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बावळा

यह कहानी एक सच्ची घटना से प्रेरित है जिसमें कहानी के एक पात्र का ही इसे लिखने के लिए प्रोत्साहित करने में योगदान रहा है. यह पूर्णतः हूबहू वैसी नहीं है लेखिका ने कुछ काल्पनिक बदलाव भी किए हैं और काल्पनिक भाव भी समाहित किए हैं.

sharmaarunakks · Realistis
Peringkat tidak cukup
19 Chs

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समय अपनी गति से बढ़ रहा था. विद्यालय का वार्षिकोत्सव था. बावळे द्वारा सिखाए नाटक का फिर से मंचन होना था. आशा भी अपने बेटे का नाटक देखने गई थी. बावळा भी वहां आया था. आशा ने ना जाने क्यूँ बावळे को फ़ोन कर अपने आने का कहा. बावळा दूसरी तरफ बैठा था उसने कहा

"आप करण का अभिनय देखो कितना अच्छा किया है. मैं उधर ही आपसे मिलने आता हूँ."

बावळा आकर आशा के पास बैठ बातें करने लगा. बातों-बातों में बताया कि उसके पिताजी बहुत बीमार है और अस्पताल में भर्ती हैं.

"मुझे जल्दी जाना होगा."

आशा ने कहा

"वो जल्दी ठीक हो जाएंगे. हमारी शुभकामनाएं है."

"आप भी. अपना ध्यान रखना."

आशा ने पूरा कार्यक्रम देखा. शाम को अपने बेटे के साथ घर आ गई. अचानक उसने व्हाट्सएप पर बावळे का संदेश देखा. बावळे ने उसे धन्यवाद का संदेश दिया था. वह समझ नहीं पाई यह संदेश किस बात के लिए था. अब तो रोज गाहे-बगाहे संदेश आने लगे. कभी गुड मॉर्निंग गुलाब के साथ. कभी मनवार करते हुए मेरे संदेश का जवाब दो. आशा मुस्कान की इमोजी भेज देती. बावळे के लिए तो आशा उसकी एंजेल थी. वह उसे एंजेल कहकर ही बुलाता था. कभी-कभी फ़ोन भी करता व अपने प्यार का इज़हार भी करता. आशा हंस कर टाल देती. वह तो इसे एक मजाक समझ कर टाल देती क्योंकि बावळा भी शादीशुदा था. 2 बच्चों का बाप था, आशा भी 3 बच्चों की माँ थी.