था. आज तो उसकी प्रेयसी उसके आलिंगन में बैठी थी. वह सुकून महसूस कर रहा था. वह पत्नी को इसीलिए अपने साथ नहीं लाया था न ही चलने की मनुहार ही की थी. सखी ने भी सुमन को साथ चलने को नहीं कहा. वह चाहती भी नहीं थी कि वह उसके साथ जाए.